तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी,न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगेI यशायाह 2:4

अपने शहर न्यू ओरलियंस में एक नौ वर्षीय लड़के की मृत्यु ने शमार्र को बच्चों के हाथों से बंदूकें छुड़ाने का एक रास्ता निकालने के लिए प्रेरित कियाI शहर में अपने बचपन को याद करते हुए और कैसे संगीत के माध्यम से उन्हें जीवन में एक स्वस्थ मार्ग बनाने में मदद मिली,शमार्र ने पुलिस के सहयोग से किसी भी बंदूक चलाने वाले को तुरही और संगीत की शिक्षा देने के लिए एक सामुदायिक प्रयास का नेतृत्व कियाI उन्हें आशा है कि हथियारों को संगीत वाद्ययंत्र से बदल कर क्षेत्र के युवाओं के पास कुछ सुरक्षित और रचनात्मक कार्य करने के लिए होगा,जिसके चलते बंदूक हिंसा की महामारी को कम किया जा सकेगा और शहर में शांति लायी जा सकेगीI

भविष्य के लिए परमेश्वर का दर्शन ऐसा है जिसमें उसकी शांति हमारे समुदायों को परिवर्तित करेगी और हर प्रकार की हिंसा का अंत करेगीI “तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी,न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगेI” (यशायाह 2:4) हमें हथियारों की ज़रुरत नहीं होगी,क्योंकि उन्हें विनाशकारी उद्देश्यों के बजाय रचनात्मक उद्देश्यों के लिए सुधार जायेगा,युद्ध के बजाय हम सभी परमेश्वर की आराधना करने के लिए इकट्ठे होंगेI

उस दिन के आने तक हम अपने समुदायों के लिए प्रार्थना कर सकते है और उनकी सेवा कर सकते है, हमारे परेशान/अशांत संसार के दर्द को शांत करने के लिए एक मरहम/दवा के रूप में काम कर सकते हैI हम संसार को तो बदल नहीं सकते है सिर्फ़ परमेश्वर ही,ऐसा कर सकता है मगर हम जहाँ रहते है वहां उसकी उसकी शांति पहुँचाने का प्रयास कर सकते है और दूसरों को “उसके मार्ग पर चलने” के लिए आमंत्रित कर सकते हैI (वचन-3)I

यशायाह द्वारा वर्णित भविष्य के बारे में,आप अबसे ज्यादा किस बात की आशा करते है?आप किस तरह से परमेश्वर की शांति को अपने समुदाय में लाने में मदद कर सकते है?

धन्यवाद् पिता,शांति के रचयिता,अपनी शांति को मेरे आसपास के लोगों के बीच लाने में कृपया मेरी मदद करेI

यशायाह 2:1-4

1 यशायाह बेन-आमोत्‍स ने दर्शन में यहूदा प्रदेश और यरूशलेम के सम्‍बन्‍ध में यह सुना : 2 आनेवाले दिनों में यह होगा : जिस पर्वत पर प्रभु का भवन निर्मित है, वह विश्‍व के पर्वतों में उच्‍चतम स्‍थान पर, गौरवमय स्‍थान पर प्रतिष्‍ठित होगा। वह पहाड़ियों के मध्‍य उच्‍चतम स्‍थान ग्रहण करेगा; विश्‍व के राष्‍ट्र जलधारा के समान उसकी ओर बहेंगे।3 देश-देश के लोग वहाँ जाएंगे और यह कहेंगे : ‘आओ, हम प्रभु के पर्वत पर चढ़ें; आओ, हम याकूब के परमेश्‍वर के भवन की ओर चलें, ताकि प्रभु हमें अपना मार्ग सिखाए, और हम उसके सिखाए हुए मार्ग पर चलें।’ सियोन पर्वत से प्रभु की व्‍यवस्‍था प्रकट होगी, यरूशलेम नगर से ही प्रभु का शब्‍द सुनाई देगा। 4 प्रभु राष्‍ट्रों के मध्‍य न्‍याय करेगा; वह भिन्न-भिन्न कौमों को अपना निर्णय सुनायेगा।तब विश्‍व में शान्‍ति स्‍थापित होगी : राष्‍ट्र अपनी तलवारों को हल के फाल बनायेंगे, वे अपने भालों को हंसियों में बदल देंगे। एक राष्‍ट्र दूसरे राष्‍ट्र के विरुद्ध तलवार नहीं उठायेगा, वे युद्ध-विद्या फिर नहीं सीखेंगे।