विश्वास को एक जादुई सूत्र मानना परीक्षा है l प्रयाप्त प्रयास से, सभी प्रार्थनाओं का स्वतः उत्तर पाकर समृद्ध होंगे, स्वस्थ्य रहेंगे, और संतोषदायक जीवन मिलेगा l किन्तु जीवन ऐसे उम्दा सूत्रों से नहीं चलता : प्रमाण के रूप में इब्रानियों का लेखक पुराने नियम के विश्वास के कुछ भीमकायों के जीवनों की समीक्षा करके “सच्चे विश्वास” का एक भावोत्तेजक ताकीद पेश करता है (इब्र.11) l
लेखक कहता है, “विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है” (11:6) l विश्वास के वर्णन में वह शब्द “दृढ़” उपयोग करता है (पद.27) l अपने विश्वास के कारण, कुछ नायक विजयी हुए : फौजों को हराया, तलवार से और सिंहों से बच गए l किन्तु दूसरों का अंत बहुत अच्छा नहीं था : कितनों ने कोड़े सहे, पत्थरवाह किये गए, आरे से चीरे गए l अध्याय समाप्त होता है, “विश्वास ही के द्वारा इन सब के विषय में अच्छी गवाही दी गई, तौभी उन्हें प्रतिज्ञा की हुई वस्तु न मिली” (पद. 39) l
प्रगट विश्वास एक सरल सूत्र में फिट नहीं होता l कभी विजय मिलती है l कभी यह “हर कीमत पर” दृढ़ निश्चय मांगता है l ऐसे लोगों के लिए, परमेश्वर उनका परमेश्वर कहलाने में उनसे नहीं लजाता, क्योंकि उसने उनके लिए एक नगर तैयार किया है” (पद.16) l
परमेश्वर सम्पूर्ण नियंत्रण रखता है और अपनी प्रतिज्ञाएँ पूरी करेगा-चाहे इस जीवन में या आनेवाले जीवन में, हमारा विश्वास इसी पर स्थिर है l