जब जीवन निराशापूर्ण लगे तो चलते रहें !
कुछ साल पहले, मैंने और मेरे दोस्त ने बिना किसी गाइड (मार्गदर्शक) के नेपाल में अपेक्षाकृत सरल हेलंबु ट्रेक (लंबी कठोर पैदल यात्रा) का प्रयास किया था। इस बारे में हमने कुछ खोज की, और अपने फोन पर मानचित्र लोड करने के बाद यात्रा शुरू की।
यात्रा का पहला भाग बिना किसी बाधा के चला। हम प्रत्येक दिन के लिए अपने निर्धारित विश्राम स्थल तक पहुंचने में कामयाब रहे और हर जगह के अत्यधिक प्रभावशाली और आकर्षक दृश्यों से लगातार आश्चर्यचकित हुए। हालाँकि, बीच में कहीं भारी बर्फबारी होने लगी और ट्रैक (यात्रा-पथ) मोटी बर्फ से ढक गए। लेकिन खास (ठेठ) नेपाली अंदाज में, रास्ते में कुछ स्थानीय लोगों ने हमें आश्वासन दिया कि हम इसके बारे में चिंता न करें, बल्कि “बस उन ट्रैकरों की जोड़ी द्वारा छोड़े गए पैरों के निशान के पीछे चलें जो आपसे पहले गए हैं”।
भले ही हम अभी भी चिंतित थे, बर्फ से ढके सुंदर प्राकृतिक दृश्य ने हमारा हौसला बढ़ाया और हमें नई ताकत से भर दिया; और हम उस जोड़े के पैरों के निशान की दिशा में चलते रहे – जब तक कि उनका निशान अचानक गायब नहीं हो गया। मैं थका हुआ और घबराया हुआ था, लेकिन मैंने सोचा कि “हम इतनी दूर आ गए हैं कि वापस लौटना संभव नहीं है—बस चलते रहें ,आगे बढ़ते रहो!”
आख़िरकार, भूस्खलन स्थान (पहाड़ की मिट्टी, चट्टानों आदि का अचानक टूटकर नीचे गिरने की क्रिया) के साथ साथ चलते हुये हम बर्फ़ से बाहर आ गए, और हमें पता नहीं था कि हमें कब मदद मिलेगी या क्या हम अपनी नियोजित यात्रा के अंत तक पहुँच पाएँगे। शुक्र है हमें कुछ गांव वाले मिले और हम उनसे रास्ता (दिशा ) पूछ सके। हमारे छाले पड़ गए थे और हम थक गए थे। हमने रात में आराम करने के लिए और भोजन की उनकी आमंत्रण को कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार कर लिया।
हाल ही में, मैंने खुद को ऐसी स्थिति में पाया जिसने मुझे नेपाल की उस यात्रा की याद दिला दी। पिछले कुछ वर्षों से मेरा काम सुचारू रूप से चल रहा था। काम के दौरान मुझे मार्गदर्शन देने वाले गुरुओं का आशीर्वाद मिला, मेरा करियर लगातार प्रगति कर रहा था और इस दौरान मुझे नए कौशल (हुनर) सीखने में आनंद आया।
एक दिन मैं “खोया हुआ” महसूस करने लगा और अनिश्चित हो गया कि मेरा करियर सही रास्ते पर है या नहीं, इसलिए मैंने एक विभिन्न नौकरी ढूंढ़ने का फैसला किया। निराशा, सोच विचार, और खोज की अवधि के बाद, मुझे एक ऐसी नौकरी मिली जो मेरी “सपनों की नौकरी” लगती थी – केवल अज्ञात परिस्थितियों के कारण इसे स्थगित करने के लिए। परिणामस्वरूप, मैं बेरोजगारी के दौर में फंस गया और मुझे कानूनी मदद लेनी पड़ी है। ऐसे क्षणों में, मुझे आश्चर्य होता है कि क्या “सुरंग के अंत में कोई रोशनी है” अर्थात् क्या मुझे कोई संकेत मिलेगा कि कठिनाई का एक लंबा दौर ख़त्म होने वाला है।
मेरे सवालों ने मुझे उस दिन की सुबह याद दिला दी जब हम उत्तरी नेपाल में खो गए थे। नई राह दिखाना, फिर से रास्ता बताये जाने के बाद, और आश्वासन दिये जाने के बाद कि हम रास्ता ढूंढने और ट्रैक पर वापस आने में सक्षम होंगे, हम वापस ऊपर की ओर चल पड़े। हालाँकि, कुछ समय बाद, हमने खुद को चारों तरफ खड़ा पाया, पौधों को पकड़कर, पाँव की मज़बूत पकड़ पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। हमने खुद से पूछना शुरू किया कि क्या हम वाकई सही दिशा में जा रहे हैं। शुक्र है, आख़िरकार हमें वे पैरों के निशान मिल गए जो हमने एक दिन पहले बर्फ में छोड़े थे और हम सही ट्रैक पर वापस आने में सफल रहे।
नेपाल यात्रा से ठीक पहले, मैंने एक क्रिस टॉमलिन का एल्बम खरीदा था, और एल्बम का एक गाना, “द गॉड आई नो” यात्रा के दौरान और विशेष रूप से उस ट्रेक के दौरान मेरे दिमाग में बजता रहा। इसने मुझे हमारे वफादार, कभी न बदलने वाले परमेश्वर की याद दिला दी, जिसने मेरे पूरे जीवन में बहुत अच्छाई और दया दिखाई है, भले ही मेरी परिस्थितियाँ कितनी भी चुनौतीपूर्ण क्यों न रही हों। उस अनुस्मारक (याद दिलाने वाला) ने मुझे आगे बढ़ने, और रास्ता भटकने पर चलते रहने का आश्वासन दिया।
इस बार, दाऊद ने भजन संहिता 139:7-12 में जो लिखा वह वह मुझे याद आया —
“मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊँ? या तेरे सामने से किधर भागूँ? यदि मैं आकाश पर चढ़ूँ, तो तू वहाँ है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊँ तो वहाँ भी तू है! यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़कर समुद्र के पार जा बसूँ, तो वहाँ भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा। यदि मैं कहूँ कि अन्धकार में तो मैं छिप जाऊँगा, और मेरे चारों ओर का उजियाला रात का अन्धेरा हो जाएगा, तौभी अन्धकार तुझ से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिये अन्धियारा और उजियाला दोनों एक समान हैं।”
हालाँकि जब मैं अपने हालातों से गुज़र रहा था तो मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मैं अंधकार में डूबा हुआ हूँ, और पीड़ा और निराशा मुझे घेर रही थी – यह भजन मुझे याद दिलाता है कि वहाँ भी मेरा परमेश्वर मेरे साथ है। प्रभुओं का प्रभु, महान ‘मैं हूँ ’ वह हमारा परमेश्वर है जो हमसे कभी दूर नहीं है और वह मदद के लिए हमारी पुकार सुनता है!
पिछले कुछ महीने निश्चित रूप से उस हेलंबु ट्रेक के प्रसारित संस्करण पर होने जैसा महसूस हुआ। लेकिन मुझे एक बार फिर से याद दिलाया गया है, उसके वचन के माध्यम से, और दोस्तों और परिवार के प्रोत्साहन और करुणा के माध्यम से, कि मेरे पास एक मार्गदर्शक (सहायक) है (यूहन्ना 14:16, 25) और पैरो के निशान – उसका वचन जो कभी मिटता या विफल नहीं होता है – मुझे प्रोत्साहित करने और आगे ले जाने के लिए।
क्या आप भी ऐसी ही स्थिति में फंस गए हैं? हो सकता है कि ऐसी नौकरी में रहना आपको बोझिल बना रहा हो, या शायद आप लंबे समय से चल रहे पारिवारिक झगड़े में हो, या यहां तक कि किसी ऐसे पाप से संघर्ष कर कर रहैं हैं जिस पर काबू पाना असंभव लगता है — ऐसी स्थितियाँ निराशा और असहायता की गहरी भावना पैदा कर सकती हैं । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमें किन चुनौतियों या अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है, क्या हम परमेश्वर के वादे को दृढ़ता से थामे रह सकते हैं कि वहाँ भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा। (भजन 139:10) और तेरे सोंटे और तेरी लाठी से मुझे शान्ति मिलती है। (भजन 23:4 बी)
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