दूसरे व्यक्तियों का मामला
हमारे चार पोता-पोती एक छोटे ट्रेन सेट के साथ खेल रहे थे, और छोटे दो पोते एक इंजन पर बहस कर रहे थे l जब हमारा आठ वर्षीय पोता हस्तक्षेप करने लगा, तो उसकी छह वर्षीय बहन बोली, “उनके मामले के बारे में चिंता मत करो l” आमतौर पर—हम सभी के लिए बुद्धिमान शब्द l लेकिन जब बहस आंसुओं में बदल गयी, तो दादी आगे बढ़कर, उन्हें अलग की और झगड़ रहे बच्चों को ढाढ़स बंधाई l
दूसरों के मामले से दूर रहना अच्छा है जब ऐसा करने से मामला और बिगड़ सकता है l लेकिन कभी-कभी हमें प्रार्थनापूर्वक इसमें शामिल होने की ज़रूरत होती है l फिलिप्पियों को लिखे अपने पत्र में, प्रेरित पौलुस एक उदाहरण देता है कि ऐसा कब करना है l यहाँ उन्होंने दो स्त्रियों, युओदिया और सुन्तुखे से आग्रह करता है कि वे “प्रभु में एक मन रहें”(4:2) l प्रत्यक्ष रूप में, उनकी असहमति इतनी तीव्र हो गयी थी कि प्रेरित को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ा(पद.3), भले ही वह कैद में था(1:7) l
पौलुस जानता था कि स्त्रियों का तर्क फूट पैदा कर रहा था और सुसमाचार से ध्यान हटा रहा था l इसलिए, उसने उन्हें याद दिलाते हुए धीरे से सच बोला कि उनके नाम “जीवन की पुस्तक में’ लिखे गए थे(4:3) l पौलुस चाहते थे कि ये स्त्रियाँ और चर्च के सभी लोग विचार और कार्यों में परमेश्वर के लोगों के रूप में रहें(पद.4-9) l
जब आप अनिश्चित हैं कि आपको इसमें शामिल होना चाहिए या नहीं, तो प्रार्थना करें, यह विश्वास करते हुए कि “परमेश्वर जो शांति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा”(पद.9; देखें पद.7) l
विश्वास के साथ आगे बढ़ना
अतिथि वक्ता ने परमेश्वर पर भरोसा करने और "नदी में कदम रखने" की बुद्धिमत्ता पर बात की। उन्होंने एक पादरी के बारे में बताया जिसने परमेश्वर पर भरोसा किया और अपने देश के नए कानून के बावजूद एक उपदेश में बाइबल की सच्चाइयों को बोलने का फैसला किया। उसे नफरत भड़काने के अपराधों का दोषी ठहराया गया और उसने तीस दिन जेल में बिताए। लेकिन उनके मामले की अपील की गई, और अदालत ने फैसला सुनाया कि उन्हें बाइबिल की व्यक्तिगत व्याख्या देने और दूसरों को इसका पालन करने के लिए आग्रह करने का अधिकार है।
वाचा का सन्दूक ले जाने वाले याजकों को भी एक चुनाव करना था - या तो पानी में उतरें या किनारे पर रहें। मिस्र से बच निकलने के बाद इस्राएली चालीस वर्ष तक जंगल में भटकते रहे। अब वे यरदन नदी के तट पर खड़े थे, जिसमें बाढ़ के परिणामस्वरूप पानी खतरनाक रूप से अपने उच्चतम स्तर पर था; नदी पूरी तरह भरी हुई थी । लेकिन उन्होंने वह कदम उठाया, और परमेश्वर ने पानी कम कर दिया: “जैसे ही उनके पाँव पानी के किनारे पर छू गए, और उस समय पानी का बहना बन्द हो गया। पानी उस स्थान के पीछे बांध की तरह खड़ा हो गया।” (यहोशू 3:15-16)।
जब हम अपने जीवन में परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, तो वह हमें आगे बढ़ने का साहस देता है, फिर चाहे वह बाइबल की सच्चाइयों को बोलना हो या अज्ञात क्षेत्र में कदम रखना हो। पादरी के मुकदमे के दौरान, अदालत ने उसके उपदेश द्वारा सुसमाचार सुना। और, यहोशू में, इस्राएलियों ने सुरक्षित रूप से वादा किए गए देश में प्रवेश किया और भविष्य की पीढ़ियों के साथ परमेश्वर की शक्ति के बारे में साझा किया (पद 17; 4:24)।
यदि हम विश्वास के साथ कदम बढ़ाते हैं, तो बाकी सब परमेश्वर देखते है।
निर्जन/वीरान स्थान
जब मैं एक युवा विश्वासी था, मैंने सोचा था कि “पहाड़ की चोटी” के अनुभव ही वह जगह हैं जहां मैं यीशु से मिलूँगा l लेकिन वे ऊँचाइयाँ शायद ही कभी टिकीं या विकास की ओर ले गयीं l लेखिका लीना अबुजामरा का कहना है कि यह निर्जन/वीरान स्थानों में है जहाँ हम परमेश्वर से मिलते हैं और उन्नति करते हैं l अपने बाइबल अध्ययन थ्रू द डेजर्ट(Through the Desert) में वह लिखती है, “परमेश्वर का उद्देश्य हमें मजबूत बनाने के लिए हमारे जीवन में निर्जन/वीरान स्थानों का उपयोग करना है l” वह आगे कहती है, “परमेश्वर की भलाई आपके दर्द के बीच में प्राप्त करने के लिए होती है, दर्द की अनुपस्थिति से साबित नहीं होती l”
दुःख, हानि और दर्द के कठिन स्थानों में परमेश्वर हमें अपने विश्वास में बढ़ने और उसके करीब आने में मदद करते हैं l जैसा कि लीना ने सीखा, “निर्जन/वीरान स्थान परमेश्वर की योजना में कोई चूक नहीं है, बल्कि[हमारे] विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है l”
परमेश्वर ने कई पुराने नियम के कुलपतियों को निर्जन/वीरान स्थान में पहुँचाया l अब्राहम, इसहाक और याकूब सभी के पास बियाबान/जंगल के अनुभव थे l यह जंगल में ही था कि परमेश्वर ने मूसा के दिल को तैयार किया और उसे अपने लोगों को गुलामी से बाहर निकालने के लिए बुलाया (निर्गमन 3:1-2, 9-10) l और यह निर्जन/वीरान स्थान था कि परमेश्वर ने अपनी मदद और मार्गदर्शन के साथ चालीस वर्षों तक “[इस्राएलियों की] देखभाल करता रहा” (व्यवस्थाविवरण 2:7) l
परमेश्वर निर्जन/वीरान स्थान में हर कदम पर मूसा और इस्राएलियों के साथ था, और वह हमारे और आपके साथ है l निर्जन/वीरान स्थान में हम परमेश्वर पर भरोसा करना सीखते हैं l वहाँ वह हमसे मिलता है—और वहाँ हम उन्नति करते हैं l
परमेश्वर से जूझना
मेरे पति की मृत्यु के बाद एक पुराने मित्र ने मुझे एक नोट भेजा: “एलन परमेश्वर के साथ एक मल्ल युद्ध करने वाला था।। वह एक वास्तविक याकूब थे और यही एक मजबूत कारण है कि मैं आज मसीही हूँ ।” मैंने एलन के संघर्षों की तुलना पुरुष मुखिया समुदाय याकूब से करने के बारे में कभी नहीं सोचा था, लेकिन यह सटीक बैठता है। अपने पूरे जीवन में, एलन स्वयं से संघर्ष करता रहा और उत्तर के लिए परमेश्वर से संघर्ष करता रहा। वह परमेश्वर से प्यार करता था लेकिन हमेशा इस सच्चाई को नहीं समझ सका कि उसने उससे प्यार किया, उसे माफ कर दिया और उसकी प्रार्थनाएँ सुनीं। फिर भी उनके जीवन में आशीषें थीं और उन्होंने कई लोगों को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
याकूब का जीवन संघर्षमय था। उसने अपने भाई एसाव का पहिलौठे का अधिकार पाने के लिये षडयंत्र रचा। वह घर से भाग गया और अपने रिश्तेदार और ससुर लाबान के साथ वर्षों तक संघर्ष करता रहा। फिर वह लाबान से भाग गया। वह अकेला था और एसाव से मिलने से डरता था। फिर भी उसे अभी-अभी एक स्वर्गीय मुकाबला हुआ : "परमेश्वर के स्वर्गदूत उससे मिले" (उत्पत्ति 32:1), शायद परमेश्वर की ओर से उसके पहले के सपने की याद दिलाता है (28:10-22)। अब याकूब याकूब का एक और मुकाबला हुआ। पूरी रात उसने एक "मनुष्य", मानव रूप में परमेश्वर के साथ कुश्ती की, जिसने उसका नाम इस्राएल रखा, क्योंकि उसने "परमेश्वर और मनुष्यों के साथ संघर्ष किया और [जीत हासिल की]" (32:28)। इन सबके बावजूद परमेश्वर याकूब के साथ था और उससे प्यार करता था।
हम सभी को संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन हम अकेले नहीं हैं; प्रत्येक परीक्षाओं में परमेश्वर हमारे साथ हैं। जो लोग उस पर विश्वास करते हैं उनसे प्रेम किया जाता है, उन्हें क्षमा किया जाता है और अनन्त जीवन का वादा किया जाता है (यूहन्ना 3:16)। हम उसे मजबूती से पकड़ सकते हैं।
देने में/का आनंद
जब केरी का छोटा बेटा मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी(muscular dystrophy-एक बीमारी) से सम्बंधित एक और सर्जरी से गुजर रहा था, तो वह किसी और के लिए कुछ करके अपने परिवार की स्थिति से अपना ध्यान हटाना चाहती थी l इसलिए उसने अपने बेटे के छोटे हो चुके लेकिन कम उपयोग किए गए जूतों को इकठ्ठा किया और उन्हें एक सेवकाई को दान कर दिया l उसके योगदान ने मित्रों, परिवार के सदस्यों और यहाँ तक कि पड़ोसियों को भी इसमें शामिल होने के लिए प्रेरित किया और जल्द ही दो सौ से अधिक जोड़ी जूते दान कर दिए गए l
हालाँकि जूती मुहीम(shoe drive) चलाने का उद्देश्य दूसरों को आशीष देना था, केरी को लगता है कि उसके परिवार को अधिक आशीष मिली l “पूरे अनुभव ने वास्तव में हमारा उत्साह बढ़ाया और हमें बाहर की ओर ध्यान केन्द्रित करने में मदद की l”
पौलुस समझ गया था कि यीशु के अनुयायियों के लिए उदारतापूर्वक देना कितना विशेष है l यरूशलेम जाते समय प्रेरित पौलुस इफिसुस में रुका l वह जानता था कि यह संभवतः उस चर्च के लोगों के साथ उसकी आखिरी मुलाकात होगी जिसकी स्थापना उसने वहाँ की थी l चर्च के वृद्धों को अपने विदाई भाषण में, उसने उन्हें याद दिलाया कि कैसे उसने परमेश्वर की सेवा में लगन से काम किया था (प्रेरितों 20:17-20) और उन्हें भी ऐसा करने के लिए उत्साहित किया l फिर उसने यीशु के शब्दों के साथ अंत किया : “लेने से देना धन्य है” (पद.35) l
यीशु चाहता है कि हम स्वतंत्र रूप से और विनम्रतापूर्वक अपने आप को दे दें (लूका 6:38) l जब हम उस पर हमारा मार्गदर्शन करने के लिए भरोसा करते हैं, तो वह हमें ऐसा करने के लिए अवसर प्रदान करेगा l केरी के परिवार की तरह, हम भी इसके फलस्वरूप प्राप्त होने वाले आनंद से आश्चर्यचकित हो सकते हैं l
यीशु में एक साथ मिलना
“और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और त्यों–त्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों–त्यों और भी अधिक यह किया करो।” इब्रानियों 10:25
जब मैं अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों के कारण लंबे समय तक भावनात्मक और आध्यात्मिक पीड़ा और संघर्ष से गुज़रा, तो मेरे लिए चर्च से हटना आसान लगता था। (और कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता था, परेशान क्यों होना?)। लेकिन मैंने प्रत्येक रविवार को चर्च में उपस्थित होने के लिए अपने को मजबूर पाया।
हालाँकि मेरी स्थिति कई वर्षों तक वैसी ही रही, आराधना करने और सेवाओं, प्रार्थना सभाओं और बाइबल अध्ययन में अन्य विश्वासियों के साथ इकट्ठा होने से मुझे दृढ़ रहने और आशावान बने रहने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन मिला। और प्रायः मैं न केवल एक अभिप्रेरणात्मक संदेश या शिक्षा सुनता हूँ, बल्कि मुझे दूसरों से सांत्वना, एक सुनने वाला कान, या एक आलिंगन भी मिलता रहा जिसकी मुझे ज़रूरत थी।
इब्रानियों के लेखक ने लिखा, "[एक साथ मिलना मत छोड़ो], जैसा कि कुछ लोगों की आदत होती है, लेकिन एक दूसरे को [प्रोत्साहित करो]" (इब्रानियों 10:25)। यह लेखक जानता था कि जब हम कष्टों और कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो हमें दूसरों के आश्वासन की आवश्यकता होगी - और दूसरों को हमारे आश्वासन की आवश्यकता होगी। इसलिए इस पुस्तक के लेखक ने पाठकों को याद दिलाया कि "हम जिस आशा का दावा करते हैं, उस पर अटल रहें" और इस बात पर विचार करें कि कैसे "एक दूसरे को प्रेम और अच्छे कार्यों की ओर प्रेरित करें" (पद 23-24)। प्रोत्साहन इसका एक बड़ा हिस्सा है। इसीलिए परमेश्वर हमें एक साथ मिलते रहने के लिए प्रेरित करते हैं। किसी को आपके प्रेमपूर्ण प्रोत्साहन की आवश्यकता हो सकती है, और बदले में आपको जो मिलेगा उससे आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं।
मसीह का जुनून (बहुत प्रबल मनोभाव)
जिम कैविज़ेल को फिल्म द पैशन ऑफ द क्राइस्ट में जीसस की भूमिका निभाने से पहले, निर्देशक मेल गिब्सन ने चेतावनी दी थी, कि यह भूमिका बेहद कठिन होगी। और हॉलीवुड में उनके करियर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। कैविज़ेल ने फिर भी इस महान भूमिका को किया और कहा , "मुझे लगता है कि हमें इसे बनाना होगा, भले ही यह कठिन हो।"
फिल्मांकन के दौरान, कैविज़ेल बिजली की चपेट में आ गए, उनका वज़न पैंतालीस पाउंड (बीस किलो) कम हो गया, और कोड़े मारने के दृश्य के दौरान गलती से उन्हें कोड़े मार दिए गए। बाद में, उन्होंने कहा, "मैं नहीं चाहता था कि लोग मुझे देखें। मैं बस यही चाहता था कि वे यीशु को देखें। उसी से परिवर्तन होगा।” फिल्म ने सेट पर कैविज़ेल और अन्य लोगों को गहराई से प्रभावित किया, और केवल परमेश्वर ही जानता है कि इसे देखने वाले लाखों लोगों में से कितने लोगों के जीवन में बदलाव आया। द पैशन ऑफ द क्राइस्ट यीशु की सबसे बड़ी पीड़ा के समय को दिखाता है, पाम संडे (Palm Sunday) पर उनके विजयी प्रवेश से लेकर उनके उनके साथ विशवासघात किये जाने तक, उनका मज़ाक बनाने, कोडे मारने, और क्रूस पर चढ़ाये जाने तक — इन सब का वर्णन वारों सुसमाचारों में पाया जाता है।
यशायाह 53 में, उनकी पीड़ा और उसके परिणाम की भविष्यवाणी की गई है: “वह हमारे अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया; हमारी ही शांति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाए” (पद- 5)। हम सभी, "भेड़ की नाई, भटक गए थे" (पद 6)। लेकिन यीशु के क्रूस पर मरने और पुनरुत्थान के कारण, हम परमेश्वर के साथ शांति पा सकते हैं। उनकी पीड़ा ने हमारे लिए उनके साथ रहने का रास्ता खोल दिया।
प्रार्थना के लिए एक आह्वान
अब्राहम लिंकन ने अपने एक मित्र को गुप्त रूप से कहा, "मैं कई बार इस भारी विश्वास के कारण घुटनों परबैठा हूं क्योंकि थी मेरे पास जाने के लिए और कोई जगह नहींथी ।" अमेरिकी गृहयुद्ध के भयावह वर्षों में, राष्ट्रपति लिंकन ने न केवल उत्साहीप्रार्थना में समय बिताया, बल्कि पूरे देश को अपने साथ शामिल होने के लिए भी बुलाया। 1861 में, उन्होंने एक दिन "अपमान, प्रार्थना और उपवास” का घोषित किया। और उन्होंने 1863 में फिर से ऐसा करते हुए कहा, "यह राष्ट्रों के साथ-साथ मनुष्यों का भी कर्तव्य है कि वे ईश्वर की सर्वशक्तिमान शक्ति पर अपनी निर्भरता रखें: विनम्र दुःख के साथ अपने पापों और अपराधों को स्वीकार करें,फिर भी आश्वस्त आशा के साथ कि सच्चा पश्चाताप दया और क्षमा की ओर ले जाएगा।''
इस्राएलियों के सत्तर वर्ष तक बाबुल में बंदी रहने के बाद, राजा साइरस ने इस्राएलियों को यरूशलेम लौटने की अनुमति दी,बचे हुये कुछ लोग वापस लौटे। और जब नहेमायाह,जो एकइस्राएली (नहेमायाह 1:6) और बेबीलोन के राजा का पिलानेवाला था (पद 11) को पता चला कि जो लोग लौट आए थे वे "बड़े संकट और अपमान में थे" (पद3), तो वह "बैठ गया और रोने लगा" ”औरशोक, उपवास और प्रार्थना करते हुए दिन बिताए (पद 4)। उन्होंने अपने राष्ट्र के लिए दिन रात प्रार्थना की (पद5-11)। और बाद में, उसने भी अपने लोगों को उपवास और प्रार्थना करने के लिए बुलाया (9:1-37)।
सदियों बाद, रोमन साम्राज्य के दिनों में, प्रेरित पौलुस ने इसी तरह अपने पाठकों से अधिकार प्राप्त लोगों के लिए प्रार्थना करने का आग्रह किया (1 तीमुथियुस 2:1-2)। हमारा परमेश्वर अभी भी उन मामलों के बारे में हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है जो दूसरों के जीवन को प्रभावित करते हैं।
परीक्षाओं पर विजय पाना
ऐनी गरीबी और दुःख में पली बढ़ी। उसके दो भाई-बहनों की मृत्यु बचपन में ही हो गयी। पाँच साल की उम्र में, एक नेत्र रोग के कारण वह आंशिक रूप से अंधी हो गई और पढ़ने या लिखने में असमर्थ हो गई। जब ऐनी आठ वर्ष की थी, तब उसकी माँ की मृत्यु टी.बी./क्षय रोग से हो गई। कुछ ही समय बाद, उसके दुर्व्यवहारी पिता ने अपने तीन जीवित बच्चों को छोड़ दिया। सबसे छोटे को रिश्तेदारों के साथ रहने के लिए भेजा गया, लेकिन ऐनी और उसका भाई, जिम्मी, सरकार द्वारा संचालित अनाथालय में चले गए। कुछ महीनों बाद जिम्मी की मृत्यु हो गई।
चौदह वर्ष की उम्र में ऐनी की परिस्थितियाँ उज्ज्वल हो गईं। उन्हें अंधों के लिए एक स्कूल में भेजा गया, जहां उनकी दृष्टि में सुधार के लिए सर्जरी हुई और पढ़ना-लिखना सीखा। यद्दपि उसे इसमें फिट होने के लिए संघर्ष करना पड़ा, फिर भी उसने शैक्षणिक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और स्नातक की उपाधि प्राप्त की। आज हम उन्हें ऐनी सुलिवन के नाम से जानते हैं, हेलेन केलर की शिक्षिका और साथी। प्रयास, धैर्य और प्रेम के द्वारा, ऐनी ने अंधी और बहरी हेलेन को बोलना, ब्रेल पढ़ना और कॉलेज से स्नातक करना सिखाया।
यूसुफ को भी कठिन परीक्षा जीतना पड़ा : सत्रह साल की उम्र में, उसके ईर्ष्यालु भाइयों ने उसे गुलामी में बेच दिया और बाद में वह ग़लत तरीके से कैद हुआ (उत्पत्ति 37; 39-41)। फिर भी परमेश्वर ने मिस्र और उसके परिवार को अकाल से बचाने के लिए उसका उपयोग किया (50:20)।
हम सब परीक्षाओं और परेशानियों का सामना करते हैं। लेकिन जिस तरह परमेश्वर ने युसूफ और ऐनी को दूसरों के जीवन पर काबू पाने और गहरा प्रभाव डालने में मदद किया, वह हमारी सहायता और उपयोग कर सकते हैं। मदद और मार्गदर्शन के लिए उन्हें ढूंढें जो देखते और सुनते हैं।