नियोजित भेंट/नियुक्ति
22 नवम्बर, 1963 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी, दार्शनिक और लेखक ऑल्ड्स हक्सले, और मसीही प्रचारक/पक्षसमर्थक(apologist) सी.एस. ल्युईस सभी की मृत्यु हो गयी l मौलिक रूप से भिन्न विश्वदृष्टिकोण वाले तीन प्रसिद्ध व्यक्ति l हक्सले, अज्ञेयवादी/अनीश्वरवादी(agnostic), अभी भी पूर्वी रहस्यवाद(Eastern mysticism) में डूबा हुआ था l कैनेडी, हालाँकि एक रोमन कैथोलिक थे, मानवतावादी दर्शन(humanistic philosophy) पर कायम थे l और ल्युईस एक पूर्व नास्तिक थे जो एक एंग्लिकन/इंग्लैंड के चर्च से सम्बंधित या सदस्य(Anglican) के रूप में यीशु में एक मुखर विश्वासी बन गया l मृत्यु किसी व्यक्ति का सम्मान नहीं करती क्योंकि इन तीनों प्रसिद्ध व्यक्तियों को एक ही दिन मृत्यु का सामना करना पड़ा l
बाइबल कहती है कि मृत्यु मानव अनुभव में तब आई जब आदम और हव्वा ने अदन के बगीचे में अनाज्ञाकारी हुए(उत्पत्ति 3)—एक दुखद सच्चाई जिसने मानव इतिहास को चिन्हित किया है l मृत्यु महान समकारी/बराबर करनेवाला(equalizer) है या, जैसा कि एक व्यक्ति ने कहा है, वह नियुक्ति(appointment) जिसे कोई भी टाल नहीं सकता है l यह इब्रानियों 9:27 का मुद्दा है, जहां हम पढ़ते हैं, “मनुष्यों के लिए एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है l”
हमें अपनी मृत्यु के बारे में आशा कहाँ से मिलती है और उसके बाद क्या होता है? मसीह में l रोमियों 6:23 इस सत्य को पूरी तरह से दर्शाता है : “क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनंत जीवन है l” परमेश्वर का यह उपहार कैसे उपलब्ध हुआ? यीशु, परमेश्वर का पुत्र, मृत्यु को नष्ट करने के लिए मर गया और हमें हमेशा के लिए जीवन प्रदान करने के लिए कब्र से जी उठा(2 तीमुथियुस 1:10) l
मसीह जैसा प्रतिउत्तर
जॉर्ज, कैरोलिना की गर्मियों की धुप में एक निर्माण कार्य पर काम कर रहा था, तभी पास में रहनेवाला कोई व्यक्ति उस कार्य स्थान में प्रवेश किया l स्पष्ट रूप से क्रोधित, पड़ोसी ने परियोजना के बारे में और इसे कैसे किया जा रहा है, के बारे में हर बात को कोसना और आलोचना करना आरम्भ कर दिया l जब तक क्रोधित पड़ोसी ने चिल्लाना बन्द नहीं किया तब तक जॉर्ज को बिना किसी प्रतिक्रिया के मौखिक चोट मिलते रहे l फिर उसने धीरे से उत्तर दिया, “आपका दिन सचमुच बहुत कठिन रहा है, है न?” अचानक, क्रोधित पड़ोसी का चेहरा नरम हो गया, उसका सिर झुक गया और उसने कहा, “मैंने तुमसे जिस तरह से बात की उसके लिए मैं खेदित हूँ l” जॉर्ज की दयालुता ने पड़ोसी के क्रोध को शांत कर दिया था l
कई बार हम जवाबी हमला करना चाहते हैं l गाली के बदले गाली और अपमान के बदले अपमान देना l इसके बजाय जॉर्ज ने जिस दयालुता का नमूना दिया वह यीशु द्वारा हमारे पापों के परिणामों को सहन करने के तरीके में सबसे अच्छी तरह से देखी गयी थी : “वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुःख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, परन्तु अपने को सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था”(1 पतरस 2:23) l
हम सभी को ऐसे क्षणों का सामना करना पड़ेगा जब हमें गलत समझा जाएगा, गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा या हम पर हमला किया जाएगा l हम दयालुतापुर्वक प्रतिक्रिया देना चाह सकते हैं, लेकिन यीशु का हृदय हमें दयालु होने, शांति का प्रयास करने और समझ प्रदर्शित करने के लिए कहता है l जैसे वह आज हमें सक्षम बनाता है, शायद परमेश्वर हमें किसी कठिन दिन को सहने वाले को आशीष देने के लिए उपयोग कर सकता है l
मसीह पर बनाए हुए
आगरा में ताज महल, दिल्ली का लाल किला, मैसूर में रॉयल पैलेस, महाबलीपुरम में तट मंदिर सभी प्रसिद्ध नाम हैं। कुछ संगमरमर से बने हैं, कुछ लाल पत्थर से बने हैं, कुछ चट्टान को काटकर बनाए गए हैं और अन्य सोने से जड़े हुए हैं लेकिन इन सभी में एक चीज समान है, वे एक सामान्य शब्दावली के अंतर्गत आते हैं, वे सभी इमारतें हैं।
आत्मिक घर,वास्तव में, यीशु में विश्वासियों के लिए बाइबल में दिए गए नामों में से एक है। "तुम . .परमेश्वर का मंदिर हो,'' प्रेरित पौलुस ने लिखा (1 कुरिन्थियों 3:9)। विश्वासियों के लिए अन्य नाम भी हैं: "झुंड" (प्रेरितों के काम 20:28), "मसीह की देह" (1 कुरिन्थियों 12:27), "भाई और बहनें" (1 थिस्सलुनीकियों 2:14), और भी कई।
इमारत का रूपक 1 पतरस 2:5 में दोहराया गया है, जहाँ पतरस कलीसिया से कहता है, "तुम भी आप जीवते पत्थरों के समान, एक आत्मिक घर बनते जाते हो।" फिर, पद 6 में, पतरस यशायाह 28:16 को बताता है, "देखो, मैं सिय्योन में एक पत्थर रखता हूं, जो कोने के सिरे का चुना हुआ और बहुमूल्य पत्थर है।" यीशु ही अपनी इमारत की नींव है।
हम एसा समझ सकते है कि कलीसिया बनाना हमारा काम है, लेकिन यीशु ने कहा, "मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा" (मत्ती 16:18)। हमें परमेश्वर द्वारा "उसकी स्तुति का वर्णन करने" के लिए चुना गया है जिसने “तुम्हें अंधकार से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है” (1 पतरस 2:9)। जब हम उन स्तुतियों का बखान करते हैं, तो उसके भले काम जो वो करता है उसके लिए हम उसके हाथों में साधन बन जाते हैं।
अन्तरिक्ष की दौड़
29 जून, 1955 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने अन्तरिक्ष में उपग्रह स्थापित करने के अपने उद्देश्य की घोषणा की l इसके तुरंत बाद, सोवियत संघ ने भी ऐसा ही करने की अपनी योजना घोषित की l अन्तरिक्ष की दौड़ आरम्भ हो गयी थी l सोवियत संग पहला उपग्रह (स्पुतनिक/Sputnik) प्रक्षेपित करने वाला था जब युरी गगारिन(Yuri Gagarin) एक बार हमारे गृह की परिक्रमा की थी यह दौड़ तब तक जारी रही, जब तक कि 20 जुलाई, 1969 को चंद्रमा की सतह पर नील आर्मस्ट्रांग की “मानव जाति के लिए विशाल छलांग/giant leap for mankind” ने अनौपचारिक रूप से प्रतियोगिता को समाप्त नहीं कर दिया l जल्द ही सहयोग का मौसम आरम्भ हुआ, जिससे अंतर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन का निर्माण हुआ l
कभी-कभी प्रतिस्पर्धा स्वस्थ्य हो सकती है, जो हमें उन चीज़ों को हासिल करने के लिए प्रेरित करती है जो अन्यथा हम प्रयास नहीं कर पाते l हालाँकि, अन्य समय में, प्रत्स्पर्धा विनाशकारी होती है l कुरिन्थुस के चर्च में यह एक समस्या थी क्योंकि विभिन्न समूह विभिन्न चर्च अगुओं को अपनी आशा की किरण के रूप में देखते थे l पौलुस ने इसे संबोधित करने का प्रयास किया जब उसने लिखा, “न तो लगानेवाला कुछ है और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्वर ही सब कुछ है जो बढ़ानेवाला है” (1 कुरिन्थियों 3:7), जिससे यह निष्कर्ष निकलता है, “क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं”(पद.9) l
सहकर्मी—प्रतिस्पर्धी/Co-workers—not competitors नहीं l और न केवल एक दूसरे के साथ बल्कि स्वयं परमेश्वर के साथ भी! उनके अधिकार प्रदान करना और उनके मार्गदर्शन के द्वारा, हम अपने सम्मान के बजाय उनके सम्मान के लिए, यीशु के सन्देश को आगे बढ़ाने के लिए साथी कार्यकर्ताओं के रूप में एक साथ सेवा कर सकते हैं l
भलाई के लिए साधन
अपराधी को पकड़ लिया गया था, और जासूस ने अपराधी से पूछा कि उसने इतने सारे गवाहों की उपस्थिति में किसी पर इतनी बेरहमी से हमला क्यों किया। प्रतिक्रिया चौंकाने वाली थी: “मुझे पता था कि वे कुछ नहीं करेंगे; लोग कभी कुछ भी नहीं करते।" वह टिप्पणी उस चीज़ को चित्रित करती है जिसे "दोषी ज्ञान" कहा जाता है - किसी अपराध को अनदेखा करना, भले ही आप जानते हों कि यह किया जा रहा है।
प्रेरित याकूब ने इसी तरह के दोषी ज्ञान को संबोधित करते हुए कहा, " जो कोई भलाई करना जानता है और नहीं करता, तो यह उसके लिए पाप है" (याकूब 4:17)।
हमारे लिए अपने महान उद्धार के माध्यम से, परमेश्वर ने हमें दुनिया में भलाई के लिए अपना एजेंट (प्रतिनिधि) बनाया है । इफिसियों 2:10 पुष्टि करता है, "मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया ।" ये अच्छे कार्य हमारे उद्धार का कारण नहीं हैं; बल्कि, वे परमेश्वर की पवित्र आत्मा द्वारा हमारे जीवन में निवास करने से हमारे हृदयों के परिवर्तन का परिणाम हैं। आत्मा हमें उन चीजों को पूरा करने के लिए तैयार करने के लिए आत्मिक वरदान भी देता है जिनके लिए परमेश्वर ने हमें फिर से बनाया है (देखें 1 कुरिन्थियों 12:1-11)।
परमेश्वर की कारीगरी के रूप में, हम उसके उद्देश्यों और उसकी आत्मा की सशक्तता के प्रति समर्पण कर सकते हैं ताकि हम उस दुनिया में भलाई के लिए उसके साधन बन सकें, जिसे उसकी सख्त जरूरत है।
सेवा का हृदय
जब मेरे “चाचा” एमरी का निधन हुआ, तो श्रद्धांजलियां अनेक और विविध थीं l फिर भी उन सभी सम्मानों का एक अनुकूल विषय था—एमरी ने दूसरों की सेवा करके परमेश्वर के प्रति अपना प्यार दिखाया था l इसका उदाहरण उनकी द्वितीय विश्व युद्ध की सैन्य सेवा के दौरान प्रकट था, जहाँ उन्होंने एक कॉर्प्समैन(corpsman) के रूप में कार्य किया था—एक चिकित्सक जो बिना हथियार के युद्ध में गया था l उनकी बहादुरी के लिए उन्हें उच्च सैन्य सम्मान मिला, लेकिन एमरी को युद्ध के दौरान और उसके बाद उनकी दयालु सेवा के लिए सबसे अधिक याद किया गया l
एमरी की निस्वार्थता गलातियों के प्रति पौलुस की चुनौती के अनुरूप थी l उसने लिखा, “हे भाइयों (और बहनों), तुम स्वतंत्र होने के लिए बुलाए गए हो; परन्तु ऐसा न हो कि यह स्वतंत्रता शारीरिक कामों के लिए अवसर बने, वरन् प्रेम से एक दूसरे के दास बनो” (गलातियों 5:13) l आखिर कैसे? हमारे टूटेपन में, हम दूसरों के बजाय स्वयं को पहले रखने के लिए दृढ़ हैं तो यह अप्राकृतिक निस्वार्थता कहाँ से आती है?
फिलिप्पियों 2:5 में, पौलुस यह प्रोत्साहन देता है : “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो l” पौलुस हमारे प्रति अपने महान प्रेम के कारण क्रूस पर मृत्यु का अनुभव करने की मसीह की इच्छा का वर्णन करता है l जैसे ही उसकी आत्मा हमें मसीह के मन को उत्पन्न करती है, तभी हम अलग होते हैं और दूसरों के लिए बलिदान देने में सक्षम होते हैं—यीशु द्वारा किए गए अंतिम बलिदान को दर्शाते हुए जब उसने हमारे लिए खुद को दे दिया l क्या हम अपने भीतर आत्मा के कार्य के प्रति समर्पण कर सकते हैं l
यीशु में घर पर
डोरोथी अपनी रूबी (मणिक) चप्पलों की एड़ी को खटखटाते हुए कहती है, "घर जैसी कोई जगह नहीं है।" द विजार्ड ऑफ ओज़ में, डोरोथी और टोटो को जादुई तरीके से ओज़ से वापस कंसास में उनके घर तक पहुंचने में बस इतना ही करना पड़ा।
दुर्भाग्य से, सभी के लिए पर्याप्त रूबी (माणिक) चप्पलें नहीं हैं। हालाँकि कई लोग घर के लिए डोरोथी की लालसा को साझा करते हैं, लेकिन उस घर को ढूंढना - एक ऐसी जगह - जो कभी-कभी कहने में आसान होता है।
अत्यधिक गतिशील, क्षणिक दुनिया में रहने के परिणामों में से एक वैराग्य की भावना है - आश्चर्य होता है कि क्या हमें कभी कोई ऐसी जगह मिलेगी जो वास्तव में हैं। यह भावना एक गहरी वास्तविकता को भी प्रतिबिंबित कर सकती है, जिसे सी.एस. लुईस ने व्यक्त किया है: "अगर मैं अपने आप में एक ऐसी इच्छा पाता हूं जिसे इस दुनिया का कोई भी अनुभव संतुष्ट नहीं कर सकता है, तो सबसे संभावित स्पष्टीकरण यह है कि मैं किसी अन्य दुनिया के लिए बना हूं।"
क्रूस से पहले की रात, यीशु ने अपने दोस्तों को उस घर के बारे में आश्वस्त करते हुए कहा, “मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं; यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता कि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ।“ (यूहन्ना 14:2) एक ऐसा घर जहां हमारा स्वागत और हमसे प्यार किया जाता है।
फिर भी हम अभी भी घर पर रह सकते हैं। हम एक परिवार-परमेश्वर के चर्च का हिस्सा हैं, और हम मसीह में अपने भाइयों और बहनों के साथ समुदाय में रहते हैं। जब तक यीशु हमें उस घर में नहीं ले जाते जिसकी हम दिल से इच्छा करते हैं, हम उनकी शांति और आनंद में रह सकते हैं। हम हमेशा उसके साथ घर पर हैं।
अपना विश्वास साझा करें
1701 में, इंग्लैंड के चर्च ने दुनिया भर में मिशनरियों को भेजने के लिए “सोसाइटी फॉर द प्रोपेगेशन ऑफ द गॉस्पेल” की स्थापना की। उन्होंने जो आदर्श वाक्य चुना वह था “ट्रांज़िएन्स एडिउवा नोज़(transiens adiuva nos)—लैटिन में जिसका अर्थ है "आ,और हमारी सहायता कर।" यह पहली शताब्दी से सुसमाचार के राजदूतों का आह्वान रहा है, क्योंकि यीशु के अनुयायी उनके प्रेम और क्षमा का संदेश उस दुनिया तक ले जाते हैं, जिसे इसकी सख्त जरूरत है।
वाक्यांश "आ,और हमारी सहायता कर।" प्रेरितों के काम 16 में वर्णित "मकिदुनियाई पुकार” से आया है। पौलुस और उनकी मंडली एशिया माइनर (वर्तमान काल का आधुनिक तुर्की, पद- 8) के पश्चिमी तट पर त्रोआस पहुंची थी। वहाँ, "पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरुष खड़ा खड़ा हुआ उससे विनती करके कह रहा है, “पार उतरकर मकिदुनिया में आ,और हमारी सहायता कर” (पद- 9)। दर्शन प्राप्त करने के बाद, पौलुस और उसके साथियों ने "तुरंत मकिदुनिया जाना चाहा " (पद- 10)। उन्होंने बुलाहट के बेहद ज़रूरी महत्त्व को समझा।
हर किसी को समुद्र पार करने के लिए नहीं बुलाया जाता है, लेकिन हम अपनी प्रार्थनाओं और धन से उन लोगों का समर्थन कर सकते हैं जो ऐसा करते हैं। और हम सभी किसी को, चाहे कमरे के पार, सड़क पर, या समुदाय में, यीशु के सुसमाचार के बारे में बता सकते हैं। आइए प्रार्थना करें कि हमारा भला परमेश्वर हमें पार जाने में और लोगों को सबसे बड़ी मदद करने में सक्षम बनाएगा, वह है - यीशु के नाम में क्षमा प्राप्ति का अवसर।
परमेश्वर के बुद्धिमान उद्देश्य
भारत इतिहास से भरा पड़ा है l आप जहाँ भी जाते हैं, आप ऐतिहासिक शख्सियतों का सम्मान करने वाले स्मारक या उन स्मारक स्थलों को देखते हैं जहाँ महत्वपूर्ण घटनाएं घटी थीं l लेकिन इंग्लैंड के एक होटल में एक मजेदार सन्देश प्रदर्शित किया गया है l होटल के बाहर एक पुरानी पट्टिका पर एक सन्देश लिखा है, “इस स्थान पर, 5 सितम्बर, 1782 को, कुछ भी नहीं हुआ l”
कई बार हमें ऐसा लगता है कि हमारी प्रार्थनाओं को लेकर कुछ हो ही नहीं रहा है l हम प्रार्थना करते हैं और प्रार्थना करते हैं, अपनी याचिकाएं अपने पिता के पास इस उम्मीद से लाते हैं कि वह अभी जबाब देंगे l भजनकार दाऊद ने ऐसी निराशा व्यक्त की जब उसने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, कब तक! क्या तू सदैव मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना मुखड़ा मुझसे छिपाए रहेगा? (भजन 13:1) l हम उन विचारों को सरलता से दोहरा सकते हैं : हे प्रभु, आपके उत्तर देने में कितना समय लगेगा?
हालाँकि, हमारा परमेश्वर न केवल अपनी बुद्धि में बल्कि समय में भी परिपूर्ण है l दाऊद यह कहने में समर्थ हुआ, “मैंने तो तेरी करुणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा” (पद.5) l सभोपदेशक 3:11 हमें याद दिलाता है, “[परमेश्वर ने] सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते हैं” सुन्दर शब्द का अर्थ है “उपयुक्त” या “प्रसन्नता का श्रोत l” परमेश्वर हमेशा हमारी प्रार्थनाओं का प्रत्युत्तर हमारी इच्छा अनुकूल नहीं देता, लेकिन वह हमेशा अपने बुद्धिमान उद्देश्यों को पूरा कर रहा है l हम इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि जब वह उत्तर देगा, तो वह सही, अच्छा और सुन्दर होगा l