हंसमुख दाता
तीसरी शताब्दी में पैदा हुए निकोलस को इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनकी मृत्यु के सदियों बाद उन्हें सांता क्लॉज के नाम से जाना जाएगा। वह सिर्फ एक ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर से प्यार करता था और वास्तव में लोगों की परवाह करता था और जो अपनी संपत्ति को खुशी-खुशी देने और दयालु काम करने के लिए जाना जाता था। कहानी में बताया गया है कि यह जानने के बाद, कि एक परिवार बहुत आर्थिक संकट में था, निकोलस रात में उनके घर गया और एक खुली खिड़की के माध्यम से सोने का एक बैग फेंक दिया, जो एक जूते में गिरा या मोजों में जो भट्टी से गर्म हो रहा था।
निकोलस से बहुत पहले, प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थ के विश्वासियों को हर्षोल्लास से देने वाले बनने का आग्रह किया। उसने उन्हें यरूशलेम में उनके भाइयों और बहनों की बड़ी आर्थिक ज़रूरतों के बारे में लिखा और उन्हें उदारता से देने के लिए प्रोत्साहित किया। पौलुस ने उन्हें उन लाभों और आशीषों के बारे में समझाया जो उन्हें मिलती हैं जो अपनी संपत्ति देते हैं। उसने उन्हें याद दिलाया कि "जो थोड़ा बोता है, वह थोड़ा काटेगा भी, और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा" (2 कुरिन्थियों 9:6)। उनकी हर्षित उदारता के परिणामस्वरूप, वे "हर प्रकार से समृद्ध" होंगे (पद 11), और परमेश्वर का सम्मान किया जाएगा।
पिता, क्या आप, न केवल इस क्रिसमस के मौसम के दौरान, बल्कि पूरे साल खुशी से देने वाले बनने में हमारी मदद करेंगे? हमें आपका "अवर्णनीय उपहार," आपका पुत्र, यीशु (पद 15) देने में आपकी अविश्वसनीय उदारता के लिए धन्यवाद।
वीरतापूर्ण कार्य
जॉन हार्पर को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि वह क्या होने वाला है, क्योंकि वह और उसकी छह साल की बेटी टाइटैनिक पर स्वार थे । लेकिन एक बात जो वह जानता था : वह यीशु से प्यार करता था और वह उत्साहित था कि दूसरे भी उसे जानें l जैसे ही जहाज एक हिमखंड से टकराया, उसमें पानी भरने लगा, और हार्पर, जो एक विधुर था, ने अपनी छोटी बेटी को एक जीवनरक्षक नौका में उतार दिया और कोलाहल के बीच अधिक से अधिक लोगों को बचाने के लिए आगे आया l जीवन रक्षक जैकेट वितरित करते समय उसे चिल्लाते हुए सुना गया, "महिलाओं, बच्चों, और जो शेष बचे लोग हैं उन्हें जीवन रक्षक नौकाओं में उतारें l” अपनी अंतिम सांस तक, हार्पर ने अपने आसपास के लोगों के साथ यीशु के विषय साझा किया l जॉन ने स्वेच्छा से अपनी जान दे दी ताकि अन्य लोग जीवित रह सकें ।
एक व्यक्ति था जिसने दो हजार साल पहले इच्छापूर्वक अपना जीवन दे दिया ताकि आप और मैं न केवल इस जीवन में बल्कि सम्पूर्ण अनंतता तक जीवित रह सकें l यीशु अचानक एक दिन जागकर मानवता के पाप के लिए मृत्यु दंड सहने का निर्णय नहीं लिया l यह उसके जीवन का मिशन था । एक बिंदु पर जब वह यहूदी धर्मगुरुओं के साथ बात कर रहा था तो उसने बार-बार स्वीकार किया "मैं अपना प्राण देता हूँ” (यूहन्ना 10:11,15,17, 18) । उसने सिर्फ ये शब्द नहीं बोले बल्कि वास्तव में क्रूस पर एक भयानक मृत्यु सहकर उसे जी कर दिखाया l वह इसलिए आया कि फरीसी, जॉन हार्पर और हम "जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं” (पद.10) l
प्रोत्साहन का दिन
आपदा के समय अग्रणी पंक्ति में रहकर सबसे पहले प्रत्युत्तर देने वाले हर दिन समर्पण और साहस प्रगट करते हैं l 2001 में न्यू यॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आक्रमण में जब हज़ारों लोग मारे गए या घायल हुए, चार सौ से अधिक आपातकालीन कार्यकर्ता भी अपनी जान से हाथ धो बैठे थे l सबसे पहले प्रत्युत्तर देनेवालों के सम्मान में, अमेरिकी सरकार ने सितम्बर 12 को राष्ट्रीय प्रोत्साहन दिवस नामित किया l
जबकि यह अनूठा महसूस हो सकता है कि कोई सरकार राष्ट्रीय प्रोत्साहन दिवस घोषित करेगी, प्रेरित पौलुस ने अवश्य ही सोचा कि यह एक कलीसिया की उन्नति के लिए अनिवार्य था l उसने थिस्स्लुनिके की युवा कलीसिया की सराहना की, “कायरों को ढाढ़स दो, निर्बलों को सम्भालो, सब की ओर सहनशीलता दिखाओ”(1 थिस्सलुनीकियों 5:14) l यद्यपि वे सताव सह रहे थे, पौलुस ने विश्वासियों को “सदा भलाई करने पर तत्पर [रहने], आपस में और सब से भी भलाई ही की चेष्टा [करने] के लिए उत्साहित किया (पद.15) l वह जानता था कि मनुष्य के रूप में, वे निराशा, स्वार्थ और संघर्ष के लिए ग्रस्त होंगे l लेकिन वह यह भी जानता था कि वे परमेश्वर की मदद और ताकत के बिना एक दूसरे का उन्नति नहीं कर पाएंगे l
आज चीजें अलग नहीं हैं l हम सभी को उन्नति करने की ज़रूरत है, और हमें अपने आसपास के लोगों के लिए भी ऐसा करने की आवश्यकता है l फिर भी हम इसे अपने बल पर नहीं कर सकते l यही कारण है कि पौलुस का प्रोत्साहन है कि “तुम्हारा बुलानेवाला सच्चा है, और वह ऐसा ही करेगा”(पद.24) कितनी निश्चयता देनेवाला है l उसकी मदद से, हम हर दिन एक दूसरे को प्रोत्साहित कर सकते हैं l
ज़रुरतमंदों को स्पर्श करें
जब मदर टेरेसा को शान्ति नोबेल पुरस्कार मिला तो यह आश्चर्य की बात नहीं थी l जैसे अपेक्षित था, उन्होंने “भूखों के नाम पर, वंचित, बेघर, दृष्टिहीन, कुष्ठ रोगियों, और जो अनचाहा महसूस करते हैं, जिनसे कोई प्यार नहीं करता, समस्त समाज में जिनकी कोई देखभाल नहीं करता” के नाम पर यह पुरस्कार प्राप्त किया l अपने जवानी के अधिकाँश समय में उन्होंने ऐसे ही लोगों की सेवा की l
परिस्थितियों की परवाह किये बिना, यीशु ने हाशिए पर जीनेवालों की देखभाल करने और उससे प्यार करने का नमूना दर्शाया l आराधनालय के अगुओं के विपरीत, जो बीमारों से अधिक सब्त के दिन के नियम का आदर करते थे (लूका 13:14), जब यीशु ने मंदिर में एक बीमार महिला को देखा, तो वह दया से द्रवित हो गया l उसने शारीरिक कमजोरी से परे परमेश्वर की सुन्दर रचना देखी जो बंधन में थी l उसने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि वह ठीक हो गयी है l तब उसने “उस पर हाथ रखे, और वह तुरंत सीधी हो गयी और परमेश्वर की बड़ाई करने लगी” (पद.13) l उसे छूकर, उसने आराधनालय के अगुओं को परेशान किया क्योंकि वह सब्त था l सब्त के प्रभु, यीशु ने, (लूका 6:5) दया करके उस महिला को ठीक करने के लिए चुना – एक ऐसी महिला जिसने लगभग दो दशकों तक कष्ट और अपमान का सामना किया l
मुझे आश्चर्य है कि हम कितनी बार किसी को अपनी अनुकम्पा के योग्य नहीं देखते हैं l या शायद हमने अस्वीकृति का अनुभव किया है क्योंकि शायद हमने किसी और के मानक को पूरा नहीं किया हो l हम उस धार्मिक कुलीन वर्ग की तरह नहीं हो सकते जो साथी मनुष्यों की तुलना में नियमों की अधिक परवाह करते थे l इसके बजाय, यीशु के उदाहरण का अनुसरण करें और दूसरों के साथ दया प्रेम और सम्मान के साथ व्यवहार करें l
अनंत आँखें
अनंत आँखें, यही प्रार्थना मेरी सहेली मारिया अपने बच्चों और नाती-पोतों के लिए करती हैं कि उनके पास हों l उसका परिवार अशांत काल से होकर निकला है जो उसकी बेटी की मृत्यु के साथ ख़त्म हुआ l जब उसका परिवार इस भयावह नुक्सान से अत्यंत दुखित है, मारिया चाहती है कि वे बहुत कम अदूरदर्शी हों – इस संसार की पीड़ा से बर्बाद न हो जाएँ l और अधिकाधिक दूरदर्शी हों - हमारे प्रेमी परमेश्वर में आशा से भरे हुए l
प्रेरित पौलुस और उसके सहकर्मियों ने उत्पीड़ित करने वालों के हाथों और यहाँ तक कि विश्वासियों से भी बहुत पीड़ा का अनुभव किया जिन्होंने उन्हें बदनाम करने की कोशिश की l फिर भी, उन्होंने अपनी आँखें अनंत काल पर स्थिर रखीं थीं l पौलुस ने साहसपूर्वक स्वीकार किया कि “हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं” (2 कुरिन्थियों 4:18) l
यद्यपि वे परमेश्वर का कार्य कर रहे थे, लेकिन वे “चारों ओर से क्लेश . . . [भोगने],” “निरुपाय [होने],” “सताए . . . [जाने],” और “गिराए . . . [जाने]” (पद.8-9) की वास्तविकता के साथ रहते थे l क्या परमेश्वर को उन्हें इन परेशानियों से बचाना नहीं चाहिये था? (पद.17) l वह जानता था कि परमेश्वर की सामर्थ्य उसमें काम कर रही थी और उसे पूर्ण निश्चय था कि “जिसने प्रभु यीशु मसीह को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागिदार जानकार जिलाएगा” (पद.14) l
जब हमारे चारों ओर का संसार अस्थिर महसूस हो, हम अपनी दृष्टि परमेश्वर की ओर करें – वह अनंत चट्टान जो कभी भी नष्ट नहीं होगा l
शांति का उपहार
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश की पत्नी, बारबरा बुश ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने बेटे से बोली, “मैं यीशु में विश्वास करती हूँ और वह मेरा मुक्तिदाता है, और मुझे मृत्यु का भय नहीं l” यह अविश्वसनीय और दृढ़ कथन मजबूत और जडवत विश्वास को बताता है l उसने परमेश्वर की शांति के उपहार का अनुभव किया था जो यीशु को जानने से आता है, मृत्यु का सामना करते समय भी l
यरूशलेम का प्रथम शताब्दी का निवासी, शमौन, ने भी यीशु के कारण अद्भुत शांति का अनुभव किया l पवित्र आत्मा से अगुवाई पाकर, शमौन मंदिर में गया, जब मरियम और युसूफ बालक यीशु का खतना कराने के लिए लाए जैसा कि व्यवस्था में नवजात बालक के लिए अनुवार्य था l यद्यपि शमौन के विषय बहुत अधिक जानकारी नहीं है, लूका के वर्णन से एक व्यक्ति कह सकता है कि वह परमेश्वर का विशेष जन था, धर्मी और भक्त, जो उद्धारकर्ता/अभिषिक्त(Messiah) के आने का विश्वासयोग्यता से बाट जोह रहा था, और “पवित्र आत्मा उस पर था” (लूका 2:25) l फिर भी शमौन ने शालोम(शांति) का अनुभव नहीं किया, सम्पूर्णता का गहरा भाव, जब तक उसने यीशु को नहीं देखा l
यीशु को अपनी बाहों में उठाए हुए, शमौन ने स्तुति का एक गीत गाया, परमेश्वर की पूर्ण संतुष्टता को प्रगट किया l “अब तू अपने दास को अपने वचन के अनुसार शांति से विदा करता है, क्योंकि मेरी आँखों ने तेरे उद्धार को देख लिया है, जिसे तू ने सब देशों के लोगों के सामने तैयार किया है” (पद.29-31) l उसने शांति पायी क्योंकि उसने समस्त संसार के भावी आशा को पहले ही देख लिया था l
जब हम प्रतिज्ञात उद्धारकर्ता, यीशु, के जीवन, मृत्यु, और पुनरुत्थान का उत्सव मनाते हैं, हम परमेश्वर की शांति के उपहार में आनंदित हों l
हमारा पिता गाता है
पीटर गाकर लोगों को उत्साहित करना पसंद करता है l एक दिन हम उसके पसंदीदा रेस्टोरेंट में दोपहर का भोजन कर रहे थे, और उसने देखा कि महिला वेटर का वह दिन कठिन था l उसने उससे कुछ सवाल पूछे और फिर चुपचाप उसे खुश करने के लिए एक आकर्षक, उत्साहित गीत गाने लगा l “ठीक है, मेहरबान सर, आपने मेरा दिन ठीक कर दिया l हमारे खाने का ऑर्डर लेते हुए, वह एक बड़ी मुस्कुराहट के साथ बोली l
जब हम सपन्याह की किताब खोलते हैं, तो पाते हैं कि परमेश्वर को गाना पसंद है l नबी ने सिद्धता से अपने शब्दों के साथ एक तस्वीर बनायी, जिसमें उसने परमेश्वर को एक संगीतकार के रूप में वर्णित किया, जो अपने बच्चों के लिए और उनके साथ गाना पसंद करता है l उसने लिखा कि परमेश्वर “तेरे कारण आनंद से मगन होगा, वह अपने प्रेम के मारे चुपका रहेगा; फिर ऊँचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा” (3:17) l परमेश्वर ने उन लोगों के साथ हमेशा उपस्थित रहने का वादा किया जो उनकी दया से रूपांतरित हो गए हैं l लेकिन यह वहां रुकता नहीं है! वह आमंत्रित करता है और अपने लोगों के साथ “सम्पूर्ण मन से आनंद [करता है] और प्रसन्न [होता है]” (पद.14) l
हम केवल उस दिन की कल्पना कर सकते हैं जब हम परमेश्वर के साथ और उन सभी के साथ होंगे जिन्होंने अपने उद्धारकर्ता के रूप में यीशु में विश्वास किया है l
बदले के स्थान पर
1956 में जिम इलियट और चार मिशनरियों को हुआवरनी आदिवासियों(Huaorani tribesmen) द्वारा मार दिए जाने के बाद, किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि आगे क्या होगा l जिम की पत्नी, एलिज़ाबेथ, उसकी युवा बेटी और एक अन्य मिशनरी की बहन ने स्वेच्छा से उन लोगों के बीच अपना घर बनाने का चुनाव किया, जिन्होंने उनके प्रियजनों की हत्या की थी l उन्होंने हुआवरनी समुदाय में रहने, उनकी भाषा सीखने और उनके लिए बाइबल का अनुवाद करने में कई साल बिताए l इन महिलाओं की क्षमा और दयालुता की गवाही ने हुआवरनी लोगों को उनके लिए परमेश्वर के प्रेम के विषय आश्वास्त किया और कईयों ने यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया l
जो एलिज़ाबेथ और उसके मित्रों ने किया वह बुराई के बदले बुराई नहीं बल्कि उसका बदला अच्छाई (रोमियों 12:17) से देने का एक अविश्वसनीय उदाहरण है l प्रेरित पौलुस ने रोम की कलीसिया को अपने कार्यों से उस रूपांतरण को दिखाने के लिए प्रोत्साहित किया जो परमेश्वर उनके जीवनों में लाया था l पौलुस के मन में क्या था? उनको बदला लेने की स्वाभाविक इच्छा से परे जाना था; इसके बदले, उन्हें अपने बैरियों की ज़रूरतों को पूरा करके प्रेम दिखाना था, जैसे कि खाना या पानी का प्रबंध करना l
ऐसा क्यों करें? पौलुस पुराने नियम से एक लोकोक्ति कहता है : “यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसको रोटी खिलाना; और यदि वह प्यासा हो तो उसे पानी पिलाना” (पद.20; नीतिवचन 25:21-22) l प्रेरित यह प्रगट कर रहा था कि विश्वासियों ने अपने शत्रुओं पर जो दया दिखाई, वह उन्हें जीत सकती है और उनके दिलों में पश्चाताप की आग को जला सकती है l
क्या आशा है?
एडवर्ड पेसन(1783-1827) ने बेहद कठिन जीवन व्यतीत किया l उसके छोटे भाई की मृत्यु ने उसे अन्दर तक हिला दिया l वह बाईपोलर/bipolar (पागलपन अवसादक बीमारी) से जूझता रहा, और तीव्र अधकपारी सिरदर्द(migraine headache) से बहुत समय तक प्रभावित रहा l यदि यह पर्याप्त नहीं था, तो घोड़े से गिरने से उसके एक बांह में पक्षघात हो गया, और तपेदिक(TB) से मरते-मरते बचा! आश्चर्यजनक रूप से, उसकी प्रतिक्रिया निराशा और आशाहीनता की नहीं थी l उसके मित्रों ने कहा कि एडवर्ड के निधन से पहले, उसका आनंद तीव्र था l यह कैसे हो सकता है?
रोम के विश्वासियों को लिखी अपनी पत्री में, प्रेरित पौलुस ने परिस्थितियों की परवाह किए बिना परमेश्वर के प्रेम की वास्तविकता पर अपना पूर्ण विश्वास व्यक्त किया l उसने दृढ़ता से पूछा, “यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?” (रोमियों 8:31) l यदि परमेश्वर ने हमें बचाने के लिए अपने ही पुत्र, यीशु को दे दिया, तो वह इस जीवन को अच्छी तरह समाप्त करने के लिए हमारी सभी ज़रूरतें पूरी करेगा l पौलुस ने उन सात प्रतीत होने वाली असहनीय स्थितियों को सूचीबद्ध किया जिनका उसने स्वयं सामना किया था : क्लेश, संकट, उपद्रव, अकाल, नंगाई, जोखिम, और तलवार (पद.35) l उसने यह यह नहीं माना कि मसीह का प्रेम बुरी चीजों को होने से रोक देगा l लेकिन पौलुस ने कहा कि “इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिसने हम से प्रेम किया है, जयवंत से भी बढ़कर हैं” (पद.37) l
इस संसार की अनिश्चितता के द्वारा, परमेश्वर पर पूरी तरह से भरोसा किया जा सकता है, यह जानते हुए कि कुछ नहीं, बिलकुल कुछ भी नहीं, “हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी” (पद.39) l