लगभग सत्य अभी भी असत्य है
छायांकन/सिनेकला(cinematography)? बहुत अच्छा l देखिये? विश्वसनीय l सामग्री? दिलचस्प और प्रासंगिक l वीडियो प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान का था, जो राजनैतिक बयान दे रहे थे जो उनसे बिलकुल अलग लग रहे थे l ऑनलाइन कई लोगों का मानना था कि यह सच था, और सोचा कि शायद यह अभिनेता की ओर से एक नयी घोषणा थी l
लेकिन यह वायरल वीडियो गलत था l यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(AI) का उपयोग करके अभिनेता का गहरा नकली प्रतिरूपण(deep-fake impersonation) था, और इसका उद्देश्य अशांति पैदा करने की स्वार्थी महत्वाकांक्षा थी l अभिनेता ने वास्तव में वे बयान नहीं दिए थे, और वीडियो जितना रोमांचक था, वह झूठ पर आधारित था l
हम अपने को ऐसे युग में जीते हुए देख रहे हैं, जहां हमारी तकनीकियों के कारण, झूठ को इस सीमा तक बढ़ाया और गुणित किया जाता है कि वह हमें सच प्रतीत होता है l नीतिवचन की पुस्तक, जो ईश्वरीय ज्ञान का संग्रह है, अक्सर सत्य और झूठ के बीच के अंतर के बारे में बात करती है l नीतिवचन कहती है, “सच्चाई सदा बनी रहेगी, परन्तु झूठ पल ही भर का होता है”(नीतिवचन 12:19) l और अगली उक्ति हमें बताती है, “बूरी युक्ति करनेवालों के मन में चल रहता है, परन्तु मेल की युक्ति करनेवालों को आनंद होता है”(पद.20) l
परमेश्वर के आदेशों से लेकर बॉलीवुड अभिनेताओं के बारे में वीडियो तक हर चीज़ पर ईमानदारी लागू होती है l सच्चाई “सदा बनी रहेगी l”
मिलकर पर्वतों पर विजय
आपने इस कहावत का कुछ रूप देखा या सुना होगा : “यदि आप तेजी से जाना चाहते हैं, तो अकेले जाएं l लेकिन यदि आप दूर जाना चाहते हैं, तो साथ जाएं l” यह एक नेक विचार है, है न? लेकिन क्या हमें निश्चित करने के लिए कोई ठोस शोध है कि ये शब्द न सिर्फ नेक हैं, बल्कि सच भी हैं?
हाँ! वास्तव में, ब्रिटिश और अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा किये गए ऐसे एक अध्ययन से पता चला है कि अगर लोग अकेले खड़े होते हैं तो उन्हें किसी और के साथ खड़े होने पर पहाड़ों का आकार काफी छोटा लगता है l दूसरे शब्दों में, “सामजिक समर्थन” मायने रखता है—इतना कि यह हमारे दिमाग में पहाड़ों के आकार को भी छोटा कर देता है l
दाऊद को योनातान के साथ अपनी मित्रता में उस तरह का प्रोत्साहन प्यारा और सच्चा दोनों लगा l राजा शाऊल का ईर्ष्यालु क्रोध दाऊद की कहानी में एक दुर्गम पहाड़ की तरह था, जिससे उसे अपने जीवन के लिए डर सता रहा था(देखें 1 शमूएल 19:9-18) l किसी तरह के समर्शन के बिना—इस मामले में उसका सबसे निकट का मित्र—यह कहानी काफी अलग हो सकती थी l लेकिन योनातान, अपने पिता के शर्मनाक व्यवहार से “बहुत खेदित था”(20:34), और पुछा, “वह क्यों मारा जाए?”(पद.20) l उनकी ईश्वर-निर्धारित(God ordained) मित्रता ने दाऊद को सहारा दिया, जिससे वह इस्राएल का राजा बन सका l
पुनःप्राप्ति अभ्यास
क्या आप के साथ कभी ऐसा हुआ कि आप कोई कहानी सुना रहे हो और फिर बीच में रुक गए, क्योंकि किसी नाम या तारीख पर अटक गए जो आपको याद नहीं आ रही हो। हम अक्सर इसे उम्र के हिसाब से तय करते हैं, यह मानते हुए कि समय के साथ याददाश्त धुंधली हो जाती है। लेकिन हाल के अध्ययन अब इस दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करते। वास्तव में, वे संकेत देते हैं कि हमारी समस्या याददाश्त नहीं है; पर यह उन यादों को पुनः प्राप्त करने की हमारी क्षमता है। किसी प्रकार के नियमित अभ्यास के बिना, बीती चीजों को याद रखना कठिन हो जाता है।
कई तरीकों में से एक है जो पुनर्प्राप्ति क्षमता को बेहतर बना सकता है, कि नियमित रूप से निर्धारित क्रियाओं या अनुभवों द्वारा किसी बीती हुई चीज को स्मरण करें। हमारे सृष्टिकर्ता परमेश्वर यह जानते थे, इसलिए उन्होंने इस्राएलियों को सप्ताह में एक दिन आराधना और विश्राम के लिए अलग रखने का निर्देश दिया था। इस तरह की राहत से मिलने वाले शारीरिक आराम के अलावा, हमें मानसिक प्रशिक्षण का अवसर मिलता है, यह याद करने के लिए कि "छह दिनों में प्रभु ने आकाश और पृथ्वी, समुद्र और जो कुछ उनमें है, बनाया" (निर्गमन 20 :11)। यह हमें यह याद रखने में मदद करता है कि एक परमेश्वर है, और वह हम नहीं हैं।
अपने जीवन की भागदौड़ में, हम कभी-कभी उन बातों को याद करने में अपनी पकड़ खो देते हैं जो परमेश्वर ने हमारे लिए और दूसरों के लिए की है। हम भूल जाते हैं कि कौन हमारे जीवन पर नज़दीकी से नजर रखता है और जब हम भारी और अकेला महसूस करते हैं तो कौन अपनी उपस्थिति का वादा करता है। हमारी दिनचर्या से एक अंतराल (ब्रेक) उस आवश्यक "पुनर्प्राप्ति अभ्यास" के लिए एक अवसर प्रदान करता है - जहाँ हम अपनी इच्छा से यह निर्णय ले कि हम थोड़ा रुककर परमेश्वर को याद करें और "उसके सभी उपकारों को न भूले" (भजन 103:2)।
चार शब्दों में जीवन
जेम्स इनेल पैकर, जिन्हें जे. आई. पैकर के नाम से जाना जाता है, का 2020 में उनके चौरानवे जन्मदिन से केवल पांच दिन पहले निधन हो गया l एक विद्वान और लेखक, उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक, नोइंग गॉड(Knowing God), अपने प्रकाशन के बाद से 1.5 मिलियन(10,00,000) से अधिक प्रतियां बेच चुकी है l पैकर ने बाइबल के अधिकार और शिष्य-निर्माण(disciple-making) का समर्थन किया और हर जगह यीशु मसीह में विश्वास करने वालों से यीशु के लिए जीने को गंभीरता से लेने का आग्रह किया l जीवन के अंतिम क्षणों में उनसे चर्च में कहे गए उनके अंतिम शब्दों के बारे में पूछा गया l पैकर की एक पंक्ति थे, केवल चार शब्द : “मसीह की महिमा करें(Glorify Christ every way) l”
ये शब्द प्रेरित पौलुस के जीवन को दर्शाते हैं, जिन्होंने अपने नाटकीय रूपांतरण के बाद, विश्वासयोग्यता से अपने सामने काम करना आरम्भ किया और परिणामों के लिए परमेश्वर पर भरोसा किया l रोमियों की पुस्तक में पाए गए पौलुस के शब्द पूरे नए नियम में सबसे अधिक धर्मवैज्ञानिक(theologically) रूप से भरे हुए हैं, और पैकर ने प्रेरित द्वारा लिखी गयी बातों का बारीकी से सारांश दिया है : “प्रभु यीशु मसीह के पिता परमेश्वर की स्तुति करो” (15:6) l
पौलुस का जीवन हमारे लिए एक उदाहरण है l हम कई तरीकों से ईश्वर की महिमा(सम्मान) कर सकते हैं, लेकिन एक है हमारे सामने निर्धारित जीवन जीना और परिणामों को ईश्वर के अपरिवर्तनीय हाथों में छोड़ना l चाहे पुस्तकें लिखना हो या मिशनरी यात्राएं करना हो या प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाना हो या बूढ़े माता-पिता की देखभाल करना हो—एक ही लक्ष्य है : मसीह की महिमा करें! जैसे ही हम प्रार्थना करते हैं और पवित्रशास्त्र पढ़ते हैं, परमेश्वर हमें समर्पित आज्ञाकारिता के साथ जीने में मदद करता है और हम जो कुछ भी कहते हैं करते हैं उसमें यीशु का सम्मान करने के लिए हमारे दैनिक जीवन को ट्रैक/पटरी पर रखता है l
प्यासा और धन्यवादी
मेरे दो मित्र और मैं हमेशा से एक पहाड़ी रास्ते से पैदल यात्रा करना चाहते थे l आरम्भ करने से पूर्व, हमें आश्चर्य हुआ कि क्या हमारे पास पर्याप्त पानी था क्योंकि हमने अपनी पदयात्रा आरम्भ की थी, और पानी तेजी से खत्म हो गया l हमारे पास पानी नहीं बचा था और किनारे तक पहुँचने के लिए अभी भी कोई रास्ता नहीं बचा था l हाँफते हुए, प्रार्थना करते हुए, चलते गए l फिर हमने एक कोने का चक्कर लगाया और एक चमत्कार घटित हुआ l हमने चट्टान की एक दरार में तीन पानी कि बोतलें दबी हुयी देखीं, जिस पर लिखा था : जानता था कि आपको इसकी ज़रूरत होगी l आनंद लें!” हमें अविश्वास से एक-दूसरे को देखा, परमेश्वर को धन्यवाद कहा, कुछ बेहद ज़रूरी घूँट पीये और फिर आखिरी पड़ाव पर निकर पड़े l मैं अपने जीवन में इतना प्यासा और आभारी कभी नहीं हुआ l
भजनकार के पास पहाड़ी यात्रा का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन यह स्पष्ट है कि वह जानता था कि प्यास लगने पर और संभवतः डर लगने पर हरिणी कैसे व्यवहार करती है l हरिणी “हाँफती” है (भजन 42:1), एक ऐसा शब्द जो प्यास और भूख को मन में लाता है, इस हद तक कि अगर कुछ नहीं बदलता है, तो आप डरते हैं कि आप मर सकते हैं l भजनकार ने हरिणी की प्यास की डिग्री को परमेश्वर के लिए उसकी इच्छा के बराबर बताया है : “वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिए हाँफता हूँ” (पद.1) l
अति-आवश्यक जल की तरह, परमेश्वर सदैव उपस्थित रहने वाला सहायता है l हम उसके लिए हाँफते हैं क्योंकि वह हमारे थके हुए जीवन में नयी ताकत और ताज़गी लाता है, हमें दिन भर की तैयारी के लिए सुसज्जित करता है l
एक बुजुर्ग की सलाह
"मुझे किस बात का पछतावा है?" यही वह प्रश्न था जिसका उत्तर न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलिंग लेखक जॉर्ज सॉन्डर्स ने 2013 में सिरैक्यूज़ विश्वविद्यालय में अपने शुरुआती भाषण में दिया था। उनका दृष्टिकोण एक वृद्ध व्यक्ति (सॉन्डर्स) का था, जिन्होंने अपने जीवन में हुए एक या दो पछतावे को युवा लोगों (स्नातकों) के साथ साझा किया था, जो उनके उदाहरणों से कुछ सीख सकते थे। उन्होंने कुछ ऐसी बातों की सूची दी कीं जिनके बारे में लोग मान सकते हैं कि शायद ये उनके पछतावे होंगे, जैसे गरीब होना और कठोर नौकरियां करना। लेकिन सॉन्डर्स ने कहा कि उन्हें वास्तव में यह बिल्कुल उनके पछतावे नहीं थे। परन्तु, उन्हें जिस बात का पछतावा था, वह दयालुता की विफलता थी - वे अवसर जो उन्हें किसी के प्रति दयालु होने के लिए मिले, और उन्होंने उन्हें जाने दिया।
प्रेरित पौलुस ने इफिसुस के विश्वासियों को इस प्रश्न का उत्तर देते हुए लिखा: मसीही जीवन कैसा दिखता है? हमारे उत्तरों में जल्दबाजी करना हो सकता है, जैसे एक विशेष राजनीतिक दृष्टिकोण रखना, कुछ पुस्तकों या फिल्मों से बचना, एक विशेष तरीके से आराधना करना। लेकिन पौलुस का दृष्टिकोण उन्हें समसामयिक मुद्दों तक सीमित नहीं रखता था। वह "बुरी बात" (इफिसियों 4:29) से दूर रहने और कड़वाहट और क्रोध जैसी चीजों से छुटकारा पाने का उल्लेख करता है (पद 31)। फिर अपनी "बात" को समाप्त करने के लिए, संक्षेप में, वह इफिसियों के साथ-साथ हमसे भी कहते हैं, "दयालु बनने से मत चूको" (पद 32)। और उसके पीछे का कारण यह है कि मसीह में परमेश्वर तुम्हारे प्रति दयालु रहा है।
उन सभी चीज़ों में से जिनका हम विश्वास करते हैं कि यीशु में जीवन है, उनमें से एक, निश्चित रूप से, दयालु होना है।
यीशु के समान प्रेम करना
सभी उससे प्यार करते थे—ये शब्द कैस्निगो(Casnigo), इटली के डॉन जिसेपी बेरार्डेली(Don Guiseppe Berardelli) का वर्णन करने के लिए उपयोग किये गए थे l डॉन एक प्रिय व्यक्ति था जो एक पुरानी मोटरसाइकिल पर शहर में घूमकर हमेशा इस अभिवादन के साथ आगे बढ़ता था : “शांति और भलाई l” उसने दूसरों की अथक भलाई की l लेकिन जीवन के अंतिम वर्षों में, उनकी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ कोरोनोवायरस के संक्रमण से और भी बदतर हो गयीं; जवाब में, उनके समुदाय ने उनके लिए एक श्वासयंत्र(respirator) खरीदा l लेकिन उनकी हालत गंभीर होने पर, उन्होंने श्वास उपकरण लेने के बजाय इसे एक जरूरतमंद युवा रोगी के लिए उपलब्ध कराने का फैसला किया l इससे किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि यह केवल उनके चरित्र में एक ऐसे व्यक्ति के लिए था जिसे दूसरों से प्यार करने के लिए प्यार किया जाता था और उनकी प्रशंसा की जाती थी l
प्रेम करने के कारण प्यार किया जाना, यही वह सन्देश है जो प्रेरित यूहन्ना अपने पूरे सुसमाचार में सुनाता रहता है l प्यार किया जाना और दूसरों से प्यार करना प्रार्थनालय की घंटी की तरह है जो मौसम की परवाह किए बिना रात-दिन बजती रहती है l और यूहन्ना 15 में, वे कुछ हद तक चरम सीमा तक पहुँचते हैं, क्योंकि यूहन्ना स्पष्ट करता है कि सभी के द्वारा प्रेम किया जाना नहीं लेकिन सबसे प्रेम करना ही सबसे बड़ा प्रेम है : “अपने मित्रों के लिए अपना प्राण देना” (पद.13) l
त्यागमय प्रेम के मानवीय उदाहरण हमें सदैव प्रेरित करते हैं l फिर भी वे परमेश्वर के महान प्रेम की तुलना में फीके हैं l लेकिन उस चुनौती से न चूकें जो वह लाती है, क्योंकि यीशु आज्ञा देता है : “जैसा मैं में तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो” (पद.12) l हाँ, सबसे प्यार करो l
परमेश्वर को पुकारना
डॉ. रसेल मूर ने अपनी पुस्तक एडॉप्टेड फॉर लाइफ में एक बच्चे को गोद लेने के लिए अपने परिवार की अनाथालय यात्रा का वर्णन किया है। जैसे ही वे नर्सरी में दाखिल हुए, सन्नाटा चौंका देने वाला था। पालने में रहने वाले बच्चे कभी नहीं रोते थे, और ऐसा इसलिए नहीं था क्योंकि उन्हें कभी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं होती थी, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्होंने सीख लिया था कि कोई भी इतनी परवाह नहीं करता कि उनके रोने का जवाब दे।
उन शब्दों को पढ़कर मेरा दिल दुख गया। मुझे अनगिनत रातें याद हैं जब हमारे बच्चे छोटे थे। मैं और मेरी पत्नी गहरी नींद मेंसोये होते थे तभी उनके रोने की आवाज से हमारी नींद खुल जाती: "पिताजी, मैं बीमार हूँ!" या "माँ, मुझे डर लग रहा है!" हममें से कोई तुरंत उठता और उन्हें आराम देने और उनकी देखभाल करने की पूरी कोशिश करने के लिए उनके शयनकक्ष में जाता था। अपने बच्चों के प्रति हमारे प्यार ने उन्हें हमारी मदद के लिए पुकारने का कारण दिया।
भजनों की एक बड़ी संख्या परमेश्वर के लिए पुकार या विलाप है। इस्राएल उनके साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर अपना विलाप उनके पास लाये । ये वे लोग थे जिन्हें परमेश्वर ने अपना "पहिलौठा (जेठा) " कहा था (निर्गमन 4:22) और वे अपने पिता से परिस्थिति के अनुसार कार्य करने के लिए कह रहे थे। भजनसंहिता 25 में ऐसा ईमानदार विश्वास देखा जाता है:“ हे यहोवा मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; क्योंकि मैं अकेला और दीन हूं।” (पद 16-17)। जो बच्चे देखभाल करने वाले के प्यार के प्रति आश्वस्त होते हैं वे रोते हैं। यीशु में विश्वासियों के रूप में—परमेश्वर की संतानहोने के नाते —उसने हमें उसे पुकारने का कारण दिया है। वह अपने महान प्रेम के कारण सुनता है और परवाह करता है।
कितना अच्छा मित्र
मेरे पुराने मित्र और मेरी मुलाकात हुए कुछ वर्ष बीत गए थे l उस समय के दौरान, उसने कैंसर निदान प्राप्त कर उपचार आरम्भ किया l उनके राज्य की एक अनपेक्षित यात्रा ने मुझे उनसे पुनः मिलने का अवसर दिया l मैं रेस्टोरेंट में गया, और हम दोनों रोने लगे l बहुत समय बीत गया था जब हम एक ही कमरे में रहा करते थे, और अब मौत कोने में छिपी हुयी हमें जीवन की संक्षिप्तता याद दिला रही थी l रोमांच और हंसी खेल और खिलखिलाहट और हानि—और अत्यधिक प्यार से भरी लम्बी मित्रता से हमारी आँखों में आँसू छलक पड़े l
यीशु भी रोया l यूहन्ना का सुसमाचार उस पल को अंकित करता है, जब यहूदियों ने कहा, “हे प्रभु, चलकर देख ले” (11:34), और यीशु अपने अच्छे मित्र लाजर की कब्र के सामने खड़ा था l फिर हम उन दो शब्दों को पढ़ते हैं जो हम पर उन गहराइयों को प्रकट करते हैं जिनसे मसीह हमारी मानवता को साझा करता है : “यीशु रोया” (पद. 35) l क्या उस क्षण में बहुत कुछ चल रहा था, जो यूहन्ना ने लिखा और नहीं लिखा? हाँ l यद्यपि मेरा यह भी मानना है कि यीशु के प्रति यहूदियों की प्रतिक्रिया बता रहा है : “देखो, वह उससे कितना प्रेम रखता था!” (पद. 36) l वह रेखा हमारे लिए उस मित्र को रोकने और उसकी उपासना करने के लिए पर्याप्त आधार से अधिक है जो हमारी हर कमजोरी को जानता है l यीशु मांस और लहू और आँसू था l यीशु उद्धारकर्ता है जो प्यार करता है और समझता है l