मैं अपने पति के साथ डॉक्टर के ऑफिस में बैठी हुई थी, जैसे डॉक्टर बताते है कि, “पेन मैनेजमेंट ही सबसे अच्छा हो सकता है जो हम कर सकते हैंI”

मने अपनी छड़ी के हैंडल को कस कर पकड़ लियाI पुराने दर्द और पीठ की चोंट के कारण हुई अत्याधिक थकान ने चलना-फिरना सीमित कर दिया था,मुझे अक्षम माना जा सकता थाI मैं अपने पति का सामना नहीं कर सकती थी,क्योंकि मुझे पूरा भरोसा था कि वह मेरी देख-भाल करते हुए पहले से ही थके हुए थेI

मुझे रुमाल देते हुए मेरे डॉक्टर ने कहा कि,”निराश मत होI” मैंने अपने आँसू पोछते हुए कहा “मेरी आशा यीशु में है…. मैं बस दुखी हूँI” मेरी आशा यीशु में है,मगर मैं कैसे दृड़ता से डटी रहती जब मैं और मेरे पति पहले से ही अंदर से प्रोत्साहन/उत्साह में ख़ाली चल रहे थे?

चिंता भरे विचारों से मेरे सिर दुःख रहा था जैसे मेरे पति चुपचाप मुझे घर छोड़ते हुए अपने काम पर वापस लौट गएI निराशा, कुंठा, क्रोध, दुःख, अव्यवस्था, हताश, आत्मदया,भय जैसी मिली जुली भावनाएँ मुझ पर हमला करने लग गयी, जैसे ही मैं घर में प्रवेश किया मैं सोफे पर बैठते ही सुबकने लगीI

मेरा कुत्ता मेरी गोद में आकर बैठ गया और मेरे आँसू तब तक चाटने लगा जब तक कि मैं हँसने न लगीI “मैं ठीक हूँ” मैंने कहाI खिलौना देकर उसका ध्यान भटकाते हुए मैं सीढ़ियों के पास लटकी लोहे की बनी(wrought iron) क्रूस को देखने लगीI मैं कैसे भूल सकती हूँ कि मसीह मेरी सामर्थ है जब मैं कमज़ोर हूँ? अपने कुत्ते के कान के पीछे खुजली करते हुए मैंने कहा “यीशु मेरी मदद करेI”

शांति ने मुझे घेर लिया,जैसे मैंने हमारे लिविंग रूम में सजी हुयी क्रूस की तरफ अपना ध्यान केन्द्रित कियाI हर एक क्रूस यह पुष्टि कर रही थी की मैं अपने पुनर्जीवित राजा-यीशु मसीह की निरंतर उपस्तिथि मैं सुरक्षित अपनी इस आशा के साथ अनंत काल के इस पार की किसी भी चीज़ पर विजय प्राप्त कर सकती हूंI “मैं ठीक हो जाऊंगी,कॉलि मे,”अपने कुत्ते के मुलायम बालों को सहलाते हुए मैंने कहा और अपने आंसुओं को फिर से बहने दियाI

मैं सोचा करती थी कि रोना कमज़ोर विश्वास की निशानी है जब तक कि मुझे यह प्रकाशन मिला कि “यीशु रोये थे” (यहुन्ना 11:35) उसके आँसू यह पुष्टि करते है कि वह दूसरो के दुखों से समान अनुभूति रखते है,परन्तु यीशु के रोने से पहले और बाद में जो हुआ था वह मुझे शांति प्रदान करता है जो मेरी परिवर्तनशील भावनाओं और अनियंत्रित परिस्तिथिओं पर निर्भर नहीं करती हैंI

यीशु ने कहा लाज़र की बीमारी “मृत्यु की नहीं,परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिए है,कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा होI”(यहुन्ना 11:4) यीशु ने अपने चेलों को अनगिनत मौके दिए कि वे उसकी शांति में विश्राम में पा सके एक के बाद एक चमत्कारों से उसने अपनी विश्वासयोग्यता और सामर्थ को सिद्ध किया फिर भी चेले भय से अभिभूत और आत्मिक रूप से निकटदर्शी ही रहे— यीशु ने कहा उस पर ध्यान देने के बजाय जो वे देख सकते थे उसी पर ही ध्यान केन्द्रित किया (वचन-8-16)

यीशु जब बैतनिय्याह पहुंचे तब वहां लाज़र चार दिनों से कब्र में दफ़न था और परिवार के साथ शोक मनाने के लिए भीड़ इकट्ठी थीI यीशु ने अपने वादे को फिर से मारथा से दोहराया (वचन-17-23) उसने स्वीकार किया कि यीशु कौन थे लेकिन उसकी प्रतिक्रिया उसकी बहन से बहुत अलग नहीं थी (वचन-29-32) उनकी मंद बुद्धि के लिए उनकी निंदा करने या उन्हें दण्ड देने के बजाय यीशु ने उन पर दया दिखाई और रोये जब उसने उसे और भीड़ को शोक मनाते देखाI (वचन-33-37) वे तब तक संदेह में ही थे जब तक कि यीशु ने लाज़र को कब्र से बाहर नहीं बुलाया(वचन-41-45) लाज़र के पुनुरुत्थान ने यीशु की सामर्थ को सिद्ध और उसके वादे को मान्य किया जो उसने चेलों से किया था जैसे वह उन्हें अपनी क्रूस के पास ले गयाI

शास्त्र कहता है कि भाई-बहन यीशु के करीब ही रहे,अपनी नए जीवन में कदम रखने के बाद लाज़र ने यीशु की उपस्तिथि में विश्राम कियाI मारथा ने यीशु की सेवा कीI मरियम ने आराधना के एक असाधारण प्रदर्शन के साथ बेहद खर्चीले ढंग से यीशु कि आराधना कीI महायाजकों ने लाज़र को मारने की साज़िश भी रची क्योंकि उसके जीवन की गवाही के कारण बहुत से यहूदी यीशु के पास आ रहे थेI (यहुन्ना 12:1-2,9-11) यीशु के प्रेममयी और निरंतर उपस्तिथि उसकी शांति भेंट हैI

जब हम अपने पाप और टूटेपन में मरे हुए रहते है तब यीशु हमें हमारी कब्र से बाहर बुलाते हैI जब हम क्षमा मांगते है और पश्चाताप करते हैं और पाप से मुँह फेरते है और अपनी आशा उस पर रखते है तब वह हमें एक नए जीवन में कदम रखने के लिए आमंत्रित करता हैI उसने हमारे लिए अपना जीवन देकर, और हमारे पाप,मृत्यु और टूटेपन को लेकर उसे पुनुरुत्थान जीवन में बदल दिया—यीशु हमारे लिए अपनी शांति का विस्तार करता है ताकि हम अभी भी उसका आनंद उठा सके और तब भी जब हम अनंतकाल में प्रवेश करेंI इस संसार में हमें परेशानी/क्लेश है (यहुन्ना-16:33) परंतु जब भी हम संघर्ष करते है हम अपनी कमज़ोरियों के साथ परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैI हम उसकी अपरिवर्तनशील भलाई,उसकी दया,उसकी योजना और अपनी जीवन यात्रा की रफ़्तार के लिए उस पर आश्वस्त रह सकते है क्योंकि हमारी आशा उसके अटूट वादे में सुरक्षित रहती हैI

हमारा पुनर्जीवित राजा हमें ढेर सारे मौकों के साथ खुला निमंत्रण देता है कि हम उसके हर एक वादों पर विश्वास कर सकें जो उसने हमें अपने शब्द के द्वारा दिए हैI वह हमें बुलाता है कि हम अपने कफ़न को छोड़ कर नए जीवन में कदम रखेंI जब हम अपने आप को यीशु को समर्पित करते है,वह हमारी शांति बनता है और हमें सशक्त करता है की हम उसकी सेवा कर सकें,उसकी आराधना कर सकें और इस प्रकार से जीवन जिए कि दूसरों को भी उसकी तरफ मोड़ सकेंI क्या आप मसीह की शांति को स्वीकार करेंगे?