पढ़ें: यूहन्ना 17:1-26

जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर, तेरा वचन सत्य है। (पद.16-17)

हममें से अधिकतम लोग विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से परिचित हैं, लेकिन एक सोशल मीडिया ऐप बिल्कुल अजनबियों को आपकी व्यक्तिगत प्रोफ़ाइल को मूल्यांकन करने की अनुमति देता है। एक सहकर्मी ने मुझे बताया कि मेरे एक सहकर्मी ने मुझे बताया कि उनकी छोटी बेटी को खराब रेटिंग मिलने से जो दुख हुआ, उससे उनके दोस्त किस तरह दुखी थे।

यूके में युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के प्रभाव पर खोज करते हुए रॉयल सोसाइटी फॉर पब्लिक हेल्थ के एक अध्ययन ने सुझाव दिया कि “सोशल मीडिया मानसिक स्वास्थ्य संकट को बढ़ावा दे सकता है”। अधिकांश चीज़ों की तरह, सोशल मीडिया का उपयोग भलाई के लिए एक साधन के रूप में किया जा सकता है, लेकिन हमें इसके संभावित नुकसानों से निपटने के लिए ज्ञान की आवश्यकता है।

अपनी मृत्यु से पहले अंतिम घंटों में, यीशु ने अपने अनुयायियों की इस दुनिया के नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा के लिए प्रार्थना की (यूहन्ना 17:1-26)। वह चाहते थे कि हम परमेश्वर को पिता के रूप में समझें, हम उनमें पूरी तरह से संतुष्ट हों और उनके आनंद से भर जाएँ (पद 13)। हालाँकि हम इस दुनिया पर हावी होने वाली बुरी ताकतों से संबंधित नहीं हैं, यीशु ने कभी भी परमेश्वर से हमें दुनिया से हटाने के लिए नहीं कहा। बल्कि, वह दुष्ट से हमारी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हुए हमें इसमें भेजता है। “जैसे तू ने मुझे जगत में भेजा, वैसे ही मैं ने भी उन्हें जगत में भेजा; और उनके लिये मैं अपने आप को पवित्र करता हूँ, ताकि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किये जाएँ।” (पद 18-19)।

हमारे सामर्थ का स्रोत केवल परमेश्वर के साथ हमारे मेल में पाया जाता है (पद 21)। जब संसार मसीह की देह (कलीसिया या चर्च ) के भीतर प्रेम और एकता देखता है, तो वह यीशु और उसके राज्य की संस्कृति की झलक देखती है और यहां तक कि उसमे विश्वास करने के लिए भी आकर्षित हो सकती है।

आज की संस्कृति के प्रलोभन नियमित रूप से आते हैं और हमारा ध्यान परमेश्वर के मार्गों से हटाने का प्रयास करते हैं। इसके बजाय, यीशु के सामर्थ से, हम उसमें अपनी एकता को जी सकते हैं और उसके पवित्र तरीकों की छवि दिखा सकते हैं (पद 16-17)।

—ओ’रेली-स्मिथ

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फिलिप्पियों 4:4-9 पढ़ें और इस बात पर विचार करें कि जो बातें “श्रेष्ठ और प्रशंसा के योग्य” हैं उन पर अपने विचारों को केन्द्रित करने के साथ-साथ उन्हें व्यवहार में लाने का क्या मतलब है।

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जब अपनी पहचान समझने की बात आती है तो आप किसकी बात सुनते हैं? आप परमेश्वर की संतान के रूप में अपनी पहचान को और कैसे मजबूत कर सकते हैं?