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युद्ध तो यहोवा का है और वही तुम्हें हमारे हाथ में कर देगा (पद 47) (1 शमूएल 17:32–51)

मैं किचन में गई और देखा कि मेरी बेटी अधिक दर्दनाक स्थिति में पड़ने ही वाली है। उसने अपनी छोटी उंगली उस जगह में घुसा दी थी जहाँ फोलडिंग दरवाजे के दो हिस्से कब्ज़े के साथ जुडे हुये थे। अपने खाली हाथ से वह अपनी उंगली पर दरवाजा बंद करने वाली थी! जब मैंने पूछा कि वह क्या कर रही है, तो उसने जवाब दिया, “मैं अपने साहस का परीक्षण कर रही हूं।” वह देख रही थी कि उंगली पीछे हटाने से पहले वह अपनी उंगली को चोट पहुचाने के कितने करीब आ सकती है। शुक्र है, मैंने उसके दर्दनाक प्रयोग का अंत कर दिया।

वास्तव में एक डरावनी आमने–सामने की स्थिति में दाऊद ने साहसपूर्वक कार्य किया जब, उसने गोलियत नाम के एक उपहास करने वाले, गंदी बोली बोलने वाले वाले दानव का सामना किया (1 शमूएल 17:32)। दाऊद कुछ इस्राएली सैनिकों का छोटा, कमज़ोर भाई था, लेकिन उसने बिना कोई कवच पहने गोलियत से लड़ने के लिए स्वेच्छा से अपने आप को दिया।

अपने शत्रु के सामने खड़े होकर दाऊद परमेश्वर पर अपने भरोसे के बारे में निडर था। उसने कहा कि यहोवा ने उसे जंगली जानवरों से बचाया था, और उसे विश्वास था कि वह उसे गोलियत से भी बचाएगा (पद 37)। फिर वह उसने भीमकाय दानव से चिल्ला कर कहा, “समस्त पृथ्वी के लोग जान लेंगे कि इस्राएल में एक परमेश्वर है। और वह अपने लोगों को बचाता है। इसलिये कि युद्ध तो यहोवा का है और वही तुम्हें हमारे हाथ में कर देगा” (पद 46–47)। परमेश्वर ने दाऊद को बचाया। दाऊद के गुलेल से छोड़े गए एक ईश्वरीय लक्ष्य वाले पत्थर के प्रभाव से विशाल दानव की मृत्यु हो गई।

साहसपूर्वक कार्य करने की हमारी क्षमता परमेश्वर और उसकी शक्ति से आती है। हम डर सकते हैं या संदेह के कुछ क्षणों का सामना कर सकते हैं, लेकिन वह हमारे द्वारा या हमारे लिए लड़ाई लड़ेगा और या तो इसे हटा देगा या अपनी बुद्धि और शक्ति से हमें सहारा देगा। उसकी वजह से हम जरूरत पड़ने पर साहसिक कदम उठा सकते हैं। हम भजन संहिता 28:7 में दाऊद के शब्दों में व्यक्त किए गए शब्दों को जी सकते हैं: “यहोवा मेरा बल और मेरी ढाल है, उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहायता मिली है। इसलिये मेरा हृदय आनन्द से भर जाता है।”

विचार

यह देखने के लिए कि परमेश्वर ने अपने लोगों के कनान देश में जाने के दौरान कैसे उनकी देखभाल की, भजन संहिता 44:1– 3 देखें । यह देखने के लिए कि सच्ची सफलता किस प्रकार परमेश्वर पर निर्भर करती है नीतिवचन 21: 30–31 पढ़ें ।
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परमेश्वर की दृष्टि में सही होने और निर्भीक होने के बीच क्या संबंध है? (नीतिवचन 28: 1 देखें)। क्या आप यीशु का वर्णन एक साहसी के रूप में करेंगे?