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Articles by आर्थर जैक्सन

परमेश्वर के साथ आमने-सामने बातचीत

साल 2022 मेरी पत्नी और मेरे लिए बहुत विशेष था l यही वह वर्ष है जब हमारी पोती, सोफिया एशले(Sophia Ashley) का जन्म हुआ—हमारे आठ पोते-पोतियों में एक एकलौती पोती l सोफिया के दादा-दादी ने मुस्कुराना बन्द नहीं किया है! जब हमारा बेटा वीडियो कॉल करता है, तो उत्साह और भी बढ़ जाता है l मैं और मेरी पत्नी भले ही अलग-अलग कमरों में हों, लेकिन उसकी ख़ुशी भरी चीख से पता चलता है कि उसे सोफिया की झलक मिल रही है l जिन्हें हम प्यार करते हैं उन्हें दूर से देखना अब केवल एक कॉल या क्लिक की दूरी पर है l 

जिस व्यक्ति से हम फोन पर बात कर रहे हैं उसे देखने की क्षमता अपेक्षाकृत नयी है, लेकिन परमेश्वर के साथ समय का सामना करना—उसकी उपस्थिति में होने की सचेत जागरूकता के साथ प्रार्थना करना—नहीं है l भजन संहिता 27 में दाऊद की प्रार्थना—विरोध के बीच में आवाज़ उठाई गयी जिसके लिए निकटतम मानव सहयोगियों की क्षमता से परे सहायता की आवश्यकता थी(पद.10-12)—में निम्न शब्द शामिल हैं : तू ने कहा है, “मेरे दर्शन के खोजी हो l” इसलिए मेरा मन तुझ से कहता है, “हे यहोवा, तेरे दर्शन का मैं खोजी रहूँगा”(पद.8) l 

कठिन समय हमें “उसके दर्शन के खोजी” बनने के लिए विवश करता है(पद.8) l लेकिन यह एकमात्र समय नहीं है जब हम उस व्यक्ति के साथ आमने-सामने संगति कर सकते हैं या होना चाहिए जिसके “निकट आनंद की भरपूरी है, [उसके] दाहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है”(16:11) l यदि आप ध्यान से सुनें, तो किसी भी समय आप उसे यह कहते हुए सुन सकते हैं, “आओ और मेरे साथ बातें करो l”

आशीषित पश्चाताप

जब मेरी दोस्त(और उसके पति) को संतान नहीं हो रहा था, तो डॉक्टरों ने उसे चिकित्सीय प्रक्रिया की सलाह दी l लेकिन मेरी दोस्त हिचकिचा रही थी l “क्या प्रार्थना हमारी समस्या को ठीक करने के लिए पर्याप्त नहीं होनी चाहिए?” उसने कहा l “क्या मुझे वास्तव में यह प्रक्रिया करने की ज़रूरत है?” मेरी दोस्त यह जानने का प्रयास कर रही थी कि परमेश्वर को कार्य करते देखने में मानवीय क्रिया की क्या भूमिका है l 

यीशु द्वारा भीड़ को खाना खिलाने की कहानी यहाँ हमारी सहायता कर सकती है(मरकुस 6:35-44) l हम जान सकते हैं कि कहानी कैसे समाप्त होती है——हजारों लोगों को आश्चर्यजनक ढंग से बस थोड़ी सी रोटी और कुछ मछली से खाना खिलाया जाता है(पद.42) l लेकिन ध्यान दें कि भीड़ को खाना खिलाने वाला कौन हैं? शिष्य(पद.37) l और भोजन कौन उपलब्ध कराता है? वे ऐसा करते हैं(पद.38) l भोजन कौन वितरित करता है और बाद में सफाई कौन करता है? शिष्य(पद.39-43) l यीशु ने कहा, “तुम ही उन्हें खाने को दो”(पद.37) l यीशु ने चमत्कार किया, लेकिन यह शिष्यों के आचरण के अनुसार हुआ l 

एक अच्छी फसल परमेश्वर की ओर से उपहार है(भजन सहिंता 65:9-10), लेकिन फिर भी एक किसान को भूमि पर काम करना पड़ता है l यीशु ने पतरस से प्रतिज्ञा की कि तुम “मछली” पकड़ोगे लेकिन मछुए को फिर भी अपना जाल डालना पड़ा(लूका 5:4-6) l परमेश्वर पृथ्वी की देखभाल कर सकता है  और हमारे बिना आश्चर्य कर सकता है लेकिन आम तौर पर ईश्वर और मानव की भागीदारी में काम करता है l   

मेरी दोस्त इस प्रक्रिया से गुज़री और बाद में सफलतापूर्वक गर्भवती हो गयी l हालाँकि यह किसी आश्चर्यकर्म का फार्मूला नहीं है, यह मेरी दोस्त और मेरे लिए एक सबक था l परमेश्वर अक्सर अपना आश्चर्यकर्म उन तरीकों के द्वारा करता है जो उसने हमारे हाथों में सौंपे हैं l

आत्मिक तंदुरूस्ती

ट्रे(Tre) फ़िटनेस सेंटर में नियमित है और यह प्रगट है l उसके कंधे चौड़े हैं, उसकी मांसपेशियाँ उभरी भुजाएँ मेरी जांघों के आकार के करीब हैं l उसकी शारीरिक स्थिति ने मुझे उसे आत्मिक बातचीत में शामिल करने के लिए प्रेरित किया l मैंने उससे पुछा कि क्या शारीरिक फिटनेस के प्रति उसकी प्रतिबद्धता किसी तरह से परमेश्वर के साथ स्वस्थ सम्बन्ध को दर्शाती है l हालाँकि हम बहुत गहराई तक नहीं गए, ट्रे(Tre) ने “अपने जीवन में परमेश्वर को स्वीकार किया(माना) l हमने काफी देर तक बात की और उसने मुझे अपनी चार सौ पौंड वजनी, अनुपयुक्त, अस्वस्थ संस्करण की तस्वीर दिखायी l उनकी जीवनशैली में बदलाव ने शारीरिक रूप से अद्भुत काम किया l 

1 तीमुथियुस 4:6-10 में, शारीरिक और आध्यात्मिक प्रशिक्षण केंद्र-बिंदु(focus) में आता है l “भक्ति की साधना कर l क्योंकि देह की साधना से कम लाभ होता है, पर भक्ति सब बातों के लिए लाभदायक है, क्योंकि इस समय के और आनेवाले जीवन की भी प्रतिज्ञा इसी के लिए है”(पद.7-8) l किसी की बाहरी फिटनेस परमेश्वर के साथ हमारी स्थिति को नहीं बदलती है l हमारी आध्यात्मिक फिटनेस हृदय का मामला है l इसका आरम्भ यीशु पर विश्वास करने के निर्णय से होती है, जिसके द्वारा हमें क्षमा मिलती है l उस बिंदु से, ईश्वरीय जीवन के लिए प्रशिक्षण आरम्भ होता है l इसमें “विश्वास और उस अच्छे उपदेश की बातों से . . . पालन पोषण”(पद.6) शामिल है(पद.6) और, परमेश्वर की सामर्थ्य से, ऐसा जीवन जीना जो हमारे स्वर्गिक पिता का सम्मान करता हो l 

हानि के मार्ग में

सुबह की सैर के दौरान मैंने देखा कि एक वाहन गलत दिशा में सड़क पर खड़ा था l ड्राइवर को खुद और दूसरों के लिए खतरे का अंदाज़ा नहीं था क्योंकि वह सो रही थी और शराब के नशे में लग रह थी l स्थिति खतरनाक थी और मुझे कार्य करना पड़ा l उसे काफी सचेत करके मैंने उसे कार के यात्री हिस्से में बैठाया और ड्राईवर की सीट पर बैठ कर, उसे एक सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया l 

शारीरिक खतरा ही एकमात्र हानि नहीं है जिसका हम सामना करते हैं l जब पौलुस ने एथेंस में सांसारिक रूप से बुद्धिमान, चतुर लोगों को आत्मिक संकट में देखा, क्योंकि . . . नगर मूरतों से भरा हुआ [था]” तो “उसका जी जल गया”(प्रेरितों 17:16) l उन लोगों के प्रति प्रेरित की सहज प्रतिक्रिया जो मसीह पर विचार करने में विफल रहने वाले विचारों से खिलवाड़ करते थे, यीशु में और उसके द्वारा परमेश्वर के उद्देश्यों के बार में साझा करना था (पद.18,30-31) l और सुनने वालों में से कुछ ने विश्वास किया(पद.34) l 

मसीह में विश्वास के आलावा परम अर्थ की तलाश करना खतरनाक है l जिन लोगों ने यीशु में क्षमा और सच्ची पूर्णता पायी है उन्हें गतिरोध वाली गतिविधियों से बचाया गया है और उन्हें मेल-मिलाप का सन्देश दिया गया है (देखें 2 कुरिन्थियों 5:18-21) l इस जीवन के नशे के प्रभाव में रहने वाले लोगों के साथ यीशु के सुसमाचार को साझा करना अभी भी वह साधन है जिसका उपयोग परमेश्वर लोगों को हानि के रास्ते से बचाने के लिए करता है l 

 

स्वस्थ हृदय

मानव हृदय एक अद्भुत अंग है। मुट्ठी के आकार के इस पंपिंग स्टेशन का वजन 7 से 15 औंस के बीच है। प्रतिदिन यह लगभग 100,000 बार धड़कता है और हमारे शरीर में 60,000 मील लंबी रक्त वाहिकाओं के माध्यम से 2,000 गैलन रक्त पंप करता है! ऐसे रणनीतिक कार्य  और भारी काम के बोझ  के साथ,  यह समझ में आता है कि हृदय का स्वास्थ्य पूरे शरीर की भलाई के लिए क्यों महत्वपूर्ण है। चिकित्सा विज्ञान हमें स्वस्थ आदतें अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है क्योंकि हमारे हृदय की स्थिति और हमारे स्वास्थ्य की गुणवत्ता एक साथ चलती है।

जहाँ चिकित्सा विज्ञान हमारे शारीरिक हृदयों के बारे में आधिकारिक रूप से बात करता है, परमेश्वर एक अलग प्रकार के "हृदय" के बारे में  कई अधिक अधिकार के साथ बात करते है । वह हमारे अस्तित्व के मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और धार्मिक "केंद्र" को संबोधित करते हैं। क्योंकि हृदय जीवन की केंद्रीय संसाधन इकाई है, इसे सुरक्षित रखना अनिवार्य है: "सब से अधिक अपने हृदय की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है" (नीतिवचन 4:23)। अपने हृदयों की रक्षा करने से हमें अपनी बोली में सहायता मिलेगी (पद 24), हमारी आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहेंगे (पद 25), और हमारे पांव बुराई के मार्ग से बचेंगे (पद 27)। उम्र या जीवन की अवस्था की परवाह किए बिना, जब हमारे हृदयों की चौकसी की जाती है, तो हमारे जीवन की रक्षा होती है, हमारे रिश्तों की रक्षा होती है, और परमेश्वर को आदर मिलता है।  

परमेश्वर के वचन के प्रेमी

खूबसूरत दुल्हन, अपने स्वाभिमानी पिता की बाँह पकड़कर, वेदी की ओर जाने के लिए तैयार थी l लेकिन उसके तेरह महीने के भतीजे के प्रवेश से पहले नहीं l अधिक सामान्य “अंगूठी” ले जाने के बजाय—वह “बाइबल वाहक” था l इस तरह, दूल्हा और दुल्हन, यीशु में वचनबद्ध विश्वासियों के रूप में, पवित्रशास्त्र के प्रति अपने प्रेम की गवाही देना चाहते थे l न्यूनतम मनबहलाव के साथ, बच्चे ने चर्च के सामने अपना रास्ता खोज लिया l यह कितना दृष्टान्त रूप था कि बाइबल के चमड़े के कवर पर बच्चे के दाँतों के निशान पाए गए l गतिविधि की यह कैसी तस्वीर है जो मसीह में विश्वास करने वालों या उसे जानने की इच्छा रखने वालों के लिए उप्युक्त है—पवित्रशास्त्र का स्वाद चखने और ग्रहण करने के लिए l 

भजन 119 पवित्रशास्त्र के व्यापक महत्व का जश्न मनाता है l ईश्वर के नियम(पद.1) के अनुसार जीने वालों के परम सुख की घोषणा करने के बाद लेखक ने काव्यात्मक ढंग से इसके प्रति अपने प्रेम सहित, इसके बारे में प्रशंसा की l “देख, मैं तेरे नियमों से कैसी प्रीति रखता हूँ”(पद.159); “झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूँ, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूँ”(पद.163); “मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूँ, और उनसे बहुत प्रीति रखता आया हूँ” (पद.167) l 

हम अपने जीवन के द्वारा ईश्वर और उसके वचन के प्रति अपने प्रेम के बारे में क्या बयान देते हैं? उसके प्रति हमारे प्रेम को परखने का एक तरिका यह पूछना है, मैं किस में भाग ले रहा हूँ? क्या मैं पवित्रशास्त्र के मीठे शब्दों को “चबा रहा” हूँ? और फिर इस निमंत्रण को स्वीकार करें, “परखकर(चखकर) देखो कि यहोवा कैसा भला है” (34:8) l 

टूटापन जो आशीषित करता है

उसकी पीठ झुकी हुई है, और वह छड़ी के सहारे चलता है, लेकिन उसकी कई वर्षों की  गई आत्मिक अगुवाई इस बात का सबूत है कि वह परमेश्वर पर निर्भर है - जो उसकी ताकत का स्रोत है। 1993 में, रेवरेंड विलियम बार्बर को शरीर  को निर्बल करने वाली एक बीमारी का पता चला था, जिसके कारण रीढ़ की हड्डी के कशेरुक (रीढ़ की हड्डी के जोड़) एक साथ जुड़ जाते हैं। बहुत सूक्ष्म तरीके से, उनसे कहा गया, " बार्बर, आपको शायद पादरी के अलावा एक और काम करने की ज़रूरत होगी, क्योंकि चर्च नहीं चाहेगा कि [कोई विकलांग] उनका पादरी बने।" लेकिन बार्बर ने उस आहत करने वाली टिप्पणी पर काबू पा लिया। परमेश्वर ने न केवल उन्हें एक पादरी के रूप में उपयोग किया है, बल्कि वे वंचित और अधिकारहीन लोगों के लिए एक शक्तिशाली, सम्मानित आवाज़ भी रहे हैं।  

हालाँकि दुनिया पूरी तरह से नहीं जानती कि विकलांग लोगों के साथ क्या करना है, परमेश्वर को पता है। जो लोग सुंदरता और साहस और उन चीजों को महत्व देते हैं जो पैसे से खरीदी जा सकती हैं, वे उस अच्छाई को भूल सकते हैं जो अचानक अपने आप आये टूटने के साथ आती है। याकूब का अलंकारिक प्रश्न और उसके नीचे का सिद्धांत विचार करने योग्य है: " क्या परमेश्वर ने इस जगत के कंगालों को नहीं चुना कि विश्वास में धर्मी, और उस राज्य के अधिकारी हों, जिस की प्रतिज्ञा उस ने उन से की है जो उस से प्रेम रखते हैं?"  ( याकूब 2:5) जब स्वास्थ्य या ताकत या अन्य चीजें कम हो जाती हैं, तो किसी के विश्वास को वैसा ही  करने की आवश्यकता नहीं होती है। परमेश्वर की शक्ति से, यह विपरीत हो सकता है। हमारी कमी उस पर भरोसा करने के लिए उत्प्रेरक बन सकती है। हमारा टूटापन, जैसा कि यीशु के साथ हुआ था, उसका उपयोग हमारी दुनिया में अच्छाई लाने के लिए किया जा सकता है। 

 

मसीह में हमारे हथियार

पादरी बेली के नए दोस्त ने उसके साथ उसके दुर्व्यवहार और लत की कहानी साझा की। हालाँकि वह युवक यीशु में विश्वास रखता था, लेकिन कम उम्र में यौन शोषण और अश्लील साहित्य के संपर्क में आने के कारण, वह एक ऐसी समस्या से ग्रस्त था जो उससे भी बड़ी थी। और अपनी हताशा में, वह मदद के लिए पहुंचा।

मसीह में विश्वासियों के रूप में, हम बुराई की अनदेखी ताकतों के साथ युद्ध लड़ते हैं (2 कुरिन्थियों 10:3-6)। लेकिन हमें अपनी आत्मिक लड़ाई लड़ने के लिए हथियार दिए गए हैं। हालाँकि, वे दुनिया के हथियार नहीं हैं। इसके विपरीत, हमें "गढ़ों को ध्वस्त करने की आत्मिक शक्ति" दी गई है (पद 4)। इसका क्या मतलब है? "गढ़" अच्छी तरह से निर्मित, सुरक्षित स्थान हैं। हमारे परमेश्वरीय प्रदत्त हथियारों में "हमले के लिए दाहिने हाथ में और बचाव के लिए बाएं हाथ में धार्मिकता के हथियार" (6:7) शामिल हैं। इफिसियों 6:13-18 उन चीजों की सूची का विस्तार करता है जो हमारी रक्षा करने में मदद करती हैं, जिसमें पवित्र शास्त्र, विश्वास, उद्धार, प्रार्थना और अन्य विश्वासियों का समर्थन शामिल है। जब हमसे बड़ी और ताकतवर ताकतों का सामना होता है, तो इन हथियारों का इस्तेमाल खड़े होने और लड़खड़ाने के बीच अंतर पैदा कर सकता है। 

परमेश्वर उन लोगों की मदद करने के लिए सलाहकारों और अन्य पेशेवरों का भी उपयोग करता है जो अकेले निपटने के लिए बहुत बड़ी ताकतों से संघर्ष करते हैं। अच्छी खबर यह है कि यीशु में और उसके माध्यम से, जब हम संघर्ष करते हैं तो हमें आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है। हमारे पास परमेश्वर के हथियार  हैं।  

 

दुविधा और गहरा विश्वास

शनिवार की सुबह बाइबल अध्ययन के दौरान, एक पिता हैरान था क्योंकि उसकी प्यारी, मनमौजी बेटी शहर लौट आई थी, लेकिन अपने घर में उसके व्यवहार के कारण वह उससे असहज था l एक अन्य सहभागी अस्वस्थ थी क्योंकि लम्बे समय की बिमारी और उम्र बढ़ने के शारीरिक प्रभावों ने उस पर असर डाला था l कई डॉक्टरों के पास बार-बार जाने से कम से कम प्रगति हुयी l वह हतोत्साहित थी l ईश्वरीय योजना के अनुसार, मरकुस अध्याय 5 बाइबल का वह अंश था जिसका उसने उस दिन अध्ययन किया था l और जब अध्ययन समाप्त हुआ, तो आशा और ख़ुशी स्पष्ट थी l 

मरकुस 5:23 में, याईर, एक बीमार का पिता, चिल्लाकर बोला, “मेरी छोटी बेटी मरने पर है l” लड़की से मिलने के लिए जाते समय, यीशु ने एक अनाम स्त्री को उसकी दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्या से ठीक करते हुए कहा, “पुत्री, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है” (पद.34) l यीशु में विश्वास से मजबूर होकर याईर और स्त्री ने उसे खोजा और वे निराश नहीं हुए l लेकिन दोनों ही मामलों में, यीशु से मिलने से पहले, चीज़ें बहतर होने से पहले “बुरी से बद्तर” की ओर बढ़ चुकी थीं l 

जीवन की दुविधाएं भेदभाव नहीं करती l लिंग या उम्र, नस्ल या वर्ग की परवाह किए बिना, हम सभी ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं जो हमें भ्रमित कर देती हैं और हमें उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करती हैं l चुनौतियों को हमें यीशु से दूर रखने की अनुमति देने के बजाय, आइये हम उन्हें उस व्यक्ति में गहरे विश्वास के लिए प्रेरित करने का प्रयास करें जो इसे महसूस करता है जब हम उसे छूते हैं(पद.30) और जो हमें ठीक कर सकता है l