अपने अंगों को धार्मिकता के हथियार होने के लिये परमेश्‍वर को सौंपो। रोमियों 6:13-22

मैं स्वयं को शुद्ध करके बचा नहीं सकता मैं सोने को पाप बली करके नहीं चला सकता मैं संसार का छुटकारा नहीं करा सकता मैं जो गलत है उसे ठीक नहीं कर सकता और ना ही मैं अशुद्ध को शुद्ध कर सकता ना ही जो अपवित्र है उसे पवित्र कर सकता हूं। यह सारे कार्य सर्वशक्तिमान परमेश्वर के हैं। जिसने यह शो नहीं किया क्या मेरा भरोसा उन चीजों पर है? उसने मानव जाति का छुटकारा किया क्या मैं निरंतर इस बात पर ध्यान रखकर विश्वास करता हूं? महानता कार्यों को करने में नहीं परंतु यहां तो महानता उन बातों पर जो की गई हैं भरोसा करने पर हैं। यीशु द्वारा छुटकारा एक अनुभव नहीं है यह तो पिता परमेश्वर का महान कार्य है जिसे उसने यीशु द्वारा किया और उस पर मुझे अपना विश्वास स्थापित करना है। यदि मैं अपने विश्वास को मात्र अपने अनुभवों पर आधारित रखूं तो मैं अपने विश्वास को पवित्र शास्त्र पर आधारित ना करते हुए एक एकांत में जीवन जिऊंगा। और मेरी आंखें उसी पर विश्वास करेंगे जिसे मैंने देख लिया है। प्रभु द्वारा दिए छुटकारे में याद रखें कि आपकी धार्मिकता का कोई स्थान नहीं है यह तो मात्र एक आपका अपना राग है। यह परमेश्वर के लिए अनावश्यक और मनुष्यों के लिए बेवकूफी है। हर एक प्रकार के अनुभव को हमारे प्रभु स्वयं जांचें। जब तक हम स्वेच्छा से परमेश्वर द्वारा उपलब्ध कराए गए छुटकारे पर अपना भरोसा स्थापित नहीं करते तब तक हम किसी भी तरह से परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते।

यीशु द्वारा पाप के छुटकारे के कार्य को बिना दिखावे के जीवन में प्रयोगिक रूप में प्रदर्शित करना है। प्रत्येक बार जब मैं कहना मानता हूं मेरे साथ रहता है जिसके द्वारा परमेश्वर की दया और प्राकृतिक रूप से आज्ञाकारिता मुझ में वास करती है। आज्ञाकारिता का अर्थ है कि मैंने अपना सब कुछ पापों के छुटकारे के लिए समर्पित कर दिया और मेरी आज्ञाकारिता परमेश्वर की उस आनंदमय अलौकिक दया की भागी होने पाई।

दिखावे की धार्मिकता से सावधान रहें जोकि प्राकृतिक जीवन में पाई जाने वाली धार्मिकता को नकारती है, जो कि मात्र धोखा है। स्वयं को निरंतर उद्धार पाए हुए मापक के पास बनाए रखें। यहां पर तुलनात्मक रूप से देखिए की पापों के छुटकारे की पहचान कहां मिलती है?

-ओसवाल्ड चैंबर्स से ज्ञान

विचार

यह तो बीच वाला भाग है जहां पर मनुष्य अपना चुनाव करता है। जन्म और मृत्यु प्रभु परमेश्वर की ओर से नियुक्त और मनुष्य इनके बीच वाले थोड़े से भाग में ही अपने स्वयं लिए तनाव और आनंद को स्थापित करता है।

 

 

 

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