कुछ साल पहले, हमारे चर्च को राजनितिक नेतृत्व में उथल-पुथल भरे बदलाव के बाद अपने देश से भाग रहे शरणार्थियों के अतिथि-सत्कार के लिए आमंत्रित किया गया था l कई परिवार केवल उतना ही लेकर आए जितना वे एक छोटे बैग में रख सकते थे l हमारे कई चर्च परिवारों ने उनके लिए अपने घर दिए, जिनमें कुछ ऐसे भी थे जिनके पास बहुत कम जगह थी l
जब वे प्रतिज्ञात देश में प्रवेश किये तो उनका दयालु आतिथ्य इस्राएलियों को दिए गए परमेश्वर के तिगुना आदेश को दर्शाता है (व्यवस्थाविवरण 24:19-21) l एक कृषक समाज के रूप में, वे फसल का महत्व समझते थे l अगले वर्ष तक के लिए फसलें प्राप्त करना आवश्यक था l यह परमेश्वर की आज्ञा को “परदेशी, अनाथ, और विधवा” के लिए [कुछ] छोड़ने” (पद.19) को उस पर भरोसा करने का एक अनुरोध भी बनाता है l इस्राएलियों को उदारता का अभ्यास न केवल तब देना था जब वे जानते थे कि उनके पास पर्याप्त है, बल्कि ऐसे हृदय से देना जो परमेश्वर के प्रबंध पर भरोसा करता हो l ऐसा आतिथ्य एक अनुस्मारक भी था “कि [वे] मिस्र में दास थे” (पद.18,22) l वे एक समय उत्पीडित और निराश्रित थे l उनकी उदारता उन्हें बंधन से मुक्त करने में परमेश्वर की दयालुता की याद दिलाती थी l
यीशु में विश्वास करने वालों से भी इसी तरह उदार होने का आग्रह किया जाता है l पौलुस हमें याद दिलाता है, “वह [मसीह]धनी होकर भी तुम्हारे लिए कंगाल बन गया, ताकि उसके कंगाल हो जाने से तुम धनी हो जाओ” (2 कुरिन्थियों 8:9) l हम देते हैं क्योंकि उसने हमें दिया है l
कब किसी ने आवश्यकता पड़ने पर आपकी सहायता की है? अपने लिए परमेश्वर के प्रबंध पर भरोसा करते हुए आप दूसरों को कैसे देंगे?
प्रिय पिता, कृपया मेरे समुदाय में हाशिए पर मौजूद लोगों की आवश्यकताओं के प्रति मेरी आँखें खोलें l