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Articles by बिल क्राऊडर

यीशु में घर पर

डोरोथी अपनी रूबी (मणिक) चप्पलों की एड़ी को खटखटाते हुए कहती है, "घर जैसी कोई जगह नहीं है।" द विजार्ड ऑफ ओज़ में, डोरोथी और टोटो को जादुई तरीके से ओज़ से वापस कंसास में उनके घर तक पहुंचने में बस इतना ही करना पड़ा।

दुर्भाग्य से, सभी के लिए पर्याप्त रूबी (माणिक) चप्पलें नहीं हैं। हालाँकि कई लोग घर के लिए डोरोथी की लालसा को साझा करते हैं, लेकिन उस घर को ढूंढना - एक ऐसी जगह - जो कभी-कभी कहने में आसान होता है।

अत्यधिक गतिशील, क्षणिक दुनिया में रहने के परिणामों में से एक वैराग्य की भावना है - आश्चर्य होता है कि क्या हमें कभी कोई ऐसी जगह मिलेगी जो वास्तव में हैं। यह भावना एक गहरी वास्तविकता को भी प्रतिबिंबित कर सकती है, जिसे सी.एस. लुईस ने व्यक्त किया है: "अगर मैं अपने आप में एक ऐसी इच्छा पाता हूं जिसे इस दुनिया का कोई भी अनुभव संतुष्ट नहीं कर सकता है, तो सबसे संभावित स्पष्टीकरण यह है कि मैं किसी अन्य दुनिया के लिए बना हूं।"

क्रूस से पहले की रात, यीशु ने अपने दोस्तों को उस घर के बारे में आश्वस्त करते हुए कहा, “मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं; यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता कि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ।“ (यूहन्ना 14:2) एक ऐसा घर जहां हमारा स्वागत और हमसे प्यार किया जाता है। 

फिर भी हम अभी भी घर पर रह सकते हैं। हम एक परिवार-परमेश्वर के चर्च का हिस्सा हैं, और हम मसीह में अपने भाइयों और बहनों के साथ समुदाय में रहते हैं। जब तक यीशु हमें उस घर में नहीं ले जाते जिसकी हम दिल से इच्छा करते हैं, हम उनकी शांति और आनंद में रह सकते हैं। हम हमेशा उसके साथ घर पर हैं।

 

अपना विश्वास साझा करें

1701 में, इंग्लैंड के चर्च ने दुनिया भर में मिशनरियों को भेजने के लिए “सोसाइटी फॉर द प्रोपेगेशन ऑफ द गॉस्पेल” की स्थापना की। उन्होंने जो आदर्श वाक्य चुना वह था “ट्रांज़िएन्स एडिउवा नोज़(transiens adiuva nos)—लैटिन में जिसका अर्थ है "आ,और हमारी सहायता कर।" यह पहली शताब्दी से सुसमाचार के राजदूतों का आह्वान रहा है, क्योंकि यीशु के अनुयायी उनके प्रेम और क्षमा का संदेश उस दुनिया तक ले जाते हैं, जिसे इसकी सख्त जरूरत है।

वाक्यांश "आ,और हमारी सहायता कर।" प्रेरितों के काम 16 में वर्णित "मकिदुनियाई पुकार” से आया है। पौलुस और उनकी मंडली एशिया माइनर (वर्तमान काल का आधुनिक तुर्की, पद- 8) के पश्चिमी तट पर त्रोआस पहुंची थी। वहाँ, "पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरुष खड़ा खड़ा हुआ उससे विनती करके कह रहा है, “पार उतरकर मकिदुनिया में आ,और हमारी सहायता कर” (पद- 9)। दर्शन प्राप्त करने के बाद, पौलुस और उसके साथियों ने "तुरंत मकिदुनिया जाना चाहा " (पद- 10)। उन्होंने बुलाहट के बेहद ज़रूरी महत्त्व को समझा।

हर किसी को समुद्र पार करने के लिए नहीं बुलाया जाता है, लेकिन हम अपनी प्रार्थनाओं और धन से उन लोगों का समर्थन कर सकते हैं जो ऐसा करते हैं। और हम सभी किसी को, चाहे कमरे के पार, सड़क पर, या समुदाय में, यीशु के सुसमाचार के बारे में बता सकते हैं। आइए प्रार्थना करें कि हमारा भला परमेश्वर हमें पार जाने में और लोगों को सबसे बड़ी मदद करने में सक्षम बनाएगा, वह है - यीशु के नाम में क्षमा प्राप्ति का अवसर।

परमेश्वर के बुद्धिमान उद्देश्य

भारत इतिहास से भरा पड़ा है l आप जहाँ भी जाते हैं, आप ऐतिहासिक शख्सियतों का सम्मान करने वाले स्मारक या उन स्मारक स्थलों को देखते हैं जहाँ महत्वपूर्ण घटनाएं घटी थीं l लेकिन इंग्लैंड के एक होटल में एक मजेदार सन्देश प्रदर्शित किया गया है l होटल के बाहर एक पुरानी पट्टिका पर एक सन्देश लिखा है, “इस स्थान पर, 5 सितम्बर, 1782 को, कुछ भी नहीं हुआ l” 

कई बार हमें ऐसा लगता है कि हमारी प्रार्थनाओं को लेकर कुछ हो ही नहीं रहा है l हम प्रार्थना करते हैं और प्रार्थना करते हैं, अपनी याचिकाएं अपने पिता के पास इस उम्मीद से लाते हैं कि वह अभी जबाब देंगे l भजनकार दाऊद ने ऐसी निराशा व्यक्त की जब उसने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, कब तक! क्या तू सदैव मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना मुखड़ा मुझसे छिपाए रहेगा? (भजन 13:1) l हम उन विचारों को सरलता से दोहरा सकते हैं : हे प्रभु, आपके उत्तर देने में कितना समय लगेगा?

हालाँकि, हमारा परमेश्वर न केवल अपनी बुद्धि में बल्कि समय में भी परिपूर्ण है l दाऊद यह कहने में समर्थ हुआ, “मैंने तो तेरी करुणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा” (पद.5) l सभोपदेशक 3:11 हमें याद दिलाता है, “[परमेश्वर ने] सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते हैं” सुन्दर शब्द का अर्थ है “उपयुक्त” या “प्रसन्नता का श्रोत l” परमेश्वर हमेशा हमारी प्रार्थनाओं का प्रत्युत्तर हमारी इच्छा अनुकूल नहीं देता, लेकिन वह हमेशा अपने बुद्धिमान उद्देश्यों को पूरा कर रहा है l हम इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि जब वह उत्तर देगा, तो वह सही, अच्छा और सुन्दर होगा l

परमेश्वर का अनुसरण करना चुनना

एक ब्रिटिश अखबार का दावा है, "औसत व्यक्ति अपने जीवनकाल में 773,618 निर्णय लेगा," उनका दृढ़ता से कहना है कि हमें "उनमें से 143,262 पर पछतावा होगा।" मुझे नहीं पता कि पेपर इन नंबरों तक कैसे पहुंचा, लेकिन यह स्पष्ट है कि हम अपने पूरे जीवनकाल में अनगिनत निर्णयों का सामना करते हैं। उनकी वास्तविक मात्रा हमें कमज़ोर (पंगु) बना सकती है, खासकर जब हम मानते हैं कि हमारे सभी विकल्पों के परिणाम होते हैं, कुछ दूसरों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।

चालीस वर्षों तक जंगल में भटकने के बाद, इस्राएलके लोग अपनी नई मातृभूमि की (द्वार) दहलीज पर खड़े थे। बाद में, देश में प्रवेश करने के बाद, उनके अगुवे यहोशू ने उन्हें एक चुनौतीपूर्ण विकल्प दिया: "इसलिये अब यहोवा का भय मानकर उसकी सेवा खराई और सच्चाई से करो; और जिन देवताओं की सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार करते थे, उन्हें दूर करके यहोवा की सेवा करो।"(यहोशू 24:14)। यहोशू ने उनसे कहा, "और यदि यहोवा की सेवा करनी तुम्हें बुरी लगे, तो आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे, चाहे उन देवताओं की जिनकी सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार करते थे, और चाहे एमोरियों के देवताओं की सेवा करो जिनके देश में तुम रहते हो; परन्तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा की सेवा नित करूंगा।" (पद15)।

जैसे-जैसे हम प्रत्येक नए दिन की शुरुआत करते हैं, संभावनाएं हमारे सामने बढ़ती हैं, जिससे अनेक निर्णय लेने पड़ते हैं,जो अनेक निर्णयों की ओर अग्रसरहोते हैं ।परमेश्वर से हमारा मार्गदर्शन करने के लिए समय निकालने से हमारे द्वारा चुने गए विकल्पों पर प्रभाव पड़ेगा।  आत्मा की शक्ति से, हम हर दिन उसका अनुसरण करना चुन सकते हैं।

मसीह के जन्म की प्रतिज्ञा

नवंबर 1962 में, भौतिक विज्ञानी जॉन डब्ल्यू. मौचली ने कहा, “यह मानने का कोई कारण नहीं है कि औसत लड़का या लड़की पर्सनल कंप्यूटर में निपुण नहीं हो सकते।” मौचली का अनुमान उस समय उल्लेखनीय लग रहा था, लेकिन यह आश्चर्यजनक रूप से सटीक साबित हुआ। आज, कंप्यूटर या हैंडहेल्ड डिवाइस का उपयोग करना बच्चे द्वारा सीखे जाने वाले शुरुआती कौशलों में से एक है।

 

जबकि मौचली का अनुमान सच हो गया, वैसे ही और भी महत्वपूर्ण भविष्यवाणियाँ हैं--जो यीशु मसीह के आगमन के बारे में पवित्रशास्त्र में किया गया हैं। उदाहरण के लिए, मीका 5:2 ने घोषित किया, “हे बैतलहम एप्राता, यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हजारों में गिना नहीं जाता, तो भी तुझ में से मेरे लिये एक पुरुष निकलेगा, जो इस्राएलियों में प्रभुता करनेवाला होगा; और उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन् अनादि काल से होता आया है।” परमेश्वर ने यीशु को भेजा, जो छोटे से बैतलहम में आए-- उन्हें दाऊद के शाही वंश से चिह्नित किया गया (देखें लूका 2:4-7)।

 

वही बाइबल जिसने यीशु के प्रथम आगमन की सटीक भविष्यवाणी की थी, वह उनके वापसी का भी वादा करती है (प्रेरितों 1:11)। यीशु ने अपने प्रथम अनुयायियों से वादा किया कि वह उनके लिए वापस आयेंगे (यूहन्ना 14:1-4)।

 

इस क्रिसमस पर, जब हम यीशु के जन्म के बारे में सटीक भविष्यवाणी किए गए तथ्यों पर विचार करते हैं, हम उसकी वापसी के किए गये वादे पर भी विचार करें और उसे हम उस भव्य क्षण जब हम उसे आमने-सामने देखेंगें के लिए तैयार करने की अनुमति दें!

सभी प्रशंसा के योग्य

कई लोग फेरांटे और टीचर को अब तक की सबसे महान पियानो युगल टीम मानते हैं। उनकी सहयोगात्मक प्रस्तुतियाँ इतनी सटीक थीं कि उनकी शैली को चार हाथों लेकिन केवल एक दिमाग के रूप में वर्णित किया गया था। उनके संगीत को सुनकर, एक व्यक्ति अपने कौशल को पूर्ण करने के लिए आवश्यक मेहनत को समझना शुरू कर सकता है।

लेकिन और भी बहुत कुछ है। उन्होंने जो किया उससे उन्हें प्यार था। वास्तव में, 1989 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी, फेरांटे और टीचर कभी-कभार एक स्थानीय पियानो स्टोर पर अचानक संगीत कार्यक्रम बजाने के लिए आते थे। उन्हें सिर्फ संगीत बनाने में आनंद आता था।

दाऊद को भी संगीत बनाना पसंद था - लेकिन उन्होंने अपने गीत को एक उच्च उद्देश्य देने के लिए परमेश्वर के साथ मिलकर काम किया। उनके भजन उनके संघर्ष भरे जीवन और परमेश्वर पर गहरी निर्भरता में जीने की उनकी इच्छा की पुष्टि करती हैं। फिर भी, उनकी व्यक्तिगत विफलताओं और अपूर्णताओं के बीच, उनका भजन ने एक प्रकार की आध्यात्मिक "श्रेष्ठ स्वर" व्यक्त की, जो सबसे कठिन समय में भी परमेश्वर की महानता और अच्छाई को स्वीकार करती है। दाऊद की प्रशंसा के पीछे का मर्म सरलता से भजन 18:1 में बताया गया है, जिसमें लिखा है, "हे परमेश्वर, हे मेरे बल, मैं तुझ से प्रेम करता हूँ।" 

दाऊद ने आगे कहा, " मैं यहोवा को, जो स्तुति के योग्य है, पुकारूँगा " (पद 3) और "अपने संकट में" उसकी ओर मुड़ा (पद 6)। हमारी स्थिति चाहे जो भी हो, आइए हम भी इसी तरह अपने परमेश्वर की स्तुति और आराधना करने के लिए अपने हृदय को ऊपर उठाएं। वह सभी प्रशंसा के पात्र हैं!

जाने के लिए तैयार

कोरोना वायरस महामारी के दौरान, कई लोगों को अपने प्रियजनों को खोना पड़ा। 27 नवंबर, 2020 को, जब मेरी पचानवे वर्षीय माँ, बी क्राउडर की मृत्यु हो गई, हालाँकि COVID-19 से नहीं हुई थी। कई अन्य परिवारों की तरह, हम भी माँ के लिए शोक मनाने, उनके जीवन का सम्मान करने या एक दूसरे को प्रोत्साहित करने के लिए एकत्रित नहीं हो पाए थे। तब इसके बजाय, हमने उनके प्रेमपूर्ण प्रभाव का उत्सव/जश्न मनाने के लिए अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया - और हमें उनके ज़िद्दी (दृढ़) स्वाभाव से बहुत सांत्वना मिली कि, अगर परमेश्वर ने उन्हें घर बुलाया, तो वह जाने के लिए तैयार और उत्सुक भी थी। वह विश्वास भरी आशा, जो माँ के जीवन में बहुत कुछ दर्शाती है, यह भी थी कि उन्होंने मृत्यु का सामना किस प्रकार से किया।

संभावित मृत्यु का सामना करते हुए, पौलुस ने लिखा, “मेरे लिए, जीवित रहना ही मसीह है और मर जाना लाभ है। . . . मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूं: जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूँ.......परन्तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है” (फिलिप्पियों 1:21, 23-24)। दूसरों के साथ रह कर और उनकी मदद करने की अपनी वैध इच्छा के बावजूद भी, पौलुस मसीह के साथ अपने स्वर्गीय घर की ओर आकर्षित था।

ऐसा आत्मविश्वास उस क्षण को देखने के हमारे नजरिये को बदल देता है जब हम इस जीवन से अगले जीवन में कदम रखते हैं। हमारी आशा दूसरों को उनके दुःख की घड़ी में बड़ी सांत्वना दे सकती है। यद्यपि हम उन लोगों के खोने का शोक मनाते हैं जिन्हें हम प्यार करते हैं, यीशु में विश्वास करने वाले उन लोगों की तरह शोक नहीं मनाते हैं "जिन्हें आशा नहीं है" (1 थिस्सलुनीकियों 4:13)। सच्ची आशा उन लोगों का अधिकार है जो उसे जानते हैं।

डर का कारण

जब मैं छोटा लड़का था, तो स्कूल का मैदान वह जगह थी जहां दबंग लड़के अपना दबदबा रखते थे और मेरे जैसे बच्चों को  कम से कम  विरोध के साथ उस दादागिरी का सामना करना पड़ता था। जब हम अपने सताने वालों के सामने डर के मारे झुकते थे तब कुछ और भी बुरा  होता था – उनके ताने कि “क्या तुम डर गये हो? तुम मुझसे डरते हो? है ना? यहाँ तुम्हें मुझसे बचाने वाला कोई नहीं है।”

वास्तव में उस समय मैं ज्यादातर ड़रा हुआ होता था। और इसका एक कारण था। अतीत में उसके मुक्के खाने के बाद, मुझे पता था कि मैं दोबारा ऐसा अनुभव नहीं करना चाहता। मैं डर का शिकार था, मैं क्या कर सकता था और किस पर भरोसा कर सकता था? जब आप केवल आठ साल के होते हैं और आपको आपसे आयु में बड़े विशालकाय और शक्तिशाली बच्चे द्वारा परेशान किया जाता है तो डरना जायज़ है।

जब दाउद को हमले का सामना करना पड़ा, तो उसने डर के बजाय आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया, क्योंकि वह जानता था कि वह अकेले उन खतरों का सामना नहीं करेगा। उसने लिखा, “यहोवा मेरी ओर है मैं न डरू्रगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकते हैं?” (भजन 118:6) एक लड़के के रूप में, मुझे यकीन नहीं था कि मैं दाउद के आत्मविश्वास के स्तर को समझ पाऊंगा। लेकिन एक वयस्क के रूप में, मैंने मसीह के साथ वर्षों तक चलने के द्वारा सीखा है कि वह किसी भी डर पैदा करने वाले खतरे से बड़ा है।

जीवन में हम जिन खतरों का सामना करते हैं वे वास्तविक हैं। फिर भी हमें डरने की जरूरत नहीं है, संसार का बनाने वाला हमारे साथ है और वह पर्याप्त से भी कही अधिक है।

मैं कौन हूँ?

रोबर्ट टॉड लिंकन अपने पिता, प्रिय अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के व्यापक शरण में रहते थे l अपने पिता की मृत्यु के लम्बे समय बाद, रोबर्ट की पहचान उनके पिता की जबर्दस्त उपस्थिति से घिर गयी थी l लिंकन के घनिष्ठ मित्र निकोलस मुरे बटलर ने लिखा कि रोबर्ट अक्सर कहा करते थे, “कोई भी मुझे युद्ध सचिव के रूप में या इंग्लैण्ड का मंत्री अथवा पुलमैन कंपनी के अध्यक्ष के रूप में चाहता था; वे अब्राहम लिंकन के बेटा को चाहते थे l  

ऐसी निराशा मशहूर के बच्चों तक ही सिमित नहीं है l हम सभी इस भावना से परिचित हैं कि हम जो हैं उसके लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं l फिर भी कहीं भी हमारे मूल्य की गहराई इस बात से अधिक स्पष्ट नहीं है कि परमेश्वर हमसे कितना प्यार करता है l फिर भी तुलनात्मक रूप में परमेश्वर हमसे प्रेम करता है हमारे मूल्य की गहराई से कहीं अधिक प्रगट है l

प्रेरित पौलुस ने हमें पहचाना कि हम अपने पापों में कौन थे, और हम मसीह में कौन बनते हैं l उसने लिखा, “जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिए मरा” (रोमियों 5:6) l हम जो हैं उसके कारण परमेश्वर हमसे प्रेम करता है—हमारे सबसे बुरे हाल में भी! पौलुस ने लिखा, “परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा” (पद.8) l परमेश्वर हमें इतना महत्व देता है कि उसने अपने पुत्र को हमारे लिए क्रूस पर जाने की अनुमति दी l

हम कौन हैं? हम परमेश्वर के प्यारे बच्चे हैं l इससे अधिक कौन मांग सकता है?