अपनी मासूमियत खोने पर देखभाल करने वालों इस प्रकार से बदलते चले गए जिसकी उन्होंने आशा भी नहीं की थी,पहली बार ऐसा हुआ था कि वह राजा को देखना नहीं चाहते थे, अचानक से उन्हें अपने आप को ढांकने और छुपने की ज़रुरत महसूस हुई थीI पहले कभी भी उन्होंने किसी भी बात के लिए एकदूसरे पर दोष नहीं लगाया था, आने वाले समय में उन्हें भय का मतलब समझ में आ गया, जब राजा ने उन्हें ढूंडा तब उसने उन्हें नम्रता से मनाते हुए प्रश्नों के उत्तर माँगेIवे क्यों छुप रहे थे?किसने उन्हें कहा कि उन्हें खुद को ढांकने की ज़रुरत है?क्या वे उस रास्ते पर चले गए थे जिस रास्ते से उसने उन्हें बचने के लिए कहा था?

देखभाल करने वाले पकड़े गए थे परंतु उन्होंने जो कुछ भी किया था वे उसकी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थेI पुरुष ने स्त्री पर दोष लगायाI स्त्री ने विद्रोही पर दोष लगाया यद्यपि विद्रोही ने कुछ नहीं बोला परन्तु उसकी आँखों में राजा के प्रति तिरस्कार भरा थाI देखभाल करने वाले असमंजस और भयभीत थेI कुछ समय पहले वे राजा और एकदूसरे के प्रति स्नेह का आनंद ले रहे थे,मगर अभी वे भयभीत थेI

देखभाल करने वाले पकड़े गए थे परंतु उन्होंने जो कुछ भी किया था वे उसकी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थेI

हालांकि, राजा उस जोड़े को अपने प्रति उनके विश्वास की विफ़लता के लिए क्षमा करना चाहता था उसने उनके चुनाव के परिणामों को नज़रंदाज़ नहीं किया वह उन्हें बगीचे के घर में रहने की अनुमति नहीं दे सकता थाI यदि वह उन्हें जीवन के वृक्ष तक पहुँचने देता है तो वे उम्र बढ़ने और मरने की प्रक्रिया को उलट देंगे जो पहले ही शुरू हो चुकी थीI

असीमित समय और स्वतंत्रता के साथ,रखवाले तेज़ी से आत्मलीन बन जाते,वे राजा से ही नहीं बल्कि एक दूसरे के साथ भी दूरी बना लेते और इसीलिए ताकि वे सदा अपने इस बदली हुई स्तिथि में न रहे, राजा ने उन्हें बगीचे से हटा दियाI बगीचे के बाहर भी राजा उनका भरण-पोषण करता रहा,परन्तु रिश्ता बदल चुका थाIदेखभाल करने वाले अब राजा पर पहले जैसा भरोसा नहीं करते थेI

चुनाव की विरासत

भले ही राजा पहले परिवार के करीब रहा, मुसीबत ने उनका पीछा कियाI जैसे देखभाल करनेवाले बगीचे के बाहर अपने जीवन को पुनः स्थापित कर ही रहे थे कि उनके पहिलौठे पुत्र ने उनका दिल तोड़ दियाI क्रोध के एक क्षण में उसने राजा की विनम्र सलाह का विरोध किया और फिर अत्यधिक क्रोध के आवेश में उसने अपने छोटे भाई की हत्या कर दीI उनका जीवन फिर कभी भी पहले जैसा न हो सका अब फिर से कभी भी पीछे लौटना संभव नही थाI अब भले और बुरे के ज्ञान से कही अधिक यह एक स्वतंत्रता का रहस्मयी वृक्ष बन गया था ,यह एक पछतावे और हानि की विरासत बन गया थाI बेटा भगोड़ा बन गया थाI अपने माँ-बाप के दुःख के साथ नहीं जी पाने के कारण वह एक निर्मूल(जड़हीन) पथिक/बंजारा बन गया थाI हमेशा चलते रहना, कभी भी विश्राम नहींI उसने जो किया था और वह क्या बन गया था उसकी याद से वह कभी बच नहीं सकाI समय के साथ पहले जोड़े को और भी बेटे और बेटियाँ पैदा हुईI

देखभाल करने वालों के बच्चे बढ़ते गए और राजा के बारे में उनका ज्ञान नित्य घटता गयाI तालाब के और अलाव(कैंपफायर) के इर्द-गिर्द बैठ कर परिवार के बुज़ुर्ग सदस्य महान राजा की कहानियाँ सुनाया करते थेIपरन्तु अधिकांश बच्चे अतीत की तुलना में वर्तमान में अधिक रूचि रखते थेI प्रत्येक नयी पीढ़ी में राजा की परवाह किए बिना जीने और मरने की इच्छा सूर्योदय और सूर्यास्त की तरह दोहराई जाने लगीi

विनाशकारी बाढ़ में भी पृथ्वी के अधिकांश देखभालकर्ताओ का सफाया कर दियाI बचे हुए लोगों के बच्चों ने श्वशासन के अपने अधिकार की घोषणा को जारी रखाI जो राजा के प्रति सच्चे थे वे संख्या में कम और चरित्र में असंगत/अदृढ़ थेI जैसे-जैसे राजा के नागरिक उसके मूल्यों और दर्शन से दूर होते गए, उनमें उसकी समानता को देखना मुश्किल हो गयाI बलवानों ने कमजोरों पर अत्याचार कियाI पारिवारिक मतभेद बढ़ते गएI मनमुटाव के कारण परिवार के सदस्य आपस में दूरी बना लेते हैI अगुवे सतर्क हो जाते हैI उन चलन/प्रवृतियों को जो उन्हें अलग कर रही थी उन्हें पलटने के लिए परिवार को एक ऐसी योजना की आव्यशकता थी जो उन्हें पुनः एक साथ जोड़ सकेI

एक दर्शन उभराI परिवार एक इतने बड़े शहर का निर्माण करेगा कि बच्चों को दूर जाने से रोका जा सकेIएक ऐसे शहर के केंद्र के साथ जो बादलों को छूता होI जो भी उसे देखेंगे, वे अपनी उपलब्धियों पर गर्व करेंगेIउन सड़कों पर चलने वाले सभी लोग मानव सहयोग के अनंत गौरव और संभावनाओं से प्रेरित होंगेIपरन्तु निर्माणकर्ता राजा के दर्शन को भूल गए थेI जैसे नया दिन निकला,निर्माणस्थल पर अस्त्व्यवस्ता की स्तिथि थीI संचार बाधित हो गया थाIएक ही परिवार के सदस्य आपस में बात कर सकते थे लेकिन दूसरे कुल के सदस्य के किसी भी व्यक्ति को नहीं समझ सकते थेIकुछ ही समय के भीतर महान शहर का सारा कार्य रुक गयाI शीघ्र ही सभी कारवां अपने भाषा समूह के साथ सभी दिशाओं में धूल उड़ाते हुए अपने लिए एक जगह तलाशने के लिए निकल गए जिसे वे अपना कह सकते थेI

राजा की योजना

अपने सपने को खोने के बाद भी अधिकांश परिवार को राजा का दर्शन याद नहीं आयाIउन्होंने इस बारे में बात की क्या गलत हुआ था और वे क्यों शांति से एक दूसरे के साथ रहने में सक्षम नहीं थे,परन्तु, उनके दिल में एक स्वतंत्र दुनिया के लिए कोई जगह नहीं थी जहाँ सभी जन महान राजा के मूल्यों को साझा करते और एक दूसरे की मदद करते जिस तरह से वह उनकी देखभाल करता थाI

इसलिए राजा ने एक नया तरीका अपनाया उसने अपना परिचय एक ७५ वर्षीय देखभाल करने वाले से कराया और एक प्रस्ताव रखा:”अपना घर छोड़ दे और मेरे पीछे हो ले, मैं तुझे एक नयी मातृभूमि/पितृभूमि/, ढेर सारे बच्चे और पृथ्वी के सभी परिवारों के लिए अपने प्यार की विरासत दूंगाI बूढ़ा आदमी और उसकी पत्नी कई वर्षो से बिना संतान के जी रहे थे,और अपना खुद का बेटा और बेटी होने की आशा भी छोड़ चुके थेIउनका नि:संतान होना एक पीढ़ादायक विषय होगा विशेषकर जब देखभाल करने वाले का नाम “महान पिता” होI

राजा ने देखभाल करने वाले से अपना आश्वासन दोहराया कि उसके बच्चों के द्वारा संसार को आशा मिलेगीI

इसलिए उन्होंने प्रतीक्षा की,परन्तु लगभग 25 वर्ष तक दम्पति की प्रतीक्षा से सन्तन नहीं आयाI अंततः राजा ने देखभाल करने वाले से अपना आश्वासन दोहराया कि उसके बच्चों के द्वारा संसार को आशा मिलेगीIयहाँ तक कि उसने बूढ़े आदमी को नाम भी दिया जिसका अर्थ था “बहुतों का पिता”Iफिर जब वह आदमी 100 वर्ष का और उसकी पत्नी 90 वर्ष की हुई,तब एक असंभव हुआI बूढी औरत ने एक पुत्र को जन्म दियाIउसका जन्म इतना अद्भुत था और उनके लिए इतना सारा आनंद ले कर आया था कि उसका नाम जिसका अर्थ हास्यमय (हँसी) रखा जो एकदम उपयुक्त थाI

राजा का परिवार

दो पीढ़ियों के भीतर परिवार 12 पुत्रों,उनकी पत्नियों और कई बच्चों का कुल(घराना) बन गया थाIभले ही अन्य देखभाल करने वालों के परिवारों की तुलना में वे अभी भी एक छोटा परिवार ही थेI “निःसंतान बूढ़े दंपति” के बच्चे भाग्य/नियति का परिवार बन चुके थेIआने वाले बाद के वर्षों में राजा इस चुने हुए परिवार को पृथ्वी के परिवारों के सामने खुद को प्रकट करने के लिए इस्तेमाल करने की अपनी योजना का ख़ुलासा करता हैI

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कुछ मामूली घरेलू बहस और पड़ोसियों के साथ झगड़े के अलावा परिवार के प्रारम्भिक वर्ष काफी सामान्य थेIसबसे महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब एक भीषण आकाल के दौरान कुल के लगभग 70 सदस्यों ने घर छोड़ दिया और भोजन की तलाश में दक्षिण की यात्रा को निकल गएI क्योंकि महान राजा ने अप्रत्यक्ष रूप से उनकी मदद करते हुए उनके लिए रास्ता तैयार किया इसलिए परिवार को दक्षिणी पड़ोसियों में बीच शरण और कृपादृष्टी/अनुग्रह मिलाI दक्षिण के राजकुमार ने उन्हें न केवल भोजन दिया बल्कि उपजाऊ नदी डेल्टा की समृद्ध मिट्टी में अपनी फ़सल लगाने के लिए ज़मीन भी दीI हालांकि यह दक्षिण शरणस्थान उनका घर नहीं था फिर भी परिवार को डेल्टा पर परिस्तिथिया आरामदायक लगीIवहां उन्होंने घर बनाये,अपने बच्चों की परवरिश की और अपनी फसल भी काटीII तो भी, कुछ ही पीढ़ियों के भीतर परिवार की लगातार बढती संख्या ने पड़ोसियों को डरा दिया थाI राजकुमार जिसने उनके लिए इतना कुछ किया था, वह बहुत पहले ही गुज़र चुका थाIनए अगुवों को चिंता थी कि जिस परिवार ने उनकी सीमाओं के भीतर शरण ली थी वे उनसे आगे निकल जायेंगे और उन पर हावी हो जायेंगेIऔर इसलिए क्योंकि दक्षिण के अगुवे अभी भी उन पर प्रबल थे,उन्होंने परिवार को बलपूर्वक मजदूरी के लिए मजबूर कियाIकड़कते और चुभते हुए तेज़ चाबुक के प्रहार से सख्त अधिकारीयों ने दक्षिणी निर्माण परियोजना के लिए उनसे ईंटे बनवाने के लिए कड़ी धूप में लम्बे समय तक काम करवायाIबढ़ते ज़ुल्म से परिवार कराहने लगाI कहा था राजा? उसने उनके पुरखों से प्रतिज्ञा की थीI वह उन्हें क्यों नहीं निभा रहा था?उठते हुए ईंट-पत्थरों की धूल और धुएँ के साथ उनकी भी पुकार और तेज़ होती गयीI कहाँ था राजा? उसने उन्हें अकेला क्यों छोड़ दिया था?

बचाने के लिए एक रिश्तेदार

सारे सवाल तब जाकर शांत हुए जब एक अजनबी ईंट के भट्टे में आयाIउसकी आवाज़ दक्षिणी पड़ोसियों के जैसी नहीं थीI उसके हाथ में चाबुक नही थाIऔर उसकी भी कहानी परिवार के कुछ बूढ़े सदस्यों से मिलती जुलती थीIअजनबी के अनुसार वह परिवार का बच्चा थाI वह 40 वर्षों से निर्जन प्रदेश के पूरब दिशा में भगोड़े के रूप में रहाIफिर एक दिन अपने ससुर की भेड़ों की देखभाल करते हुए उस रिश्तेदार (अजनबी) ने राजा की आवाज़ सुनीIराजा ने कहा कि उसने परिवार की पुकार को सुना है और उसने रिश्तेदार को उन्हें गुलामी से बाहर निकालने और “प्रतिश्रुत देश” (प्रतिज्ञा के देश) में ले जाने के लिए भेजा हैI

सबकी नज़रें अजनबी पर टिकी थीI किसी अनजान,मामूली सी जगह से आया यह अतिथि (अजनबी) अपने आप को क्या समझता था? क्या वह पागल था? या क्या उसने सचमुच राजा से सुना था? परिवार को अपने सवालों का जवाब तब मिला जब उस रिश्तेदार ने उन्हें शक्तिशाली चिन्ह दिखाए जो साबित करते थे कि राजा ने ही उसे भेजा थाI हालांकि सभी को निराशा हुई जब उनके नए नेता के पहले प्रयासों ने मामले को और ख़राब कर दियाI जब रिश्तेदार दक्षिण के राजकुमार के सामने गया और उसने महान राजा के कहे शब्द उद्धृत किए(दोहराए) कि “मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे” तब उनकी समस्याएँ कई गुना बढ़ गईI राजकुमार अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने परिवार का जीवन और भी दयनीय बना दियाI

उसके बाद के आने वाले अंधकारमय दिनों में राजकुमार ने जितनी अपेक्षा भी नहीं की थी उससे कही अधिक उससे मिलाI महान राजा ने दक्षिण के राजकुमार और उसके लोगों पर राष्ट्रीय आपदा की एक श्रृंखला जारी कर दीI उसने मक्खियों, जूँओं और मेढकों की विपत्तियाँ भेजीI उसने राष्ट्रीय जल आपूर्ती को प्रदूषित किया और विनाशकारी तूफ़ान और अंधकार भेजातब राजा ने एक अंतिम कार्य की योजना बनाई जो राजकुमार की इच्छा को तोड़ देगाI परिवार को सुरक्षित रखने के लिए,राजा ने उन्हें एक मेमने को मारकर उसका लहू अपने घरों के दरवाज़े के दोनों अलंगों और चौखट के सिरे पर लगाएंI उस रात मृत्यु का आत्मा पूरे राष्ट्र के बीच में से गुज़राI जैसे दक्षिण के परिवार वालों को यह पता चलता है कि उनके पहिलौठे पुत्र की म्रत्यु हो गई है तब सभी आस पड़ोस में संताप और विलाप की चीखें सुनी जा सकती थीI परंतु जिन घरों के चौखटों पर लहू लगा थाI मृत्यु का आत्मा उन्हें बिना छुए छोड़ गयाI

जब उनके पड़ोसी शोक मना रहे थे,परिवार ने अपना सामान समेटा और जल्दी से ईंट के भट्टे से बाहर निकल गएI जब राजकुमार ने अपनी सेना इकट्ठी करके उनके पीछे भेजी तब राजा ने अपनी शक्ति से एक समुद्र में से रास्ता निकाल दियाI जब परिवार सुरक्षित दूसरी तरफ़ पहुँच गया तभी राजा ने परिवार का पीछा करने वालों को रोकने के लिए पानी छोड़ दियाI परिवार इतने नाटकीय ढंग से बचाया गया कि जल्द ही महान राजा की शक्ति की चर्चा पूरे क्षेत्र में फैल गईI दिन के समय तालाब के पास और रात के समय में अलाव के इर्द-गिर्द बैठ कर पड़ोसी सोचा करते कि राजा और उसके परिवार के साथ अब आगे क्या होगाI

सीखने का समय

आने वाले दिनों में,परिवार ने खुद को नयी समस्याओं के साथ पायाI एक सपने के समान छुटकारे के बाद वे खुद को एक बंजर,निर्जन स्थान में पाते है, शीघ्र ही बच्चे भूखे हो गए थेI पूरे शिविर में बहस छिड़ गई थीIमाओं के चेहरे भय से पीले पड़ गए थेI पुरुष परेशान हो कर एक दूसरे पर चिल्लाते हैI कोई भी ऐसे स्थान पर अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता थाI वे अपने साथ पर्याप्त भोजन,पानी या कपड़े नहीं लाये थेI बच्चों को बचाने के लिए जल्दी से दक्षिण के राजकुमार के तुरंत वापस लौटना ही एकमात्र रास्ता नज़र आता थाI

हालांकि,एक बार फिर,राजा ने उन्हें दिखाया कि वह अपने परिवार को नहीं भूला हैI इस परित्यक्त(त्यागे हुए) स्थान में जहाँ न भोजन खरीदा जा सकता था और न ही पानी मिल सकता थाI राजा ने जिस प्रकार से अपने लोगों की ज़रूरतों को पूरी करने में अपनी क्षमता दिखाई उसकी कल्पना भी नही की जा सकतीI उसने उन्हें भोजन और पानी प्रदान किया जिसकी उन्हें आव्यशकता थी, बाद में पहाड़ कि तलहटी में जो राजा की उपस्तिथि में जलता था और उसकी आवाज़ से कांप उठता था वहाँ उसने उन्हें उसके साथ और एक दूसरे के साथ रहना सिखायाI परिवार को जल्दी ही पता चल गया कि एक राजा महान गुरु है जो अपनी बात को समझाने के लिए दृश्य घटनाचक्र(विसुअल ड्रामा) का इस्तेमाल करता हैI एक बार-बार दोहराए गए पाठ ने कई भावनाओं को उभाराI राजा ने प्रत्येक घर के मुखिया को सावधानीपूर्वक चुन कर एक जानवर को एक पूर्व नियुक्त स्थान पर ले कर आने की आव्यशकता थीI परिवार कितना खर्च कर सकता है इस पर निर्भर करते हुए, मेमने, बकरी या पक्षी का म?