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Articles by कटारा पैटन

प्रार्थना हेतु प्रेरित किया गया

एक सहकर्मी ने मुझसे कहा कि हमारे मेनेजर की वजह से उसका प्रार्थना जीवन बेहतर हुआ है l मैं यह सोचकर प्रभावित हुयी कि हमारे कठिन अगुआ ने उसके साथ कुछ आध्यात्मिक बातें साझा की थीं और उसके प्रार्थना करने के तरीके को प्रभावित किया था l मैं गलत थी—कुछ इस तरह l मेरे सहकर्मी और सहेली ने समझाया : “हर बार जब मैं उसे आते हुए देखती हूँ, तो प्रार्थना करना शुरू कर देती हूँ l” उसके प्रार्थना करने के समय में सुधार हुआ था क्योंकि वह उसके साथ प्रत्येक बातचीत से पहले अधिक प्रार्थना करती थी l वह जानती थी कि उसके अपने प्रबंधक के साथ चुनौतीपूर्ण कार्य संबंधों में ईश्वर की मदद चाहिए और इसलिए उसने उसे अधिक पुकारा l 

कठिन समय और बातचीत के दौरान प्रार्थना करने की मेरी सहकर्मी की प्रथा कुछ ऐसी है जिसे मैंने अपनाया है l यह 1 थिस्सलुनीकियों में पायी जाने वाली एक बाइबल प्रथा भी है जब पौलुस यीशु में विश्वासियों को “निरंतर प्रार्थना करने” और “हर बात में धन्यवाद” करने की याद दिलाता है (1 थिस्सलुनीकियों 5:13) l चाहे हम किसी भी परिस्थिति का सामना करें, प्रार्थना हमेशा सर्वोत्तम अभ्यास है l यह हमें ईश्वर से जोड़े रखता है और उसकी आत्मा को हमें निर्देशित करने के लिए आमंत्रित करता है (गलातियों 5:16) बजाय इसके कि हम अपनी मानवीय प्रवृत्तियों पर निर्भर रहें l यह हमें संघर्षों का सामना करने पर भी “आपस मैं मेलमिलाप से [रहने]” में मदद करता है (1 थिस्सलुनीकियों 5:13) l 

जब ईश्वर हमारी सहायता करता है, हम उसमें आनंदित हो सकते हैं, हर चीज़ के लिए प्रार्थना कर सकते हैं और अक्सर धन्वाद दे सकते हैं l और वे चीज़ें और भाइयों और बहनों के साथ और भी अधिक सद्भाव में रहने में मदर करेंगी l

सुनने के लिये तत्पर

जैसे ही मैंने एक प्रिय मित्र द्वारा मुझ पर लगाए गए आरोपों का खंडन करने के लिए अपना मुँह खोला, मुझे अपनी हृदय गति बढ़ती हुई महसूस हुई। मैंने जो ऑनलाइन पोस्ट किया था, उसका उससे कोई लेना-देना नहीं था, जैसा कि उसने बताया। लेकिन उत्तर देने से पहले मैंने धीरे से प्रार्थना की। फिर मैं शांत हुआ और सुना कि वह क्या कह रही थी और उसके शब्दों के पीछे का दर्द क्या था। यह स्पष्ट था कि यह सतह से अधिक गहराई तक चला गया।मेरी दोस्त दुखी थीए और जब मैंने उसके दु,ख को दूर करने में उसकी मदद करने का फैसला किया तो मेरी खुद की रक्षा करने की जरूरत खत्म हो गई।

इस बातचीत के दौरान, मुझे पता चला कि पवित्रशास्त्र के आज के वचन में याकूब का क्या मतलब था जब उसने हमसे "सुनने में तत्पर, बोलने में धीमे और क्रोध करने में धीमे होने" का आग्रह किया (1:19)। सुनने से हमें शब्दों के पीछे क्या हो सकता है यह सुनने में मदद मिल सकती है और क्रोध से बचने में मदद मिल सकती है जो "वह धार्मिकता उत्पन्न नहीं करता जो ईश्वर चाहता है" (पद20)। यह हमें वक्ता के दिल की बात सुनने की अनुमति देता है। मुझे लगता है कि रुकने और प्रार्थना करने से मुझे अपने दोस्त के साथ बहुत मदद मिली। मैं अपने अपराध के बजाय उसके शब्दों के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया। शायद अगर मैंने प्रार्थना करना बंद नहीं किया होता, तो मैंने अपने विचारों को उलट  दिया होता और साझा किया होता कि मैं कितना आहत हूं।

 

और जबकि मुझे हमेशा वह निर्देश नहीं मिला जो याकूब ने बताया था, उस दिनमुझे लगता है कि मुझे मिल गया। ।क्रोध और आक्रोश को मुझ पर हावी होने देने से पहले प्रार्थना के लिए रुकनातेजी से सुनने और धीरे-धीरे बोलने की कुंजी थी।मैं प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर मुझे ऐसा अधिक बार करने की बुद्धि दे (नीतिवचन 19:11)।

परमेश्वर की बुद्धि जीवनों को बचाता है

एक डाकिया अपने एक ग्राहक के डाक को ढेर में देखकर चिंतित हो गया। डाक कर्मचारी जानता था कि बुजुर्ग महिला अकेली रहती थी और आमतौर पर हर दिन अपना डाक उठाती थी। एक बुद्धिमान निर्णय लेते हुए, कार्यकर्ता ने महिला के पड़ोसियों में से एक को अपनी चिंता बातयी । इस पड़ोसी ने दूसरे पड़ोसी को सचेत किया, जिसके पास उस महिला के घर का एक अतिरिक्त चाबी थी। वे एक साथ अपने दोस्त के घर में गए और उसे फर्श पर पड़ा हुआ पाया। वह चार दिन पहले गिर गई थी और न तो उठ सकी और न ही मदद के लिए पुकार सकी। डाक कर्मचारी की बुद्धिमत्ता, चिंता और कार्य करने के निर्णय से  संभवतः उसकी जान बाख गयी ।  

 

नीतिवचन कहता है, “और जो आत्माओं को जीत लेता है वह बुद्धिमान है” (11:30)। परमेश्वर की बुद्धि के अनुसार सही काम करने और जीने से जो विवेक आता है, वह न केवल हमें बल्कि उन लोगों को भी आशीर्वाद दे सकता है जिनसे हम मिलते हैं। उसका और उसके तरीकों का सम्मान करने वाले जीवन जीने का फल एक अच्छा और स्फूर्तिदायक जीवन उत्पन्न कर सकता है। और हमारा फल हमें दूसरों की देखभाल करने और उनकी भलाई का ध्यान रखने के लिए भी प्रेरित करता है।

 

जैसा कि नीतिवचन के लेखक ने पूरे पुस्तक में दावा किया है, बुद्धि परमेश्वर पर निर्भरता में पाई जाती है। बुद्धि “मुंगे से भी अच्छी है, और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है” (8:11)। जो बुद्धि परमेश्वर प्रदान करता है वह जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करती रहती है। यह अनंत काल के लिए किसी का जीवन बचा सकता है।

विश्वास से देखना

मेरी सुबह की सैर के दौरान, सूरज झील के पानी पर एक सही कोण पर टकराया जिससे एक आश्चर्यजनक दृश्य उत्पन्न हुआ। जैसे ही मैंने तस्वीर लेने के लिए अपना कैमरा ठीक किया, मैंने अपने दोस्त से रुककर मेरा इंतज़ार करने को कहा। सूर्य की स्थिति के कारण, मैं शॉट लेने से पहले अपने फोन की स्क्रीन पर तस्वीर नहीं देख सका। लेकिन पहले भी ऐसा किया था, इसलिए लगा कि यह एक बेहतरीन तस्वीर होगी। मैंने अपने दोस्त को कहा, "अभी हम इसे नहीं देख सकते, लेकिन इस तरह की तस्वीरें हमेशा अच्छी आती हैं।" 

इस जीवन में विश्वास के साथ चलना अक्सर उस तस्वीर को लेने जैसा होता है। आप हमेशा स्क्रीन पर विवरण नहीं देख सकते, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आश्चर्यजनक तस्वीर वहां नहीं है। आप हमेशा परमेश्वर को कार्य करते हुए नहीं देखते हैं, लेकिन आप भरोसा कर सकते हैं कि वह वहाँ है। जैसा कि इब्रानियों के लेखक ने लिखा,"अब विश्‍वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्‍चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।"(11:1) विश्वास के द्वारा हम परमेश्वर पर अपना निश्‍चयता और प्रमाण रखते हैं— खासकर जब हम देख या समझ नहीं सकते कि वह क्या कर रहा है। विश्वास के साथ, न देखना हमें "शॉट लेने" से नहीं रोकता है। यह हमें और अधिक प्रार्थना करने और परमेश्वर का निर्देश प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है। हम यह जानकर भी भरोसा कर सकते हैं कि अतीत में क्या हुआ था जब अन्य लोग विश्वास से चले(पद 4-12)। साथ ही हमारी अपनी गवाही के माध्यम से भी। परमेश्वर ने पहले जो किया है, वह फिर से कर सकता है।

एक चुनाव (विकल्प)

एक प्रिय मित्र की मृत्यु के कुछ सप्ताह बाद, मैंने उसकी माँ से बात की। मैं उनसे यह पूछने में झिझक रहा था कि वह कैसी थी क्योंकि मुझे लगा कि यह एक अनुचित प्रश्न था; वह शोक मना रही थीI लेकिन अपनी अनिच्छा को हटाते हुए मैंने बस पूछ ही लिया कि वह कैसी स्थिति में है। उनका उत्तर था: "सुनो, मैं आनंद चुनती हूँ।"

उस दिन जब मैं अपने जीवन में कुछ अप्रिय परिस्थितियों से आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहा था, तो उनके वह शब्द मेरे लिए सहायक साबित हुए। और उनके शब्दों ने मुझे व्यवस्थाविवरण के अंत में इस्राएलियों को दिए गए मूसा के आदेश की भी याद दिला दी। मूसा की मृत्यु और वादा किए गए देश में इस्राएलियों के प्रवेश से ठीक पहले, परमेश्वर चाहता था कि उन्हें पता चले कि उनके पास एक चुनाव (विकल्प)  है। मूसा ने कहा, “मैंने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है। इसलिए तू जीवन ही को अपना ले” (व्यवस्थाविवरण 30:19)। वे परमेश्वर के नियमों का पालन कर सकते थे और अच्छी तरह से जीवन जी सकते थे, या वे उससे दूर हो सकते थे और "मृत्यु और विनाश" के परिणामों के साथ जीवन जी सकते थे (पद 15)।

किस प्रकार जीवन जीना है हमें इसका भी चुनाव करना होगा। हम अपने जीवन के लिए परमेश्वर के वादों पर विश्वास और भरोसा करके आनंद चुन सकते हैं। या फिर हम अपनी जीवन यात्रा के नकारात्मक और कठिन हिस्सों पर ध्यान केंद्रित करना चुन सकते हैं, जिससे वे हमारी खुशियाँ छीन सकें। ऐसा करने के लिये पवित्र आत्मा से मदद के लिए उस पर निर्भर रहने और अभ्यास की आवश्यकता होगी, लेकिन हम आनंद को चुन सकते हैं - यह जानते हुए कि  “जो लोग परमेश्वर से प्रेम करतें हैं उनके लिए सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है " (रोमियों 8:28)।

परमेश्वर हमारे पापों को ढक देता है

1950 के दशक में जब एक अकेली माँ को अपने परिवार की देखभाल के लिए काम ढूंढना पड़ा, तो उसने टाइपिंग का काम करना शुरू कर दिया। पर समस्या यह थी कि वह बहुत अच्छी टाइपिस्ट नहीं थी और गलतियाँ करती रहती थी। वह अपनी गलतियों को छिपाने के तरीकों को ढूंढती रही और अंततः उसने एक सफेद रंग का तरल पदार्थ’ बनाया जिसे लिक्विड पेपर का नाम दिया गया और जिसका उपयोग टाइपिंग त्रुटियों को छिपाने के लिए किया जाता था। एक बार इसे लगाने के बाद जब यह सूख जाता, तो आप उस पर टाइप कर सकते हैं जैसे कि कोई गलती हुई ही नहीं थी।

यीशु हमें हमारे पापों से निपटने के लिए एक असीम रूप से अधिक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण तरीका प्रदान करते हैं – कोई छिपाव नहीं बल्कि पूर्ण क्षमा। इसका एक अच्छा उदाहरण यूहन्ना 8 अध्याय के शुरु में मिलता है जहां एक महिला व्यभिचार में पकड़ी गई थी (पद 3–4)। फरीसी और शास्त्री चाहते थे कि यीशु उस स्त्री और उसके पापों के बारे में कुछ करे। व्यवस्था (कानून) के अनुसार उसे पत्थरवाह किया जाना चाहिए, लेकिन मसीह ने इस पर कोई विचार नहीं किया कि व्यवस्था क्या कहती है और क्या नहीं। उसने बस उन्हें याद दिलाया कि सभी ने पाप किया है (रोमियों 3:23)। और “जिसने पाप नहीं किया वही उस महिला को पहिला पत्थर मारे” (यूहन्ना 8:7) ; यीशु की यह बात सुनकर किसी ने भी पत्थर नहीं मारा।

यीशु ने उसे एक नई शुरुआत की सलाह दी। उसने कहा कि “मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता, जा और फिर पाप न करना।” (यूहन्ना 8:11) । मसीह ने उसे उसके पापों को माफ करने और उसके अतीत पर जीने का एक नया तरीका “टाइप” करने का समाधान दिया। उसके अनुग्रह से यही प्रस्ताव आज हमें भी उपलब्ध है।

आशीषित मास्क

महामारी के दौरान जैसे-जैसे मास्क की अनिवार्यता कमजोर पड़ती गई, वैसे-वैसे जहाँ कहीं भी मास्क रखने की आवश्यकता पड़ती थी, जैसे कि मेरी बेटी का स्कूल, वहाँ मास्क रखने की बात को याद रखना मेरे लिए मुश्किल होता गया। एक दिन जब मुझे एक मास्क की आवश्यकता पड़ी, तो मुझे अपनी कार में केवल एक ही मास्क मिला, जिसे मैंने इसलिए नहीं पहनना चाहा क्योंकि उस पर आगे की तरफ आशीषित लिखा हुआ था। 

मैं बिना संदेशों वाले मास्क पहनना पसंद करता हूँ, और मुझे विश्वास है कि जो मास्क मुझे मिला था उस पर लिखे उस शब्द का बहुत अधिक उपयोग किया गया है। परन्तु मेरे पास कोई विकल्प नहीं था, इसलिए मैंने न चाहते हुए भी वह मास्क लगा लिया। और जब मैं स्कूल में एक नई रिसेप्शनिस्ट के साथ अपनी झुंझलाहट को प्रकट करने ही वाला था, तो मैंने मेरे मास्क पर लिखे हुए शब्द के कारण अपने आप को थोड़ा सम्भाल लिया। मैं एक पाखंडी की तरह नहीं दिखना चाहता था, जो एक जटिल प्रणाली को समझने की कोशिश करते हुए एक दूसरे व्यक्ति के प्रति अधीरता दिखाते हुए अपने मुंह पर “आशीर्वाद” लिख कर घूम रहा था।

यद्यपि मेरे मास्क पर लगे अक्षरों ने मुझे मसीह के निमित्त मेरी गवाही की याद दिला दी, परन्तु मेरे हृदय में पवित्रशास्त्र के वचन दूसरों के साथ धीरज धरने के लिए एक सच्चा अनुस्मारक होने चाहिए। जैसे पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखा कि “तुम मसीह की पत्री हो, ...जो स्याही से नहीं, परन्तु जीविते परमेश्‍वर के आत्मा से पत्थर की पटियों पर नहीं, परन्तु हृदय की माँसरूपी पटियों पर लिखी है” (2 कुरिन्थियों 3:3), वैसे ही“जीवन देने वाला”पवित्र आत्मा (पद 6), “प्रेम, आनन्द, शांति” और हाँ, “धीरज” के साथ जीवन व्यतीत करने में हमारी सहायता कर सकता है (गलातियों 5:22)। हम अपने भीतर उसकी उपस्थिति से वास्तव में आशीषित हैं! 

नम्रता पहनना

फ्रोजन ट्रीट्स फ्रैंचाइजी के सीईओ टेलीविजन श्रृंखला अंडरकवर बॉस पर खजांची की वर्दी पहने हुए, गुप्त रूप से गई। फ़्रैंचाइज़ी के दुकानों में से एक में काम करते हुए, उसका विग और श्रृंगार ने उसके पहचान को छुपा दिया क्योंकि वह "नई" कर्मचारी बन गई। उसका लक्ष्य यह देखना था कि अंदर और जमीन पर चीजें वास्तव में कैसे काम कर रही हैं। अपने अवलोकन के आधार पर, वह दुकान के कुछ समस्याओं का हल की जिसका सामना दुकान कर रहा था। 

यीशु ने हमारे समस्याओं का हल करने के लिए अपने आप को " शून्य कर दिया" (फिलिप्पियों 2:7)। वह मानव बना - पृथ्वी पर चला, हमें परमेश्वर के बारे में शिक्षा दिया, और अंततः हमारे पापों के लिए क्रूस पर मरा (पद. 8)। इस बलिदान ने मसीह के नम्रता को उजागर किया क्योंकि उसने आज्ञाकारिता से अपने जीवन को हमारे पापबलि के रूप में दे दिया। उन्होंने मनुष्य के तरह पृथ्वी पर चला और वह अनुभव किया जो हम अनुभव करते हैं—जमीन के स्तर से। 

यीशु में विश्वासियों के रूप में, हम “उसकी स्वभाव” को रखने के लिए बुलाये गये हैं (पद. 5)। परमेश्वर हमें नम्रता पहनने (पद. 3) और मसीह के मानसिकता को अपनाने में मदद करता है (पद. 5)। वह हमें दूसरों के जरूरतों को पूरा करने और मदद के लिए हाथ बढ़ाने को तैयार रहने वाले सेवकों के रूप में जीने के लिए प्रेरित करता है। जैसे परमेश्वर हमें दूसरों को नम्रता से प्यार करने के लिए अगुआई करता है,हम उनका सेवा करने और जिन समस्याओं का वे सामना करते हैं करुणा पूर्वक समाधान ढूंढने की बेहतर स्थिति में हैं।

सच्चा धर्म

मेरे कॉलेज के दूसरे वर्ष के बाद की गर्मियों में, मेरे एक सहपाठी की अचानक से मृत्यु हो गई। मैंने उसे कुछ दिन पहले ही देखा था और वह ठीक लग रहा था। मेरे सहपाठी और मैं युवा थे और हमने सोचा था कि हम अपने जीवन के सबसे अच्छे और शक्तिशाली दिनों में हैं, और हमने जीवन भर के लिए बहन और भाई बनने का संकल्प लिया था।

लेकिन मुझे अपने सहपाठी की मृत्यु के बारे में जो सबसे ज्यादा याद है वह यह था कि मैं अपने दोस्तों को उस तरह का जीवन जीते देख रहा था जिसे प्रेरित याकूब  “शुद्ध और निर्मल भक्ति” कहते हैं (याकूब 1:27) । अपनी बिरादरी (समूह) के पुरुष,मृतक की बहन के भाई जैसे हो गए। उन्होंने उसकी शादी में भाग लिया और उसके भाई की मृत्यु के वर्षों बाद उसकी गोद भराई के लिये भी गये। एक ने उसे एक सेल फोन भी उपहार में दिया ताकि जब भी उसे कॉल करने की जरूरत हो वह उससे संपर्क कर सके।

याकूब के अनुसार, “शुद्ध और निर्मल भक्ति अनाथों और विधवाओं के संकट में उनकी सुधि लेना है” ( 27) । जबकि मेरे दोस्त की बहन शाब्दिक अर्थों में अनाथ नहीं थी, पर  अब उसका भाई नहीं था। उसके नए भाइयों ने उसके खाली स्थान  को भर दिया।

और यही वह है जो हम सभी जो यीशु में शुद्ध और निर्मल भक्ति  का अभ्यास करना चाहते हैं, कर सकते हैं — “वचन पर चलने वाले बनो” (पद 22)  जिसमें ज़रूरतमंदों की देखभाल करना भी शामिल है (2:14–17) । उस पर हमारा विश्वास हमें कमजोर लोगों की देखभाल करने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि हम खुद को दुनिया के नकारात्मक प्रभावों से दूर रखते हैं, क्योंकि वह हमारी मदद करता है। आखिरकार, यही वह शुद्ध और निर्मल भक्ति  है जिसे परमेश्वर स्वीकार करता है।