महानतम निमंत्रण
हाल ही के एक सप्ताह में, मुझे इ-मेल में अनेक निमंत्रण मिले l उनमें सेवा निवृति पर “मुफ्त” सेमिनार, रियल एस्टेट, और जीवन बीमा को मैंने तुरंत अलग कर दिया l किन्तु एक लम्बे समय के मित्र के सम्मान में सभा के निमंत्रण ने मुझे तुरंत उत्तर देने को प्रेरित किया, “हाँ! मैं स्वीकार करता हूँ,” निमंत्रण + इच्छा = स्वीकृति l
यशायाह 55:1 बाइबिल में एक महानतम निमंत्रण है l परमेश्वर ने कठिन परिस्थितियों में पड़े अपने लोगों से कहा, “अहो सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ; और जिनके पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रुपये और बिना दाम ही आकर ले लो l” यह परमेश्वर के आंतरिक पोषण, गहरी आत्मिक सनतुष्टि, और जीवन का अद्भुत पेशकश है (पद.2-3) l
यीशु का निमंत्रण बाइबिल के अंतिम अध्याय में दोहराया गया है : आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, ‘आ!’ और सुननेवाला भी कहे, ‘आ!’ जो प्यासा हो वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले” (प्रका. 22:17) l
अक्सर हमारी सोच में अनंत जीवन का आरंभ हमारे मरने के बाद होता है l वास्तव में, हमारे द्वारा यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता ग्रहण करने पर होता है l
परमेश्वर का उसमें अनंत जीवन खोजने का निमंत्रण सभी निमंत्रणों में सबसे महान है! निमंत्रण + इच्छा = स्वीकृति l
दौड़ और विश्राम
मुख्य समाचार ने मुझे आकर्षित किया, धावकों के लिए आराम के दिन आवश्यक हैं l” टॉमी मैनिंग के लेख में अमरीकी पर्वत धावक टीम, ने समर्पित धावकों द्वारा कभी-कभी नज़रन्दाज़ करने वाले एक सिद्धांत पर बल दिया-अभ्यास के बाद शरीर को विश्राम और फिर से ताकत पाने के लिए समय चाहिए l मैनिंग ने लिखा, “मनोवैज्ञानिक रूप से, प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप सुधार आराम से ही होता है l इसका अर्थ है, कि काम के बराबर आराम है l”
यह हमारे विश्वास और सेवा में भी उतना ही सच है l अक्रियाशीलता और निराशा से दूर रहने के लिए नियमित आराम चाहिए l अत्यधिक ज़रूरत के समय भी, यीशु अपने पृथ्वी पर के जीवन में आत्मिक संतुलन बनाए रखा l शिष्यों के शिक्षण और चंगाई के ज़ोरदार सेवकाई के बाद लौटने पर, “उसने उनसे कहा, ‘तुम आप अलग किसी एकांत स्थान में चलकर थोड़ा विश्राम करो l’” (मरकुस 6:31) l किन्तु एक बड़ी भीड़ उनके पीछे हो ली, इसलिए यीशु ने उनको उपदेश दिया और केवल पाँच रोटी और दो मछलियों से उन सब को भोजन कराया (पद.32-44) l सभी के चले जाने पर, यीशु “पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया” (पद.46) l
यदि हमारे जीवन काम से परिभाषित हैं, तो हमारे कार्य अत्यधिक प्रभावहीन होते चले जाते हैं l यीशु नियमित रूप से हमसे उसके साथ मिलकर प्रार्थना करने और कुछ विश्राम करने को आमंत्रित करता है l
आपके बाद
कुछ एक संस्कृतियों में बड़ा भाई छोटे भाई को कमरे में पहले प्रवेश देता है l दूसरी में, सबसे विशेष अथवा ऊँचे पद वाले व्यक्ति पहले प्रवेश करते हैं l चाहे कोई भी संस्कृति हो, हम विशेष विषयों में किसी को पहले चुनाव करने देना कठिन महसूस करते हैं, विशेषकर जब वह अधिकार हमारे पास हो l
अब्राम (बाद में अब्राहम) और उसके भतीजा लूत के पास बहुत पशु-धन, और तम्बू थे और उनकी यात्रा में उनके भोजन आदि की ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही थी l अब्राम ने अलग होने की सलाह दी, और पहले लूत को क्षेत्र चुनने दिया l उसके भतीजे ने यर्दन की उपजाओ घाटी का चुनाव किया, और अब्राम को कम मनचाहा क्षेत्र मिला l
अब्राम ने इस स्थिति में अपने बड़े होने का अधिकार छोड़कर भविष्य के लिए परमेश्वर पर भरोसा किया l अब्राम ने लूत से कहा, “मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच में झगड़ा न होने पाए; ... क्या सारा देश तेरे सामने नहीं? इसलिए मुझ से अलग हो जा; यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दाहिनी ओर जाऊँगा; और यदि तू दाहिनी ओर जाए, तो मैं बाईं ओर जाऊँगा” (उत्प.13:8-9 ) l लूट का चुनाव आखिरकार उसके पुरे परिवार के लिए खौफनाक परिणाम लेकर आया (उत्प. 19) l
आज, अनेक चुनावों का सामना करते हुए; हम परमेश्वर से उसके मार्गदर्शन भरोसा करें l वह हमारी चिंता करने की प्रतिज्ञा करता है l वह हमारी ज़रूरत पूरी करेगा l
विपत्ति-संकेत!(Mayday!)
अंतर्राष्ट्रीय विपत्ति संकेत “Mayday” हमेशा तीन बार दोहराया जाता है-Mayday- Mayday- Mayday”-ताकि खतरनाक आपातकाल जैसी स्थिति बिल्कुल समझ में आ जाए l 1923 में, लन्दन क्रॉयडन एअरपोर्ट पर नियुक्त, वरिष्ठ रेडियो अफसर, फ्रेडरिक मोक्फोर्ड ने यह शब्द रचा था l वर्तमान में बंद इस सुविधा में पेरिस के ली बोरगेट एअरपोर्ट से लन्दन और वापस अनेक उड़ाने थीं l नेशनल मारीटाइम अजायबघर के अनुसार, मोक्फोर्ड ने Mayday शब्द को फ़्रांसीसी शब्द m’aidez, अर्थात्, मेरी सहायता करें” से बनाया l
दाऊद अपने सम्पूर्ण जीवन में, खतरनाक स्थितियों का सामना किया जिसका हल कठिन था l फिर भी, हम भजन 86 में पढ़ते हैं कि दाऊद का भरोसा सबसे कठिन समय में, परमेश्वर में था l “हे यहोवा, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा, और मेरे गिड़गिड़ाने को ध्यान से सुन l संकट के दिन मैं तुझ को पुकारूँगा क्योंकि तू मेरी सुन लेगा” (पद.6-7) l
दाऊद परमेश्वर का मार्गदर्शन माँगकर तात्कालिक खतरे से परे देखा l “हे यहोवा, अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूँगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूँ” (पद.11) l संकट समाप्ति के बाद भी, वह परमेश्वर के साथ चलना चाहता था l
हमारे द्वारा कठिनतम स्थिति का सामना प्रभु के साथ गहरे सम्बन्ध का द्वार खोल दे सकते हैं l यह हमारे संकट में, और दैनिक जीवन में उसके मार्ग पर चलने हेतु सहायता मांगने से आरंभ होता है l
हममें से एक
लोकप्रिय पीनट कॉमिक का बनानेवाला, चार्ल्स शुल्त्ज़ (1922-2000) की यादगार सभा में, मेरा दोस्त और सहयोगी और कार्टूनिस्ट कैथी गुज़वाईट ने उसकी मानवता और सहानुभूति बताया l “उसने वास्तविक भावनाओं से परिचित संसार के चरित्रों द्वारा और फिर उसने कार्टूनिस्ट को स्वयं को उपयोग करने देकर, हमें अनुभव कराया कि कभी भी हम अकेले नहीं हैं ... उसने हमें उत्साहित किया l उसने हमारे साथ सहानुभूति प्रगट की l उसने हमें महसूस करने दिया कि वह बिल्कुल हमारे समान था l”
जब हम अनुभव करते और समझते हैं कि कोई भी हमें न समझता है और न ही मदद करता है, हम याद करते हैं कि यीशु ने खुद को हमारे लिए दे दिया, और वह पूरी तौर से हमें और हमारी समस्याओं को जानता है l
इब्रानियों 2:9-18 अद्भुत सच्चाई प्रगट करता है कि यीशु पृथ्वी पर हमारी मानवता में भागीदार हुआ (पद.14) l उसने “ हर एक मनुष्य के लिए मृत्यु का स्वाद [चखा] (पद.9), शैतान को निकम्मा [किया] (पद.14), और “जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फंसे थे, उन्हें छुड़ा [लिया] (पद.15) l यीशु हमारे समान बना, “जिससे वह उन बातों में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बने ताकि लोगों के पापों के लिए प्रायश्चित करे” (पास.17) l प्रभु, हमारी मानवता में भागीदार बनने के लिए धन्यवाद, कि हम आपकी सहायता को जानकर आपकी उपस्थिति में सर्वदा रह सकें l
सम्पूर्ण मन से!
कालिब “सम्पूर्ण मन” का व्यक्ति था l वह और यहोशू मूसा और लोगों को प्रतिज्ञात देश की छानबीन रिपोर्ट देनेवाले बारह-व्यक्तियों की टोह लेनेवाली टीम का हिस्सा थे l कालिब ने कहा, “हम अभी ... उस देश को अपना कर लें; क्योंकि निःसंदेह हम में ऐसा करने की शक्ति है” (गिनती 13:30) l किन्तु टीम के बाकी दस लोगों ने परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के बाद भी, इसे असंभव कहकर केवल बाधाएं देखीं (पद. 31-33) l
दस लोगों द्वारा लोगों को हताश करके परमेश्वर के विरुद्ध बड़बड़ाने से उन्हें निर्जन-स्थान में चालीस वर्ष भटकना पड़ा l किन्तु कालिब डटा रहा l परमेश्वर ने कहा, “इस कारण कि ... कालिब के साथ और ही आत्मा है, और उसने ... मेरा अनुसरण किया है, मैं उसको उस देश में ... पहुँचाऊँगा, और उसका वंश उस देश का अधिकारी होगा” (गिनती 14:24) l पैंतालिस वर्ष बाद परमेश्वर ने 85 वर्षीय कालिब को, हेब्रोन नगर दिया “क्योंकि वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का पूरी रीति से अनुगामी था” (यहोशू 14:14) l
शताब्दियों बाद एक व्यवस्थापक ने यीशु से पूछा, “कौन सी आज्ञा बड़ी है?” यीशु ने उत्तर दिया, “ ‘तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन ... सारे प्राण, ... सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख l’ बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है” (मत्ती 22:35-38) l
आज, कालिब हमारे मन के सम्पूर्ण प्रेम, भरोसा, और समर्पण के योग्य परमेश्वर में अपने भरोसे से हमें प्रेरित कर रहा है l
वाइरल सुसमाचार
बोस्टन के नार्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी में वायरल विषय वस्तु प्रोजेक्ट यह अध्ययन कर रहें है कि 1800 के दशक में मुद्रित विषय अखबारों द्वारा-उस काल का सोशल मीडिया नेटवर्क-कैसे फैलता था l यदि एक लेख पुनः 50 से अधिक बार छपती थी, वे उसे उस ओद्योगिक काल में “वाइरल” मानते थे l स्मिथसोनियन पत्रिका में लिखते हुए, ब्रिट पीटरसन ने पाया कि यीशु के किस अनुयायी की मृत्यु विश्वास के कारण कैसे हुई, एक उन्नीसवीं-शताब्दी के खबर लेख कम-से-कम 110 भिन्न प्रकाशनों में दिखाई दिया l
थिस्सलुनीके के मसीहियों को लिखते हुए प्रेरित पौलुस ने, उन्हें यीशु का साहसिक और आनंदित साक्षी बनने के लिए सराहाना की l “तुम्हारे यहाँ से न केवल मकिदुनिया और अखया में प्रभु का वचन सुनाया गया, पर तुम्हारे विश्वास की जो परमेश्वर पर है, हर जगह ऐसी चर्चा फ़ैल गई है” (1 थिस्स.1:8) l यीशु मसीह द्वारा रूपांतरित इन लोगों के जीवन द्वारा सुसमाचार वायरल हो गया l कठिनाई और सताव के बावजूद, वे शांत न रह सके l
हम प्रभु को जाननेवाले करुणामय हृदयों, मददगार हाथों, और ईमानदार शब्दों द्वारा मसीह में क्षमा और अनंत जीवन को फैलाते हैं l सुसमाचार हमें और हमसे मिलने वालों के जीवन रूपांतरित करता है l
आज भी हम सभों द्वारा सुसमाचार फैलता जाए!
कबाड़खाना निपुण
नोआ प्युरिफोय ने “संग्रह” कलाकार के रूप में लॉस एंजेल्स के वाट्स क्षेत्र में 1965 के
दंगे के बाद इकट्ठी की गई तीन टन मलबा से अपना कार्य आरंभ किया l साइकिल के टूटे पहिये और फेंकने योग्य गेंद से लेकर अलग किये गए टायर्स और ख़राब टी.वी.-अनुपयोगी वस्तुएं-उसने और उसके सहयोगी ने आधुनिक समाज में ठुकराए हुए लोगों के साथ व्यवहार के विषय सशक्त सन्देश देने वाली प्रतिमाएँ बनाईं l एक संवाददाता ने श्री पुरिफोय को “कबाड़खाना निपुण” संबोधित किया l
यीशु के काल में बीमार और शारीरिक समस्याओं से ग्रस्त लोग परमेश्वर द्वारा दण्डित पापी माने जाते थे l उनको अस्वीकृत और उपेक्षित माना जाता था l किन्तु यीशु और उसके शिष्यों के जन्म से दृष्टिहीन एक व्यक्ति से मुलाकात के बाद, यीशु ने बताया कि उसकी स्थिति पाप का परिणाम नहीं है, किन्तु परमेश्वर की सामर्थ्य देखने का एक अवसर l “जब तक मैं जगत में हूँ , तब तक जगत की ज्योति हूँ” (यूहन्ना 9:5) l यीशु के निर्देशों के अनुसरण पश्चात, दृष्टिहीन देखने लगा l
धार्मिक अधिकारीयों के प्रश्न करने पर, उस व्यक्ति ने सरलता से जवाब दिया, “मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अँधा था और अब देखता हूँ”(पद.25) l
यीशु आज भी संसार में “कबाड़खाना निपुण” है l हम सब पाप द्वारा बिगड़े हुए हैं, किन्तु वह हमारे टूटे जीवन को नयी सृष्टि बनाता है l
क्या यह आनंद देता है?
व्यवस्था एवं संगठन विषय पर एक युवा जापानी स्त्री की पुस्तक की लाखों प्रतियां संसार में बिक गयीं l मारी कोंडो का मुख्य सन्देश घरों और आलमारियों में अनावश्यक वस्तुएँ- जो वस्तुएं उनके लिए बोझ हैं-को हटाने में लोगों को मदद करना है l वह कहती हैं, “हर एक को ऊपर उठाकर पूछिये, “क्या यह आनंद देता है?” यदि उत्तर हाँ है, रख लीजिये l यदि नहीं, तो हटा दीजिये l
प्रेरित पौलुस फिलिप्पी के मसीहियों को मसीह के साथ सम्बन्ध में आनंद खोजने को कहा l “प्रभु में सदा आनंदित रहो; मैं फिर कहता हूँ, आनंदित रहो” (फ़िलि. 4:4) l चिंता ग्रस्त जीवन के बदले, उसने उनको हर बात के लिए प्रार्थना करने को कहा और तब परमेश्वर की शांति उनके हृदय एवं विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी (पद.6-7) l
हमारे दैनिक कार्यों एवं जिम्मेदारियों में, सब कुछ आनंदायक नहीं है l किन्तु हम पूछ सकते हैं, “यह किस तरह परमेश्वर और मेरे हृदय में आनंद उत्पन्न कर सकता है? काम करने के कारण में परिवर्तन उनके विषय हमारे अहसास को रूपांतरित कर सकता है l
इसलिए हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, ... आदरणीय हैं, ... उचित हैं, ...पवित्र हैं, ... सुहावनी हैं, ... मनभावनी हैं, अर्थात् जो भी सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन पर ध्यान लगाया करो l (पद.8) l
पौलुस के अंतिम शब्द विचार के लिए भोजन और आनंद का नुसखा है l