जॉन हार्पर को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि वह क्या होने वाला है, क्योंकि वह और उसकी छह साल की बेटी टाइटैनिक पर स्वार थे । लेकिन एक बात जो वह जानता था : वह यीशु से प्यार करता था और वह उत्साहित था कि दूसरे भी उसे जानें l जैसे ही जहाज एक हिमखंड से टकराया, उसमें पानी भरने लगा, और हार्पर, जो एक विधुर था, ने अपनी छोटी बेटी  को एक जीवनरक्षक नौका में उतार दिया और कोलाहल के बीच अधिक से अधिक लोगों को बचाने के लिए आगे आया l जीवन रक्षक जैकेट वितरित करते समय उसे चिल्लाते हुए सुना गया, “महिलाओं, बच्चों, और जो शेष बचे लोग हैं उन्हें जीवन रक्षक नौकाओं में उतारें l” अपनी अंतिम सांस तक, हार्पर ने अपने आसपास के लोगों के साथ यीशु के विषय साझा किया l जॉन ने स्वेच्छा से अपनी जान दे दी ताकि अन्य लोग जीवित रह सकें ।

एक व्यक्ति था जिसने दो हजार साल पहले इच्छापूर्वक अपना जीवन दे दिया ताकि आप और मैं न केवल इस जीवन में बल्कि सम्पूर्ण अनंतता तक जीवित रह सकें l यीशु अचानक एक दिन जागकर मानवता के पाप के लिए मृत्यु दंड सहने का निर्णय नहीं लिया l यह उसके जीवन  का मिशन था । एक बिंदु पर जब वह यहूदी धर्मगुरुओं के साथ बात कर रहा था तो उसने  बार-बार स्वीकार किया “मैं अपना प्राण देता हूँ” (यूहन्ना 10:11,15,17, 18) । उसने सिर्फ ये शब्द नहीं बोले बल्कि वास्तव में क्रूस पर एक भयानक मृत्यु सहकर उसे जी कर दिखाया l वह इसलिए आया कि फरीसी, जॉन हार्पर और हम “जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं” (पद.10) l