जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बनेI मरकुस 10:43

चित्रकार ने तेज़ी से अपनी कलाई को थोड़ा झटकते हुए और पैलेट से सफ़ेद रंग के छीटें मारे और काले कैनवास पर बैगनी बादल उभर आएI जैसे ही चित्रकार ने नीले और लाल रंग के छींटे डाले तो पहाड़ जल्द ही आसमान की ओर बढ़ गए और सफ़ेद चित्तीयों ने पहाड़ों को बर्फ़ से ढक लियाI और जब चित्रकार ने नीचे की ओर एक अजीब से चौंका देने वाले पीले रंग का स्प्रे (spray)उड़ाया तो ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरा दृश्य ही बर्बाद हो गया हैI

परन्तु जैसे चित्रकार कैनवास को तूलिका(brush) से लगातार हल्का रंग देता गया,एक छोटी नदी एक हरी चारागाह को सींचते हुए किनारे से उभरने लगीI जो पहले एक गलती की तरह दिख रहा था अब वह नया सा बन गया थाI कुछ और भी बेहतरI

चेलों को मसीह का एक नए राज्य का वादा एक लुभाने वाली संभावना सी लग रही थीI उन्होंने एक मसीहा के नेतृत्व वाली सरकार की कल्पना की थी जो यहूदी लोगों को रोमी सरकार के सताव/उत्पीड़न से उन्हें मुक्त करेगी और चेलों को अपने “मंत्रिमंडल” के रूप में नियुक्त करेगीI यहां तक कि चेलों ने इस बात पर भी विवाद किया था कि सबसे प्रमुख स्थान उनमे से किसको मिलेगा(मरकुस10:37,41)

चेलों को क्रूस एक बहुत भारी गलती दिख रही थी, एक पूरी तरह से पराजय(हार)I चेले उस चित्र को नहीं देख पा रहे थे जो यीशु बना रहे थे- एक ऐसा चित्र जिसमे अगुवा सेवा करने के लिए झुक जाता है, कमज़ोरी सामर्थ बन जाती है और जो अंतिम है वह प्रथम बन जाता हैI उन्हें यह एहसास ही नहीं होता है कि यीशु तब भी जीत रहे थे जब सब कुछ हारा हुआ सा प्रतीत हो रहा थाI

हम भी अपने लिए योजना बनाते है जो हमारे भलाई के लिए प्रतीत होती है जब तक कि उसका सामना हकीकत से नहीं होता हैI परमेश्वर कुछ अलग कर रहे होते है वह हमारी आत्मसंतुष्टि को झिंझोड़ देते हैI हम रचनात्मकता और सुंदरता की अपेक्षा कर सकते है जो हमारी कल्पना से भी बाहर होI मुख्य/महान चित्रकार हमेशा कुछ नया कर रहा होता हैI

आप को क्या लगता है कि चेलों को तब कैसा महसूस हुआ होगा जब उनके अगुवे को क्रूस पर चढ़ाया गया था?आपको ऐसा क्यों लगता है कि परमेश्वर के तरीके हमारे तरीको से अलग होते है?

स्वर्गीय पिता,हमें बुद्धि दे ताकि हम जीवन में आए अच्छे और बुरे आश्चर्यों को एक ऐसे मौके के रूप में देख सके जिसमें हम आप पर और आपकी भली योजना दोनो पर भरोसा कर सकेI

मारकुस 10:35-45

35 जबदी के पुत्र याकूब और योहन येशु के पास आए और उनसे बोले, “गुरुवर, हम चाहते हैं कि जो कुछ हम आपसे माँगें, आप उसे पूरा करें।” 36 येशु ने उत्तर दिया, “तुम लोग क्‍या चाहते हो? मैं तुम्‍हारे लिए क्‍या करूँ?” 37 उन्‍होंने कहा, “जब आपकी महिमा हो, तब हम दोनों को अपने साथ बैठने दीजिए−एक को अपने दाएँ और दूसरे को अपने बाएँ।” 38 येशु ने उन से कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम क्‍या माँग रहे हो। जो प्‍याला मुझे पीना है, क्‍या तुम उसे पी सकते हो और जो बपतिस्‍मा मुझे लेना है, क्‍या तुम उसे ले सकते हो?” 39 उन्‍होंने उत्तर दिया, “हाँ, हम ले सकते हैं।” इस पर येशु ने कहा, “जो प्‍याला मुझे पीना है, उसे तुम पियोगे और जो बपतिस्‍मा मुझे लेना है, उसे तुम लोगे। 40 किन्‍तु तुम्‍हें अपने दाएँ या बाएँ बैठाना मेरा काम नहीं है। ये स्‍थान उन लोगों के लिए हैं, जिनके लिए वे तैयार किए गये हैं।”41 जब दस प्रेरितों को यह मालूम हुआ तो वे याकूब और योहन पर क्रुद्ध हो गये। 42 येशु ने शिष्‍यों को अपने पास बुला कर उनसे कहा, “तुम जानते हो कि जो संसार के अधिपति माने जाते हैं, वे अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और उनके सत्ता-धारी उन पर अधिकार जताते हैं। 43 किन्‍तु तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्‍हारा सेवक बने 44 और जो तुम में प्रधान होना चाहता है, वह सब का दास बने; 45 क्‍योंकि मानव-पुत्र अपनी सेवा कराने नहीं, बल्‍कि सेवा करने और बहुतों के बदले उनकी मुक्‍ति के मूल्‍य में अपने प्राण देने आया है।”