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Articles by डेव ब्रेनन

परमेश्वर की अब से सर्वदा तक मौजूदगी

मृणालिनी संघर्ष कर रही थी। उसके मित्र जो यीशु में विश्वास करते थे, और वह उनके जीवन के संघर्षों को संभालने के तरीके का सम्मान करती थी। उसे उनसे थोड़ी ईर्ष्या भी हो रही थी। लेकिन मृणालिनी ने नहीं सोचा था कि वह उनकी तरह जीवन जी सकती है; उसने सोचा कि मसीह में विश्वास रखने का मतलब नियमों का पालन करना है। अंततः, कॉलेज के एक साथी छात्र ने उसे यह देखने में मदद की कि परमेश्वर उसका जीवन खराब नहीं करना चाहता था; अपितु वह उसके उतार-चढ़ाव के बीच उसके लिए सर्वोत्तम चाहता था। एक बार जब उसे यह समझ में आ गया, तो मृणालिनी यीशु पर अपने उद्धारकर्ता के रूप में भरोसा करने के लिए तैयार हो गई और उसने अपने प्रति परमेश्वर के प्रेम के बारे में शानदार सच्चाई को अपना लिया।

राजा सुलैमान मृणालिनी को ऐसी ही सलाह दे सकते थे। उन्होंने स्वीकार किया कि इस दुनिया में दुख हैं। वास्तव में, "हर चीज़ का एक समय होता है" (सभोपदेशक 3:1) - "रोने का समय और हंसने का भी समय; छाती पीटने का समय, और नाचने का भी समय है" (पद 4)। लेकिन और भी बहुत कुछ है। परमेश्वर ने "मानव हृदय में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान भी उत्पन्न किया है" (पद 11)। अनन्त काल का अर्थ उसकी उपस्थिति में जीना है।

जैसा कि यीशु ने कहा था (यूहन्ना 10:10), मृणालिनी ने "पूरी तरह से" जीवन प्राप्त किया, जब उसने उस पर भरोसा किया। लेकिन उसे और भी बहुत कुछ हासिल हुआ! विश्वास के माध्यम से, "[उसके] हृदय में अनंत काल" (सभोपदेशक 3:11) एक भविष्य का वादा बन गया जब जीवन के संघर्षों को भुला दिया जाएगा (यशायाह 65:17) और परमेश्वर की गौरवशाली उपस्थिति एक शाश्वत वास्तविकता होगी।

 

परमेश्वर केअनुग्रह (कृपा) का उपहार

जब मैं एक कॉलेज लेखन कक्षाके लिए ,जिसे मैं पढ़ाता हूं,  कागजों के दूसरे ढेर की ग्रेडिंग कर रहा था, तो मैं एक विशेष पेपर से प्रभावित हुआ। यह बहुत अच्छा लिखा गया था! हालाँकि, जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि यह बहुत बहुत अच्छा लिखा गया था। एक छोटे से शोध से पता चला कि निश्चित रूप से, पेपर एक ऑनलाइन स्रोत से दूसरे के ग्रंथ में सेचुराया गया था।

मैंने छात्रा को यह बताने के लिए एक ईमेल भेजा कि उसकी चाल का पता चल गया है। उसे इस पेपर पर शून्य मिल रहा था, लेकिन वह आंशिक क्रेडिट के लिए एक नया पेपर लिख सकती थी। उसकी प्रतिक्रिया: “मैंलज्जितहूंऔरमुझेबहुतदुख है। आप मुझ पर जो अनुग्रह दिखा रहे हैं मैं उसकी सराहना करती हूं। मैं इसके लायक नहीं हूं।” मैंने उसे यह कहकर जवाब दिया कि हम सभी को हर दिन यीशु का अनुग्रह मिलता है। तो मैं उसे अनुग्रहदिखाने से कैसे इनकार कर सकता हूँ?

ऐसे कई तरीके हैं जिनसे परमेश्वर का अनुग्रह हमारे जीवन को सुधारrk है और हमें हमारी गलतियों से मुक्त करता है। पतरस  का कहना है कि यह मुक्ति देता है: "हमारा तो यह विश्वास है कि प्रभु यीशु के अनुग्रह से हमारा उद्धार हुआ है। " (प्रेरितों 15:11)। पौलुस कहते हैं कि यह हमें पाप से बचने में मदद करता है: "और तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के आधीन नहीं बरन अनुग्रह के आधीन हो।" (रोमियों 6:14)। और कहींपतरसका कहना है कि अनुग्रह हमें सेवा करने की अनुमति देता है: “जिस किसी को परमेश्वर की ओर से जो भी वरदान मिला है, उसे चाहिए कि परमेश्वर के विविध अनुग्रह के उत्तम प्रबन्धकों के समान, एक दूसरे की सेवा के लिए उसे काम में लाए।” (1 पतरस 4:10)।

अनुग्रह। यह परमेश्वर द्वारा स्वतंत्र रूप से दिया गया है (इफिसियों 4:7)। क्या हम इस उपहार का उपयोग दूसरों को प्यार करने और प्रोत्साहित करने के लिए कर सकते हैं।

यीशु में संगती

मुझे यह ठीक से पता नहीं कि रविवार की सुबह हमारी आराधना के बाद लाइटों को और चर्च को बंद करने के लिए कौन जिम्मेदार है। लेकिन मैं उस व्यक्ति के बारे में एक बात जानता हूं : रविवार के भोजन में देर होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत से लोग चर्च के बाद इधर-उधर घूमना और जीवन के निर्णयों, हृदय संबंधी मुद्दों और संघर्षों और बहुत कुछ के बारे में बात करना पसंद करते हैं। आराधना के लगभग बीस मिनट बाद भी यह देखना आनंददायक है कि बहुत से लोग अभी भी एक-दूसरे की संगति का आनंद ले रहे हैं।

 

संगति मसीह-सदृश जीवन का एक प्रमुख घटक है। उस सम्बन्ध के बिना जो साथी विश्वासियों के साथ समय बिताने से आती है, हम विश्वासी होने के कई लाभों से चूक जायेंगे।

उदाहरण के लिए, पौलुस कहता है कि हम “एक दूसरे को शान्ति [दे सकते हैं] और एक दूसरे की उन्नति का कारण” बन सकते हैं (1 थिस्सलुनीकियों 5:11)। इब्रानियों का लेखक इस बात से सहमत है कि हमें एकजुट होने में लापरवाही नहीं करना चाहिए, क्योंकि हमें "एक दूसरे को समझाते” रहना चाहिए (10:25)। और लेखक यह भी कहता है कि जब हम एक साथ होते हैं, तो हम “भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता” करते हैं (पद.24)।

यीशु के लिए जीने के लिए समर्पित लोगों के रूप में, हम खुद को विश्वासयोग्यता और सेवा के लिए तैयार करते हैं जब हम “निरुत्साहित को प्रोत्साहित” करते और “सब की ओर सहनशीलता” दिखाते हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14)। उस तरह से जीने से, हमें सच्ची संगति का आनंद लेने में और "आपस में और सब से भी भलाई करने में” (पद.15) मदद करता हैं।

परमेश्वर के सामने बराबर

छुट्टियों के दौरान, मेरी पत्नी और मैंने सुबह-सुबह बाइक की सवारी का आनंद लिया। एक रास्ता हमें करोड़ों डॉलर के घरों के बगल से ले गया। हमने विभिन्न प्रकार के लोगों को देखा--निवासियों को अपने कुत्तों को घुमाते हुए, साथी बाइक सवारों को, और कई श्रमिकों को नए घर बनाते हुए या अच्छी तरह से बनाए गए परिदृश्यों की देखभाल करते हुए। यह जीवन के सारे क्षेत्रों के लोगों का मिश्रण था और मुझे एक मूल्यवान वास्तविकता की याद आयी। हमारे बीच कोई वास्तविक भेदभाव नहीं था। अमीर या गरीब। धनवान या श्रमिक वर्ग। ज्ञात या अज्ञात। उस सुबह उस सड़क पर हम सब लोग एक जैसे थे। “धनी और निर्धन दोनों में यह समानता होती है; यहोवा उन दोनों का कर्त्ता है” (नीतिवचन 22:2) l मतभेदों के बावजूद, हम सब परमेश्वर के स्वरूप में बनाये गये हैं (उत्पत्ति 1:27)।

 

लेकिन और भी बहुत कुछ है। परमेश्वर के समक्ष समान होने का अर्थ भी है: भले ही हमारा आर्थिक, सामाजिक, या जातीय स्थिति कुछ भी हो, हम सब पाप स्थिति के साथ पैदा हुए हैं: “सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं” (रोमियों 3:23)। हम सब उसके सामने अवज्ञाकारी और समान रूप से दोषी हैं, और हमें यीशु की ज़रूरत है।

 

हम अक्सर कई कारणों से लोगों को समूहों में बांट देते हैं। लेकिन, वास्तव में, हम सब मानव जाति के हिस्से हैं। और यद्यपि हम सब एक ही स्थिति में हैं—पापियों को एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है—हम उसके अनुग्रह से “सेंत-मेंत धर्मी ठहराए जाकर” (पद.24) (परमेश्वर के साथ सही बनाए जा सकते हैं।)

यीशु से लिपटे रहना

हाल ही में विधवा हुई महिला की चिंता बढ़ती जा रही थी। बीमा पॉलिसी से कुछ महत्वपूर्ण धनराशि इकट्ठा करने के लिए, उसे उस दुर्घटना के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी की आवश्यकता थी जिसने उसके पति की जान ले ली थी।  उसने एक पुलिस अधिकारी से बात की थी जिसने कहा था कि वह उसकी मदद करेगा, लेकिन फिर उसने उसका बिजनेस कार्ड कही खो दिया।  इसलिए उसने मदद के लिए परमेश्वर से विनती करते हुए प्रार्थना की। थोड़े समय बाद, वह अपने चर्च में थी जब वह खिड़की से गुज़री, एक कार्ड दिखा— उस पुलिसकर्मी का कार्ड— एक खिड़की पर ।

उसने प्रार्थना को गंभीरता से लिया। और क्यों नहीं?  वचन कहता है कि परमेश्वर हमारी विनती सुन रहे हैं। "प्रभु की आँखें धर्मियों पर लगी रहती हैं," पतरस ने लिखा, "और उसके कान उनकी विनती की ओर लगे रहते हैं" (1 पतरस 3:12)

बाइबल हमें उदाहरण देती है कि परमेश्वर ने प्रार्थना पर कैसे प्रतिक्रिया दिया। एक यहूदा का राजा हिजकिय्याह है, जो बीमार पड़ गया। उसे भविष्यवक्ता यशायाह से भी संदेश मिला था कि वह मरने वाला है। राजा जानता था कि क्या करना था: वह "यहोवा से प्रार्थना" किया (2 राजा 20:2)।  तुरंत, परमेश्वर ने यशायाह से कहा कि वह राजा को अपनी ओर से यह सन्देश दे:" मैं ने तेरी प्रार्थना सुनी"(पद 5) । हिजकिय्याह को पंद्रह वर्ष का जीवन और दिया गया।

परमेश्वर हमेशा प्रार्थनाओं का उत्तर खिड़की पर रखे कार्ड जैसी चीज़ों से नहीं देते, बल्कि वह हमें आश्वस्त करते हैं कि जब कठिन परिस्थितियाँ आती हैं, तो हम अकेले उनका सामना नहीं करते हैं। परमेश्वर हमें देखता है, और वह हमारे साथ है—हमारी प्रार्थनाओं पर ध्यान देता है।

जीवन को पाना

ब्रेट के लिए मसीही कॉलेज में जाना और बाइबल का अध्ययन करना एक स्वाभाविक कदम था। आख़िरकार, वह ऐसे लोगों के बीच रहा जो यीशु को उसके पूरे जीवन में जानते आये थे - घर पर, स्कूल में, चर्च में। यहां तक ​​कि वह अपनी कॉलेज की पढ़ाई को "मसीही कार्य" में करियर बनाने के लिए भी तैयार कर रहा था।

लेकिन इक्कीस साल की उम्र में, जब वह एक गाँव के पुराने से चर्च की छोटी सी कलीसिया के साथ बैठ कर और  एक पासवान से जो 1 यहुन्ना की पत्री में से प्रचार कर रहे थे, उन्हें सुन रहा था तभी उसने एक चौंकाने वाली खोज की। उसे एहसास हुआ कि वह धर्म की पकड़ और ज्ञान पर निर्भर कर रहा था और उसने वास्तव में कभी भी यीशु में उद्धार नहीं पाया था । उसने महसूस किया कि मसीह उस दिन एक गंभीर संदेश के साथ उसके ह्रदय को छू रहे थे: "तुम मुझे नहीं जानते!"

प्रेरित यूहन्ना का संदेश स्पष्ट है: "हर कोई जिसका यह विश्वास है कि यीशु ही मसीह है, वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है" (1 यूहन्ना 5:1)। हम "दुनिया पर विजय पा सकते हैं", जैसा कि यहुन्ना कहते हैं (पद 4) केवल यीशु में विश्वास के द्वारा। उसके बारे में ज्ञान नहीं, बल्कि गहरा, सच्चा विश्वास - जो उसने क्रूस पर हमारे लिए किया उस पर हमारे विश्वास द्वारा प्रदर्शित होता है। उस दिन, ब्रेट ने अपना विश्वास केवल मसीह पर रखा।

आज, यीशु और उनके उद्धार के प्रति ब्रेट का गहरा जुनून कोई रहस्य की बात नहीं है, यह काफ़ी ज़ोर से और स्पष्ट रूप से नज़र आता है जब भी वह मंच पर कदम रखते है और एक पासवान-मेरे अपने पासवान के रूप में उपदेश देते है। 

“परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है, और यह जीवन उसके पुत्र में है। जिसके पास पुत्र है, उसके पास जीवन है” (पद- 11-12)। उन सभी के लिए जिन्होंने यीशु में जीवन पाया है, यह कितना सान्तवना देने वाला अनुस्मारक है!

कोई प्रश्न?

ऐन, प्रारंभिक परीक्षा के लिए अपने ओरल सर्जन से मिल रही थी — जो एक चिकित्सक थे जिसे वह कई वर्षों से जानती थी। उसने ऐन से पूछा, “क्या कोई प्रश्न पूछना है?” उसने कहा “हाँ“ क्या आप पिछले रविवार को चर्च गए थे?” उसका सवाल आलोचनात्मक नहीं था, उसने केवल विश्वास के बारे में बातचीत शुरू करने के लिए यह पूछा था।

सर्जन के पास चर्च का कोई सकारात्मक अनुभव नहीं था जब वह बड़ा हो रहा था और वह फिर कभी लौट के वहां गया नहीं । ऐन के प्रश्न और उनकी बातचीत के कारण, उसने अपने जीवन में यीशु और चर्च की भूमिका पर पुनर्विचार किया। जब ऐन ने बाद में उसे एक बाइबल दी जिस पर उसका नाम लिखा हुआ था तो बाइबल लेते समय उसकी आंखों में आंसू आ गये। 

कभी कभी हम विरोध से डरते हैं या अपने विश्वास को साझा करने में बहुत आक्रामक नहीं दिखना चाहते। लेकिन यीशु के बारे में गवाही देने का एक अच्छा तरीका हो सकता है कि —प्रश्न पूछें।

एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो परमेश्वर था, और सब कुछ जानता था, यीशु ने निश्चित रूप से बहुत सारे प्रश्न पूछे। जबकि हम उसके उद्देश्यों को नहीं जानते हैं, यह स्पष्ट है कि उसके प्रश्नों ने दूसरों को प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने शिष्य अन्द्रियास  से पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” (यूहन्ना 1:38)। उसने अंधे बरतिमाई से पूछा“ तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिये करूं?” (मरकुस 10:51; लूका 18:41)। उसने लकवे के रोगी से पूछा, “क्या तू चंगा होना चाहता है?” (यूहन्ना 5:6)। यीशु के प्रारंभिक प्रश्न के बाद इनमें से प्रत्येक व्यक्ति के लिए बदलाव हुआ।

क्या कोई ऐसा है जिससे आप विश्वास के मामलों के बारे में संपर्क करना चाहते हैं? परमेश्वर से मांगें कि वह आपको पूछने के लिए सही प्रश्न दे।

अंधियारे से ज्योति के तरफ

कोई भी आकाश को उसके गहरे अवसाद से बाहर नहीं निकाल सका। एक ट्रक दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद, उन्हें दक्षिण पश्चिम एशिया के एक मिशनरी अस्पताल में ले जाया गया। आठ ऑपरेशनों के बाद उसकी टूटी हड्डियों को ठीक किया गया, लेकिन वह खाना नहीं खा सका। निराशा शुरू हो गई। उसका परिवार प्रबंध करने के लिए उस पर निर्भर था, जो वह नहीं कर सकता था, इसलिए उसका दुनिया और अधिक अंधकारमय हो गया।

एक दिन एक अतिथि ने आकाश को उसकी भाषा में यूहन्ना का सुसमाचार पढ़ा और उसके लिए प्रार्थना किया। परमेश्वर का मुफ्त उपहार यीशु के द्वारा क्षमा और उद्धार के आशा से प्रभावित होकर, उसने उन पर अपना विश्वास रखा। उसका अवसाद तुरंत छोड़ दिया। जब वह घर लौटा, शुरुआत में वह अपने नए पाए हुए विश्वास के बारे में बताने से डरा था। अनंतः, हालाँकि, उसने अपने परिवार को यीशु के बारे में बताया—और उनमें से छः लोगों ने भी उस पर भरोसा किया!    

युहन्ना का सुसमाचार एक अंधकारमय संसार में ज्योति का स्रोत है। उसमें हम पढ़ते हैं “... जो कोई उस (यीशु) पर विश्वास करें वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” हम पाते हैं की “... जो मेरा (यीशु) का वचन सुनकर ...विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है...” (5:24)। और हम यीशु को कहते हुए सुनते हैं, “... “जीवन की रोटी मैं हूँ: जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा न होगा,...” (6:35)। वास्तव में, “जो सत्य पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ..” (3:21)। 

जिन समस्याओं का हम सामना करते हैं वे महान हो सकते हैं, लेकिन यीशु अतिमहान है । वह हमें “बहुतायत का जीवन” (10:10) देने आया। आकाश की तरह, आप भी अपना विश्वास यीशु पर डालें--जो संसार का आशा और सारे मानव के लिए ज्योति।

बिदाई शब्द

जैसे–जैसे वह अपने जीवन के अंत के करीब आया, जॉन एम पर्किन्स के पास उन लोगों के लिए एक संदेश था जिन्हें वह पीछे छोड़ कर जाएगा। जातीय सुलह का समर्थन करने के लिए प्रसिद्ध पर्किन्स ने कहा, “पश्चाताप ही ईश्वर तक वापस जाने का एकमात्र तरीका है। यदि तुम मन न फिराओगे, तो तुम सब नाश हो जाओगे।”

ये शब्द बाइबिल में यीशु और कई अन्य लोगों की भाषा को प्रतिबिंबित करते हैं। मसीह ने कहा, “मैं तुम से कहता हूं कि यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी इसी रीति से नाश होगे।  (लूका 13:3)। प्रेरित पतरस ने कहा, “इसलिये, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं   (प्रेरितों के काम 3:19)।

बहुत पहले पवित्रशास्त्र में, हम एक और व्यक्ति के शब्दों को पढ़ते हैं जो चाहता था कि उसके लोग परमेश्वर की ओर फिरें। सारे इस्राएल को अपने विदाई भाषण में (1 शमूएल 12:1) भविष्यद्वक्ता, याजक और न्यायी शमूएल ने कहा, “डरो मत। तुमने बुराई तो की है परन्तु अब यहोवा के पीछे चलने से मत मुड़ना  परन्तु अपके सम्पूर्ण मन से यहोवा की उपासना करना (पद 20)। यह उनका पश्चाताप का संदेश था — बुराई से मुड़ना और पूरे दिल से परमेश्वर का अनुसरण करना।

हम सभी पाप करते हैं और परमेश्वर के मापदण्ड के लक्ष्य को खो देते हैं। इसलिए हमें पश्चाताप करने की आवश्यकता है, जिसका अर्थ पाप से मुड़ना और यीशु की ओर आना है, जो हमें क्षमा करता है और हमें उसका अनुसरण करने की शक्ति देता है। आइए हम दो पुरुषों — जॉन पर्किन्स और शमूएल के शब्दों पर ध्यान दे,जिन्होंने पहचाना था कि कैसे परमेश्वर पश्चाताप की शक्ति का उपयोग हमें उन लोगों में बदलने के लिए कर सकता है जिसका उपयोग वह अपने सम्मान के लिए कर सकता है।