वास्तव में क्या चाहिए
भोजन तैयार करते समय, एक युवा मां ने मांस पकाने से पहले उसे बड़े बर्तन में आधा काट कर डाल दिया। उसके पति ने उससे पूछा कि उसने मांस को आधा क्यों काटा। उसने उत्तर दिया, "क्योंकि मेरी माँ ऐसा ही करती है।"
हालाँकि, उसके पति के सवाल ने महिला की जिज्ञासा को बढ़ा दिया।उसने अपनी मां से इस परंपरा के बारे में पूछा। वह यह जानकर चौंक गई कि उसकी माँ के पास छोटा बर्तन था, वह मांस को आधा काट कर बर्तन में इसलिए डालती थी ताकि मांस उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले एक छोटे से बर्तन में आ सके। और क्योंकि उसकी बेटी के पास कई बड़े बर्तन थे, मांस काटने का कार्य अनावश्यक था।
कई परंपराएँ एक आवश्यकता से शुरू होती हैं, लेकिन बिना किसी प्रश्न के चलती हैं - " हम जिस तरह से इसे करते हैं।" मानवीय परम्पराओं को थामे रहना स्वाभाविक है - कुछ ऐसा जो फरीसी अपने समय में कर रहे थेI (मरकुस 7:1-2) वे इस बात से विचलित/विक्षिप्त थे कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनके एक धार्मिक नियम को तोड़ा जा रहा है।
तुम परमेश्वर की आज्ञा को टालकर मनुष्य की रीतियों को मानते होI (पद. 8) उन्होंने प्रकट किया कि परम्पराओं को कभी भी पवित्रशास्त्र के ज्ञान का स्थान नहीं लेना चाहिए। परमेश्वर का अनुसरण करने की सच्ची इच्छा (पद. 6-7) बाहरी कार्यों के बजाय हमारे हृदय के व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करेगी।
परंपराओं का लगातार मूल्यांकन करना एक अच्छा विचार है—जो कुछ भी हम अपने दिल के करीब रखते हैं और जिसका धार्मिक रूप से पालन करते हैं। जिन चीज़ों को परमेश्वर ने वास्तव में आवश्यक होने के लिए प्रकट किया है, उन्हें हमेशा परंपराओं का स्थान लेना चाहिए।
नई दृष्टि
अपना नया चश्मा पहने हुए जैसे ही मैं पवित्र स्थान में गई, मैं बैठ गई। चर्च के दूसरी तरफ सीधे गलियारे के सामने मैंने अपनी एक दोस्त को बैठे देखा। मैंने उसे देखकर अपना हाथ हिलाया, वह बहुत पास और साफ दिख रही थी। भले ही वह कुछ गज़ की दूरी पी थी, पर मुझे ऐसा लगा कि मैं उस तक पहुंचकर उसे छू सकती हूं। बाद में, जब हमने आराधना के बाद बात की, मुझे एहसास हुआ कि वह उसी सीट पर थी जिस पर वह हमेशा बैठती थी। अपने नए चश्मे के कारण मैं उसे बेहतर तरीके से देख सकती थी।
भविष्यवक्ता यशायाह द्वारा बोलते हुए, परमेश्वर जानता था कि बेबीलोन की बंधुआई में फंसे इस्राएलियों को एक नए नुस्खे की आवश्यकता होगी—एक नया दृष्टिकोण। उसने उनसे कहा, “मैं एक नई बात करता हूँ! मैं जंगल में मार्ग बनाऊंगा।” (यशायह 43:19)। और उसके आशा के संदेश में अनुस्मारक शामिल थे कि उसने उन्हें बनाया था, उन्हें छुडाया था, और वह उनके साथ रहेगा। “तुम मेरे हो”, उसने उन्हें प्रोत्साहित किया (पद 1)।
आज आप जिस चीज़ का भी सामना कर रहे हैं, उसमें पवित्र आत्मा आप के लिए बेहतर दृष्टि प्रदान कर सकता है; पुरानी को पीछे छोड़ने और नई की तलाश करने के लिये। परमेश्वर के प्रेम से (पद 4) यह आपके चारों ओर नजर आ रहा है। क्या आप देख सकते हैं कि वह आपके दुख और बंधनों में क्या काम कर रहा है? आइए हम अपना नया आध्यात्मिक चश्मा पहनें ताकि वह नया देख सकें जो परमेश्वर हमारे वीराने में भी कर रहा है।
जो अच्छा है उससे जुड़े रहो
जब पास्टर तिमोथी यात्रा के दौरान अपना उपदेशक कालर/पट्टा(preacher collar) पहनते हैं, तो उन्हें अक्सर अजनबियों द्वारा रोका जाता है l हवाई अड्डे पर लोग जब याजकीय/पुरोहिती पट्टी को उनके साधारण गहरे रंग के सूट के ऊपर देखते हैं तो कहते हैं, “कृपया मेरे लिए प्रार्थना कीजिये l” हाल ही की एक उड़ान में, एक महिला ने उन्हें देखकर उनकी सीट के निकट घुटनों के बल झुक गयी और विनती करते हुए बोली : “क्या आप पास्टर हैं? क्या आप मेरे लिए प्रार्थना करेंगे?’ और पास्टर टिमोथी ने प्रार्थना की l
यिर्मयाह का एक अंश इस बात पर प्रकाश डालता है कि हम क्यों मानते हैं कि परमेश्वर प्रार्थना सुनता है और उसका उत्तर देता है : परमेश्वर परवाह करता है! उन्होंने अपने प्रिय लेकिन पापी, निर्वासित लोगों को निश्चित किया, “जो कल्पनाएँ मैं तुम्हारे विषय करता हूँ उन्हें मैं जानता हूँ, वे हानि की नहीं, वरन् कुशल ही की हैं, और अंत में तुम्हारी आशा पूरी करूँगा”(29:11) l परमेश्वर ने ऐसे समय की आशा की थी जब वे उसके पास लौटेंगे l उसने कहा, “तब उस समय तुम मुझ को पुकारोगे और आकर मुझसे प्रार्थना करोगे और मैं तुम्हारी सुनूँगा l तुम मुझे ढूँढोगे और पाओगे भी”(पद.12-13) l
नबी ने बंदीगृह में रहते हुए प्रार्थना के बारे में यह और बहुत कुछ सीखा l परमेश्वर ने उसे निश्चय दिया, “मुझ से प्रार्थना कर और मैं तेरी सुनकर तुझे बड़ी-बड़ी और कठिन बातें बताऊंगा जिन्हें तू अभी नहीं समझता”(33:3) l
यीशु हमसे प्रार्थना करने का भी आग्रह करता है l उसने कहा, “तुम्हारा पिता तुम्हारे मांगने से पहले ही जानता है कि तुम्हारी क्या-क्या आवश्यकताएं हैं”(मत्ती 6:8) l इसलिए प्रार्थना में “मांगो,” ढूंढो,” और खटखटाओ”(7:7) l हमारे हर एक निवेदन हमें उत्तर देने वाले के निकट ले जाती है l हमें प्रार्थना में परमेश्वर के लिए अजनबी नहीं बनना है l वह हमें जानता है और हमसे सुनना चाहता है l हम अभी अपनी चिंताओं को उसके पास ले जा सकते हैं l
गर्म भोजन
एक व्यक्ति ने अदालत में परमेश्वर के विरुद्ध रोकने वाला/नियंत्रण(restraining) का मुकद्दमा दायर किया l उसने दावा किया कि परमेश्वर उसके प्रति “विशेष रूप से निर्दयी” था और उसने “गंभीर रूप से नकारात्मक रवैया” दर्शाया था l पीठासीन न्यायाधीश ने यह करते हुए मुक़दमा ख़ारिज कर दिया कि उस व्यक्ति को अदालत की नहीं बल्कि अपने मानसिक स्वास्थ में सहायता की ज़रूरत है l एक सच्ची कहानी : हास्यप्रद, लेकिन दुखद भी l
लेकिन क्या हम इतने अलग/भिन्न हैं? क्या हम कभी-कभी यह नहीं कहना चाहते, “हे परमेश्वर, कृपया ठहरिये, मैंने बहुत सह लिया!” अय्यूब ने कहा l उसने परमेश्वर को न्यायिक प्रक्रिया में डाल दिया l अकथनीय व्यक्तिगत त्रासदियों को सहने के बाद, अय्यूब कहता है, “मेरी अभिलाषा परमेश्वर से वाद-विवाद करने की है”(अय्यूब 13:3) और “उससे मुकद्दमा [लड़ने]” की कल्पना करता है(9:3) l वह एक निरोधक(रोकने वाला) आदेश भी देता है : “अपनी ताड़ना मुझ से दूर कर ले, और अपने भय से मुझे भयभीत न कर”(13:21) l अय्यूब का अभियोजन पक्ष का तर्क उसकी स्वयं की बेगुनाही नहीं थी, बल्कि जिसे वह परमेश्वर की अनुचित कठोरता के रूप में देखता है : “क्या तुझे अंधेर करना . . . भला लगता है?”(10:3) l
कभी-कभी हमें लगता है कि परमेश्वर अन्यायी है l सच तो यह है कि अय्यूब की कहानी जटिल है और आसान उत्तर नहीं देती l परमेश्वर अंत में अय्यूब की भौतिक सम्पति को बहाल करता है, लेकिन हमारे लिए हमेशा उसकी योजना ऐसी नहीं होती है l शायद हमें अय्यूब की अंतिम स्वीकारोक्ति में कुछ निर्णय/फैसला मिलता है : “मैं ने तो जो नहीं समझता था वही कहा, अर्थात् जो बातें मेरे लिए अधिक कठिन और मेरी समझ से बाहर थीं जिनको मैं जानता भी नहीं था”(42:3) l मुद्दा यह है कि परमेश्वर के पास ऐसे कारण हैं जिनकी बारे में हम कुछ नहीं जानते हैं, और उसमें अद्भुत आशा है l
परमेश्वर आपको देखता है
“नीचो उतरो!” मेरी सहेली ने अपने बेटे से दृढ़ता से कही जब वह चर्च के बेंच पर चढ़ गया और हाथ हिलाया l “मैं चाहता हूँ कि पास्टर मुझे देखें,” उसने मासूमियत से उत्तर दिया l “अगर मैं खड़ा नहीं होऊँगा, तो वह मुझे नहीं देख पाएंगे l”
जबकि अधिकाँश चर्चों में संभवतः बेंच पर खड़े होने का बढ़ावा नहीं दिया जाता है, मेरी सहेली के बेटे की बात अच्छी थी l खड़ा होना और हाथ हिलाना निश्चित रूप से पास्टर को देखने और उनका ध्यान आकर्षित करने का एक तरीका था l
जब हम परमेश्वर का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, तो हमें उसके द्वारा देखे जाने के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है l परमेश्वर हममें से हर एक को हर समय देखता है l वह वही है जिसने हाजिरा को तब अपने बारे में बताया था जब वह शायद अपने जीवन के सबसे निचले, सबसे अकेले, सबसे निराशाजनक समय में थी l उसे मोहरे के रूप में उपयोग किया गया था और अब्राम को उसकी पत्नी सारै ने बेटा पैदा करने के लिए दिया था (उत्पत्ति 16:3) l और जब वह गर्भवती हुयी, तो अब्राम ने अपनी पत्नी को हाजिरा के साथ दुर्व्यवहार करने की अनुमति दी : “सारै उसको दुःख देने लगी, और वह उसके सामने से भाग गयी”(पद.6) l
भागी हुयी दासी ने स्वयं को अकेला, गर्भवती और दुखी पाया l फिर भी निर्जन स्थान में उसकी निराशा के बीच, परमेश्वर ने दयालुतापुर्वक उससे बात करने के लिए एक दूत को भेजा l स्वर्गदूत ने उसे बताया कि परमेश्वर ने “[उसके] दुःख का हाल सुन लिया है”(पद.11) l उसने यह कहकर उत्तर दिया, “क्या मैं यहाँ भी उसको जाते हुए देखने पाई”(पद.13) l
क्या एहसास है—खासकर जंगल के बीच में l परमेश्वर ने हाजिरा को देखा और उस पर दया की l और चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, वह आपको देखता है l
निरंतर प्रार्थना करें
मुझे परीक्षा में 84 अंक मिले!
जब मैंने अपने फोन पर उसका सन्देश पढ़ा तो मुझे अपने किशोरावस्था का उत्साह महसूस हुआ l उसने हाल ही में एक हाई स्कूल की कक्षाओं में भाग लेना शुरू किया था और दोपहर के भोजन के दौरान अपने फोन का उपयोग कर रही थी l मेरी माँ का हृदय अत्यंत प्रसन्नता से भर गया, सिर्फ इसलिए नहीं कि मेरी बेटी ने एक चुनौतीपूर्ण परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन किया था, बल्कि इसलिए कि वह यह बात मुझे बताना चाह रही थी l वह अपनी खुशखबरी मेरे साथ साझा करना चाहती थी!
यह महसूस करते हुए कि उसके सन्देश ने मेरा दिन बना दिया था, मैंने बाद में सोचा कि जब मैं परमेश्वर के पास पहुँचता हूँ तो उसे कैसा महसूस होता होगा l जब मैं उससे बात करता हूँ तो क्या वह उतना ही प्रसन्न होता है? प्रार्थना वह तरीका है जिससे हम परमेश्वर के साथ संवाद करते हैं और प्रार्थना “निरंतर” करने के लिए कहा गया है(1 थिस्सलुनीकियों 5:17) l उसके साथ बात करना हमें याद दिलाता है कि वह हर अच्छे और बुरे समय में हमारे साथ है l परमेश्वर के साथ अपनी खबरें साझा करना, भले ही वह पहले से ही हमारे बारे में सब कुछ जानता हो, सहायक है क्योंकि यह हमारा ध्यान केन्द्रित करता है और हमें उसके बारे में सोचने में सहायता करता है l यशायाह 26:3 कहता है, “जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए है, उसकी तू पूर्ण शांति के साथ रक्षा करता है क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है l” जब हम अपना ध्यान परमेश्वर की ओर लगाते हैं तो शांति हमारा इंतज़ार कर रही होती है l
चाहे हम किसी भी स्थिति का सामना करें, हम लगातार परमेश्वर से बात करते रहें और अपने सृष्टिकर्ता और उद्धारकर्ता के संपर्क में रहें l धीरे से प्रार्थना करें और आनंद मानना और “धन्यवाद देना” याद रखें l आखिरकार, पौलुस कहता है, हमारे लिए “परमेश्वर की यही इच्छा है”(1 थिस्सलुनीकियों 5:18) l
जीवन के उतार-चढ़ाव
एक फ़ेसबुक मेमोरी सामने आई, जिसमें मुझे मेरी पाँच साल की विजयी बच्ची दिखी, जब उसने साँप और सीढ़ी का एक मज़ेदार और मुक़ाबलेदार खेल जीता था। मैंने पोस्ट में अपने भाई और बहन को टैग भी किया था क्योंकि जब हम बच्चे थे तो हम अक्सर यह गेम खेला करते थे। यह खेल मनोरंजक है और कई सदियों से खेला जाता रहा है। यह लोगों को गिनती सीखने में भी मदद करता है और सीढ़ी पर चढ़ने और सबसे तेज 100 तक पहुंचकर गेम जीतने का रोमांच प्रदान करता है। पर ध्यान दें! यदि आप 98 पर पहुँच जाए, तो सांप से कटने के कारण आप काफी नीचे खिसक जाते हैं, जिससे जीतने में विलम्ब हो सकता है - या फिर - जीतने से चूक जाते हैं।
क्या यह बिल्कुल जीवन जैसा नहीं है? यीशु ने प्रेमपूर्वक हमें हमारे जीवन के दिनों के उतार-चढ़ाव के लिए तैयार किया। उन्होंने कहा कि हम "क्लेश" का अनुभव करेंगे (यूहन्ना 16:33), लेकिन उन्होंने शांति का संदेश भी साझा किया। हमें अपने सामने आने वाली परीक्षाओं से विचलित नहीं होना है। क्यों? मसीह ने संसार पर विजय प्राप्त की है! उसकी शक्ति से बढ़कर कुछ भी नहीं है, इसलिए हम भी उस "शक्तिशाली सामर्थ" के साथ जो उसने हमारे लिए उपलब्ध की है, उसके द्वारा हमारे रास्ते में आने वाली किसी भी चीज़ का सामना कर सकते हैं (इफिसियों 1:19)।
साँप और सीढ़ी की तरह, कभी-कभी जीवन एक सीढ़ी प्रस्तुत करता है जिससे हम ख़ुशी-खुशी ऊपर चढ़ जाए, और कभी-कभी हम फिसलन भरे साँप से नीचे गिर जाते हैं। लेकिन हमें जीवन का खेल बिना आशा के नहीं खेलना है। हमारे पास यीशु की शक्ति है इन सब पर विजयी होने के लिए।
एक दूसरे की सहायता करें
जब एक कम स्थापित स्कूल की क्रिकेट टीम क्रिकेट टीम क्रिकेट जोनल टूर्नामेंट(zonal tournament) के लिए मैदान में उतरी, तो स्टैंड में मौजूद प्रशंसकों ने कमजोर टीम के लिए उत्साह बढ़ाया l इस टीम से पहले दौर से आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन उन्होंने ऐसा किया l और अब उन्होंने स्टैंड से अपने स्कूल के गाने की आवाज़ सुनी जो उन्हें उत्साहित कर रही थी, हालाँकि उनके साथ कोई बैंड नहीं था l उनके प्रतिद्वंद्वी स्कूल बैंड ने हालाँकि जीत का पक्ष लिया था, लेकिन खेल से कुछ मिनट पहले उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी का स्कूल गाना सीख लिया था l बैंड केवल वे गाने बजा सकता था, जिन्हें वे जानते थे, लेकिन उन्होंने दूसरे स्कूल और दूसरी टीम की सहायता करने के लिए गाना सीखने का फैसला किया l
इस बैंड की गतिविधियों को फिलिप्पियों में वर्णित एकता के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है l पौलुस ने फिलिप्पी के आरंभिक चर्च को—और आज हमें—एकता में रहने, या “एक मन” (फिलिप्पियों 2:2) रहने के लिए कहा, खासकर इसलिए क्योंकि वे मसीह में एकजुट थे l ऐसा करने के लिए, प्रेरित ने उन्हें स्वार्थी महत्वाकांक्षा छोड़ने और अपने हितों से पहले दूसरों के हितों पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया l
दूसरों को अपने से ऊपर महत्व देना स्वाभाविक रूप से नहीं आ सकता है l पौलुस ने लिखा, “विरोध या झूठी बड़ाई के लिए कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो”(पद.3) l “हर एक अपने ही हित की नहीं, वरंन् दूसरों के हित कि भी चिंता करें”(पद.4) l
हम दूसरों का समर्थन कैसे कर सकते हैं? उनकी रुचियों पर ध्यानपूर्वक विचार करके, चाहे उनके युद्ध गीत सीख करके या उन्हें जो कुछ भी आवश्यकता हो उस प्रदान करके l
एक दूसरे से सीखना
ज़ूम(Zoom) के एक सुलभ संचार उपकरण होने से कई साल पहले, एक मित्र ने मुझसे एक प्रोजेक्ट पर चर्चा करने के लिए विडियो कॉल पर शामिल होने के लिए कही थी l मेरे ईमेल के लहजे से, वह बता सकती थी कि मैं भ्रमित हूँ, इसलिए उसने सुझाव दिया कि मैं एक किशोर को ढूँढूँ जो मुझे वीडियो कॉल सेट करने का तरीका जानने में सहायता करेगा l
उनका सुझाव पीढ़ियों के बीच घटित संबंधों के मूल्य की ओर इशारा करता है l यह रूत और नाओमी की कहानी में देखा गया कुछ है l रूत को अक्सर एक वफादार बहु होने के लिए स्वीकारा जाता है, जिसने नाओमी के साथ बैतलहम वापस जाने के लिए अपनी भूमि छोड़ने का फैसला किया(रूत 1:6-17) l जब वे नगर में पहुँचे, तो उम्र में छोटी स्त्री ने नाओमी से कहा, “मुझे किसी खेत में जाने दे . . . कि मैं सिला बीनती जाऊं” (2:2) l उसने बड़ी उम्र की स्त्री की मदद की, जिसने छोटी स्त्री की बोअज से विवाह करने में मदद की l रूत के लिए नाओमी की सलाह ने बोअज को उसके मृत ससुराल वालों की संपत्ति खरीदने और उसे “अपनी पत्नी के रूप में” लेने के लिए कार्यवाई करने के लिए प्रेरित किया (4:9-10) l
हम निश्चित रूप से उन लोगों की सलाह का सम्मान करते हैं जो युवा पीढ़ी के साथ अपने अनुभवी ज्ञान को साझा करते हैं l लेकिन रूत और नाओमी हमें याद दिलाती हैं कि आदान-प्रदान दोनों तरीकों से हो सकता है l अपने से छोटे लोगों के साथ-साथ बड़े लोगों से भी कुछ न कुछ सीखा जा सकता है l आइये प्रेमपूर्ण और विश्वासयोग्य अंतर-पीढ़ीगत संबंधों को विकसित करने का प्रयास करें l यह हमें और दूसरों को आशीष देगा और हमें कुछ सीखने में मदद करेगा जो हम नहीं जानते हैं l