बेहतर जानने के बाद भी मैं प्रयासरत हूँ l लेबल पर निर्देश स्पष्ट है : “इसे सूर्यप्रकाश चाहिए l” हमारे अहाते में अधिकतर छाया रहती है l यह उन पौधों के लिए उपयुक्त नहीं है जिन्हें सूर्य का पूरा प्रकाश चाहिए l किन्तु मुझे वह पौधा, उसका रंग, पत्तों की आकृति, पौधे का आकार, और महक पसंद है l इसलिए मैं उसे खरीदकर लगाता हूँ और अच्छी देखभाल करता हूँ l किन्तु पौधा मेरे घर में खुश नहीं है l मेरी देखभाल और ध्यान देना पर्याप्त नहीं है l उसे सूर्यप्रकाश चाहिए जो मैं नहीं दे सकता हूँ l मेरी सोच थी मैं सूर्यप्रकाश का विकल्प बन सकता था l किन्तु ऐसा नहीं है l पौधों को आवश्यकतानुकूल चाहिए l
ऐसा ही लोगों के साथ भी है l यद्यपि आदर्श से कम स्थिति में हम जी सकते हैं, हम बढ़ नहीं सकते l हमारी बुनियादी भौतिक ज़रुरतों के आलावा, आत्मिक ज़रूरत भी है जो किसी विकल्प से पूरी नहीं हो सकती l
वचनानुसार विश्वासी ज्योति की संतान हैं l अर्थात् हमें बढ़ने हेतु परमेश्वर की उपस्थिति की ज्योति की पूर्णता में रहना होगा (भजन 89:15) l अन्धकार में रहने के प्रयास में, हमें “निष्फल कामों” (देखें इफि. 5:3-4, 11) के सिवा कुछ नहीं मिलेगा l किन्तु यीशु, जगत की ज्योति में रहकर, हम ज्योति के फल लाएंगे, जो अच्छा, विश्वासयोग्य, और सच्चा है l