Megan’s Heart
मीगन जब तीसरी कक्षा में पढ़ती थी तब सर्दियों मे वह अपने दस्ताने बिना ही घर आ जाती थी। जिसके कारण उसकी माता को बहुत गुस्सा आता था क्योंकि वह उसके लिए हर बार नए दस्ताने नहीं खरीद सकते थे 1 दिन उसके माता जी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने भी गन से कहा कि तुम्हें अब जिम्मेदार होना चाहिए ऐसा नहीं चलेगा।
जिसे सुनकर मीगन रोने लगी, रोते-रोते उसने अपनी मां से कहा क्योंकि मुझे नए दस्ताने मिलते रहते हैं इसलिए मैं अपने दस्ताने उनको दे देती हूं जिनके पास नहीं है।
अब वह 18 साल की हो चुकी है मीगन की मनपसंद बातों में से वह अब सोने को स्वयंसेवी करके लोगों की सहायता करती और शहर के बच्चों को कुछ सिखाती है। लोगों की सहायता करने के विषय में वह बताते हैं कि उसे पहले से गया था कि उसे यही काम करना है।
एक मसीह होने के नाते हमारा हृदय देने वाला होना चाहिए । याकूब हमें बताता है कि हमें वास्तविक रूप से कैसे स्वयं को देना है: “बेचारे अनाथ और विधवाओं की सुधि लो” (पद 27)
परमेश्वर से भी गंद की तरह का हृदय मांगे परमेश्वर के प्रेम के साथ आज्ञाकारी बनकर वह करें जो आपको वह करने के लिए कहता है। यह वही है जिसे हमें करना है।
– ऐन
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