मसीह में समुदाय
बहामास के दक्षिण में भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा है जिसे रैग्ड आइलैंड(Ragged Island) कहा जाता है। उन्नीसवीं सदी में यहाँ एक सक्रिय नमक उद्योग था, लेकिन उस उद्योग में गिरावट के कारण, कई लोग पास के द्वीपों में चले गए। 2016 में, जब वहां अस्सी से भी कम लोग रहते थे, द्वीप में तीन धार्मिक संप्रदाय थे, फिर भी सभी लोग प्रत्येक सप्ताह उपासना और संगति के लिए एक स्थान पर एकत्र होते थे। इतने कम निवासियों के साथ, समुदाय का भावना उनके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण था।
आरंभिक कलीसिया के लोगों को भी समुदाय की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता और इच्छा महसूस हुई। वे अपने नए विश्वास को लेकर उत्साहित थे जो यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान से संभव हुआ था। लेकिन वे यह भी जानते थे कि वह अब शारीरिक रूप से उनके साथ नहीं हैं, इसलिए उन्हें पता था कि उन्हें एक-दूसरे की ज़रूरत है। उन्होंने खुद को प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने, और रोटी तोड़ने में लौलीन रहे (प्रेरितों 2:42)। “वे प्रार्थना करने और भोजन के लिए घरों में इकट्ठे होते और दूसरों की जरूरतों का ख्याल रखते थे। प्रेरित पौलुस ने कलीसिया का वर्णन इस प्रकार किया : “और विश्वास करनेवालों की मण्डली एक चित्त और एक मन की थी” (4:32)। पवित्र आत्मा से परिपूर्ण, उन्होंने लगातार परमेश्वर की स्तुति की और कलीसिया के जरूरतों को प्रार्थना में उसके पास लाए।
समुदाय हमारे विकास और समर्थन के लिए आवश्यक है। इसे अकेले जीने का प्रयास न करें। जब आप अपने संघर्षों और खुशियों को दूसरों के साथ साझा करेंगे और एक साथ उसके करीब आएंगे तो परमेश्वर समुदाय की भावनाओं को विकसित करेगा।
रोमांचक कार्य
“मसिहत मेरे लिए नहीं है। यह उबाऊ है। मेरा एक मूल्य जिस पर मैं कायम हूं वह है रोमांचक कार्य। यह मेरे लिए जीवन है,'' एक युवा महिला ने मुझसे कहा। मुझे दुख हुआ कि उसने अभी तक उस अविश्वसनीय खुशी और उत्साह को नहीं सीखी थी जो यीशु का अनुसरण करने से आता है - एक ऐसा रोमांचक कार्य जो सबसे अलग है। मैंने उत्साहपूर्वक उसके साथ यीशु के बारे में साझा किया और बताया कि उसमें सच्चा जीवन कैसे पाया जाता है।
परमेश्वर के पुत्र यीशु को जानने और उसके साथ चलने के रोमांचक कार्य का वर्णन करने के लिए मात्र शब्द अपर्याप्त हैं। लेकिन इफिसियों 1 में, प्रेरित पौलुस हमें उसके साथ जीवन की एक छोटी लेकिन शक्तिशाली झलक देते है। परमेश्वर हमें सीधे स्वर्ग से आत्मिक आशीष देते हैं (पद 3), परमेश्वर की नजर में पवित्र और निर्दोष होना (पद 4), और राजा के शाही परिवार में उनका लेपालक पुत्र होना (पद 5)। वह हमें अपनी क्षमा और अनुग्रह के भव्य उपहार से आशीष देता है (पद 7-8), उसकी इच्छा का भेद को बताना (पद 9), और "उसकी महिमा की स्तुति के कारण" जीने का एक नया उद्देश्य (पद 12)। पवित्र आत्मा हमें सशक्त बनाने और हमारा नेतृत्व करने के लिए हमारे अंदर रहने के लिए आता है (पद 13), और वह हमेशा के लिए परमेश्वर की उपस्थिति में अनंत मीरास का बयाना है (पद 14)।
जब यीशु मसीह हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं, तो हमें पता चलता है कि उन्हें और अधिक जानना और उनका करीब से अनुसरण करना सबसे बड़ा रोमांच है। वास्तविक जीवन के लिए अभी और हर दिन उसे ढूंढे ।
इससे बेहतर और क्या हो सकता है?
एरिक ने बीस वर्ष की आयु में अपने प्रति यीशु के प्रेम के बारे में था। उसने चर्च जाना शुरू कर दिया जहां पर उसकी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जिसने उसे मसीह को बेहतर तरीके से जानने में उसकी मदद की। ज्यादा समय नहीं बीता था जब एरिक के उस विश्वसनीय सलाहकार (गुरु) ने उसे चर्च में लड़कों के एक छोटे समूह को पढ़ाने का काम सौंपा। वर्षों के दौरान, परमेश्वर ने एरिक के ह्रदय को अपने शहर के संकट में पड़े युवाओं की मदद करने, बुजुर्गों से मिलने और अपने पड़ोसियों को आतिथ्य दिखाने के लिए आकर्षित किया - यह सभी काम उसने परमेश्वर के सम्मान के लिए किया । अब पचास से अधिक की आयु में, एरिक बताते हैं कि वह कितने आभारी हैं कि उन्हें सेवा करना शुरू से ही (जल्दी) सिखाया गया: “यीशु में जो आशा मैंने पाई है उसे साझा करने के लिए मेरा हृदय उमड़ रहा है। उसकी सेवा करने से बेहतर और क्या हो सकता है?”
तीमुथियुस एक बच्चा था जब उसकी माँ और नानी ने उसके विश्वास को प्रभावित किया (2 तीमुथियुस 1:5)। और जब वह प्रेरित पौलुस से मिला, तब वह संभवतः एक युवा वयस्क था, जिसने परमेश्वर के लिए तीमुथियुस की सेवा में क्षमता देखी और उसे सेवकाई के लिए आमंत्रित किया (प्रेरितों 16:1-3)। पौलुस सेवकाई और जीवन दोनों में उसके गुरु बने। उन्होंने उसे अध्ययन करने, झूठी शिक्षा का सामना करने में साहसी होने और परमेश्वर की सेवा में अपनी प्रतिभा का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया (1 तीमुथियुस 4:6-16)।
पौलुस क्यों चाहता था कि तीमुथियुस परमेश्वर की सेवा में वफ़ादार रहे? उन्होंने लिखा,"क्योंकि हमारी आशा उस जीवते परमेश्वर पर है, जो सब मनुष्यों का उद्धारकर्ता है" (पद 10)। यीशु हमारी आशा और दुनिया का उद्धारकर्ता हैं। उसकी सेवा से बेहतर और क्या हो सकता है?
प्रशंसा का पात्र कौन है?
घुमावदार सीढ़ियों से लेकर विशाल बेडरूम तक, संगमरमर के फर्श से आलीशान गलीचे तक, कपड़े धोने के विशाल कमरे से लेकर सुव्यवस्थित कार्यालय तक, एजेंट ने युवा जोड़े को एक संभावित घर दिखाया। हर कोने में वे मुड़े, उन्होंने इसके सुंदरता का प्रशंसा किया: “आपने हमारे लिए सबसे अच्छा जगह चुना है। तब एजेंट ने कुछ ऐसा जवाब दिया जो उन्हें थोड़ा असामान्य लगा, लेकिन सच था: "मैं आपके तारीफ को बिल्डर तक पहुंचाऊंगा। जिसने घर बनाया वह प्रशंसा का पात्र है; न घर और न उसको दिखाने वाला।”
एजेंट के शब्दों में इब्रानियों का लेखक प्रतिध्वनित होता है: “...घर का बनाने वाला घर से बढ़कर आदर रखता है।” (3:3)। लेखक, परमेश्वर के पुत्र, यीशु की विश्वासयोग्यता की तुलना भविष्यद्वक्ता मूसा से कर रहा था (पद.1-6)। यद्यपि मूसा को परमेश्वर से आमने-सामने बात करने और उसके स्वरूप को देखने का सौभाग्य प्राप्त था (गिनती 12:8), वह अभी भी परमेश्वर के घर में केवल "सेवक" था (इब्रानियों 3:5)। सृष्टिकर्ता के रूप में मसीह (1:2, 10) दिव्य के रूप में "सब कुछ " बनाने वाला सम्मान के पात्र हैं और पुत्र के रूप में "परमेश्वर के घर के ऊपर" (3:4, 6)। परमेश्वर का घर उसके लोग हैं।
जब हम विश्वासयोग्यता से परमेश्वर की सेवा करते है, यीशु जो दिव्य निर्माता है वही आदर के योग्य है। कोई भी स्तुति जो हम, परमेश्वर के घर को प्राप्त होती है, अंततः उसी की है।
आंतरिक चंगाई की खोज
अमेरिकी राज्य मिशिगन का एक हमेशा व्यस्त व्यक्ति, कार्सन शिकार करता था, मछली पकड़ता था, गंदी बाइक चलाता था और स्केटबोर्ड करता था। उन्हें बाहर की हर चीज से प्यार था। लेकिन उसकी एक मोटरसाइकिल दुर्घटना हुई और सीने से नीचे लकवाग्रस्त हो गया। जल्द ही निराशा में डूब गया, और उसने भविष्य के बारे में ज्यादा कुछ नहीं देखा। फिर एक दिन उसके कुछ साथियों ने उसे फिर से शिकार पर जाने को कह दिया। कुछ समय के लिए वह अपनी चोट के बारे में भूल गया क्योंकि उसने अपने चारों ओर की सुंदरता का आनंद लिया। इस अनुभव ने उन्हें आंतरिक चंगाई किया और उनके जीवन के लिए एक नया उद्देश्य प्रेरित किया - एक गैर-लाभकारी संगठन हंट 2 हील के माध्यम से उनके जैसे अन्य लोगों के लिए समान अनुभव प्रदान करने के लिए। वह कहते हैं कि उनकी दुर्घटना "भेष में एक आशीर्वाद" थी। . . . अब मैं वापस देने में सक्षम हूं, जो मैं हमेशा से करना चाहता हूं। मैं खुश हूं।" वह चलने-फिरने में अक्षम लोगों और उनकी देखभाल करने वालों को चंगाई खोजने के लिए जगह उपलब्ध कराने को लेकर उत्साहित हैं।
भविष्यद्वक्ता यशायाह ने उसके आने की भविष्यवाणी की थी जो टूटे हुएपन को चंगा करेगा (यशायाह 61)। वह "टूटे मन पर मरहम पट्टी बाँधेगा" और "सब विलाप करने वालों को शान्ति देगा" (पद. 1-2)। यीशु ने अपने गृहनगर आराधनालय में इस शास्त्र को पढ़ने के बाद कहा, "आज यह शास्त्र तुम्हारे सामने पूरा हुआ" (लूका 4:21)। यीशु हमें बचाने और हमें चंगा करने के लिए आया था।
क्या आपको आंतरिक चंगाई की आवश्यकता है? यीशु की ओर मुड़ें और वह आपको "निराशा की आत्मा के स्थान पर स्तुति का वस्त्र पहिनाएगा" (यशायाह 61:3).
सेवा करने की चुनौती
हालाँकि वह केवल तेरह साल का था, लेकिन डेविऑन ने दूसरों की सेवा करने की चुनौती स्वीकार की। उसने और उसकी माँ ने एक ऐसे व्यक्ति के बारे में एक कहानी सुनी थी जिसने बच्चों को गर्मी की छुट्टी के दौरान पचास लॉन मुफ्त में काटने के लिए कहा था। उनका केंद्र बुजुर्गों, एकल माताओं, विकलांग लोगों या ऐसे किसी भी व्यक्ति की सहायता करना था, जिन्हें तुरंत मदद की आवश्यकता हो । संस्थापक (जिन्होंने पचास राज्यों में पचास लॉन काटे थे) ने कार्य नैतिकता के महत्व को सिखाने और समुदाय को कुछ लौटाने की चुनौती रची थी। गर्मी और अन्य गतिविधियों की उपलब्धता के बावजूद एक बालक गर्मियों में कुछ पाने की कोशिश कर सकता है, डेविऑन ने दूसरों की सेवा करना चुना और चुनौती पूरी की।
सेवा करने की चुनौती यीशु में विश्वासियों के लिए भी है। सभी लोगों के लिए मरने से पहले की शाम को, यीशु ने अपने मित्रों के साथ रात का भोजन खाया (यूहन्ना 13:1-2)। वह खुद पर आने वाली पीड़ा और मृत्यु के बारे में अच्छे से जानता था, फिर भी वह भोजन से उठा, उसने एक अंगोछा लपेटा, और अपने चेलों के पैर धोने लगा (पद. 3-5)। "अब जब कि मैं, तुम्हारे प्रभु और शिक्षक, ने तुम्हारे पांव धोए हैं, तो तुम भी एक दूसरे के पांव धोओ," उसने कहा (पद 14)।
यीशु, एक विनम्र सेवक और हमारा उदाहरण, लोगों की परवाह करता था: उसने अंधों और बीमारों को चंगा किया, अपने राज्य का सुसमाचार सुनाया, और अपने मित्रों के लिए अपना जीवन दे दी। क्योंकि मसीह आपसे प्रेम करता है, उससे पूछें कि वह इस सप्ताह किसकी सेवा चाहता है कि आप करे।
बिलकुल अकेला?
श्वेता का परिवार उसकी आँखों के सामने बिखर रहा था l उसका पति अचानक घर छोड़कर चला गया था, और वह और उसके बच्चे दुविधाग्रस्त’ और क्रोधित थे l उसने उसे अपने साथ उनकी शादी पर परामर्श/सलाह लेने के लिए चलने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं गया क्योंकि उसने दावा किया कि समस्याएँ उसकी (श्वेता की) थीं l घबराहट और निराशा तब शुरु हुयी जब उसने महसूस किया कि शायद वह कभी नहीं लौटेगा l क्या वह अकेले अपना और अपने बच्चों का ख्याल रख पाएगी?
अब्राहम और सारा की एक दासी हाजिरा ने भी उन विचारों का सामना कियाl परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार कि वह उन्हें एक पुत्र देगा उसकी प्रतीक्षा में अधीर होकर(उत्पत्ति 12,15)सारा ने अपने पति को अपनी दासी हाजिरा दे दी,और हाजिरा ने इश्माएल को जन्म दियाI (16:1-4, 15) हालाँकि,जब परमेश्वर ने अपना वादा पूरा किया और सारा ने इसहाक को जन्म दिया, तो पारिवारिक तनाव इस कदर बढ़ गया कि अब्राहम ने हाजिरा को अपने बेटे इश्माएल के साथ बस थोड़े पानी और भोजन के साथ खुद से दूर कर दियाI (21:8-21) क्या आप उसकी हताशा की कल्पना कर सकते हैं? जल्द ही रेगिस्तान में उनकी खाद्य सामग्री ख़त्म हो गयी l नहीं जानते हुए कि क्या करना है और ना ही अपने बेटे को मरते हुए नहीं देख सकते हुए, हाजिरा इश्माएल को एक झाड़ी के नीचे रखकर दूर चली गयी l वे दोनों सिसकने लगे l परन्तु “परमेश्वर ने उस लड़के की सुनीI” (पद.17) उसने उनकी पुकार सुनी, उनकी ज़रूरतें पूरी की,और उनके साथ रहाl
जब हम खुद को अकेला महसूस करते हैं तब हताशा का समय हमरे लिए ईश्वर को पुकारने का कारण बनता है l यह जानकर कितना सुकून मिलता है कि उन क्षणों के दौरान और हमारे पूरे जीवन में, वह हमें सुनता है, हमारे लिए प्रबंध करता है, और हमारे निकट रहता है l
हम परदेशी हैं
उनके नए देश में सब कुछ अत्यधिक अलग महसूस हुआ — नई भाषा, स्कूल, रीति-रिवाज, यातायात और मौसम। वे सोचते थे कि वे कैसे कभी भी इस नए वातावरण में समायोजित हों पाएंगे। एक नए देश में उनके नए जीवन में उनकी मदद करने के लिए पास के एक चर्च के लोग उनके पास इकट्ठे हुए। पल्लवी उस जोड़े को एक स्थानीय खाद्य बाजार में खरीदारी करने के लिए ले गयी ताकि उन्हें दिखा सके कि वहाँ क्या-क्या उपलब्ध है और कैसे चीजें खरीदनी हैं। जब वे बाजार में घूम रहे थे, तब अपनी मातृभूमि के अपने पसंदीदा फल-अनार को देखकर उनकी आँखे बड़ी हो गयी और होठों पर बड़ी सी मुस्कान फैल गयी। उन्होंने अपने प्रत्येक बच्चे के लिए एक-एक अनार खरीदा और कृतज्ञता में एक पल्लवी के हाथों में भी दिया। एक छोटा सा फल और नए मित्र उनके लिए अजनबी, नए देश में बड़ा आश्वासन लेकर आया।
परमेश्वर ने, मूसा के माध्यम से, अपने लोगों के लिए नियमों की एक सूची दी, जिसमें उनके बीच रह रहे परदेशियों को "अपने मूल निवासी" के रूप में मानने की आज्ञा शामिल थीI (लैव्यव्यवस्था 19:34) "उससे अपने समान ही प्रेम रखना" परमेश्वर ने आगे उन्हें आज्ञा दी। यीशु ने इसे परमेश्वर से प्रेम करने के बाद दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा कहाI (मत्ती 22:39) क्योंकि परमेश्वर(यहोवा) भी "परदेशियों की रक्षा करता हैI" (भजन संहिता 146:9)
परमेश्वर की आज्ञा मानने के अलावा जब हम नए मित्रों को हमारे देश में जीवन के अनुकूल होने में मदद करते हैं, तो हमें स्मरण होता है कि हम भी एक वास्तविक अर्थ में "पृथ्वी पर परदेशी" हैं (इब्रानियों 11:13) और हम आने वाली नयी स्वर्गीय भूमि की प्रत्याशा में बढ़ते है।
नीचे झुकना
एक युवा माँ अपनी बेटी का पीछा करती है, जो अपनी छोटी साइकिल को अपने छोटे पैरों से जितना तेज़ उससे हो सके चलाती है। लेकिन जितनी गति वह चाहती थी उससे अधिक चला रही थी, वह छोट्टी बच्ची अचानक साइकिल से लुढ़क गई और रोने लगी कि उसके टखने में चोट लग गई। उसकी माँ शांति से अपने घुटनों पर बैठी, नीचे झुकी, और “दर्द को दूर करने” के लिए उसे चूमा। छोटी लड़की कूदी, अपनी साइकिल पर फिर चढ़ी, और उसे चलाया। क्या आप नहीं चाहते कि हमारे सारे दर्द इतनी आसानी से दूर हो जाएं!
प्रेरित पौलुस ने अपने लगातार संघर्ष में परमेश्वर की सांत्वना को अनुभव किया और चलता भी रहा। उसने उन परीक्षणों में से कुछ को 2 कुरिन्थियों 11:23-29 में सूचीबद्ध किया: “कोड़े, बेंतें, पथराव, बार बार जागते रहने में; भूख–प्यास में; सब कलीसियाओं की चिन्ता”। उसने गहराई से सीखा कि परमेश्वर “जो दया का पिता और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर है। ” (1:3) या जैसा कोई अन्य संस्करण इसका अनुवाद करता है : “वह कोमल प्रेम देने वाला पिता है”(NIRV)। ठीक वैसे ही जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सांत्वना देती है, परमेश्वर हमारे दर्द में कोमलता से हमारी देखभाल करने के लिए नीचे झुकते हैं।
हमें सांत्वना देने का परमेश्वर का प्रेममय तरीका अनेक और विविध हैं। वह हमें पवित्रशास्त्र का एक पद दे सकते हैं जो हमें आगे बढ़ने को प्रोत्साहित कर सकता, या हो सकता है कोई एक विशेष नोट भेजे या एक मित्र को बात करने को प्रेरित करें जो हमारे आत्मा को छू सकता है। जबकि संघर्ष दूर नहीं जा सकता, हम उठ सकते और आगे पेडल कर सकते है, क्योंकि परमेश्वर हमें मदद करने के लिए नीचे झुकते हैं।