Our Authors

सब कुछ देखें

Articles by ऐनी सिटास

इससे बेहतर और क्या हो सकता है?

 
एरिक ने बीस वर्ष की आयु की शुरुआत में अपने प्रति यीशु के प्रेम के बारे में सुना। उसने चर्च जाना शुरू कर दिया जहां पर उसकी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जिसने उसे मसीह को बेहतर तरीके से जानने में उसकी मदद की। ज्यादा समय नहीं बीता था जब एरिक के उस विश्वसनीय सलाहकार (गुरु) ने उसे चर्च में लड़कों के एक छोटे समूह को पढ़ाने का काम सौंपा। वर्षों के दौरान, परमेश्वर ने एरिक के ह्रदय को अपने शहर के संकट में पड़े युवाओं की मदद करने, बुजुर्गों से मिलने और अपने पड़ोसियों को आतिथ्य दिखाने के लिए आकर्षित किया - यह सभी काम उसने परमेश्वर के सम्मान के लिए किया । अब पचास से अधिक की आयु में, एरिक बताते हैं कि वह कितने आभारी हैं कि उन्हें सेवा करना शुरू से ही (जल्दी) सिखाया गया: “यीशु में जो आशा मैंने पाई है उसे साझा करने के लिए मेरा हृदय उमड़ रहा है। उसकी सेवा करने से बेहतर और क्या हो सकता है?” 
तीमुथियुस एक बच्चा था जब उसकी माँ और नानी ने उसके विश्वास को प्रभावित किया (2 तीमुथियुस 1:5)। और जब वह प्रेरित पौलुस से मिला, तब वह संभवतः एक युवा वयस्क था, जिसने परमेश्वर के लिए तीमुथियुस की सेवा में क्षमता देखी और उसे सेवकाई के लिए आमंत्रित किया (प्रेरितों 16:1-3)। पौलुस सेवकाई और जीवन दोनों में उसके गुरु बने। उन्होंने उसे अध्ययन करने, झूठी शिक्षा का सामना करने में साहसी होने और परमेश्वर की सेवा में अपनी प्रतिभा का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया (1 तीमुथियुस 4:6-16)।  
पौलुस क्यों चाहता था कि तीमुथियुस परमेश्वर की सेवा में वफ़ादार रहे? उन्होंने लिखा,"क्योंकि हमारी आशा उस जीवते परमेश्वर पर है, जो सब मनुष्यों का उद्धारकर्ता है" (पद 10)। यीशु हमारी आशा और दुनिया का उद्धारकर्ता हैं। उसकी सेवा से बेहतर और क्या हो सकता है? 
-ऐनी सीटास 

पथ पर स्वतंत्रता

बीप बेसबॉल में, नेत्रहीन  खिलाड़ी बीप करने वाली गेंद या बजने वाले बेस को सुनते हैं ताकि उन्हें पता चल सके कि उन्हें क्या करना है और कहाँ जाना है। आंखों पर पट्टी बांधे हुए बल्लेबाज (अंधेपन की विभिन्न डिग्री को ध्यान में रखते हुए) और देखनेवाला पिचर एक ही टीम में होते हैं। जब कोई बल्लेबाज बल्ला घुमाता है और बीप करने वाली गेंद को हिट करता है, तो वह बजने वाले बेस की ओर दौड़ता है। बल्लेबाज आउट हो जाता है अगर बल्लेबाज के बेस तक पहुंचने से पहले कोई फील्डर गेंद को “दबा देता है”; अन्यथा, बल्लेबाज रन बनाता है। एक खिलाड़ी ने टिप्पणी की कि सबसे अच्छी बात यह है कि उसे “दौड़ने में बहुत स्वतंत्रता” महसूस होती है क्योंकि वह जानता है कि एक स्पष्ट रास्ता और दिशा है।  
यशायाह की पुस्तक हमें बताती है कि परमेश्वर, “जो स्वयं सच्चाई है, वह धर्मी की अगुवाई करता है” (26:7) l जब यह लिखा गया था, तब इस्राएलियों के लिए रास्ता बिल्कुल भी आसान नहीं था; वे अपनी अवज्ञा के लिए ईश्वरीय न्याय का अनुभव कर रहे थे। यशायाह ने उन्हें विश्वास और आज्ञाकारिता में चलने के लिए प्रोत्साहित किया - अक्सर कठिन लेकिन आसान रास्ता। परमेश्वर के "नाम और यश" (वचन 8) के लिए चिंतित होना उनके दिलों का ध्यान होना चाहिए। यीशु में विश्वासियों के रूप में, हम परमेश्वर के बारे में अधिक जानते हैं और आज्ञाकारिता में उनके मार्गों का अनुसरण करते हुए उनके वफादार चरित्र में अपना भरोसा बनाते हैं। जीवन में हमारा रास्ता हमेशा आसान नहीं लग सकता है, लेकिन हम आश्वस्त हो सकते हैं कि जब हम उन पर भरोसा करते हैं तो परमेश्वर हमारे साथ है और रास्ता बना रहा है। हम भी स्वतंत्रता महसूस कर सकते हैं जब हम आज्ञाकारिता में परमेश्वर के हमारे लिए सबसे अच्छे मार्ग पर चलते हैं।  
—एनी सिटास 

प्रशंसा के योग्य कौन है?

घुमावदार सीढ़ियों से लेकर विशाल बेडरूम तक, संगमरमर के फर्श से लेकर आलीशान कालीन तक, विशाल कपड़े धोने के कमरे से लेकर सुव्यवस्थित कार्यालय तक, एजेंट ने युवा जोड़े को एक बेहतरीन घर दिखाया। जिस भी कोने पर वे मुड़े, उन्होंने इसकी सुंदरता की प्रशंसा की: “आपने हमारे लिए सबसे अच्छी जगह चुनी है। यह घर अद्भुत है!” तब एजेंट ने कुछ ऐसा जवाब दिया जो उन्हें थोड़ा असामान्य लेकिन सच लगा: “मैं आपकी तारीफ बिल्डर तक पहुंचाऊंगा। जिसने घर बनाया वह प्रशंसा के योग्य है; स्वयं घर या उसे दिखाने वाले नहीं।” 
 
एजेंट के शब्द इब्रानियों के लेखक की प्रतिध्वनि हैं: "घर बनानेवाला घर से बढ़कर आदर रखता है" (3:3)। लेखक परमेश्वर के पुत्र, यीशु की विश्वासयोग्यता की तुलना भविष्यवक्ता मूसा से कर रहा था (पद 1-6)। हालाँकि मूसा को परमेश्वर से आमने-सामने बात करने और उसे देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ (गिनती 12:8), फिर भी वह प्रभु के घर में केवल "एक सेवक" था (इब्रानियों 3:5)। सृष्टिकर्ता के रूप में मसीह (1:2, 10) "हर चीज़ का ईश्वरीय निर्माता" और "परमेश्वर के घर के ऊपर" पुत्र के रूप में सम्मान के योग्य हैं(3:4, 6)। परमेश्वर का घर उसके लोग हैं। 
जब हम विश्वासयोग्यता से परमेश्वर की सेवा करते हैं, तो वह यीशु जो ईश्वरीय निर्माता है, वही आदर के योग्य है। हम, परमेश्वर के घर, जो भी प्रशंसा प्राप्त करते हैं वह अंततः उसी की होती है। 
 

आंतरिक चंगाई की खोज

अमेरिकी राज्य मिशिगन का एक हमेशा व्यस्त व्यक्ति, कार्सन शिकार करता था, मछली पकड़ता था, गंदी बाइक चलाता था और स्केटबोर्ड करता था। उन्हें हर बाहरी गतिविधि पसंद थी। लेकिन उसकी एक मोटरसाइकिल दुर्घटना हुई और सीने से नीचे लकवाग्रस्त हो गया। जल्द ही निराशा में डूब गया, और उसने भविष्य के बारे में ज्यादा कुछ नहीं देखा। फिर एक दिन उसके कुछ साथियों ने उसे फिर से शिकार पर जाने को कह दिया। कुछ समय के लिए वह अपनी चोट के बारे में भूल गया क्योंकि उसने अपने चारों ओर की सुंदरता का आनंद लिया। इस अनुभव से उन्हें आंतरिक उपचार मिला और उनके जीवन के लिए एक नया उद्देश्य प्रेरित हुआ – एक गैर-लाभकारी संगठन के माध्यम से उसके जैसे अन्य लोगों के लिए समान अनुभव प्रदान करना —   ठीक करने के लिए शिकार करें वह कहते हैं कि उनकी दुर्घटना "भेष में एक आशीर्वाद" थी (कुछ ऐसा जो पहले तो बुरा या अशुभ लगता है, लेकिन बाद में कुछ अच्छा होने का कारण बनता है) । अब मैं वापस देने में सक्षम हूं, जो मैं हमेशा से करना चाहता था । मैं खुश हूं।" वह चलने-फिरने में अक्षम लोगों और उनकी देखभाल करने वालों को चंगाई खोजने के लिए जगह उपलब्ध कराने को लेकर उत्साहित हैं।  
भविष्यद्वक्ता यशायाह ने उसके आने की भविष्यवाणी की थी जो टूटेपन को चंगा करेगा (यशायाह 61)। वह " खेदित मन के लोगों को शान्ति देगा " और "सब विलाप करने वालों को शान्ति देगा " (पद. 1-2)।  यीशु ने अपने गृहनगर आराधनालय में इस शास्त्र को पढ़ने के बाद कहा, "आज यह शास्त्र तुम्हारे सामने पूरा हुआ" (लूका 4:21)। यीशु हमें बचाने और हमें चंगा करने के लिए आया था।  
क्या आपको आंतरिक चंगाई की आवश्यकता है? यीशु की ओर मुड़ें और वह आपको " उनकी उदासी हटाकर यश का ओढ़ना ओढ़ाऊं " (यशायाह 61:3). 

सेवा करने की चुनौती

यद्यपि वह केवल तेरह साल का था, लेकिन डीएविऑन ने दूसरों की सेवा करने की चुनौती स्वीकार की। उसने और उसकी माँ ने एक ऐसे व्यक्ति के बारे में एक कहानी सुनी थी जिसने बच्चों को गर्मी की छुट्टी के दौरान पचास मैदानों के घास मुफ्त में काटने के लिए कहा था। उनका मकसद बुजुर्गों, एकल माताओं, विकलांग लोगों या ऐसे किसी भी व्यक्ति की सहायता करना था, जिन्हें तुरंत मदद की आवश्यकता हो । संस्थापक (जिन्होंने पचास राज्यों में पचास मैदाओं के घास काटे थे) ने कार्य नैतिकता के महत्व को सिखाने और समुदाय को कुछ लौटाने की चुनौती रची थी। गर्मी और अन्य गतिविधियों की उपलब्धता के बावजूद एक बालक गर्मियों में कुछ पाने की कोशिश कर सकता है, डीएविऑन ने दूसरों की सेवा करना चुना और चुनौती पूरी की। 
 
सेवा करने की चुनौती यीशु में विश्वासियों के लिए भी है। सभी लोगों के लिए अपनी मृत्यु से पहले की शाम को,  यीशु ने अपने मित्रों के साथ रात का भोजन खाया (यूहन्ना 13:1-2)। वह खुद पर आने वाली पीड़ा और मृत्यु के बारे में अच्छे से जानता था, फिर भी वह भोजन से उठा, उसने एक अंगोछा लपेटा, और अपने चेलों के पैर धोने लगा (पद. 3-5)। उसने कहा, “यदि मैं ने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पाँव धोए, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पाँव धोना चाहिए।” (पद. 14)। 
यीशु, एक विनम्र सेवक और हमारा उदाहरण, लोगों की परवाह करता था : उसने अंधों और बीमारों को चंगा किया, अपने राज्य का सुसमाचार सुनाया,  और अपने मित्रों के लिए अपनी जान दे दी। क्योंकि मसीह आपसे प्रेम करता है, उससे पूछें कि वह चाहता है कि आप इस सप्ताह किसकी सेवा करें । 

बिलकुल अकेला?

श्वेता का परिवार उसकी आँखों के सामने बिखर रहा था l उसका पति अचानक घर छोड़कर चला गया था, और वह और उसके बच्चे दुविधाग्रस्त’ और क्रोधित थे l उसने उसे अपने साथ उनकी शादी पर परामर्श/सलाह लेने के लिए चलने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं गया क्योंकि उसने दावा किया कि समस्याएँ उसकी (श्वेता की) थीं l घबराहट और निराशा तब शुरु हुयी जब उसने महसूस किया कि शायद वह कभी नहीं लौटेगा l क्या वह अकेले अपना और अपने बच्चों का ख्याल रख पाएगी?

अब्राहम और सारा की एक दासी हाजिरा ने भी उन विचारों का सामना कियाl परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार कि वह उन्हें एक पुत्र देगा उसकी प्रतीक्षा में अधीर होकर(उत्पत्ति 12,15)सारा ने अपने पति को अपनी दासी हाजिरा दे दी,और हाजिरा ने इश्माएल को जन्म दियाI (16:1-4, 15) हालाँकि,जब परमेश्वर ने अपना वादा पूरा किया और सारा ने इसहाक को जन्म दिया, तो पारिवारिक तनाव इस कदर बढ़ गया कि अब्राहम ने हाजिरा को अपने बेटे इश्माएल के साथ बस थोड़े पानी और भोजन के साथ खुद से दूर कर दियाI (21:8-21) क्या आप उसकी हताशा की कल्पना कर सकते हैं? जल्द ही रेगिस्तान में उनकी खाद्य सामग्री ख़त्म हो गयी l नहीं जानते हुए कि क्या करना है और ना ही अपने बेटे को मरते हुए नहीं देख सकते हुए, हाजिरा इश्माएल को एक झाड़ी के नीचे रखकर दूर चली गयी l वे दोनों सिसकने लगे l परन्तु “परमेश्वर ने उस लड़के की सुनीI” (पद.17) उसने उनकी पुकार सुनी, उनकी ज़रूरतें पूरी की,और उनके साथ रहाl 

जब हम खुद को अकेला महसूस करते हैं तब हताशा का समय हमरे लिए ईश्वर को पुकारने का कारण बनता है l यह जानकर कितना सुकून मिलता है कि उन क्षणों के दौरान और हमारे पूरे जीवन में, वह हमें सुनता है, हमारे लिए प्रबंध करता है, और हमारे निकट रहता है l 

हम परदेशी हैं

उनके नए देश में सब कुछ अत्यधिक अलग महसूस हुआ — नई भाषा, स्कूल, रीति-रिवाज, यातायात और मौसम। वे सोचते थे कि वे  कैसे कभी भी  इस नए वातावरण में समायोजित हों पाएंगे। एक नए देश में उनके नए जीवन में उनकी मदद करने के लिए पास के एक चर्च के लोग उनके पास इकट्ठे हुए। पल्लवी उस जोड़े को एक स्थानीय खाद्य बाजार में खरीदारी करने के लिए ले गयी ताकि उन्हें दिखा सके कि वहाँ क्या-क्या उपलब्ध है और कैसे चीजें खरीदनी हैं। जब वे बाजार में घूम रहे थे, तब अपनी मातृभूमि के अपने पसंदीदा फल-अनार को देखकर उनकी आँखे बड़ी हो गयी और होठों पर बड़ी सी मुस्कान फैल गयी। उन्होंने अपने प्रत्येक बच्चे के लिए एक-एक अनार खरीदा और कृतज्ञता में एक पल्लवी के हाथों में भी दिया। एक छोटा सा फल और नए मित्र उनके लिए अजनबी, नए देश में बड़ा आश्वासन लेकर आया।

परमेश्वर ने, मूसा के माध्यम से, अपने लोगों के लिए नियमों की एक सूची दी, जिसमें उनके बीच रह रहे परदेशियों को "अपने मूल निवासी" के रूप में मानने की आज्ञा शामिल थीI (लैव्यव्यवस्था 19:34) "उससे अपने समान ही प्रेम रखना" परमेश्वर ने आगे उन्हें आज्ञा दी। यीशु ने इसे परमेश्वर से प्रेम करने के बाद दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा कहाI (मत्ती 22:39) क्योंकि परमेश्वर(यहोवा) भी "परदेशियों की रक्षा करता हैI" (भजन संहिता 146:9)

परमेश्वर की आज्ञा मानने के अलावा जब हम नए मित्रों को हमारे देश में जीवन के अनुकूल होने में मदद करते हैं, तो हमें स्मरण होता है कि हम भी एक वास्तविक अर्थ में "पृथ्वी पर परदेशी" हैं (इब्रानियों 11:13) और हम आने वाली नयी स्वर्गीय भूमि की प्रत्याशा में बढ़ते है।

भलाई के लिए परमेश्वर की सेवा

मितुल एक नए शहर में गया और उसे तुरंत एक चर्च मिल गया जहाँ वह आराधना कर सकता था l वह कुछ सप्ताहों तक आराधनाओं में गया, और फिर एक रविवार को उसने पास्टर से किसी भी तरह से आवश्यक सेवा करने की अपनी इच्छा के बारे में बात की l उसने कहा, “मुझे केवल “झाड़ू चाहिए l” उसने उपासना के लिए कुर्सियां लगाने और शौचालय की सफाई में सहायता करके आरम्भ की l चर्च परिवार को बाद में पता चला कि मितुल की प्रतिभा शिक्षण में थी, लेकिन वह कुछ भी करने को तैयार था l 

यीशु ने अपने दो शिष्यों, याकूब और यूहन्ना और उनकी माँ को दास की तरह सेवा करने का पाठ पढ़ाया l उनकी माँ ने अनुरोध किया कि जब मसीह अपने राज्य में आए तो उनके बेटों को उनके दोनों तरफ सम्मान का स्थान मिले(मत्ती 20:20-21) l अन्य शिष्य सुनकर उन पर क्रोधित हो गए l शायद वे ये पद अपने लिए चाहते थे? यीशु ने उन्हें बताया कि दूसरों पर अधिकार जताना जीने का तरीका नहीं है(पद.25-26), बल्कि सेवा करना सबसे महत्वपूर्ण है l “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने”(पद.26) l 

मितुल के शब्द “मुझे झाड़ू चाहिए” एक व्यवहारिक तस्वीर है कि हममें से प्रत्येक अपने समुदायों और कलीसियाओं में मसीह की सेवा करने के लिए क्या कर सकता है l मितुल ने परमेश्वर के प्रति अपने जीवन की लालसा का वर्णन इस प्रकार किया : “मैं परमेश्वर की महिमा के लिए, संसार की भलाई के लिए और अपनी ख़ुशी के लिए सेवा करना चाहता हूँ l” जब परमेश्वर हमारी अगुवाई करता है तो आप और मैं “सेवक की तरह कैसे सेवा करेंगे?”

भलाई के लिए परमेश्वर की सेवा

मितुल एक नए शहर में गया और उसे तुरंत एक चर्च मिल गया जहाँ वह आराधना कर सकता था l वह कुछ सप्ताहों तक आराधनाओं में गया, और फिर एक रविवार को उसने पास्टर से किसी भी तरह से आवश्यक सेवा करने की अपनी इच्छा के बारे में बात की l उसने कहा, “मुझे केवल “झाड़ू चाहिए l” उसने उपासना के लिए कुर्सियां लगाने और शौचालय की सफाई में सहायता करके आरम्भ की l चर्च परिवार को बाद में पता चला कि मितुल की प्रतिभा शिक्षण में थी, लेकिन वह कुछ भी करने को तैयार था l 

यीशु ने अपने दो शिष्यों, याकूब और यूहन्ना और उनकी माँ को दास की तरह सेवा करने का पाठ पढ़ाया l उनकी माँ ने अनुरोध किया कि जब मसीह अपने राज्य में आए तो उनके बेटों को उनके दोनों तरफ सम्मान का स्थान मिले(मत्ती 20:20-21) l अन्य शिष्य सुनकर उन पर क्रोधित हो गए l शायद वे ये पद अपने लिए चाहते थे? यीशु ने उन्हें बताया कि दूसरों पर अधिकार जताना जीने का तरीका नहीं है(पद.25-26), बल्कि सेवा करना सबसे महत्वपूर्ण है l “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने”(पद.26) l 

मितुल के शब्द “मुझे झाड़ू चाहिए” एक व्यवहारिक तस्वीर है कि हममें से प्रत्येक अपने समुदायों और कलीसियाओं में मसीह की सेवा करने के लिए क्या कर सकता है l मितुल ने परमेश्वर के प्रति अपने जीवन की लालसा का वर्णन इस प्रकार किया : “मैं परमेश्वर की महिमा के लिए, संसार की भलाई के लिए और अपनी ख़ुशी के लिए सेवा करना चाहता हूँ l” जब परमेश्वर हमारी अगुवाई करता है तो आप और मैं “सेवक की तरह कैसे सेवा करेंगे?”