बुद्धिमत्ता का एक सराहनीय अंश मेरे पिता द्वारा दोहराया जानेवाला कथन है, “जो, अच्छे मित्र जीवन के महानतम धन में से एक है l” कितना सच! अच्छे मित्रों के साथ, आप अकेले नहीं हैं l वे आपकी ज़रूरत के प्रति संवेदनशील और प्रसन्नतापूर्वक जीवन के आनंद और बोझ में सहभागी होते हैं l
यीशु के जन्म पूर्व, केवल दो लोग परमेश्वर के मित्र कहलाये l परमेश्वर ने मूसा से बातचीत की “जिस प्रकार कोई अपने भाई (मित्र) से बातें” करता है (निर. 33:11), और अब्राहम जो “परमेश्वर का मित्र” कहलाया (याकूब 2:23; देखें 2 इति. 20:7; यशा. 41:8) l
मुझे आश्चर्य होता है कि यीशु अपने लोगों को मित्र संबोधित करता है : “मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं” (यूहन्ना 15:15) l और अपनी गहरी मित्रता के कारण हमारे लिए बलिदान दिया l यूहन्ना कहता है, “इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपना प्राण दे” (पद.13) l
यीशु हमारा मित्र, होना क्या ही सुअवसर और आशीष है! ऐसा मित्र जो हमें न छोड़ेगा और न त्यागेगा l वह पिता से हमारे लिए विनती करके हमारी ज़रूरतें पूरी करता है l वह हमारे पाप क्षमा करता है, हमारे दुखों को समझता है, और दुःख में प्रयाप्त अनुग्रह देता है l वह सचमुच हमारा सर्वोत्तम मित्र है!