यहोवा परमेश्वर ने पुकारा। . . “तू कहां हैं?” उत्पत्ति 3:9
मे रा छोटा बेटा मेरी आवाज सुनना पसंद करता है, सिर्फ़ उस समय को छोड़ कर जब मैं उसका नाम जोर से और सख्ती से पुकारता हूं, और उसके बाद उससे सवाल करता हूँ कि, “तुम कहां हो?” जब मैं ऐसा करता हूं, आमतौर पर मैं उसे इसलिए पुकार रहा होता हूं क्योंकि कोई शरारत कर रहा होता है और मुझसे छिपने की कोशिश कर रहा होता है। मैं चाहता हूं कि मेरा बेटा मेरी आवाज सुने क्योंकि मुझे उसके भले की चिंता है और मैं नहीं चाहता कि उसे चोट पहुंचे।
आदम और हव्वा बगीचे में परमेश्वर की आवाज सुनने के आदी थे। हालाँकि, निषिद्ध/वर्जित फल खाकर परमेश्वर की आज्ञा को तोड़ने के बाद, जब उन्होंने परमेश्वर को उन्हें पुकारते सुना, “तू कहाँ है?” (उत्प. 3:9)। वे परमेश्वर का सामना नहीं करना चाहते थे क्योंकि वे जानते थे कि उन्होंने कुछ गलत किया है – कुछ ऐसा जो परमेश्वर ने उन्हें नहीं करने के लिए कहा था (पद. 11)।
जब परमेश्वर ने आदम और हव्वा को पुकारा और उन्हें बगीचे में पाया, तब परमेश्वर के शब्दों में सुधार और परिणाम दोनों शामिल थे (पद. 13-19)। परन्तु परमेश्वर ने उन पर दया दिखाई और उन्हें उद्धारकर्ता की प्रतिज्ञा में मानवजाति के लिए आशा भी दी (पद 15)।
परमेश्वर को हमें ढूँढने की जरूरत नहीं है। वह जानता है कि हम कहां हैं और हम क्या छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन एक प्रेममय पिता के रूप में, वह हमारे ह्रदय से बात करना चाहता है और हमारे लिए क्षमा और बहाली/उद्धार लाना चाहता है। वह चाहता है कि हम उसकी आवाज सुनें — और ध्यान से सुनें।
हाँ, हे मेरे मन, परमेश्वर के सामने चुप चाप रह; क्योंकि मेरी आशा उसी से है। भजन 62:5
परमेश्वर की इच्छा का पालन करना कभी-कभी कठिन होता है। वह हमें सही काम करने के लिए कहता है। वह हमें बिना शिकायत किए कठिनाई सहने के लिए बुलाता है; अजीब लोगों से प्यार करना; हमारे भीतर की आवाज पर ध्यान देने के लिए जो कहती है, तुम्हें यह नहीं करना चाहिए; ऐसे कदम उठाने के लिए भी जिन्हें हम आमतौर पर नहीं लेना चाहेंगे। तो हमें दिन भर अपनी आत्मा से कहते रहना चाहिए: “हे आत्मा, सुन। चुपचाप रह: वही कर जो यीशु तुमसे करने के लिए कह रहा हैं।
“मेरा मन चुपचाप परमेश्वर की बाट जोहता है” (भजन संहिता 62:1)। “हे मेरे प्राण, चुपचाप केवल परमेश्वर ही की बाट जोह” (62:5)। दोनों पद समान ही हैं, परन्तु अलग हैं। दाउद अपनी आत्मा के बारे में कुछ कहता है; फिर अपनी आत्मा से कुछ कहता है। “मौन में प्रतीक्षा करता है” और फिर एक स्थिर मनोस्तिथि में एक निर्णय को संबोधित करता है: “मौन में प्रतीक्षा कर”, और फिर दाउद उस निर्णय को याद रखने के लिए अपनी आत्मा को उत्तेजित करता है।
चुपचाप परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण में-दाऊद मौन में रहने का निश्चय करता है। यही हमारी बुलाहट(calling) भी है, जिसके लिए हमें बनाया गया है। जब हम सहमत हो जाते हैं तो हम शांति से रहेंगे: “मेरी नहीं, परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42)। यह हमारी पहली और सर्वोच्च बुलाहट है जब हम उसे अपना प्रभु और अपने गहन आनंद का स्रोत बनाते हैं। स्तोत्रकार/ भजनहार ने कहा “मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूँ” (भजन संहिता 40:8)।
हमें हमेशा परमेश्वर से सहायता माँगनी चाहिए, क्योंकि हमारी “आशा उसी से है” (62:5)। जब हम उससे सहायता माँगते हैं, तो वह उसे प्रदान करता है। परमेश्वर कभी भी हमसे ऐसा कुछ करने के लिए नहीं कहता जो वह नहीं करेगा या नहीं कर पायेगा।
यदि हम परमेश्वर से कुछ सुनना चाहते है तो हमें उसको ध्यान से सुनने की आव्यशकता है।
यीशु से बेहतर आदर्श/नमूना किसी ने भी नहीं प्रस्तुत किया है।
यीशु ने मौन, एकांत और स्थिरता को परमेश्वर से सुनने के तरीके को आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया। वह अक्सर भीड़ से दूर, अपने पिता द्वारा बल प्राप्त करने, प्रोत्साहित और सशक्त होने के लिए पहाड़ों पर चला जाता था। यदि आप ध्यान नहीं दे रहे हैं तो सुनना मुश्किल है,यहाँ तक कि यीशु ने भी अपने पिता को सुनने के लिए शिष्यों, चमत्कारों और शिक्षाओं की अस्तव्यस्तता से दूर होने के लिए समय निकाला।
हमारी शोर भरी दुनिया में, हमें भी यही करने की आव्यशकता है। कलीसिया की परंपरा में एक मसीही अभ्यास के रूप में “मौन और एकांत” को गढ़ा गया है जो हमें प्रोत्साहित करती है और हमें परमेश्वर से सुनने में मदद करती है।
मेरे लिए, यह अक्सर कुछ घंटों के लिए जंगल में जा कर बैठने जैसा होता है, बिना किसी चीज़ के बस मेरा ह्रदय, मन, आत्मा और कुछ लिखने के लिए एक किताब। मैं थोड़ी प्रार्थना करता हूं। मैं सोचता हूं और अपने विचारों को थोड़ा भटकने देता हूं। मैं पक्षियों और पेड़ों की चरमराहट की आवाजें सुनता हूं। मैं उन वाक्यांशों को लिखता हूं जो मुझे लगता है कि परमेश्वर मेरे ह्रदय की शांतता में उजागर करता हैं। और जब कभी मौसम बहुत ठंडा होता है, तो मैं अपने बेडरूम में एक कुर्सी पर बैठ कर खिड़की से बाहर देखता हूं, और उसी दिनचर्या का पालन करता हूं।
लेकिन मौन और एकांत का मतलब यह नहीं है कि हमें एक पूरी तरह से शांत जगह मिलनी है (कई लोगों के लिए- जैसे मेरे घर में 12 साल और उससे कम उम्र के तीन बच्चे हैं- यह असंभव होता है)। इसका मतलब सीमित या बिना किसी विकर्षण और बिना किसी उपकरण के एक स्थान में प्रवेश करने जैसा हो सकता है।
हम एक ऐसी जगह ढूंढ सकते हैं जहाँ हम अपनी आंखें बंद कर सकें, कुछ गहरी सांसें ले सकें और बस सुन सकें।
दूसरा, कभी-कभी प्रतीक्षा करना बुद्धिमानी होती है।
कभी-कभी जब परमेश्वर ने अभी तक कोई बात नहीं की है, तो इसका अर्थ है कि हमें प्रतीक्षा करनी चाहिए।
लगभग 12 साल पहले, मुझे एक कंपनी में एक पद के लिए स्वीकार किया गया था, लेकिन मुझे अपने वेतन के लिए पैसे भी जमा करने थे । पैसे जमा करने में कुछ समय लग सकता है, लेकिन परमेश्वर के लिए आगे बढ़ने की मेरी बेताबी में, मैंने अपनी दूसरी नौकरी छोड़ दी – वही, जिससे मुझे पैसे मिलते थे। यह मेरे अब तक के सबसे मूर्खता भरे निर्णयों में से एक था! पर्याप्त पैसा आने में और 8 महीने लग गए। मेरे परिवार और मैंने मुश्किल से गुज़ारा किया, और वह सब करना ज़रूरी नहीं था।
पीछे मुड़कर देखें, तो परमेश्वर ने मुझे नौकरी छोड़ने के लिए कभी नहीं कहा था। मुझे लगता है कि परमेश्वर ने मुझे नई स्थिति तक पहुँचाया, परन्तु समय के सवाल पर वह चुप थे। बजाये परमेश्वर के उत्तर की प्रतीक्षा करने के जो हो सकते थे: (क)पैसे लाओ या (ख) “ठीक है, अब समय है,” मैंने पूल के उथले छोर में गोता लगा दिया और पाया कि वह खाली था।
यदि आप निर्णय लेने के क्षण तक पहुँचते हैं और अभी तक इसके बारे में “स्पष्ट” महसूस नहीं करते हैं, तो प्रोत्साहित रहें कि आपके निर्णय लेने में परमेश्वर आपके साथ है। परन्तु अगर आपके पास समय है, तो “लॉर्ड ऑफ द रिंग्स” फ़िल्म में एंट्स की सलाह का पालन करें, जो है कि “जल्दबाज़ी न करें।”
जैसा कि एक बुद्धिमान सलाहकार ने एक बार मुझसे कहा था, “आप अपने सामने मौजूद जानकारी के साथ ही सबसे अच्छा निर्णय ले सकते है, यह जानते हुए कि बाद में आप और अधिक जानकारी के साथ उसे वापस देख सकते हैं और जान सकते है कि वह निर्णय सही नहीं था।” और यहीं पर यीशु के पीछे चलने में बहुत आनंद आता है! कि यदि अगर आप गलती भी करते हैं, तो हम एक ऐसे परमेश्वर की सेवा करते हैं जो हमारी गलतियों की क्षति पूर्ति कर सकता हैं, और यहां तक कि उन दुर्भाग्यपूर्ण क्षणों का उपयोग अपनी महिमा और हमारी भलाई के लिए करता हैं (जैसे उन्होंने तब किया था जब मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और फिर भी उन्होंने मेरे परिवार की देखभाल की)।
“उस समय तक शमूएल यहोवा को न पहचानता और न यहोवा का वचन ही उस पर प्रगट हुआ या।” — 1 शमूएल 3:7
शमूएल ने अपना नाम पुकारते हुए एक आवाज़ सुनी, परन्तु उसे यह नहीं पता था कि यह परमेश्वर है जो बोल रहा है। उसे एली द्वारा बताया गया कि वह यहोवा था (1 शमूएल 3:9)। उसी तरह, भले ही परमेश्वर हमसे बात कर रहा हो, परन्तु हमें पता ही नहीं कि यह उसकी आवाज है। इसलिए हमें यह सीखने की जरूरत है कि उसकी आवाज को कैसे पहचाना जाए। हम ऐसा नहीं कर सकते यदि हम नहीं जानते कि वह कैसे बोलता है। और हमें कैसे पता चलेगा कि परमेश्वर कैसे बोलता है जब तक हम यह नहीं जानते कि वह कौन है और वह कैसा है?
शास्त्र कहता है कि शमूएल तब यहोवा को नहीं पहचानता था क्योंकि यहोवा का वचन अभी तक उसके सामने प्रकट नहीं हुआ था। इससे हमें यह पता चलता है कि परमेश्वर को जानने के लिए परमेश्वर के वचन को जानना कितना महत्वपूर्ण है।
बाइबल कहती है, “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है” (2 तीमुथियुस 3:16)। बाइबल लिखित रूप में हमारे लिए परमेश्वर का प्रकाशन /प्रकटीकरण है, हमें, अपने आप को तथा अपने तरीकों को दर्शाने का प्रमुख माध्यम है इसलिए यदि हम उसे अच्छी तरह से समझना और जानना चाहते हैं (यिर्मयाह 9:24,E.S.V.), तो हमें पवित्रशास्त्र को अच्छी तरह से समझना और जानना होगा।
जितना अधिक मैं परमेश्वर के वचन को समझता हूं, उतना ही मुझे परमेश्वर को बेहतर तरीके से जानने में मदद मिलती है—कि उसका चरित्र और उसके तरीके क्या हैं। मुझे और अच्छी तरह से उसकी सम्पूर्ण छवि/तस्वीर मिलती है कि वह कौन है, और इससे मुझे उसकी आवाज़ को और अधिक स्पष्ट रूप से पहचानने में भी मदद मिलती है।
इसलिए अगर मैं एक आवाज सुनता हूं जो मुझे वासना या ईर्ष्या या घमंड या स्वार्थ या घृणा में लिप्त होने के लिए प्रेरित करती है, तो मैं जानता हूं कि यह निश्चित रूप से वह नहीं बोल रहा है, क्योंकि परमेश्वर दयालुता, न्याय और धर्म के काम करता है और इन्ही बातों से प्रसन्न होता है (यिर्मयाह 9:24)। यह परमेश्वर की आवाज़ नहीं हो सकती क्योंकि यह उसके चरित्र के विपरीत होगा, जो दयालु, अनुग्रहकारी, धैर्यवान, प्रेममय, विश्वासयोग्य, क्षमाशील और न्यायी है (निर्गमन 34:5-7)।
जब मैं एक आवाज सुनता हूं जो मुझे पिता की आज्ञाओं का पालन करने और दूसरों के सामने उसके ह्रदय को प्रकट करने के लिए कहती है (यहुन्ना 15:10, मत्ती 5:16), पुत्र से प्रेम करने और उसके जैसा चलने के लिए (यहुन्ना 14:15, 1 यहुन्ना 1: 7), आत्मा के फल और उपहारों में बढ़ने के लिए (गलातियों 5:22-23, रोमियों 12:6-8; 1 कुरिन्थियों 12:8-10), तब मैं पहचानता हूँ कि यह स्पष्ट रूप से परमेश्वर ही मुझसे बात कर रहा है क्योंकि इसमें एक सुसंगत स्पष्टिकरण होता है (कोई तार्किक विरोधाभास नहीं होता है) जैसा कि वह अपने वचन में अपने बारे में कहता है। वह कैसे बोलता है, इसे समझने के लिए बाइबल हमारी कसौटी/सेहुल रेखा है।
परमेश्वर कई अन्य तरीकों से भी बोल सकता है। उदाहरण के लिए, वह हमसे सुनाई देने वाली आवाज़ में बात कर सकता है; उसकी शांत, धीमी आवाज़ में, हमारे ह्रदय में एक कोमल फुसफुसाहट की तरह (1 राजा 19:11-13); हमारे चारों ओर के लोगों के द्वारा (प्रेरितों के काम 21:11); सपनों में (उत्पत्ति 40); प्रकृति के द्वारा (रोमियों 1:20); दर्शनों में (प्रेरितों के काम 9:10-18); भविष्यवाणियों में (प्रेरितों के काम 11:27-28); परिस्थितियों के द्वारा (प्रेरितों के काम 16:6-7); और चमत्कारी घटनाओं के माध्यम से और अन्य कई तरीकों से।
हालांकि जब तक कि हम परमेश्वर और उसके तरीकों को ठोस तरीके से बाइबल द्वारा समझ नहीं लेते तब तक हम इन अन्य स्वरूपों/तरीकों का भी सटीक अर्थ नहीं निकल पाएंगे जिनमें वह हमसे बात कर सकता है। ठीक उसी तरह जब तक कि हम किसी व्यक्ति के चरित्र को वास्तव में नहीं समझ लेते हैं, तब तक हम उसका गलत अर्थ निकालने की प्रवृत्ति रखते हैं, यदि हम यह नहीं जानते कि परमेश्वर वास्तव में कैसा है, तो हम उसकी आवाज़ और कार्यों का भी गलत अर्थ निकाल सकते हैं।
यीशु ने कहा, “मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं” (यूहन्ना 10:14)। हमें चरवाहे को जानना है ताकि हम जान सकें कि उसकी आवाज कैसी है। और यीशु, परमेश्वर का वचन (प्रकाशितवाक्य 19:13) को जानने के लिए, हमें बाइबल, परमेश्वर के वचन को जानने की आवश्यकता है।
मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूं, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं। यहुन्ना 10:27
मैं ठीक से सुन नहीं पाता हूँ – “एक कान से बहरा और दूसरे से सुन नहीं सकता,” जैसा कि मेरे पिता कहा करते थे। इसलिए मैं कान की सुनने वाली मशीन (hearing aid) का एक सेट पहनता हूं।
ज्यादातर उपकरण अच्छी तरह से काम करते हैं, सिवाय उन वातावरणों के जहां आसपास बहुत अधिक शोर होता है। उन व्यवस्था /स्थानों में, मेरे कान की सुनने वाली मशीन कमरे में मौजूद सभी आवाज़ों को पकड़ती हैं और मैं अपने सामने वाले व्यक्ति को सुन नहीं पाता हूँ।
ऐसा ही हमारी संस्कृति के साथ भी है: ध्वनियों का कोलाहल परमेश्वर की शांत आवाज को दबा सकता है। “वचन कहाँ मिलेगा, शब्द कहाँ गूंजेगा?” कवि टी.एस. एलियट पूछता है। “यहाँ नहीं, यहाँ पर पर्याप्त ख़ामोशी /शांति नहीं है।”
सौभाग्य से, मेरे कान की सुनने वाली मशीन में एक व्यवस्था (setting) है जो आसपास की आवाज़ों को काट देती है और मुझे केवल उन आवाज़ों को सुनने में सक्षम बनाती है जिन्हें मैं सुनना चाहता हूँ। उसी तरह, हमारे चारों ओर की आवाजों के बावजूद, यदि हम अपने मन को शांत करते हैं और सुनते हैं, तो हम परमेश्वर की “धीमी आवाज” सुन सकेंगे (1 राजा 19:11-12)।
वह हर दिन हमसे बात करता है, हमारी बेचैनी और चाहतों /तीव्र इच्छाओं में हमें बुलाता है। वह हमें हमारे गहरे दुख में और हमारे सबसे बड़े सुखों के अधूरेपन और असंतोष में भी बुलाता है।
परन्तु मुख्यतः परमेश्वर हमसे अपने वचन में बात करता है (1 थिस्सलुनीकियों 2:13)। जैसे ही आप उसकी किताब(बाइबल) उठाते हैं और उसे पढ़ते हैं, आप भी उसकी आवाज़ सुन सकेंगे। वह आपसे इतना प्रेम करता है जितना आप कभी नहीं जान सकते, और वह चाहता है कि आप उसे सुनें जो वह कहना चाहता है।
अच्छा चरवाहा मैं हूँ; मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं। यूहन्ना 10:14
एक साल वेकेशन बाइबल स्कूल के लिए, केन के चर्च ने पवित्रशास्त्र को चित्रित करने के लिए जानवरों को लाने का फैसला किया। जब वह मदद के लिए पहुंचा तो केन को एक भेड़ को अंदर लाने के लिए कहा गया। तब उसे वास्तव में उस ऊनी जानवर को लग-भग रस्सी से खींचकर चर्च के व्यायामशाला (gymnasium) में ले जाना पड़ा था। लेकिन जैसे-जैसे सप्ताह बीतता गया, भेड़ ने उसके पीछे चलने के लिए विरोध जताना कम कर दिया। सप्ताह के अंत तक, केन को अब रस्सी भी नहीं पकड़नी पड़ी; उसने सिर्फ भेड़ को बुलाया और भेड़ उसके पीछे चल दी, यह जानते हुए कि वह उस पर भरोसा कर सकती है।
नए नियम में, यीशु ने स्वयं की तुलना एक चरवाहे से की, यह कहते हुए कि उसके लोग, भेड़ें, उसका अनुसरण करेंगी क्योंकि वे उसकी आवाज़ को जानते हैं (यूहन्ना 10:4)। परन्तु वही भेड़ें परदेशी या चोर से भागेंगी (पद 5)। भेड़ों की तरह, हम (परमेश्वर की सन्तान) अपने चरवाहे की आवाज़ को उसके साथ अपने सम्बन्ध के द्वारा जान पाते हैं। और जब हम ऐसा करते हैं, हम उसके चरित्र को देख पाते हैं और उस पर भरोसा करना सीखते हैं।
जैसे-जैसे हम परमेश्वर को जानने और उससे प्रेम करने लगते हैं, हम उसकी आवाज को पहचानने लगते है और तब उस “चोर [जो] केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है” उससे बेहतर तरीके से भागने में सक्षम होंगे (पद. 10)—और उनसे भी जो धोखा देने और हमें उससे दूर करने की कोशिश करते है। उन झूठे शिक्षकों के विपरीत, हम अपने चरवाहे की आवाज़ पर भरोसा कर सकते हैं जो हमें सुरक्षित स्थान की ओर ले जाएगा।
और अब मैं तुम्हें परमेश्वर को और उसके अनुग्रह के वचन को सौंप देता हूं, जो तुम्हारी उन्नति कर सकता है, और सब पवित्र किए गए लोगों में साझी करके मीरास दे सकता है। – प्रेरितों के काम 20:32
वर्षों के शोध के बाद, वैज्ञानिकों ने सीखा है कि भेड़ियों की अलग-अलग आवाज़ें होती हैं जो उन्हें एक दूसरे के साथ बात करने में मदद करती हैं। एक विशिष्ट ध्वनि विश्लेषण कोड (specific sound analysis code) का उपयोग करते हुए, एक वैज्ञानिक ने महसूस किया कि एक भेड़िये की चीखने की आवाज़ की विभिन्न तीव्रता और उतार-चढ़ाव ने उसे 100 प्रतिशत सटीकता के साथ विशिष्ट भेड़ियों की पहचान करने में सक्षम बनाया।
बाइबल परमेश्वर द्वारा अपनी प्रिय सृष्टि की विशिष्ट आवाजों को पहचानने के कई उदाहरण प्रदान करती है। उसने मूसा का नाम लेकर पुकारा और सीधे उससे बातें की (निर्गमन 3:4-6)। स्तोत्रकार/ भजनकार दाऊद ने घोषणा की, “मैं ऊँचे शब्द से यहोवा को पुकारता हूं, और वह अपने पवित्र पर्वत पर से मुझे उत्तर देता है” (भजन संहिता 3:4)। प्रेरित पौलुस ने भी परमेश्वर के लोगों द्वारा उसकी आवाज पहचानने के महत्व पर बल दिया है।
इफिसियों के वरिष्ठ व्यक्ति /अधिकारियों से विदा लेते समय समय,पौलुस ने कहा कि आत्मा ने उसे यरूशलेम की ओर जाने के लिए “मजबूर” किया था। उसने परमेश्वर की आवाज़ का अनुसरण करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की, यद्यपि वह नहीं जानता था कि वहां पहुँच कर उसे क्या अपेक्षा रखनी चाहिए (प्रेरितों के काम 20:22)। प्रेरित ने चेतावनी दी थी कि “फाड़ने वाले भेड़िये” “उठ कर आएंगे और सत्य को तोड़-मरोड़ कर पेश करेंगे,” यहाँ तक कि कलीसिया में से भी (पद. 29-30)। फिर, उसने वरिष्ठ व्यक्ति /अधिकारियों को परमेश्वर की सच्चाई को समझने में परिश्रमी बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया (पद. 31)।
यीशु में सभी विश्वासियों को यह जानने का सौभाग्य प्राप्त है कि परमेश्वर हमारी सुनता है और हमें उत्तर देता है। हमारे पास पवित्र आत्मा की शक्ति भी है जो हमें परमेश्वर की आवाज़ को पहचानने में मदद करता है, जो हमेशा पवित्रशास्त्र के शब्दों के ही अनुरूप होती है।
शमूएल ने कहा, कह क्योंकि, तेरा दास सुन रहा है। – 1 शमूएल 3:10
सर्दी और एलर्जी (विप्रीत प्रभाव) होने के कारण मुझे आवाज़े धीमी और दबी हुई सुनाई दे रही थी, मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे मैं पानी में डूबा हुआ था I हफ्तों तक मैं स्पष्ट रूप से सुनने के लिए संघर्ष करता रहा। मेरी हालत ने मुझे यह अहसास कराया कि मैं अपनी सुनने की क्षमता को कितना हल्के में लेता हूं।
मंदिर में युवा शमूएल ने आश्चर्य किया होगा कि वह क्या सुन रहा था जब वह अपने नाम के पुकारने पर वह नींद से जागा था (1 शमूएल 3:4)। वह एली याजक के सामने तीन बार उपस्थित हुआ। केवल तीसरी बार एली ने महसूस किया कि यहोवा शमूएल से बात कर रहा था। उस समय यहोवा का वचन दुर्लभ था (पद 1), और लोग उसकी आवाज़ सुनने के आदि नहीं थे। परन्तु एली ने शमूएल को निर्देश दिया कि वह कैसे उत्तर दे (पद. 9)।
यहोवा शमूएल के दिनों से कहीं अधिक अब बातें करता है। इब्रानियों के नाम पत्र हमें बताता है, “अतीत में परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें कीं। . . परन्तु इन अन्तिम दिनों में उस ने हम से अपने पुत्र के द्वारा बातें कीं” (1:1-2)। और प्रेरितों के काम 2 में हम पिन्तेकुस्त के दिन पर पवित्र आत्मा के आने के बारे में पढ़ते हैं (पद 1-4), जो उन बातों में हमारा मार्गदर्शन करता है जो मसीह ने हमें सिखाई थीं (यूहन्ना 16:13)। लेकिन हमें उसकी आवाज सुनना और आज्ञाकारिता में जवाब देना सीखना होगा। शायद हमें लगेगा की जैसे कि हम पानी में डूबे हुए है और धीमी दबी आवाज़ सुन रहे है जिस तरह मुझे मेरी सर्दी होने के समय लगा था। हमें यह परखने की जरूरत है कि जो हम सोचते है, क्या वह अन्य परिपक्व मसीहियों तथा बाइबल के अनुसार प्रभु का मार्गदर्शन है I परमेश्वर के प्रिय बच्चों के रूप में, हम उसकी आवाज़ सुनते हैं। उसे हमारे लिए जीवन के शब्द बोलना पसंद है।
तब मैंने प्रभु का यह वचन सुना, “मैं किसको भेजूँ?” . . . मैंने कहा, “मैं यहाँ हूँ। मुझे भेज I” यशायाह 6:8
1890 के दशक के अंत में जब स्वीडिश मिशनरी एरिक लुंड को लगा कि परमेश्वर ने उन्हें स्पेन में मिशन कार्य करने के लिए बुलाया है, तो उन्होंने तुरंत आज्ञा का पालन किया। उन्होंने वहां थोड़ी सी ही सफलता देखी, लेकिन परमेश्वर की बुलाहट के प्रति अपने विश्वास में दृण बने रहे। एक दिन, वह एक फिलिपिनो व्यक्ति, ब्राउलियो मॉनिकन से मिले, और उसके साथ सुसमाचार साझा किया। साथ में, लुंड और मॉनिकन ने बाइबिल का एक स्थानीय फिलीपीनी भाषा में अनुवाद किया, और बाद में उन्होंने फिलीपींस में पहला बैपटिस्ट मिशन स्टेशन शुरू किया। बहुत से लोग यीशु की ओर मुड़ेंगे—ऐसा इसलिए क्योंकि भविष्यवक्ता यशायाह की तरह लुंड ने भी परमेश्वर की बुलाहट का उत्तर दिया।
यशायाह 6:8 में, परमेश्वर ने इस्राएल जाने के लिए एक इच्छुक व्यक्ति से वर्तमान के लिए अपने न्याय की घोषणा करने और भविष्य के लिए आशा रखने के लिए कहा। यशायाह ने निडर होकर कहा: “मैं यहाँ हूं, मुझे भेज!” उसने नहीं सोचा कि वह योग्य था, क्योंकि उसने यह पहले स्वीकार किया था: “मैं अशुद्ध होंठ वाला मनुष्य हूं” (पद. 5)। परन्तु उसने स्वेच्छा से जवाब दिया क्योंकि उसने परमेश्वर की पवित्रता को देखा था, अपने स्वयं के पापीपन को पहचाना, और उसकी शुद्धि प्राप्त की (पद. 1-7)।
क्या परमेश्वर आपको उसके लिए कुछ करने के लिए बुला रहा है? क्या आप अपने को रोक रहे हैं? यदि ऐसा है, तो याद रखें कि परमेश्वर ने यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा क्या किया है। उसने हमें मदद और मार्गदर्शन करने के लिए पवित्र आत्मा दिया है (यूहन्ना 14:26; 15:26–27), और वह हमें उसकी बुलाहट का उत्तर देने के लिए तैयार करेगा। यशायाह की तरह, क्या हम उत्तर दे सकते हैं, “मुझे भेजो!”