मेरी बचपन की यादों में से एक याद है की मेरे माता-पिता दुख से जूझ रहे थे। क्रिसमस से एक सप्ताह पहले मेरे अंकल का कार दुर्घटना में देहांत हो गया था। वह अपनी पत्नी (जो कि मेरे पिता की बहन थी) और तीन छोटे बच्चे छोड़ गए थे ।

जिन परेशानियों की तह में से होकर मेरे माता-पिता गुजर रहे थे वह मेरी समझ से परे था, जिसमें खोने का दुख,आंसू और संघर्ष था । यह बहुत ही उलझन का समय था लेकिन मेरी बचपन की सोच उनकी मनोवस्था की उस गहराई को नहीं समझ पा रही थी। यह पहली बार था जबकि मेरा सामना इस बोझमय दुख से हुआ था। 

मृत्यु जीवन का एक भाग है, जिसे जीवन से कभी अलग नहीं किया जा सकता, चाहे हम इस सत्य को स्वीकारे या नहीं। फिर भी जब हम किसी अपने को खो देते हैं उस समय जो दुख होता है उस पीड़ा सहने से परे होता है। लेखक और विचारक सी.एस लुइस ने अपनी पुस्तक “एक दुख का निरीक्षण”, में ऐसा लिखा :

 परेशानियों का हमें वायदा किया गया है; यह तो जीवन का ही भाग है जिसमें हमें ऐसा भी कहा गया है कि ‘धन्य है वे जो खेदित है’ और मैंने वह स्वीकार लिया। मेरे पास कुछ भी ऐसा नहीं जिसके लिए मैंने सौदेबाजी ना किया हो फिर भी जब कुछ औरों के साथ नहीं परंतु अपने साथ ही वितता है, वह काल्पनिक नहीं परंतु वास्तविक होता है।

यह अचानक ही कुछ अलग महसूस होता है जब दुख हमारे जीवन में आता है जबकि मृत्यु हमसे हमारी ही चीज को छीन लेती है। मृत्यु भिन्न भिन्न प्रकार से आती है: शादी का टूट जाना, भविष्य की सजाए हुए सपनों का टूट जाना। यह सब प्रकार का नुकसान दुख को लेकर आती है। लेकिन सबसे गहरा दुख उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाने से होता है जो हमारे दिल की गहराइयों में होता है।

जब हमारे अति प्रिय को मौत हमसे छीन लेती है। तब दुख के बोझ के कारण, हमारे हृदय को चुरचुर होने का डर रहता है, परमेश्वर कहाँ है? क्या वह हमारी चिंता करता है, क्या वह देखता है ? वास्तव में हमारी कठिन परिस्थितियों में परमेश्वर बहुत ही करीब से होकर हमारे साथ रहता है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।

फ्योडोर डोस्तोव्स्की ने अपनी पुस्तक, ‘अपराध और दंड’, में इस प्रकार लिखा है:

जितनी अंधेरी रात, उतने ही चमकदार सितारे,

जितने गहरे दुख, उतने ही पास परमेश्वर!

 

यह वास्तव में एक अनमोल प्रतिज्ञा है, परंतु क्या बाइबल में हमें ऐसा कोई प्रमाण मिलता है कि परमेश्वर हमारे दुख की चिंता करता है? जब हम दुखी होते हैं तो क्या परमेश्वर वास्तव में हमारे बहुत ही नजदीक होता है? बाइबल दुख के विषय में क्या कहती है? 

दुख की गहराइयां 

दुख के समय पहली चीज जो हमें प्रोत्साहित कर सकती है वह है की बाइबिल इसे व्यर्थ नहीं मानती। इसके विपरीत बाइबल दुख की वास्तविकता व इससे हमारा संघर्ष को बडे ही ईमानदारी से संचालित करती है। विस्तृत रूप से बताये गए एक गहरी दुख की कहानी वह है अय्यूब की कहानी । जहाँ एक ही विनाशकारी दिन में उसने अपने बच्चे और सारी संपत्ति खो दी। अय्यूब का क्या प्रत्युत्तर था?

‘भला होता कि मेरा खेद तौला जाता, और मेरी सारी विपत्ति तुला में रखी जाती!’  (अय्यूब 6:2)

इस्राएल के महान राजा दाऊद भी दुखों से अनजान न था जिसे ‘परमेश्वर के  मन का व्यक्ति (1 शमुएल 13:14) की संज्ञा दी गई। दाऊद का जीवन आपदाओं, हानि, दुःख व परेशानियों से भरा हुआ था, जिसके कारण उसने बहुत विलाप किया:

“मेरी आंखें शोक से बैठी जाती हैं, और मेरे सब सताने वालों के कारण वे धुन्धला गई हैं”। (भजन संहिता 6:7) 

और:

“हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर क्योंकि मैं संकट में हूं; मेरी आंखे वरन मेरा प्राण और शरीर सब शोक के मारे घुले जाते हैं”। (भजन संहिता 31:9)

विभिन्न तरीकों से लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर के प्रेम की बड़ी कहानिया हैं। जब हम बात करें तो बाइबल हमें दुख और किसी के खोने की कहानियों को वैसे ही चित्रित करती है जैसे की उत्पत्ति अध्याय 3 में देखने को मिलता है, जबसे मृत्यु ने जगत में प्रवेश किया। दुख जो कि अब हमारे संसार का एक चरित्र है। दुख जिसका अभिलिखित हुआ  और याद किया जाता है। दुख जिसे ना तो कभी अनदेखा किया गया और ना ही हल्के में लिया गया।

परमेश्वर की सुरक्षा

बाइबल में परमेश्वर का एक चरित्र (गुण) है कि वह सर्वज्ञानी है, जिसका मतलब है ‘वह जो कहता है वह सब कुछ जानता है’।  परमेश्वर सब कुछ जानता है, इसका अर्थ यह है कि जब हम किसी विपत्ति द्वारा पीड़ित होते हैं उस समय हमें कैसा लगता है परमेश्वर वह भी जानता है। वास्तव में वह हमारे साथ जुड़कर उन्हें बहुत महत्व देता है, जिन्हें हमने खो दिया है: 

“यहोवा के भक्तों की मृत्यु, उसकी दृष्टि में अनमोल है”। (भजन संहिता 116:15)

 

दुख से एक और दर्दनाक भावना उत्पन्न होती है जो हमें गहरी अकेलेपन का महसूस दिलाता है। जिसमें लगता है कि इस परेशानी का सामना हम अकेले कर रहे हैं परंतु ऐसा होता नहीं। वह हमारी क्षति में मात्र आकर खड़ा ही नहीं होता परंतु हमारा प्रभु उस क्षति को पूरा करने में भी भागीदार होता है। दुख की घड़ी में सारा बोझ हमें अकेले उठाने की आवश्यकता नहीं।

भले ही यहां दुख को विशिष्ट रूप से संबोधित नहीं करते परन्तु बाइबल के दो विशेष आयतों को दुख की श्रेणी में रखा जा सकता है जिनकी परमेश्वर चिंता करता है:

“हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा”। (मति 11:28)

और “अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है”। (1पतरस 5:7)

हमें सांत्वना देने वाला और “हमारे जीवन का बल” (भजन संहिता 27:1), यह जानते हुए कि हम अपनी परेशानियों का बोझ अकेले नहीं उठाते, हम उसकी सहायता पर भरोसा कर सकते हैं। हमारे प्रभु का “जूआ” हमारे बोझ को हल्का कर देता है क्योंकि वह भी हमारे साथ उस बोझ को उठाता है (मति 11:30 ). परमेश्वर हमारे दुख में हमारे साथ हैं।

सर्वश्रेष्ठ उत्तर

अंततः, दुख और मृत्यु के लिए परमेश्वर का अंतिम उत्तर क्रूस था। मृत्यु का कारण दुख होता है, और जीवन ही मृत्यु का उपाय है। बाइबल में सबसे प्रसिद्ध पद जिसे हम पढ़ते हैं:

“क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए”। ( यूहन्ना 3:16)

“नाश ना होगा।”  यीशु मसीह के साथ संबंध के द्वारा मृत्यु अंतिम शब्द नहीं। यीशु मसीह पर विश्वास हमें सुदृढ भूमि पर खड़ा करता है जहां पर मृत्यु अंत नहीं है। यह अभी भी एक हिस्सा है परंतु अंत नहीं।

वास्तव में यीशु मसीह की सेवकाई उस आशा को जागृत करना था, जिसकी उन्होंने एक मित्र की कब्र पर पृष्ठि की थी : 

“यीशु ने उस से कहा, पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा” । (युहन्ना 11:25)

मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा मृत्यु की ताकत पर जय पायी गई जिसे पौलुस बताते है:

“हे मृत्यु तेरी जय कहाँ रही? हे मृत्यु तेरा डंक कहाँ रहा? मृत्यु का डंक पाप है; और पाप का बल व्यवस्था है। परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें जयवन्त करता है” । (1कुरिन्थियों 15:55 – 57).

हाँ, दुख का बोझ हानि के दौरान सदैव एहसास होगा, परंतु बाइबल हमें स्पष्ट रूप से बताती है कि मृत्यु जयवन्त नहीं है। दुख क्षणभंगुर है। उनके लिए जो यीशु को अपना उद्धारकर्ता मानते हैं जीवन असीम, अनंत और कभी ना खत्म होने वाली कहानी है।

बाइबल के अंतिम अध्याय में, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक जीवन की एक ऐसे चित्र को चित्रित करती है जो कि आशा का है ना कि कुछ खोने का; आश्वासन का है ना कि दर्द पाने का; जीवन का है ना की मृत्यु का: 

“फिर मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊंचे शब्द से यह कहते सुना, “कि देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उन के साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उन के साथ रहेगा; और उन का परमेश्वर होगा। और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं”।  (प्रकाशितवाक्य 21:3 – 4)

परमेश्वर हमारे दुख में हमारे साथ हैं। वह हमारी परेशानियों में साथ और भागीदार रहता है। उस सिद्ध दिन, परमेश्वर की ज्योतिर्मय आशा दुख उत्पन्न करने वाले कारक कों ही निगल जाएगी। और उस दिन का हमें इंतजार है…

-बिल क्रोडर

 

 

 

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अपने जीवन साथी को खोने का दर्द अवर्णनीय रूप से दर्दनाक, अत्यधिक जटिल, व काफी हद तक गलत समझा गया  है। लेखक ‘सुसान वंडेपोल’ जो इस वेदना से होकर गुज़री, स्वयं अपनी कहानी को शालीनता व गहराई के साथ बता रहीं हैं। वह उनके साथ खड़ी हैं जो दुख के इस बर्फीले पानी में कांप रहे हैं,  कि उन्हें तैरने और श्वास लेने में सहायता प्रदान करें। आइए खोजें, कैसे मसीह का प्रेम अपने प्रियतम की मृत्यु के दुख से उभारने में सहायक ठहरता है।

 

राख़ से उभरना- अय्यूब के दर्द में परमेश्वर की उपस्थिति

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क्षति के बाद का जीवन- शोक में आशा

सलाहकार टिम जैकसन “शोक एक ऐसी यात्रा है अभी या कुछ समय बाद हमें उसे लेना होता है” जैकसन हमें अपने निजी अनुभव से बताते हैं कैसे हम इस यात्रा को आशा सहित मसीह और उसके पुनरुत्थान की सामर्थ की ओर ध्यान लगाकर पूरा कर सकते हैं।  इस लेख में, वह हमारे शोक में साथ चलते हुए याद दिलाता है कि सांत्वना के लिए “हमारा रुझान हमारे सृष्टिकर्ता और एक दूसरे पर होना चाहिए” 

 

कोविड और उसके आगे – विपत्ति के विषय बाइबल

जब शहरों, देशों और यहां तक कि सारी दुनिया में फैली यह विपदा हम पर प्रभाव डालती है तो हम मसीहों को सामर्थ्य और अगुवाई पाने के लिए बाइबल की ओर देखना है, और जो लोग इन से पीड़ित है उनकी ओर मसीह के प्रेम को लेकर पहुंचना है। यह लेख अजीत फर्नांडो द्वारा सुनामी के बाद लिखा गया। परंतु यह आज भी हमें बाइबल के अनुसार सिखाता है कि मसीहों को विपत्तियों के मध्य और उसके बाद क्या करना चाहिए।