“काश कि ये लंबे समय के लिए खिलते,” मेरी पत्नी ने बड़े ही उत्साह से कहा जब वह विशाल गुलाबी और सफेद फूलों को देख रही थी। वह बीस साल पहले लगाए गए फूलों की खुशबू का आनंद लेने के लिए झुकी। वे मेरी माँ की ओर से एक उपहार थे, जो जानती थीं कि वह इस दुनिया में लंबे समय तक नहीं रहेंगी और चाहती थीं कि उनका बगीचा उनके बाद भी जीवित रहे।

जल्द ही हमारी तीन साल की पोती बगीचे की पगडंडी पर चढ़ गई, उसके हर तेज़ कदम के साथ उसकी चुटिया भी उछल रही थी। हमारे बेटे के दोस्त कालेब को एक छोटा पत्थर देते हुए उसने घोषणा की, “यह रहा!” उससे पत्थर स्वीकारते हुए, कालेब ने पत्थर अपने हाथों में ले लिया। जो सत्रह वर्ष की आयु की तुलना में काफ़ी समझदार था, उसने उसे अपनी जेब में डाल लिया और कहा, “फूल ज़्यादा दिन नहीं टिकते। यह बहुत लंबे समय तक टिकेगा।” हमारी पोती के चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कान छा गई। बगीचे में और भी खज़ाने को पाने की आशा करते हुए वह संतुष्ट होकर चली गई। जीवन की संक्षिप्तता, सुंदरता और प्रतिज्ञा, सब एक ही पल में समा गए थे।

बहुत पहले एक अटारी में, एक और दृश्य ने जीवन की पीड़ा, प्रेम और आशा को कुछ ही घंटों की अवधी में व्यक्त कर दिया। शिष्य यहुन्ना ने अंतिम भोज (प्रभु भोज)का वर्णन किया:

“जब यीशु ने जान लिया कि मेरी वह घड़ी आ पहुंची है कि जगत को छोड़कर पिता के पास जाऊं” (यहुन्ना13:1)। उन अस्थायी पलों में, मसीह ने अपने शिष्यों को दिखाया कि एक सच्ची अगुआई कैसी होती है (पद: 3-17)। उसने यहूदा के हाथों अपने समुपस्थित विश्वासघात के बारे में चेतावनी दी (पद: 18-30), और पतरस को सावधान किया कि वह जल्द ही अपने गुरु का इंकार कर देगा (पद:38)। उसने शिष्यों से कहा कि वह जल्द ही जा रहा है, लेकिन उन्हें यह वादा दिया: “मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोड़ूंगा; मैं तुम्हारे पास आता हूँ” (14:18)। उसने उन्हें आश्वस्त किया, “मैं पिता से विनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा,कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। अर्थात सत्य का आत्मा जो तुम्हें सारी सच्चाई में ले जाता हैं” (पद: 16-17)।

यीशु ने अपनी स्वयं की प्रत्याशित यातनापूर्ण मृत्यु के बावजूद भी दूसरों को सांत्वना दी। “मैं तुम्हें एक उपहार देकर जा रहा हूँ – वह है मन और हृदय की शांति। और जो शांति मैं देता हूँ वह एक ऐसा उपहार है जो संसार नहीं दे सकता। इसलिए तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे” (14:27)।

जल्द ही यीशु और सभी शिष्य- सिवाय यहूदा के-अटारी से निकलकर जैतून के पहाड़ पर चले गए। किसी भी अन्य रात में, यह एक सुंदर संध्या की सैर हो सकती थी। परन्तु यह ऐसी रात नहीं थी। वहाँ, गतसमनी के बगीचे में, उसने अपने शिष्यों से कहा, “मेरा जी बहुत उदास हैं,यहाँ तक कि मेरा प्राण निकला जा रहा हैं” (मत्ती 26:38)। उसने प्रार्थना की, “हे मेरे पिता,यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझसे टल जाए” (पद: 39)।

यहाँ हम यीशु की मानवता को उसकी पूरी तीव्रता में देखते हैं। और यहाँ हम, अंत तक यीशु की अपने पिता के प्रति प्रबल आज्ञाकारिता को भी देखते हैं: तो भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं,परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो” (पद: 39)।

उस बगीचे में गिरफ़्तार किए गए यीशु ने दो झूठे मुकदमे और इतिहास का सबसे अन्यायपूर्ण फ़ैसला सहा। ब्रह्मांड के सर्जनकर्ता को यरूशलेम के बाहर एक पहाड़ी पर उसके ही बनाये गए प्राणियों के द्वारा क्रूस पर चढ़ा दिया गया। उस भयानक जगह से, मसीह ने अपने “अंतिम सात वचन” कहे।

आपको इन निम्नलिखित पृष्ठों में सातों वचनों पर विचार मिलेंगे। जब आप इन भक्तिपरक लेखों को पढ़ेंगे,

हम प्रार्थना करते हैं कि आप उनके महत्व पर विचार करेंगे और अनंत काल तक खिलने वाली आशा के वादे से प्रोत्साहन प्राप्त करेंगे।यह जीवन निश्चितरूप रूप से पीड़ा और मृत्यु लाता है। बहुत जल्दी, हम उन लोगों को अलविदा कह देते हैं जिन्हें हम प्यार करते हैं। बहुत जल्दी, हम स्वयं भी “संसार की रीति पर कूच करने वाला होते हैं”, जैसा कि राजा दाऊद ने अपनी निकट आती मृत्यु का काव्यात्मक रूप से वर्णन किया है (1 राजाओं 2:2 NIV)।

लेकिन, गर्मियों में खिलने वाले फूलों की तरह, इस जीवन में भी अपार सुंदरता है। और यीशु की वजह से, हम भविष्य में आने वाले आनंद की आशा करते हैं।

मेरी माँ ने मेरी पत्नी को जो फूल दिए थे, वे पौधों के संचरण (propogation) के माध्यम से जीवित रहते हैं, जिनकी योजना हमारे सृष्टिकर्ता ने दुनिया की नींव रखने से पहले बनाई थी। माँ की विरासत उनके बच्चों, उनके पोते-पोतियों और एक परपोती के माध्यम से भी पनपती है, जो अपने कई दोस्तों को प्यार से पत्थर देती है। लेकिन इससे भी अधिक आश्चर्यजनक रूप से, हम उन सभी लोगों के साथ हमेशा के लिए दोबारा मिलने की आशा करते हैं जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उसके पुत्र पर विश्वास करके उसका अनुसरण करने चुनाव करते हैं।

फूल अंततः मर जाते हैं। बड़े और छोटे उपहार खोया जा सकता हैं, भुलाया जा सकता हैं, या उनका दुरुपयोग किया जा सकता है। लेकिन इन दिनों, मेरी पोती द्वारा एक दोस्त को एक छोटा सा पत्थर उपहार में देने जैसी छोटी खुशियाँ मुझे एक बहुत बड़े पत्थर की याद दिलाती हैं- जो किसी और बगीचे का हैं। “सप्ताह के पहले दिन, मरियम मगदलीनी भोर को अँधेरा रहते ही कब्र पर आई और पत्थर को कब्र से हटा हुआ देखा”(यहुन्ना 20:1)। हमें याद है कि यीशु ने अपने शिष्यों को क्या कहा था: “इसलिए कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे”(14:19)।

आइये देखें कि जिसने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है, वह अपने अंतिम सात वचनों में हमसे क्या कहता है।

टिम गुस्टाफ़सन, हमारी प्रतिदिन की रोटी के लेखक

 

 

आज का वचन  I लूका 23:26-34

जब वे यीशु को ले जा रहे थे, तो शमौन नामक एक कुरेनी को जो गाँव से आ रहा था, पकड़कर उस पर क्रूस लाद दिया, और उसे यीशु के पीछे-पीछे ले चले। लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली उसमे बहुत सी स्त्रियाँ भी थी जो उसके लिये छाती पीटती और विलाप करती थी।

यीशु ने उनकी ओर मुड़कर कहा, “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत रोओ, परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ। क्योंकि देखो वे दिन आते हैं, जिनमे लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बाँझ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध नहीं पिलाया। लोग पहाड़ों से कहने लगेंगे, ‘हम पर गिरो,’ और टीलों से कि हमें ढाँप लो।’क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते है, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?”

वे अन्य दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ घात करने को ले चले। जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी एक को दाहिनी और दूसरे को बाई ओर क्रूसों पर चढ़ाया।

तब यीशु ने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।” और सिपाहियों ने चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए।

23 जनवरी, 1999 को ग्राहम स्टेंस और उनके दो छोटे बेटों फ़िलिप और तिमोथी को उनकी जीप में सोते समय जलाकर मार दिया गया। भारत के ओडिशा के कुष्ठ रोगियों के बीच उनकी समर्पित सेवा के बारे में तब तक बाहरी दुनिया को बहुत ही कम जानकारी थी।

ऐसी शोकपूर्ण घटना के बीच, उनकी पत्नी ग्लेडिस और बेटी एस्तेर ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। उन्होंने घृणा से नहीं बल्कि क्षमा से प्रतिक्रिया करना चुना। बारह साल बाद जब मुकदमा समाप्त हुआ, ग्लेडिस ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया था कि “मैंने हत्यारों को क्षमा कर दिया है और मेरे मन में उनके प्रति कोई कड़वाहट नहीं है … मसीह में परमेश्वर ने मुझे क्षमा कर दिया है और वह अपने अनुयायियों से भी ऐसा ही करने की अपेक्षा करता है।”

यद्यपि जिस प्रकार से ग्लेडिस और एस्तेर ने इन अपराधियों को क्षमा करने का साहस और सामर्थ्य पाया यह बहुत ही चकित कर देने वाली बात है, हम यह भी जानते हैं कि यीशु ने हमारे लिए सबसे बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है कि कैसे हम उन लोगों को क्षमा करने का अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं जो हमें चोट पहुंचाते हैं, अपमानित करते हैं या हमारे साथ बुरा व्यवहार करते हैं।

उसने हमें सिर्फ़ अपने शत्रुओं से प्रेम करने और हमें सताने वालों के लिए प्रार्थना करने के लिए नहीं कहा (मत्ती 5:43-48); उसने क्रूस पर अत्यधिक क्षमा का उदाहरण प्रस्तुत किया। मसीह को हमारे लिए पीटा गया, उसका ठट्टा उड़ाया गया और उसे क्रूस पर चढ़ाया गया, जबकि “हम बैरी होने की दशा में ही थे” (रोमियों 5:10), लेकिन अपने सतानेवालों को शाप देने के बजाय यीशु ने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर,क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।”(लूका 23:34)।

यद्यपि किसी के भी पास किसी दूसरे के साथ बुरा व्यवहार करने का कोई बहाना नहीं है, आइए हम परमेश्वर से अनुग्रह के लिए प्रार्थना करें ताकि हम जो भी क्रोध या कड़वाहट महसूस कर रहे हैं उसे दूर कर सकें। यीशु चाहते हैं कि हम उसके साथ और दूसरों के साथ एक स्वस्थ रिश्ते में रहें। आइए हम क्षमा करें जैसे परमेश्वर ने हमें क्षमा किया है (मत्ती 6:12) – प्रेम में चलते हुए और मसीह के उदाहरण का अनुसरण करते हुए।

नैन्सी गविलेंस

आप अधिक क्षमाशील कैसे बन सकते हैं?

 

आज का वचन | लूका 23:32-43

वे और दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ घात करने को ले चले। जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुंचे,तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी एक को दाहिनी और दूसरे को बाई ओर क्रूसों पर चढ़ाया। तब यीशु ने कहा;हे पिता,इन्हें क्षमा कर,क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं और उन्होंने चिट्ठियां डालकर उसके कपड़े बाँट लिए।

लोग खड़े खड़े देख रहे थे,और सरदार भी ठट्टा कर करके कहते थे,यदि यह परमेश्वर का मसीह हैं,और उसका चुना हुआ हैं,तो अपने आप को बचा ले। सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका ठट्टा करके कहते थे। यदि तू यहूदियों का राजा है,तो अपने आप को बचा। और उसके ऊपर एक दोष-पत्र भी लगा था,कि “यह यहूदियों का राजा हैं।

जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उन में से एक ने उस से की निंदा करके कहा; क्या तू मसीह नहीं तो फिर अपने आप को और हमें बचा। इस पर दूसरे ने उसे डांटकर कहा,क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है। और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे है,क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं;पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया। तब उसने कहा; हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए तो मेरी सुधि लेना। उसने उस से कहा,मैं तुझ से सच कहता हूँ;कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।

क्रिस्टोफ़र हिचेन्स एक प्रसिद्ध नास्तिक थे, जो मसीह में विश्वास करने वालों के साथ उत्साहपूर्वक बहस करते थे। जब वे कैंसर से मर रहे थे, तो उन्होंने घोषणा की कि जो कोई भी यह सुनेगा कि उन्होंने अपनी मृत्युशय्या पर यीशु को अपना लिया है, उसे इसे इस बात का सबूत मान लेना चाहिए कि उसका दिमाग ख़राब हो गया है। क्रिस्टोफ़र की मृत्यु के बाद, एक विपक्ष के वाद-विवादकर्ता होने के साथ ही साथ उसके मित्र भी थे उन्होंने ध्यान दिया कि हिचेन्स ने अपने अनुयायियों को पहले से ही चेतावनी दे दी थी क्योंकि वह जानता था कि मृत्यु के सामने वह निराश हो सकता है और मसीह की ओर मुड़ सकता है। और कौन जानता है? हो सकता है कि उसने ऐसा किया भी हो। एक व्यक्ति अपने पूरे जीवन में परमेश्वर से लड़ सकता है और फिर भी कुछ ही क्षण में दयापूर्वक बच सकता है। ऐसा पहले भी हो चुका है।

क्रूस पर लटका हुआ चोर दुष्टतापूर्ण जीवन जी रहा था। उसने अपने साथी अपराधी से कहा, “ और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे है,क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं;पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।” (लूका 23:41) अब वह अपने अंतिम, अत्यंत कष्टदायक क्षणों में था, जिसमें उसकी शारीरिक पीड़ा उसकी महान आध्यात्मिक ज़रूरत से उसका ध्यान भटका रही थी।

और वह कीमती पल बरबाद कर रहा था। वह शुरुआत में उन लोगों के साथ था जो यीशु का ठट्ठा उड़ा रहे थे और उसे अपमानित कर रहे थे (मरकुस 15:32)। परन्तु जब वह क्रूस पर लटका हुआ था, मौत के लिए तड़प रहा था, तो उसने मुड़कर अपने आखिरी मौके की ओर देखा। उसने कहा, ” हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए तो मेरी सुधि लेना” (लूका 23:42)।

परमेश्वर लोगों को बचाने में प्रसन्न होता है, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जिनका समय समाप्त हो चुका है। हमने क्या गलत किया है, इस पर ध्यान देने के बजाय, आइए हम यीशु की ओर देखें।

माइक विट्टमर

आपको सबसे ज़्यादा पछतावा किस बात का है?
आपको ऐसा क्यों लगता है कि आप क्षमा करने के लायक नहीं हैं?


प्रिय यीशु, मैं केवल आपकी ओर देख रहा हूँ,
क्योंकि केवल आप ही मुझे सचमुच बचा सकते हैं।

 

आज का वचन I यूहन्ना 19:25-27

परन्तु यीशु के क्रूस के पास उसकी माता, और उसकी माता की बहन मरियम (क्लोपास की पत्नी) और मरियम मगदलीनी खड़ी थीं। यीशु ने अपनी माता और उस चेले को, जिससे वह प्रेम रखता था, पास खड़े देख कर अपनी माता से कहा; हे नारी,देख,यह तेरा पुत्र है।” तब उस चेले से कहा, यह तेरी माता है। और उसी समय से वह चेला उसे अपने घर ले गया।

जब मेरे माता-पिता की चालीसवीं वर्षगांठ के तुरंत बाद मेरे पिताजी का निधन हो गया, तो मेरी माँ को बहुत दुख हुआ, लेकिन साथ ही उन्हें चिंता भी हुई। बिल कौन भरेगा? क्या उनके पास पर्याप्त पैसे होंगे? क्या घर की मरम्मत की ज़रूरत होगी? उन्हें जल्द ही पता चल गया कि उनकी चिंता अनाव्यशक थी। मेरे पिताजी ने वर्षों पहले ही कड़ी मेहनत से अपनी मृत्यु के बाद आने वाली उनकी हर आर्थिक ज़रूरत के लिए व्यवस्था कर ली थी। मैंने और मेरी बहन ने भी हमारी माँ की किसी भी अन्य ज़रूरत को पूरा करने के लिए उनकी मदद करने का संकल्प लिया।

इस तरह से परिवार की देखभाल करना यीशु के कुछ अंतिम वचनों में विशेष महत्व रखता है। क्रूस पर लटके होने के बावजूद, यीशु ने अपनी माँ, मरियम और प्रिय शिष्य, यूहन्ना की ओर देखा। फिर उसने ये मार्मिक शब्द कहे: [यीशु] ने उससे कहा, “हे नारी,देख यह तेरा पुत्र है।”

और… इस चेले [यहुन्ना] से कहा, “यह तेरी माता है।” (यहुन्ना 19:26-27)।

ये दुःख के एक क्षण में कहे गए प्रेम के अद्भुत वचन हैं। यहूदी संस्कृति में, एक मरता हुआ बेटा अपनी माँ की देखभाल अपने भाई सौंप देता था, जैसे कि यीशु के मामले में था, (मत्ती 13:55), क्योंकि शायद मरियम के पति, यूसुफ की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी। लेकिन यीशु के भाइयों ने अभी तक उसे मसीहा के रूप में स्वीकार नहीं किया था।

मरियम के कुशल क्षेम पर ध्यान केंद्रित करते हुए, यीशु ने अपने शिष्य यहुन्ना को उसकी देखभाल करने वाला नियुक्त किया। “और उसी समय से वह चेला,उसे अपने घर ले गया” (यहुन्ना 19:27)। मसीह ने जो किया वह इस तथ्य को दर्शाता है कि सभी विश्वासी परमेश्वर में एक नए परिवार के सदस्य हैं, जो क्रूस के तले हमारे देखभाल के बंधन को स्थापित करता है।

पेट्रीशिया रेबॉन

आप दूसरों की देखभाल कैसे करते हैं? विश्वासियों को परिवार के रूप में देखने को आप किस तरह से समझते हैं?


प्रिय यीशु, मुझे अपने साथी विश्वासियों की सहायता करने के लिए इच्छुक और तत्पर बनाइए।

 

आज का वचन | मत्ती 27:45-50

दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अँधेरा छाया रहा। तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “एली, एली, लमा शबक्तनी अर्थात “ हे मेरे परमेश्वर,  हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?”

जो वहाँ खड़े थे,उन में से कितनों ने यह सुनकर कहा,वह तो एलिय्याह को पुकारता है। उनमें से एक तुरंत दौड़ा,और स्पंज लेकर सिरके में डुबोया और एक सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया। औरो ने कहा, रह जाओ,देखे,एलिय्याह उसे बचने आता है कि नहीं।

तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए।

जब मेरे दादाजी मृत्युशय्या पर थे, तो मैं उन्हें अलविदा कहने के लिए अस्पताल गया था। हॉल खाली थे, और उनका कमरा वीरान और बेजान था: फ्लोरोसेंट लाइट/ fluorescent light(एक प्रकार की रौशनी) लिनोलियम फ़र्श/Linoleum floor (एक प्रकार की फ़र्श) गमले में लगा पौधा, एक पारिवारिक तस्वीर। वह पूरी जगह सिरके और नींबू की गंध से भरी हुई थी। मैंने पहले कभी किसी व्यक्ति को मरते हुए नहीं देखा था, लेकिन मैंने उनके गले की मृत्युकालीन घरघराहट (एक विशिष्ट ध्वनि जो मरते हुए व्यक्ति के गले के पीछे से आती हैं) सुनी और उनकी धँसी हुई आँखें देखीं। मैं उन्हें अलविदा कहना चाहता था। मैं चाहता था कि उन्हें पता चले (हालाँकि मुझे नहीं लगता कि वे सचेत थे) कि इस उदास जगह में भी, वे अकेले नहीं थे।

अपने सबसे बुरे समय में अकेले महसूस करने से बुरा और क्या हो सकता है? यीशु ने इस दुख को महसूस किया। क्रूस से, उसने पुकारा:  “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती 27:46)।

वह न केवल अपने स्वयं के त्यागे जाने की पीड़ा को व्यक्त कर रहा था, बल्कि वह पूरी दुनिया की पीड़ा को भी व्यक्त कर रहा था। वह बिना सोचे-समझे नहीं बोल रहा था, बल्कि इस्राएल की प्रार्थनाओं में से एक को याद कर रहा था (भजन संहिता 22:1)। उसने इस्राएल के भय को दोहराया कि परमेश्वर उन्हें त्याग सकता है, और वह हमारे साथ भी प्रार्थना कर रहा था, वह उस भय की बात कर रहा था जिसका सामना हम में से प्रत्येक निराशा के अपने क्षणों में करते हैं। जब हम एक बच्चे को खो देते हैं या एक विवाह विफल हो जाता है, तो हम परमेश्वर की अनुपस्थिति के आभास से भयभीत हो जाते हैं।

हालाँकि, यथार्त रूप से यह यीशु ही है जो उस तन्हा/अकेली क्रूस पर चढ़ा है – और जल्द ही उसके बाद होने वाला पुनरुत्थान ही हमारे दुख का उत्तर देता है। हम त्यागा हुआ महसूस कर सकते हैं, परन्तु यीशु इसी सच्चाई को प्रकट करते हैं कि: परमेश्वर हमेशा हमारे साथ है, यहाँ तक कि मृत्यु की घाटी में भी। हमें कभी भी त्यागा नहीं जाता।

विन्न कोलियर

आपको कब-कब त्यागा गया? परमेश्वर आपसे उस त्यागे हुए
स्थान पर कैसे मिले हैं?

 

आज का वचन | यहुन्ना 4:5-14

सो वह सूखार नाम सामरिया के एक नगर तक आया, जो उस भूमि के पास है,जिसे याकूब ने अपने पुत्र युसुफ़ को दिया था। और याकूब का कुआँ भी वही था;सो यीशु मार्ग का थका हुआ उस कुएं पर यों ही बैठ’ गया,और यह बात छठे घंटे के लगभग हुई। इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई; यीशु ने उस से कहा,मुझे पानी पिलाI क्योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने गए थे। उस सामरी स्त्री ने उस से कहा,तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों मांगता हैं?

यीशु ने उत्तर दिया, यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती,और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझसे कहता है;मुझे पानी पिला तो तू उस से मांगती,और वह तुझे जीवन का जल देता। स्त्री ने उस से कहा,हे प्रभु तेरे पास तो जल भरने को तो कुछ भी नहीं,और कूआँ गहरा है;तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहाँ से आया? क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा हैं,जिसने हमें यह कूआँ दिया;और आप ही अपने संतान और अपने पशुओं समेत उस में से पिया?

यीशु ने उसको उत्तर दिया,कि जो कोई पीएगा जो मैं उसे दूंगा,वह फिर अनंतकाल तक प्यासा न होगा: वरन जो जल मैं उसे दूँगा,वह उसमें से एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहेगा।

एक परिवार ने उत्साहपूर्वक स्वयंसेवकों की एक टीम के लिए अपने घर का दरवाज़ा खोला, जो भारत के एक ग्रामीण क्षेत्र में उनके गाँव में बोरवेल(borewell) और एक साधारण घरेलू पानी का फ़िल्टर सिस्टम(simple home water filter system) प्रदान करने के लिए आए थे। यह दिखाते हुए कि फ़िल्टर उनकी प्यास बुझाने के लिए सुरक्षित पानी कैसे प्रदान करेगा, टीम ने परिवार को “जीवित जल” के बारे में भी बताया जो उनकी सबसे गहरी ज़रूरत को पूरा करेगा, जो है- परमेश्वर के साथ शांति।

टीम के सदस्यों ने आध्यात्मिक वास्तविकता को समझाने के लिए मसीह के उदाहरण का अनुसरण करते हुए, इसे व्यक्ति की शारीरिक प्यास को संतुष्ट करने की आवश्यकता से जोड़कर दर्शाया । यात्रा से थके हुए, यीशु एक कुएँ के पास बैठ गए। वहाँ एक महिला से पानी माँगने के बाद, उन्होंने उसकी गहरी ज़रूरत को संबोधित किया: “जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा। परन्तु जो कोई उस जल से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनंतकाल तक प्यासा न होगा” (यहुन्ना 4:13-14)। यीशु ने परमेश्वर के साथ रिश्ते के माध्यम से उसकी आत्मा को ताज़गी प्रदान की।

सभी लोगों को यह जीवित जल प्रदान करने के लिए, मसीह को फिर से प्यास की पीड़ा से गुजरना पड़ा। जब वह क्रूस पर लटका हुआ था, तो उसने पुकारा, “मैं प्यासा हूँ” (यूहन्ना 19:28) – यह संकेत था कि उसका जीवन समाप्त हो रहा था। उसने स्वेच्छा से कष्ट सहा, शारीरिक प्यास की पीढ़ा को सहा, यह जानते हुए कि परमेश्वर उसे फिर से जीवन देगा। कुएँ पर खड़ी महिला की तरह, हम यीशु में विश्वास के माध्यम से अपनी प्यासी आत्माओं के लिए जीवित जल तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं।

जब परिवार ने स्वच्छ जल का आनंद लिया तो स्वयंसेवी टीम ने जश्न मनाया और जब उस परिवार ने मसीह द्वारा दिए गए जीवित जल के उपहार को स्वीकार किया तब भी वे बहुत आनंदित हुए। यह एक ऐसा उपहार है जो किसी भी व्यक्ति को मिल सकता है जिसकी आत्मा प्यासी हो।

लीसा एम सामरा

पानी की प्यास और आत्मिक प्यास का क्या संबंध है?आपने जीवन के जल की पेशकश पर कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की है?

यीशु, मेरी आत्मा आप में संतुष्ट है।

 

आज का पवित्र वचन |यहुन्ना 19:28-37

इसके बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका, इसलिये कि पवित्रशास्त्र में जो कहा गया वह पूरा हो, कहा, “मैं प्यासा हूँ।” वहाँ सिरके से भरा हुआ एक बरतन रखा था, अतः उन्होंने सिरके में भिगोए हुए स्पंज को जूफे पर रखकर उसके मुँह से लगाया। जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा, “पूरा हुआ”; और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए।

इसलिये कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पिलातुस से विनती की कि उनकी टाँगें तोड़ दी जाएँ और वे उतारे जाएँ, ताकि सब्त के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन था। अतः सैनिकों ने आकर उन मनुष्यों में से पहले की टाँगें तोड़ीं तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे; परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उसकी टाँगें न तोड़ीं।

परन्तु सैनिकों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा, और उसमें से तुरन्त लहू और पानी निकला। जिसने यह देखा, उसने गवाही दी है, और उसकी गवाही सच्ची है; और वह जानता है कि वह सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो। ये बातें इसलिये हुईं कि पवित्रशास्त्र में जो कहा गया वह पूरा हो, “उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।” फिर एक और स्थान पर यह लिखा है, “जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर वे दृष्टि करेंगे।

इन बातों के बाद अरिमतिया के यूसुफ ने जो यीशु का चेला था, परन्तु यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था, पिलातुस से विनती की कि क्या वह यीशु का शव ले जा सकता है। पिलातुस ने उसकी  विनती सुनी, और वह आकर उसका शव ले गया।

2014 में, ब्रिटेन ने घोषणा की कि वह अठारहवीं शताब्दी से चली आ रही 2.6 बिलियन पाउंड (लगभग 2420 करोड़) धन राशि के कर्ज़े को चुकाने के लिए काम कर रहा है। 1720 में आर्थिक संकट के बाद, जिसे “साउथ सी बबल” (South Sea Bubble) कहा जाता है, सरकार ने एक आर्थिक सहायता ली, जिसके परिणामस्वरूप लाखों का कर्ज़ हो गया। अब, कम ब्याज दरों के कारण, वर्तमान सरकार पिछले कुछ वर्षों में अर्जित विभिन्न कर्ज़ों को चुकाने के लिए तैयार थी, जिन्हें भविष्य की पीढ़ियों को सौंप दिया गया था।

जब यीशु ने पुकारा, “पूरा हुआ!” (यहुन्ना 19:30), तब वह घोषणा कर रहा था कि मानवता का सबसे लंबे समय तक चलने वाला पुराना क़र्ज़- जो कि पाप-था उसका पूरा भुगतान हो गया हैं। यीशु ने जो सात वचन कहे थे, उनमें से यह छठा वचन है क्रूस एक ग्रीक शब्द था- टेटेलेस्टाई (tetelestai)। इस शब्द का इस्तेमाल करों(taxes) या कर्ज़ों(debts) का पूरा भुगतान, सेवकों द्वारा कार्य पूरा करना, आदि के वर्णन के लिए किया जाता था। और यह यीशु, परमेश्वर के सिद्ध मेम्ने के बारे में बताता है, जो मरते समय “जानता था कि उसका उद्देश्य अब पूरा हो गया है” (पद: 28)। जब ख्रीस्त क्रूस पर मरा, तो उसने व्यवस्था की धार्मिक माँगों को पूरी तरह से पूरा किया, दुनिया के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया (1 पतरस 2:24)। उसने पाप को केवल ढका ही नहीं बल्कि “जगत के पाप को उठा ले जाता हैं” (यहुन्ना 1:29)।

क्योंकि यीशु ने हमारा कर्ज़ चुकाया है, इसलिए हम उसकी बलिदानपूर्ण मृत्यु और पुनरुत्थान पर विश्वास करके अनंत जीवन प्राप्त कर सकते हैं और आज “भरपूर” जीवन का आनंद ले सकते हैं (10:10 NIV)। क्योंकि क़र्ज़ चुका दिया गया है!

मार्विन विलिअम्स

आपके लिए यह जानना क्या मायने रखता है कि आपके पापों का क़र्ज़ यीशु ने पूरी तरह से चुका दिया है? आज आप उसके बलिदान के लिए उसे कैसे धन्यवाद देंगे?


प्यारे यीशु, मेरा कर्ज़ पूरी तरह से चुकाने के लिए आपका धन्यवाद।

 

आज का वचन |मरकुस 15:33-41

और दोपहर होने पर,सारे देश में अंधियारा छा गया;और तीसरे पहर तक रहा। तीसरे पहर यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी जिसका अर्थ है; हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर,तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?

उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा:देखो यह एलिय्याह को पुकारता है।और एक ने दौड़कर स्पंज को सिरके में डुबोया,और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया;और कहा,ठहर जाओ,देखे,कि एलिय्याह उसे उतारने के लिए आता है कि नहीं।

तब यीशु ने बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए।और मंदिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया। जो सूबेदार उसके सामने खड़ा था उसे यूँ चिल्लाकर प्राण छोड़ते हुए देखा,तो उसने कहा,सचमुच यह मनुष्य,परमेश्वर का पुत्र था।

कई स्त्रियाँ भी दूर से देख रही थी:उनमें मरियम मगदलीनी और छोटे याकूब की और योसेस की माता मरियम और शलोमी थी। जब वह गलील में था,तो ये उसके पीछे हो लेती थी और उसकी सेवा-टहल किया करती थी;और भी बहुत सी स्त्रीयां थी,जो उसके साथ येरुशलम में आई थी।

मार्टिन लूथर अपनी मृत्युशय्या पर पड़े थे,एक पास्टर ने उन्हें जगाया और पूछा, “आदरणीय पिता (Reverend father) क्या आप मसीह और आपके द्वारा प्रचारित सिद्धांतों में दृढ़ होकर मरेंगे?” लूथर ने उत्तर दिया, “हाँ,” और फिर वे हमेशा के लिए सो गए। कितना अद्भुत तरीका है इस तरह जाने का। मेरी आशा है कि मेरे अंतिम शब्द भी उतने ही महत्वपूर्ण हो। मैं अधूरे वाक्य बोलते हुए मरना पसंद नहीं करूँगा, मैं, अपने जीवन को एक महत्वहीन टिप्पणी पर समाप्त करना नहीं चाहूँगा। मैं लूथर की तरह मरना चाहता हूँ, जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, उसी पर विश्वास करते हुए।

यीशु के अंतिम शब्दों के बारे में क्या? मरकुस के सुसमाचार में कहा गया है, “तब यीशु ने बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए” (15:37)। मत्ती का सुसमाचार भी सहमति में बताता है, “तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए” (27:50)। यह अंतिम, ऊंची पुकार क्या थी? क्या यह विजय या निराशा की चीख थी? क्या यह यीशु की पीड़ा के सबसे बुरे क्षण को दर्शाती है या उसकी विजय की शुरुआत को?

हमें अनुमान लगाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि लूका ने रिक्त/खाली स्थान भर दिया है। वह लिखता है, “और यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा;हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ: और यह कहकर प्राण छोड़ दिए”(23:46)।

यूहन्ना आगे बताता है कि यीशु ने यह भी कहा कि “पूरा हुआ और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए” (19:30)।

यीशु की अंतिम पुकार परमेश्वर पर भरोसे की दर्दनाक पुकार थी। और क्योंकि उसके अंतिम वचन विश्वास से भरे हुए थे, वे उसके अंतिम वचन नहीं होंगे। और क्योंकि परमेश्वर ने यीशु को – अपने अनमोल पुत्र को – विजय में उठाया, वह उन सभी को भी उठाएगा जो ख्रीस्त में विश्वास रखते हैं।

माइक विट्टमर

 

आप अपने अंतिम शब्द में क्या कहना चाहेंगे? उन्हें लिख लें,ताकि आपके जाने के बाद आपके प्रियजन उन्हें पढ़ सकें।
आज आप इन आखिरी शब्दों को कैसे याद रख सकते हैं?


पिता, मैं अपनी आत्मा को आपके हाथों में सौंपता हूँ – अब और हमेशा के लिए।

 

शिकागो, इलिनोइस में अपने वर्तमान चर्च में जाने से पहले मैंने कभी भी मसीह के सात वचनों के बारे में नहीं सुना था। मुझे अभी भी याद है कि चर्च की सभा में “सात अंतिम वचन” के बारे में सुनने के बाद मैंने पवित्रशास्त्र में उन वचनों की खोज की थी ताकि मरने से पहले यीशु द्वारा कहे गए प्रत्येक वचन को गिन सकूं। मैं कभी भी केवल सात शब्द नहीं खोज पायी। लेकिन फिर मैं अपने चर्च में सात अंतिम वचनों पर होने वाली गुड फ्राइडे की सभा में पहली बार गयी। इस सभा के दौरान, हमारी लगभग सभी मंडली और आगंतुक चर्च में खचाखच भरे हुए थे, और फिर हमने कलीसिया से जुड़े सात अलग-अलग सेवकों तथा अगुवों की बातें सुनीं। प्रभु के इन सेवकों ने सुसमाचार से उन सात वाक्यांशों को साझा किया जो यीशु ने क्रूस से कहे थे। तब जाकर मुझे यह समझ में आया, और मैंने मरने से पहले यीशु द्वारा कहे गए सात वाक्यांशों (वचनों) को सीखा।

और प्रत्येक गुड फ्राइडे पर जब मैं इस सभा में शामिल होती हूँ और इन सात वाक्यांशों से प्रेरित सात अलग-अलग उपदेशों को सुनती हूँ – एक ही सभा में सुनने के लिए बहुत सारे उपदेश – मैं कुछ अलग, नया और प्रेरणादायक सुनती हूँ मैं यीशु, उनके अद्भुत चरित्र और उनके द्वारा अपने शिष्यों के लिए मरते समय दिखाए गए उदाहरण से थोड़ा और जुड़ जाती हूँ।

जब मैं सुनती हूँ “हे पिता, इन्हें क्षमा कर” तो मैं मसीह को हमारे लिए क्षमा का आदर्श प्रस्तुत करते हुए देखती हूँ – कि मैं कैसे अपने जीवन में घटित बहुत ही बुरी बातों को या फिर मेरे या मेरे प्रियजनों के प्रति दुर्भावना से किए गए बहुत ही पीड़ादायक कृत्यों को भी,  क्षमा का सकती हूँ? मैं परमेश्वर से सहायता माँगती हूँ, क्योंकि मैं यीशु के शब्दों को उनके दृष्टिकोण और पीड़ा के माध्यम से स्मरण करती हूँ।

जब मैं सुनती हूँ कि “आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा”(लूका 23.43), मैं न केवल यीशु को क्षमा करते हुए सुनती हूँ, बल्कि मैं पापियों को बहाल होते हुए भी देखती हूँ। मैं उसे पवित्रशास्त्र के अनुसार कार्य करते हुए देखती हूँ जो कहता है कि चाहे हमारा अतीत कुछ भी हो- वह उन सभी के पापों को मिटा देगा जो उसकी ओर मुड़ते हैं और उन्हें अनंत जीवन प्रदान करेगा । (देखें मत्ती 9:2 और यूहन्ना 3:16)। मैं हमेशा हमारे साथ रहने की उसकी इच्छा को देखती हूँ।

जब मैं सुनती हूँ “हे नारी,देख यह तेरा पुत्र है।” और एक प्रिय शिष्य से “यह तेरी माता है।” (यहुन्ना 19:26-27) तो मैं देखती हूँ कि मसीह दूसरों की परवाह करता है, यहाँ तक कि भयंकर पीड़ा के बीच भी। मैं देखती हूँ कि वह उन लोगों के लिए परिवार प्रदान करता है जिनके पास परिवार नहीं हैं और हमें एक-दूसरे की देखभाल करने की आज्ञा देता है।

जब मैं सुनती हूँ, “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती 27:46), तो मैं उभरता हुआ एक बड़ा, गंभीर प्रश्न सुनती हूँ। मैं अवसाद सुनती हूँ। मैं अकेलापन सुनती हूँ। मैं यीशु को अपने उद्देश्य को पूरा करते हुए उसकी पीड़ा को सुनती हूँ। यीशु जानते थे कि उन्हें एक उद्देश्य को पूरा करने के लिए बुलाया गया था-एक उद्देश्य जिसके बारे में उसने अपने शिष्यों से बात की थी (याकूब 31-33। मैं नहीं जानती थी कि वह हमारे पापों के लिए एक बलिदान के रूप में और हमें जीने का तरीका दिखाने के लिए भेजा गया था, फिर भी वह अलगाव, अकेलेपन और निराशा की वास्तविक, अपरिपक्व मानवीय भावनाओं से जूझ रहा था। यीशु के हृदय विदारक प्रश्न के माध्यम से, मैं सीखती हूँ कि जीवन के प्रश्नों के साथ परमेश्वर पर कैसे आश्रित रहना है और उसे पुकारना है। मैं सीखती हूँ कि विलाप करना ठीक है।

जब मैं सुनती हूँ “मैं प्यासा हूँ”,(यहुन्ना19:28),  तो मुझे याद आता है कि यद्यपि यीशु पूर्ण रूप से परमेश्वर हैं, फिर भी वे पूर्ण रूप से मनुष्य भी हैं। उसने भी वही महसूस किया जो एक मनुष्य के रूप में मैं महसूस करती हूँ।

जब मैं सुनती हूँ “पूरा हुआ!” (यहुन्ना 19:30), तब मैं, हमारे उद्धारकर्ता को अपने स्वयं के नियमों/शर्तों पर अपना उद्देश्य को पूरा करते हुए देखती हूँ-वह मर गया क्योंकि उसने कहा कि उसका काम पूरा हो गया था। वह अभी भी नियंत्रण में था-यहाँ तक कि मृत्यु तक भी। जिस काम को वह  करने आया था, जब पूरा हो गया, तब उसने उसकी घोषणा की और उसे छोड़/जाने दिया।

और जब मैं सुनती हूँ “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाँथो में सौंपता हूँ!” (लूका 23:46) तो मैं देखती हूँ कि मसीह स्वेच्छा से अपनी आत्मा परमेश्वर को, अपने पिता के हाँथो में सौंप रहा हैं। यह जानते हुए कि वास्तव में सब कुछ कौन नियंत्रित करता है, मैं समर्पण, शांति और सच्चा विश्वास देखती हूँ। और जो एक अनुस्मारक की तरह मुझे यह याद दिलाता है कि जब मैं सब कुछ परमेश्वर को सौंपती हूँ तो मुझे परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए।

यीशु के सात आखिरी वचनों पर विचार करना मुझे अतीत में ले जाता है; यह मुझे उस क्रूस की ओर ले जाता है जिसके बारे में मैं नहीं जानती थी, एक ऐसी घटना जहाँ उसे मरने के लिए लटका दिया गया था। यह मुझे वापस उस ओर ले जाता है कि मसीह कौन है और आज हमारे लिए उसका आदर्श क्या है। यह मुझे याद दिलाता है कि मसीहा का अनुसरण करने और परमेश्वर की योजना के अनुसार जीने का प्रयास करते समय मुझे क्या करना चाहिए। यीशु ने वास्तव में एक प्रेरणादायक उदाहरण के रूप में अपना जीवन जीया ताकि हम भी उसकी आत्मा और शक्ति के माध्यम से वैसा ही जीवन जीने का प्रयास कर सकें।

यीशु के अंतिम वचन मुझे उसके हृदय, भावनाओं, देखभाल और प्रतिबद्धता की याद दिलाते हैं। मैं प्रार्थना करती हूँ कि उसके वचन आपके लिए भी ऐसे उदाहरण हों जो एक परिवर्तित जीवन की ओर ले जाएँ; कि उसके वचन आपको उसके परिवर्तनकारी अनुग्रह की शक्ति से कठिन और आसान दिनों में उसके जैसा बनने के लिए प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करें। मुझे उम्मीद है कि उसके वचन दूसरों की देखभाल करने का एक सजीव चित्रण प्रस्तुत करते हैं, तब भी जब वे लोग आपको चोट पहुँचाते हैं और क्षमा की आवश्यकता होती है। मुझे आशा है कि यीशु के शब्द और कार्य आपको दिखाएंगे कि आप जिस भी चीज़ का सामना कर रहे हैं उसे परमेश्वर की सहायता से उनके हाथों में और उनकी देखभाल में कैसे छोड़ सकते हैं।

हमारे लिए अपनी सामर्थ्य में, मसीह के उदाहरण का अनुसरण करना असंभव है। इसके लिए हमें मसीहा में विश्वास की आवश्यकता है – परमेश्वर की शक्ति और अनुग्रह पर निरंतर भरोसा और निर्भरता रखने की आवश्यक्ता है। हमें हर दिन अपना जीवन उसके प्रति समर्पित करना चाहिए। यीशु ने हमें मार्ग दिखाया; अब यह हम पर निर्भर है कि हम उसका अनुसरण करें।

क्या आप उसका अनुसरण करेंगे?

कटारा पैटन, हमारी प्रतिदिन की रोटी की लेखिका

 

“यीशु के प्रति प्रत्युत्तर इस बात का भ्रम रहित प्रमाण है कि हमने क्षमा को

समझा है या नहीं और उसे प्राप्त किया है या नहीं।”

~ गैरी इनरिग