एक मित्रतापूर्ण बातचीत
कैथरीन और मैं हाई स्कूल में अच्छे दोस्त थे l जब हम फोन पर बात नहीं कर रहे होते, हम अपने अगले विशेष मौके की योजना बनाने के लिए कक्षा में नोट्स पास करते थे । कभी-कभी अपने सप्ताहांत एक साथ बिताते और स्कूल परियोजनाएँ एक साथ मिलकर करते थे।
एक रविवार की दोपहर, मैं कैथरीन के बारे में सोचने लगी । मेरे पास्टर ने उस सुबह अनन्त जीवन पाने के बारे में बताया था, और मैं जानती थी कि मेरी सहेली बाइबल की शिक्षाओं पर उस तरह विश्वास नहीं करती जिस तरह मैं करती थी। मुझे इस बात का बोझ महसूस हुआ कि मैं उससे बात करुँ और उसे यह समझाऊँ कि कैसे वो यीशु के साथ एक व्यक्तिगत रिश्ता बना सकती है। हालाँकि, मुझे झिझक हुई, क्योंकि मुझे डर था कि वह मेरी बात को अस्वीकार कर देगी और मुझसे दूर हो जाएगी।
मुझे लगता है कि इस डर के कारण हममें से कई चुप रह जाते है। यहाँ तक कि प्रेरित पौलुस को भी लोगों से प्रार्थना करने के लिए कहना पड़ा कि वह "साहस के साथ सुसमाचार का भेद बता सके" (इफिसियों 6:19 )। सुसमाचार को बाँटने में कोई जोखिम नहीं है, तौभी पौलुस ने कहा कि वह "एक राजदूत" है─ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर की ओर से बोलता है (पद 20)। हम भी हैं। अगर लोग हमारे संदेश को अस्वीकार करते हैं, तो वे संदेश भेजने वाले को भी अस्वीकार करते हैं।
तो क्या हमें बोलने के लिए मजबूर करती है? हम लोगों की परवाह करते हैं, जैसे परमेश्वर करता है (2 पतरस 3:9) । यही कारण था जिसने आखिरकार मुझे कैथरीन को फोन करने के लिए मजबूर किया । आश्चर्यजनक रूप से, उसने मेरा फोन बंद नहीं किया l उसने सुना। उसने सवाल पूछे। उसने यीशु से अपने पापों की क्षमा माँगी और उसके लिए जीने का फैसला किया । यह जोख़िम इनाम पाने के लिए योग्य था ।