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Articles by ऐनी सिटास

बिलकुल अकेला?

श्वेता का परिवार उसकी आँखों के सामने बिखर रहा था l उसका पति अचानक घर छोड़कर चला गया था, और वह और उसके बच्चे दुविधाग्रस्त’ और क्रोधित थे l उसने उसे अपने साथ उनकी शादी पर परामर्श/सलाह लेने के लिए चलने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं गया क्योंकि उसने दावा किया कि समस्याएँ उसकी (श्वेता की) थीं l घबराहट और निराशा तब शुरु हुयी जब उसने महसूस किया कि शायद वह कभी नहीं लौटेगा l क्या वह अकेले अपना और अपने बच्चों का ख्याल रख पाएगी?

अब्राहम और सारा की एक दासी हाजिरा ने भी उन विचारों का सामना कियाl परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार कि वह उन्हें एक पुत्र देगा उसकी प्रतीक्षा में अधीर होकर(उत्पत्ति 12,15)सारा ने अपने पति को अपनी दासी हाजिरा दे दी,और हाजिरा ने इश्माएल को जन्म दियाI (16:1-4, 15) हालाँकि,जब परमेश्वर ने अपना वादा पूरा किया और सारा ने इसहाक को जन्म दिया, तो पारिवारिक तनाव इस कदर बढ़ गया कि अब्राहम ने हाजिरा को अपने बेटे इश्माएल के साथ बस थोड़े पानी और भोजन के साथ खुद से दूर कर दियाI (21:8-21) क्या आप उसकी हताशा की कल्पना कर सकते हैं? जल्द ही रेगिस्तान में उनकी खाद्य सामग्री ख़त्म हो गयी l नहीं जानते हुए कि क्या करना है और ना ही अपने बेटे को मरते हुए नहीं देख सकते हुए, हाजिरा इश्माएल को एक झाड़ी के नीचे रखकर दूर चली गयी l वे दोनों सिसकने लगे l परन्तु “परमेश्वर ने उस लड़के की सुनीI” (पद.17) उसने उनकी पुकार सुनी, उनकी ज़रूरतें पूरी की,और उनके साथ रहाl 

जब हम खुद को अकेला महसूस करते हैं तब हताशा का समय हमरे लिए ईश्वर को पुकारने का कारण बनता है l यह जानकर कितना सुकून मिलता है कि उन क्षणों के दौरान और हमारे पूरे जीवन में, वह हमें सुनता है, हमारे लिए प्रबंध करता है, और हमारे निकट रहता है l 

हम परदेशी हैं

उनके नए देश में सब कुछ अत्यधिक अलग महसूस हुआ — नई भाषा, स्कूल, रीति-रिवाज, यातायात और मौसम। वे सोचते थे कि वे  कैसे कभी भी  इस नए वातावरण में समायोजित हों पाएंगे। एक नए देश में उनके नए जीवन में उनकी मदद करने के लिए पास के एक चर्च के लोग उनके पास इकट्ठे हुए। पल्लवी उस जोड़े को एक स्थानीय खाद्य बाजार में खरीदारी करने के लिए ले गयी ताकि उन्हें दिखा सके कि वहाँ क्या-क्या उपलब्ध है और कैसे चीजें खरीदनी हैं। जब वे बाजार में घूम रहे थे, तब अपनी मातृभूमि के अपने पसंदीदा फल-अनार को देखकर उनकी आँखे बड़ी हो गयी और होठों पर बड़ी सी मुस्कान फैल गयी। उन्होंने अपने प्रत्येक बच्चे के लिए एक-एक अनार खरीदा और कृतज्ञता में एक पल्लवी के हाथों में भी दिया। एक छोटा सा फल और नए मित्र उनके लिए अजनबी, नए देश में बड़ा आश्वासन लेकर आया।

परमेश्वर ने, मूसा के माध्यम से, अपने लोगों के लिए नियमों की एक सूची दी, जिसमें उनके बीच रह रहे परदेशियों को "अपने मूल निवासी" के रूप में मानने की आज्ञा शामिल थीI (लैव्यव्यवस्था 19:34) "उससे अपने समान ही प्रेम रखना" परमेश्वर ने आगे उन्हें आज्ञा दी। यीशु ने इसे परमेश्वर से प्रेम करने के बाद दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा कहाI (मत्ती 22:39) क्योंकि परमेश्वर(यहोवा) भी "परदेशियों की रक्षा करता हैI" (भजन संहिता 146:9)

परमेश्वर की आज्ञा मानने के अलावा जब हम नए मित्रों को हमारे देश में जीवन के अनुकूल होने में मदद करते हैं, तो हमें स्मरण होता है कि हम भी एक वास्तविक अर्थ में "पृथ्वी पर परदेशी" हैं (इब्रानियों 11:13) और हम आने वाली नयी स्वर्गीय भूमि की प्रत्याशा में बढ़ते है।

भलाई के लिए परमेश्वर की सेवा

मितुल एक नए शहर में गया और उसे तुरंत एक चर्च मिल गया जहाँ वह आराधना कर सकता था l वह कुछ सप्ताहों तक आराधनाओं में गया, और फिर एक रविवार को उसने पास्टर से किसी भी तरह से आवश्यक सेवा करने की अपनी इच्छा के बारे में बात की l उसने कहा, “मुझे केवल “झाड़ू चाहिए l” उसने उपासना के लिए कुर्सियां लगाने और शौचालय की सफाई में सहायता करके आरम्भ की l चर्च परिवार को बाद में पता चला कि मितुल की प्रतिभा शिक्षण में थी, लेकिन वह कुछ भी करने को तैयार था l 

यीशु ने अपने दो शिष्यों, याकूब और यूहन्ना और उनकी माँ को दास की तरह सेवा करने का पाठ पढ़ाया l उनकी माँ ने अनुरोध किया कि जब मसीह अपने राज्य में आए तो उनके बेटों को उनके दोनों तरफ सम्मान का स्थान मिले(मत्ती 20:20-21) l अन्य शिष्य सुनकर उन पर क्रोधित हो गए l शायद वे ये पद अपने लिए चाहते थे? यीशु ने उन्हें बताया कि दूसरों पर अधिकार जताना जीने का तरीका नहीं है(पद.25-26), बल्कि सेवा करना सबसे महत्वपूर्ण है l “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने”(पद.26) l 

मितुल के शब्द “मुझे झाड़ू चाहिए” एक व्यवहारिक तस्वीर है कि हममें से प्रत्येक अपने समुदायों और कलीसियाओं में मसीह की सेवा करने के लिए क्या कर सकता है l मितुल ने परमेश्वर के प्रति अपने जीवन की लालसा का वर्णन इस प्रकार किया : “मैं परमेश्वर की महिमा के लिए, संसार की भलाई के लिए और अपनी ख़ुशी के लिए सेवा करना चाहता हूँ l” जब परमेश्वर हमारी अगुवाई करता है तो आप और मैं “सेवक की तरह कैसे सेवा करेंगे?”

भलाई के लिए परमेश्वर की सेवा

मितुल एक नए शहर में गया और उसे तुरंत एक चर्च मिल गया जहाँ वह आराधना कर सकता था l वह कुछ सप्ताहों तक आराधनाओं में गया, और फिर एक रविवार को उसने पास्टर से किसी भी तरह से आवश्यक सेवा करने की अपनी इच्छा के बारे में बात की l उसने कहा, “मुझे केवल “झाड़ू चाहिए l” उसने उपासना के लिए कुर्सियां लगाने और शौचालय की सफाई में सहायता करके आरम्भ की l चर्च परिवार को बाद में पता चला कि मितुल की प्रतिभा शिक्षण में थी, लेकिन वह कुछ भी करने को तैयार था l 

यीशु ने अपने दो शिष्यों, याकूब और यूहन्ना और उनकी माँ को दास की तरह सेवा करने का पाठ पढ़ाया l उनकी माँ ने अनुरोध किया कि जब मसीह अपने राज्य में आए तो उनके बेटों को उनके दोनों तरफ सम्मान का स्थान मिले(मत्ती 20:20-21) l अन्य शिष्य सुनकर उन पर क्रोधित हो गए l शायद वे ये पद अपने लिए चाहते थे? यीशु ने उन्हें बताया कि दूसरों पर अधिकार जताना जीने का तरीका नहीं है(पद.25-26), बल्कि सेवा करना सबसे महत्वपूर्ण है l “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने”(पद.26) l 

मितुल के शब्द “मुझे झाड़ू चाहिए” एक व्यवहारिक तस्वीर है कि हममें से प्रत्येक अपने समुदायों और कलीसियाओं में मसीह की सेवा करने के लिए क्या कर सकता है l मितुल ने परमेश्वर के प्रति अपने जीवन की लालसा का वर्णन इस प्रकार किया : “मैं परमेश्वर की महिमा के लिए, संसार की भलाई के लिए और अपनी ख़ुशी के लिए सेवा करना चाहता हूँ l” जब परमेश्वर हमारी अगुवाई करता है तो आप और मैं “सेवक की तरह कैसे सेवा करेंगे?”

अब अनुग्रह

मेरी दोस्त जेरी को काम से एक छोटा सा ब्रेक मिला था इसलिए हम जल्दी-जल्दी एक फास्ट-फूड रेस्तरां में गए ताकि एक साथ लंच कर सके। रेस्तरां के दरवाज़े पर लगभग हमारे साथ ही साथ, छह युवक अन्दर घुसे। हमें पता था कि हमारे पास बहुत थोड़ा सा समय है इसलिए हम मन ही मन कुड़कुड़ाने लगे क्यूंकि वे दोनों काउंटर पर एक झुण्ड में खड़े थे,यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनमें से प्रत्येक पहले ऑर्डर कर सके। फिर मैंने जैरी को खुद से फुसफुसाते हुए सुना, "  अब अनुग्रह दिखाओ ।" निश्चित रूप से, अगर वें हमें पहले जाने देते तो यह अच्छा होता, लेकिन यह कितनी अच्छी याद दिलाने वाली बात थी कि हमें केवल अपनी ही नहीं, पर दूसरों की जरूरतों और इच्छाओं के बारे में भी सोचना है।

बाइबल सिखाती है कि प्रेम धैर्यवान, दयालु और निःस्वार्थ होता है; यह "आसानी से क्रोधित नहीं होता" (1 कुरिन्थियों 13:5)। "यह अक्सर . . अपने स्वयं के बदले [दूसरों की] भलाई, संतुष्टि और लाभ को प्राथमिकता देता है,'' इस प्रेम के टिप्पणीकार मैथ्यू हेनरी ने लिखा। परमेश्वर का प्रेम पहले दूसरों के बारे में सोचता है।

ऐसी दुनिया में जहां हममें से बहुत से लोग आसानी से झुंझलाता जाते हैं, हमारे पास अक्सर परमेश्वर से मदद और अनुग्रह मांगने का अवसर होता है कि हम दूसरों के साथ धैर्यवान और दयालु बनें (पद 4)। नीतिवचन 19:11 आगे कहता है, “जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को भुलाना उस को सोहता है।”  यह उस प्रकार का प्रेमपूर्ण कार्य है जो परमेश्वर को सम्मान दिलाता है। और वह इसका उपयोग दूसरों तक अपने प्रेम के विचार लाने के लिए भी कर सकता है।

परमेश्वर की सामर्थ से, आइए अब अनुग्रह दिखाने के हर अवसर का लाभ उठाएँ।

परमेश्वर की थाली में रख दें

वर्षों तक, एक माँ ने प्रार्थना की और अपनी व्यस्क बेटी को स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का मार्ग निर्देशन करना और परामर्श और सर्वोत्तम दवाएं खोजने में सहायता की l उसकी अत्यधिक ऊंचाइयां(highs) और गहरा उतार(lows) दिन-ब-दिन उसकी माँ के हृदय पर भारी पड़ता जा रहा था l अक्सर उदासी से थक जाने पर उसे एहसास हुआ कि उसे अपना भी ख्याल रखना होगा l एक मित्र ने सुझाव दिया कि वह अपनी चिंताओं और जिन चीज़ों को वह नियंत्रित नहीं कर सकती, उन्हें कागज़ के छोटे टुकड़ों पर लिखकर उन्हें अपने सिरहाने “परमेश्वर की थाली” पर रखें l इस सरल अभ्यास से सारा तनाव समाप्त नहीं हुआ, लेकिन उस थाली को देखकर उसे याद आया कि ये चिंताएं परमेश्वर की थाली में हैं, उसकी नहीं l 

एक तरह से, दाऊद के कई भजन उसकी परेशानियों को सूचीबद्ध करने और उन्हें परमेश्वर की थाली में रखने का उसका तरीका था (भजन 55:1,16-17) l यदि बेटे अबशालोम द्वारा तख्तापलट के प्रयास का वर्णन किया जा रहा है, तो दाऊद के “घनिष्ठ मित्र” अहितोपेल ने वास्तव में उसे धोखा दिया था और उसे मारने की साजिश में शामिल था (2 शमूएल 15-16) l इसलिए “सांझ को, भोर को, और दोपहर को [दाऊद] दोहाई [देता रहा] और कराहता [रहा],” और [परमेश्वर ने उसकी] प्रार्थना सुन [ली]” (भजन 55:1-2, 16-17) l उसने “अपना बोझ यहोवा पर डाल [देने]” का निर्णय लिया और उसकी देखभाल का अनुभव किया (पद.22) l 

हम प्रामाणिक रूप से स्वीकार कर सकते हैं कि चिंताएं और भय हम सभी को प्रभावित करते हैं l हमारे मन में भी दाऊद जैसे विचार आ सकते हैं : “भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता” (पद.6) l परमेश्वर निकट है और केवल वही है जो परिस्थितियों को बदलने की सामर्थ्य रखता है l सब उसकी थाली में रख दें l  

सचमुच जियो

2000 में जब पादरी एड डॉब्सन को ए एल एस का पता चला तो हजारों लोगों ने उनके लिए प्रार्थना की। कई लोगों का मानना ​​था कि जब वे उपचार के लिए विश्वास के साथ प्रार्थना करते हैं, तो परमेश्वर तुरंत जवाब देंगे। बारह वर्षों तक उस बीमारी से संघर्ष करने के बाद जिसके कारण एड की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होने लगीं (और उनकी मृत्यु से तीन साल पहले), किसी ने उनसे पूछा कि उन्हें क्यों लगता है कि परमेश्वर ने उन्हें अभी तक ठीक नहीं किया है। "कोई अच्छा उत्तर नहीं है, इसलिए मैं नहीं पूछता," उन्होंने उत्तर दिया। उनकी पत्नी लोर्ना ने कहा, "यदि आप हमेशा उत्तर पाने की धुन में रहते हैं, तो आप वास्तव में जीवित नहीं रह सकते।"

क्या आप एड और लोर्ना के शब्दों में परमेश्वर के प्रति सम्मान सुन सकते हैं? वे जानते थे कि उसकी बुद्धि उनकी बुद्धि से ऊपर है। फिर भी एड ने स्वीकार किया, " कल की चिंता न करना मुझे लगभग असंभव लगता है।" वह समझ गया था कि यह बीमारी बढ़ती विकलांगता का कारण बनेगी, और उसे नहीं पता था कि अगला दिन कौन सी नई समस्या लेकर आएगा। 

खुद को वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करने के लिए, एड ने इन वचनों को अपनी कार में, बाथरूम के दर्पण पर और अपने बिस्तर के बगल में रखा: “परमेश्वर ने कहा है, 'मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगा; मैं तुम्हें कभी नहीं त्यागूंगा।' इसलिए हम विश्वास के साथ कहते हैं, 'प्रभु मेरा सहायक है; मैं नहीं डरूंगा'' (इब्रानियों 13:5-6)। जब भी उसे चिंता होने लगती, वह अपने विचारों को सत्य पर फिर से केंद्रित करने में मदद करने के लिए वचनों को दोहराता। कोई नहीं जानता कि अगला दिन क्या लेकर आएगा। शायद एड का अभ्यास हमें अपनी चिंताओं को विश्वास के अवसरों में बदलने में मदद कर सकता है।

 

आप अतिप्रिय हैं

अपना दुःख व्यक्त करने के लिए, ऐली नाम की एक युवा लड़की ने लकड़ी के एक टुकड़े पर लिखा और उसे एक पार्क में रख दिया : “ईमानदारी से कहूँ तो, मैं दुखी हूँ l कोई भी कभी भी मेरे साथ घूमना नहीं चाहता, और मैंने उस एकमात्र व्यक्ति को खो दिया है जो मेरी बात सुनता है l मैं हर दिन रोती हूँ l” 

जब किसी को वह लकड़ी का टुकड़ा मिला, तो वह पार्क में फुटपाथ पर लिखने वाले चौक(chalk) ले आयी और लोगों से ऐली के लिए अपने विचार लिखने के लिए कहा l पास के स्कूल के छात्रों द्वारा समर्थन के दर्जनों शब्द छोड़े गए : “हम आपसे प्रेम करते हैं l” “ईश्वर आपसे प्यार करता है l” “तुम प्रिय हो l” स्कूल के प्राचार्य ने कहा, “यह एक छोटा सा तरीका है जिससे हम पहुँच सकते हैं और शायद [उसकी कमी] को भरने में मदद कर सकते हैं l वह हम सभी का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि किसी न किसी समय हम सभी को दुःख और पीड़ा का अनुभव होता है या होगा l”

वाक्यांश “तू प्रिय है” मुझे मूसा द्वारा अपने मरने से ठीक पहले बिन्यामीन के इस्राएली गोत्र को दिए गए एक सुन्दर आशीष की याद दिलाता है : “यहोवा के प्रिय को उस में सुरक्षित रहने दो” (व्यवस्थाविवरण 33:12) l मूसा परमेश्वर के लिए एक मजबूत अगुआ था, उसने शत्रु राष्ट्रों को हराया, दस आज्ञाएँ प्राप्त कीं और उन्हें परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए चुनौती दी l उसने उन्हें परमेश्वर के दृष्टिकोण के साथ छोड़ दिया l प्रिय शब्द का प्रयोग हमारे लिए भी किया जा सकता है, क्योंकि यीश ने कहा, “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया” (यूहन्ना 3:16) l 

जैसा कि ईश्वर हमें इस सच्चाई पर सुरक्षित रूप से भरोसा करने में सहायता करता है कि यीशु में प्रत्येक विश्वासी “प्रिय” है, हम दूसरों से प्यार करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं जैसा कि ऐली के दोस्तों ने किया l 

 

जब समय आएगा

जब मेरे दोस्त अल और कैथी शिफर ने अपने प्रतिष्ठित, द्वितीय विश्व युद्ध-युग के हवाई जहाज को एयरशो के लिए उड़ाया, तो यह बुजुर्ग युद्ध के दिग्गजों की प्रतिक्रियाएं थीं जो उनके लिए सबसे ज्यादा मायने रखती थीं। वे इसलिए आते थे ताकि वे उन युद्धों के बारे में बात कर सकें जिनमें उन्होंने भाग लिया था और जिन हवाई जहाजों को उन्होंने उड़ाया था। उनकी अधिकांश युद्ध कहानियाँ उनकी आँखों में आँसुओं के साथ सुनाई गईं। कई लोगों ने कहा है कि अपने देश की सेवा करते समय उन्हें जो सबसे अच्छी खबर मिली, वह ये शब्द थे, "युद्ध समाप्त हो गया है, लड़कों। अब घर जाने का समय है।"

पिछली पीढ़ी के ये शब्द उस युद्ध से संबंधित हैं जिसमें यीशु में विश्वास करने वाले लोग लगे हुए हैं - हमारी आत्माओं के दुश्मन शैतान के खिलाफ विश्वास की हमारी अच्छी लड़ाई। प्रेरित पतरस ने हमें चेतावनी दी: “तुम्हारा शत्रु शैतान गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए।” वह हमें विभिन्न तरीकों से प्रलोभित करता है और हमें यीशु में हमारे विश्वास से दूर करने के लिए पीड़ा और उत्पीड़न में हतोत्साहित करता है। पतरस ने अपने शुरुवाती पाठकों और आज हमें "सतर्क और सचेत रहने" की चुनौती दी (1 पतरस 5:8)। हम पवित्र आत्मा पर निर्भर हैं इसलिए हम दुश्मन को हमें लड़ाई में आत्मसमर्पण करने और हमें नीचे गिराने नहीं देंगे।

हम जानते हैं कि एक दिन यीशु वापस आयेंगे। जब वह आएगा, तो उसके शब्दों का वैसा ही प्रभाव होगा जैसा युद्धकालीन सैनिकों पर हुआ था, जिससे हमारी आँखों में आँसू और हमारे दिलों में खुशी होगी: “युद्ध समाप्त हो गया है, बच्चों। अब घर जाने का समय है।"