कभी-कभी जीवन यात्रा इतनी कठिन दिखायी है जिससे हम अभिभूत/पराजित हो जाते हैं, और ऐसा महसूस होता है मानो अंधकार असीमित है l ऐसे ही एक सुबह हमारे पारिवारिक चिंतन के समय, मेरी पत्नी को अपने मनन के समय एक नयी सीख मिली l “मैं सोचती हूँ कि परमेश्वर चाहता है कि जो बातें हम इस अन्धकार में सीख रहें हैं उन्हें ज्योति में न भूलें l”
पौलुस अपनी टीम के साथ एशिया में अत्यधिक कठिनाईयों का वर्णन करते हुए, इन्हीं विचारों को कुरिन्थियों को लिख रहा है (2 कुरिन्थियों 1) l पौलुस चाहता था कि कुरिन्थुस के विश्वासी समझ जाएं कि परमेश्वर किस प्रकार अंधकारमय पलों को भी बदल सकता है l वह कहता है, “हमें शांति मिली है, इसलिए हम भी दूसरों को शांति दे सकते हैं” (पद.4) l पौलुस और उसकी टीम आजमाइशों में सीख रहे थे ताकि वे कुरिन्थियों को उसी प्रकार की कठिनाइयों में शांति और सलाह दे सकें l और यदि हम सुनने को तत्पर हैं तो परमेश्वर हमारे लिए भी ऐसा ही करता है l वह हमें आजमाइशों से सीखी हुई बातों से दूसरों को शांति देने के लिए तैयार करके हमारी आजमाइशों से हमें छुटकारा देगा l
क्या आप वर्तमान में अन्धकार में हैं? पौलुस के शब्दों और अनुभव द्वारा उत्साहित हो जाएं l भरोसा करें कि परमेश्वर आपके क़दमों को दिशा दे रहा है और अपनी सच्चाइयों को आपके हृदय में स्थापित कर रहा है ताकि आप समान स्थितियों में लोगों को उत्साहित कर सकें l आप उस स्थिति से परिचित हैं और आप घर का मार्ग जानते हैं l
अन्धकार में सीखीं हुयीं बातें ज्योति में कभी न भूलें l