जीवन को पाना
ब्रेट के लिए मसीही कॉलेज में जाना और बाइबल का अध्ययन करना एक स्वाभाविक कदम था। आख़िरकार, वह ऐसे लोगों के बीच रहा जो यीशु को उसके पूरे जीवन में जानते आये थे - घर पर, स्कूल में, चर्च में। यहां तक कि वह अपनी कॉलेज की पढ़ाई को "मसीही कार्य" में करियर बनाने के लिए भी तैयार कर रहा था।
लेकिन इक्कीस साल की उम्र में, जब वह एक गाँव के पुराने से चर्च की छोटी सी कलीसिया के साथ बैठ कर और एक पासवान से जो 1 यहुन्ना की पत्री में से प्रचार कर रहे थे, उन्हें सुन रहा था तभी उसने एक चौंकाने वाली खोज की। उसे एहसास हुआ कि वह धर्म की पकड़ और ज्ञान पर निर्भर कर रहा था और उसने वास्तव में कभी भी यीशु में उद्धार नहीं पाया था । उसने महसूस किया कि मसीह उस दिन एक गंभीर संदेश के साथ उसके ह्रदय को छू रहे थे: "तुम मुझे नहीं जानते!"
प्रेरित यूहन्ना का संदेश स्पष्ट है: "हर कोई जिसका यह विश्वास है कि यीशु ही मसीह है, वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है" (1 यूहन्ना 5:1)। हम "दुनिया पर विजय पा सकते हैं", जैसा कि यहुन्ना कहते हैं (पद 4) केवल यीशु में विश्वास के द्वारा। उसके बारे में ज्ञान नहीं, बल्कि गहरा, सच्चा विश्वास - जो उसने क्रूस पर हमारे लिए किया उस पर हमारे विश्वास द्वारा प्रदर्शित होता है। उस दिन, ब्रेट ने अपना विश्वास केवल मसीह पर रखा।
आज, ब्रेट का यीशु और उनके उद्धार के लिए गहरा जुनून कोई रहस्य नहीं है। यह हर बार ज़ोरदार और स्पष्ट रूप से सामने आता है जब वह पादरी के रूप में मंच के पीछे कदम रखते हैं और एक पासवान-मेरे अपने पासवान के रूप में उपदेश देते है।
“परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है, और यह जीवन उसके पुत्र में है। जिसके पास पुत्र है, उसके पास जीवन है” (पद- 11-12)। उन सभी के लिए जिन्होंने यीशु में जीवन पाया है, यह कितना सान्तवना देने वाला अनुस्मारक है!
-डेव ब्रैनन
कोई प्रश्न?
ऐन, प्रारंभिक परीक्षा के लिए अपने ओरल सर्जन से मिल रही थी — जो एक चिकित्सक थे जिसे वह कई वर्षों से जानती थी। उसने ऐन से पूछा, “क्या कोई प्रश्न पूछना है?” उसने कहा “हाँ“ क्या आप पिछले रविवार को चर्च गए थे?” उसका सवाल आलोचनात्मक नहीं था, उसने केवल विश्वास के बारे में बातचीत शुरू करने के लिए यह पूछा था।
सर्जन जब बड़ा हो रहा था तो उसके पास चर्च का कोई सकारात्मक अनुभव नहीं था और वह फिर कभी लौट के वहां गया नहीं । ऐन के प्रश्न और उनकी बातचीत के कारण, उसने अपने जीवन में यीशु और चर्च की भूमिका पर पुनर्विचार किया। जब ऐन ने बाद में उसे एक बाइबल दी जिस पर उसका नाम लिखा हुआ था तो बाइबल लेते समय उसकी आंखों में आंसू आ गये।
कभी कभी हम विरोध से डरते हैं या अपने विश्वास को साझा करने में बहुत आक्रामक नहीं दिखना चाहते। लेकिन यीशु के बारे में गवाही देने का एक अच्छा तरीका हो सकता है कि —प्रश्न पूछें।
एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो परमेश्वर था, और सब कुछ जानता था, यीशु ने निश्चित रूप से बहुत सारे प्रश्न पूछे। जबकि हम उसके उद्देश्यों को नहीं जानते हैं, यह स्पष्ट है कि उसके प्रश्नों ने दूसरों को प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने शिष्य अन्द्रियास से पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” (यूहन्ना 1:38)। उसने अंधे बरतिमाई से पूछा“ तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिये करूं?” (मरकुस 10:51; लूका 18:41)। उसने लकवे के रोगी से पूछा, “क्या तू चंगा होना चाहता है?” (यूहन्ना 5:6)। यीशु के प्रारंभिक प्रश्न के बाद इनमें से प्रत्येक व्यक्ति के लिए बदलाव हुआ। क्या कोई ऐसा है जिससे आप विश्वास के मामलों के बारे में संपर्क करना चाहते हैं? परमेश्वर से मांगें कि वह आपको पूछने के लिए सही प्रश्न दे।
-डेव ब्रैनन
एक भिन्न तरीका
जब मैरी स्लेसर 1800 के दशक के अंत में अफ्रीकी देश कैलाबार (अब नाइजीरिया) के लिए रवाना हुईं, तो वे दिवंगत डेविड लिविंगस्टोन के मिशनरी कार्य को जारी रखने के लिए उत्साहित थीं। साथी मिशनरियों के बीच रहते हुए स्कूल में पढ़ाने का उनका पहला काम उन्हें सेवा करने के लिए एक अलग तरीके से प्रेरित कर रहा था। इसलिए उन्होंने उस क्षेत्र में कुछ ऐसा किया जो दुर्लभ था - वे उन लोगों के साथ रहने लगीं जिनकी वे सेवा कर रही थीं। मैरी ने उनकी भाषा सीखी, उनके तरीके से जीवन जिया और उनका खाना खाया। उन्होंने दर्जनों ऐसे बच्चों को भी अपने साथ रखा जिन्हें छोड़ दिया गया था। लगभग चालीस वर्षों तक, वे उन लोगों तक आशा और सुसमाचार लेकर आईं जिन्हें दोनों की ज़रूरत थी।
प्रेरित पौलुस को पता था कि हमारे आस-पास के लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना कितना ज़रूरी है। उसने 1 कुरिन्थियों 12:4-5 में इसका ज़िक्र किया है — “वरदान तो कई प्रकार के हैं, परन्तु आत्मा एक ही है,” और “सेवा भी कई प्रकार की हैं परन्तु प्रभु एक ही है l” इसलिए उसने लोगों की आवश्यकता के क्षेत्र में उनकी सेवा की l उदाहरण के लिए, “निर्बलों के लिए [वह] निर्बल सा बना” (9:22) l
एक चर्च जिसके बारे में मैं जानता हूँ, ने हाल ही में एक “सभी क्षमताओं” वाली सेवकाई पद्धति की शुरुआत की घोषणा की है, जिसमें बाधा-मुक्त सुविधा शामिल है - विकलांग लोगों के लिए आराधना उपलब्ध कराना। यह पौलुस जैसी सोच है जो दिल जीतती है और समुदाय में सुसमाचार को पनपने देती है। जब हम अपने आस-पास के लोगों के सामने अपने विश्वास को जीते हैं, तो परमेश्वर हमें उन्हें नए और ताज़ा तरीकों से यीशु से परिचित कराने के लिए प्रेरित करे।
—डेव ब्रेनन
अंधकार से प्रकाश की ओर
कुछ भी आकाश को उसके गहरे अवसाद से बाहर नहीं निकाल सका। एक ट्रक दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने पर, उसे दक्षिण पश्चिम एशिया के एक मिशनरी अस्पताल में ले जाया गया। आठ ऑपरेशनों द्वारा उसकी टूटी हुई हड्डियाँ को ठीक किया गया, लेकिन वह खा नहीं पा रहा था। अवसाद शुरू हो गया। पालन-पोषण के लिए उसका परिवार उस पर निर्भर था, जो वह अब नहीं कर पा रहा था, इसलिए उसकी दुनिया और अंधकारमय हो गई।
एक दिन एक अतिथि ने आकाश को उसकी ही भाषा में यूहन्ना सुसमाचार पढ़कर सुनाया और उसके लिए प्रार्थना की। यीशु के द्वारा परमेश्वर की क्षमा और मुक्ति के मुफ़्त उपहार की आशा से छुए जाकर, उसने उस पर अपना विश्वास रखा। उसका अवसाद शीघ्र ही दूर हो गया। जब वह घर लौटा, तो पहले तो वह अपने नये विश्वास का जिक्र करने से डर रहा था। हालाँकि, अंततः, उसने अपने परिवार को यीशु के बारे में बताया - और उनमें से छह ने भी उस पर विश्वास किया!
यूहन्ना सुसमाचार अंधकार की दुनिया में प्रकाश की किरण है। इसमें हम पढ़ते हैं कि "जो कोई [यीशु पर] विश्वास करेगा, वह नाश न होगा, परन्तु अनन्त जीवन पाएगा" (3:16)। हमें पता चलता है कि "जो कोई [यीशु का] वचन सुनता है और [परमेश्वर] पर विश्वास करता है, उसके पास अनन्त जीवन है" (5:24)। और हम यीशु को यह कहते सुनते हैं, “मैं जीवन की रोटी हूं। जो कोई मेरे पास आएगा, वह कभी भूखा न रहेगा” (6:35)। वास्तव में, "जो सत्य पर चलता है वह प्रकाश में आता है" (3:21)
हम जिन परेशानियों का सामना करते हैं वे बड़ी हो सकती हैं, लेकिन यीशु अतिमहान हैं। वह हमें "जीवन" देने आया। . . भरपूरी से” (10:10) । आकाश की तरह, आप भी यीशु पर अपना विश्वास रख सकते हैं - जो दुनिया की आशा और पूरी मानवता के लिए प्रकाश है।
विदाई के शब्द
जॉन एम. पर्किन्स के पास अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर, उन लोगों के लिए एक संदेश था जिन्हें वे पीछे छोड़ कर जा रहे थे। जातीय सुलह का समर्थन करने के लिए प्रसिद्ध पर्किन्स ने कहा, “पश्चाताप ही ईश्वर तक वापस जाने का एकमात्र तरीका है। यदि तुम मन न फिराओगे, तो तुम सब नाश हो जाओगे।”
ये शब्द बाइबिल में यीशु और कई अन्य लोगों की भाषा को प्रतिबिंबित करते हैं। मसीह ने कहा, “मैं तुम से कहता हूं कि यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी इसी रीति से नाश होगे (लूका 13:3)। प्रेरित पतरस ने कहा, “इसलिये, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं” (प्रेरितों के काम 3:19)।
बहुत पहले पवित्रशास्त्र में, हम एक और व्यक्ति के शब्दों को पढ़ते हैं जो चाहता था कि उसके लोग परमेश्वर की ओर फिरें। सारे इस्राएल को अपने विदाई भाषण में (1 शमूएल 12:1) भविष्यद्वक्ता, याजक और न्यायी शमूएल ने कहा, “डरो मत। तुमने बुराई तो की है परन्तु अब यहोवा के पीछे चलने से मत मुड़ना परन्तु अपने सम्पूर्ण मन से यहोवा की उपासना करना (पद 20)। यह उनका पश्चाताप का संदेश था — बुराई से मुड़ना और पूरे दिल से परमेश्वर का अनुसरण करना।
हम सभी पाप करते हैं और परमेश्वर के मापदण्ड के लक्ष्य को खो देते हैं। इसलिए हमें पश्चाताप करने की आवश्यकता है, जिसका अर्थ पाप से मुड़ना और यीशु की ओर आना है, जो हमें क्षमा करता है और हमें उसका अनुसरण करने की शक्ति देता है। आइए हम दो पुरुषों — जॉन पर्किन्स और शमूएल के शब्दों पर ध्यान दे, जिन्होंने पहचाना था कि कैसे परमेश्वर पश्चाताप की शक्ति का उपयोग हमें उन लोगों में बदलने के लिए कर सकता है जिसका उपयोग वह अपने सम्मान के लिए कर सकता है।
सितारों की खोज
2021 में, एक बहुराष्ट्रीय प्रयास के द्वारा जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का लोकार्पण (प्रारंभ) हुआ—ब्रह्मांड की बेहतर जांच के लिए पृथ्वी से लगभग दस लाख मील की दूरी पर स्थापित किया गया। यह चमत्कार गहरे अंतरिक्ष में गहराई से देखेगा और सितारों और अन्य खगोलीय चमत्कारों की जांच करेगा।
यह वास्तव में प्रौद्योगिकी का एक आकर्षक खगोलीय टुकड़ा है, और अगर सब कुछ काम करता है, तो यह हमें अद्भुत तस्वीरें और जानकारी प्रदान करेगा। लेकिन इसका मिशन नया नहीं है। वास्तव में, नबी यशायाह ने सितारों की खोज का वर्णन किया जब उन्होंने कहा, "अपनी आंखें ऊपर उठा कर देखो, किस ने इन को सिरजा? वह इन गणों को गिन गिनकर निकालता है” (यशायाह 40:26)। “रात दर रात” वे हमारे सृष्टिकर्ता के बारे में बात करते हैं जो इस अगोचर विशाल ब्रह्मांड को अस्तित्व में लाया (भजन संहिता 19:2) - और इसके साथ अनगिनत चमकदार पिंड जो चुपचाप हमारे रात्रि आकाश को सुशोभित करते हैं ( पद 3)।
और यह स्वयं परमेश्वर है जिसने तय किया कि कितनी चमकीली वस्तुएँ हैं: "वह तारों की संख्या निर्धारित करता है और उनमें से प्रत्येक का नाम लेता है" (भजन संहिता 147:4)। जब मानव जाति ब्रह्मांड का पता लगाने के लिए जटिल, आकर्षक जांच भेजती है, तो हम उनके द्वारा की गई खोजों का मंत्रमुग्ध आश्चर्य के साथ आनंद ले सकते हैं, क्योंकि प्रत्येक अवलोकन उसी की ओर इशारा करता है जिसने सौर मंडल और उससे परे सब कुछ बनाया है। हाँ, "आकाश परमेश्वर की महिमा का वर्णन करता है" (19:1)—तारे और सभी।
क्षमा की शक्ति
2021 की एक समाचार रिपोर्ट में सत्रह मिशनरियों के बारे में बताया गया था जिनका एक गिरोह द्वारा अपहरण कर लिया गया था । गिरोह ने फिरौती की मांग पूरी नहीं होने पर समूह (बच्चों सहित) को मारने की धमकी दी। अविश्वसनीय रूप से, सभी मिशनरियों को या तो रिहा कर दिया गया या वे आज़ाद हो गए। सुरक्षा तक पहुँचने पर, उन्होंने अपने क़ैदियों को एक संदेश भेजा : “यीशु ने हमें वचन और अपने उदाहरण से सिखाया कि क्षमाशील प्रेम की शक्ति हिंसक बल की घृणा से अधिक मजबूत है। इसलिए, हम आपको क्षमा करते हैं ।”
यीशु ने स्पष्ट किया कि क्षमा शक्तिशाली है । उसने कहा, “यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा” (मत्ती 6:14) । बाद में, पतरस को उत्तर देते हुए, मसीह ने बताया कि हमें कितनी बार क्षमा करना चाहिए : “मैं तुझ से यह नहीं कहता कि सात बार तक वरन् सात बार के सत्तर गुने तक” (18:22; देखें पद. 21-35) । और क्रूस पर, उसने ईश्वरीय क्षमा का प्रदर्शन किया जब उसने प्रार्थना की, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं” (लूका 23:34)
जब दोनों पक्ष चंगाई और मेल-मिलाप की ओर बढ़ते हैं, तब पूर्ण रूप से क्षमा को महसूस किया जा सकता है । और जबकि यह किए गए नुकसान के प्रभावों को दूर नहीं करता है, या दर्दनाक या अस्वास्थ्यकर संबंधों को संबोधित करने के तरीके में विवेकपूर्ण होने की आवश्यकता को, पर यह पुनर्स्थापित लोगों की ओर ले जा सकता है- जो ईश्वर के प्रेम और शक्ति की गवाही देता है। । आइए उसकी महिमा के लिए “क्षमा फैलाने” के तरीकों की तलाश करें।
यह क्यों की जाए?
जब मैं छठी कक्षा में पढ़ रहे अपने पौत्र, लोगन, की बीजगणित के कुछ जटिल गृहकार्य में सहायता कर रहा था, तो उसने मुझे इंजिनियर बनने के अपने सपने के बारे में बताया l जब हम उसके गृहकार्य में x और y के साथ क्या करना है, पता लगा चुके, तब उसने कहा, “मैं कब इसका उपयोग करूँगा?”
मैं यह कहते हुए मुस्कराए बिना नहीं रह सका, “ठीक है, लोगन, अगर तुम इंजिनियर बनते हो तो तुम इसी का उपयोग करोगे!” उसे बीजगणित और अपने प्रत्याशित भविष्य के बीच के सम्बन्ध का एहसास नहीं था l
कभी-कभी हम पवित्रशास्त्र को इसी तरह से देखते हैं l जब हम धर्मोपदेशों को सुनते हैं और बाइबल के कुछ हिस्सों को पढ़ते हैं, तो हम विचार कर सकते हैं, “मैं इसका उपयोग कब करूँगा?” भजनकार दाऊद के पास कुछ उत्तर थे l उसने कहा कि पवित्रशास्त्र में पाए जाने वाले परमेश्वर के सत्य “प्राण को बहाल करती है,” “साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते है,” और “हृदय को आनंदित कर देते है” (भजन 19:7-8) बाइबल की पहली पांच पुस्तकों में पाया जाने वाला पवित्रशास्त्र का ज्ञान, जैसा कि भजन 19 (साथ ही सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र) में उल्लिखित है, प्रतिदिन आत्मा की अगुवाई पर भरोसा करने में हमारी सहायता करता हैI (नीतिवचन 2:6)
और पवित्रशास्त्र के बगैर, हमें उस महत्वपूर्ण तरीके की कमी रहेगी जो परमेश्वर ने हमें उसे अनुभव करने और उसके प्रेम और तरीकों को बेहतर ढंग से जानने के लिए प्रदान किया है l बाइबल का अध्ययन क्यों करें? क्योंकि “यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आँखों में ज्योति ले आती है I” (भजन 19:8)
सबसे अकेला आदमी
20 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन अपने चंद्र लैंडिंग मॉड्यूल(लूनर लैंडिंग मॉड्यूल/Lunar Module Landing ) से बाहर निकले और चंद्रमा की सतह पर चलने वाले पहले इंसान बने। लेकिन हम अक्सर उनकी टीम के तीसरे व्यक्ति माइकल कोलिन्स के बारे में नहीं सोचते हैं, जो अपोलो 11 के लिए कमांड मॉड्यूल उड़ा रहे थे।
चांद की सतह का परीक्षण करने के लिए उनके साथियों के सीढ़ी से नीचे उतरने के बाद, कोलिन्स चंद्रमा से दूर की ओर अकेले इंतजार कर रहे थे। वह नील, बज़ और पृथ्वी पर सभी के संपर्क से बाहर हो गये थे। नासा के मिशन नियंत्रण ने टिप्पणी की, "आदम के बाद से माइक कोलिन्स के रूप में किसी भी मानव ने इस तरह के अकेलापन नहीं जाना।"
ऐसे समय होते हैं जब हम पूरी तरह से अकेला महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, कल्पना कीजिए, याकूब के पुत्र यूसुफ को कैसा लगा होगा जब उसके भाइयों द्वारा उसे बेच दिए जाने के बाद उसे इस्राएल से मिस्र ले जाया गया था (उत्पत्ति 37:23-28) फिर उसे झूठे आरोपों में जेल में डाल कर और भी अलग-थलग कर दिया गया (39:19-20)
युसूफ एक विदेशी भूमि में जेल में बिना किसी परिवार के कहीं भी कैसे जीवित रहा होगा? इसे सुनें: जब तक यूसुफ बन्दीगृह में था,“पर यहोवा युसुफ़ के संग संग रहा" (पद. 20-21) उत्पत्ति 39 में हमें इस सांत्वनादायक सत्य की चार बार याद दिलाई गई है।
क्या आप अकेला या दूसरों से अलग-थलग महसूस करते हैं? परमेश्वर की उपस्थिति की सच्चाई को थामे रहें, जिसका वादा स्वयं यीशु ने किया था: "और देखो मैं जगत के अंत तक सदा तुम्हारे संग हूं" (मत्ती 28:20) अपने उद्धारकर्ता के रूप में यीशु के साथ, आप कभी अकेले नहीं होते।