“और वह अपना पहिलौठा पुत्र जनी और उसे कपडे़ में लपटेकर चरनी में रखाः क्योंकि उन के लिए सराय में जगह न थी।” लुका 2:7
क्रिसमस ऐसा मासैम है जब हम हमारे शहरों, सडक़ो, और घरों को ही नहीं परन्तु अपने आपको भी सुशोभित करें । जब बात शरीर को लपेटने की आती है जो कि पवित्रता है , उसे पिछले मौसम से भी अच्छे पोशाक के साथ आकर्षित बनाना है , एक बच्चे के रूप में याद करता हूँ, शो रूम के पुतले को देखते हुए, और आश्चर्य करते हुए कि पुतले का पोशाक मुझ पर कितना उत्तम दिखेगा । मुझे निश्चय है कि क्रिसमस दिन के पहले खरीदारी की यादें हमें बनी रहेगी। कभी कभी हम उन बचकानी इच्छाओं को पूरी करने के योग्य होते, और दूसरे समय, हमसे यह पूछा जाता वही मांगे जो कुछ वे दे सकते थे, यह सब निर्भर होता था हमारी माता पिता की जेब कितनी भरी है उस पर । उस पहली क्रिसमस की संध्या पर, ‘मसीह’ जो बालक था उसे पहनने के लिए कुछ भी नहीं था । वास्तव में, मरीयम ने उसे पट्टियों के कपडो में लपटेकर, चरनी में रखा । पट्टियों के कपडे़ होते थे सुती कपडे, परन्तु वास्तव में एक कपडे के रूप में उन्हें परिधान नहीं किया जाता । रीती के अनुसार नये जन्मे बच्चे को कपडें के पट्टियों में लपेटा जाता था । दूसरी बार हम यीशु को सफेद पट्टियों में लपेटा हुआ देखते है, जो उस कब्र के अंधेरे में था, जहाँ पर उसे आराम करने के लिए रखा गया था। उसका जीवन, उसके जीवन से मृत्यु तक, समानता में चिन्हित किया गया था।
परमेश्वर के पुत्र का जन्म तबेले में हुआ था; उसने सफर तय करनेवाले माता पिता से जन्म लिया था, जो धनी और प्रभावशाली नही थें। इसी कारण वह अपने चेलो को आगे कहता है” मत्ती 6:26 में “आकाश के पक्षियों को देखो ! वे न बोते है , न काटते है, और न खत्तो में बटोरते है; तौभी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उन को खिलाता है; क्या तमु उन से अधिक मूल्य नहीं रखते।” वह गरीबी और जरूरत को समझता था। उसने यह अनुभव से बोला था।
हमारे हर एक के क्रूस भिन्न आकार और वजन के है। हम में से बहुतों की सबसे बड़ी चिन्ता यह नहीं कि हम हमारा अगला भोजन कब खायगें, या क्या पहिनेंगे । यह हो सकता है कि कौन सी मंहगी वस्तु हम कल खरीदेंगे या कौन से पसंदिदा वस्त्र पहिनेगें? यद्यपि दूसरे अनगिनत, जो इस दर्दनाक भय के साथ उठते है कि उनका अगला भोजन कहाँ से आयेगा, आधुनिक फैशन के वस्त्रों पर फिजूल खर्जी करना उनको बर्दाश्त नहीं होगा। यह हमें प्रश्न करता है कि मसीह की आराधना करने की कीमत क्या होगी। इस क्रिसमस के मौसम में, क्या इसका अर्थ नए वस्त्रों का प्रलोभन त्याग देना है ?
क्या हम क्रिसमस का सन्देश हो सकते है, उनके लिए जो उसे ले नहीं सकते ? संसार को आशा की जरूरत है। इसलिए इस क्रिसमस में ऐसा हो कि हमारा जीवन उस उध्दारकर्ता का उदाहरण स्वरुप बने और उनकी चिन्ता करें जो जरूरतमंद हो ।
प्रिय पिता, आपने आपके ध्यान के बडे़ अनुग्रह से हमारी ओर ध्यान दिया, ताकि हम बदले में, इस मौसम में इस प्रेम-दया को जिन्हे हमारी मदत की आवश्यकता है उन पर प्रकट करें। आमीन
– पास्टर आनन्द पिकॉक