Our Authors

सब कुछ देखें

Articles by माँरविन विलियम्स

मसीह में मजबूत समर्थन

लन्दन मैराथन(लम्बी दौड़) में एक धावक ने अनुभव किया कि बड़ी/लम्बी दौड़ में अकेले दौड़ना क्यों महत्वपूर्ण नहीं है l महीनों की कठिन तैयारी के बाद, वह आदमी जोरदार अंत करना चाहता था l लेकिन जैसे ही वह समापन रेखा की ओर लड़खड़ाने लगा, उसने खुद को दोगुना थका हुआ और गिरने की कगार पर पाया l इससे पहले कि वह भूमि पर गिरता, दो साथी मैराथन धावकों ने उसकी बाँहें पकड़ लीं—एक बायीं ओर से और एक दायीं ओर से—और संघर्षरत धावक को दौड़ पूरी करने में मदद की l 

उस धावक की तरह, सभोपदेशक का लेखक हमें कई महत्वपूर्ण फायदों की याद दिलाता है जो दूसरों को हमारे साथ जीवन की दौड़ में दौड़ने से मिलते हैं l सुलैमान ने यह सिद्धांत निर्धारित किया कि “एक से दो अच्छे हैं”(सभोपदेशक 4:9) l उसने संयुक्त प्रयासों और आपसी परिश्रम के फायदों पर प्रकाश डाला l उसने यह भी लिखा कि साझेदारी से “उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है”(पद.9) l कठिनाई के समय में, एक साथी “[दूसरे को उठाने]” के लिए उपस्थित रहता है(पद.10) l जब रातें अँधेरी और ठंडी होती हैं, तो मित्र “गर्म [रहने]” के लिए इकठ्ठा हो सकते हैं(पद.11) l और, खतरे के मध्य, दो लोग एक हमलावर का “सामना कर [सकते हैं]”(पद.12) l जिनका जीवन एक साथ बुना हुआ है, उनमें अत्यधिक  शक्ति हो सकती है l 

हमारी सभी कमजोरियों और निर्बलताओं के बावजूद, हमें यीशु में विश्वास करने वाले समुदाय के मजबूत समर्थन और सुरक्षा की ज़रूरत है l आइये एक साथ आगे बढ़ें क्योंकि वह हमारा नेतृत्व करता है l 

पवित्र आत्मा उपस्थित है

एक घरेलू उड़ान के लिए उड़ान से पहले जांच करते समय, एक फ्लाइट अटेंडेंट ने देखा कि एक महिला यात्री उड़ान के बारे में बहुत ही व्याकुल और चिंतित दिख रही थी l अटेंडेंट गलियारे वाली सीट पर बैठ गया, और उसका हाथ पकड़ लिया, उड़ान प्रक्रिया के प्रत्येक चरण को समझाया, और उसे निश्चित किया कि वह अच्छी रहेगी l उसने कहा, “जब आप विमान पर चढ़ते हैं, तो यह हमारे बारे में नहीं है, यह आपके बारे में है l” “और यदि आप अच्छा महसूस नहीं कर रही हैं, तो मैं यह कहने के लिए वहाँ रहना चाहता हूँ, ‘अरे, क्या परेशानी है? क्या ऐसा कुछ है जो मैं कर सकता हूँ?” उनकी देखभाल करने वाली उपस्थिति इस बात की एक तस्वीर हो सकती है कि यीशु ने क्या कहा था कि पवित्र आत्मा उसके विश्वासियों के लिए क्या करेगा l 

मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण लोगों को उनके पापों से बचाने के लिए आवश्यक और लाभदायक था, लेकिन यह शिष्यों के हृदयों में भावनात्मक अशांति और गहरा दुःख भी पैदा करने वाला था(यूहन्ना 14:1) l इसलिए उसने उन्हें निश्चित किया कि संसार में उसके मिशन/उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जाएगा l वह पवित्र आत्मा को उनके साथ रहने के लिए भेजने वाला था—“एक सलाहकार/पक्ष-समर्थक/advocate[उनकी] सहायता करने के लिए और हमेशा के लिए [उनके] साथ रहने के लिए एक वकील”(पद.16) l आत्मा यीशु के बारे में साक्षी देगा और उन्हें मसीह द्वारा किये और कहे गए सभी कार्यों की याद दिलाएगा(पद.26) l कठिन समय में उसके द्वारा उनकी “उन्नति” होगी(प्रेरितों 9:31) l 

इस जीवन में, हर कोई—मसीह में विश्वासियों सहित—चिंता, भय और दुःख की अशांति का अनुभव करेगा l लेकिन उसने वादा किया है कि उसकी अनुपस्थिति में, पवित्र आत्मा हमें सांत्वना देने के लिए मौजूद है l 

 

आत्मिक राजसी सत्ता

जब यू एस ए के जे स्पाइट्स ने डी.एन.ए परीक्षण कराया, तो उन्हें जो परिणाम मिले, उसके लिए उन्हें कोई भी चीज़ तैयार नहीं कर सकती थी। एक बहुत बड़ी आश्चर्य कर देने वाली बात पता चली—वह पश्चिमी अफ़्रीकी देश बेनिन के राजकुमार थे! जल्द ही वह एक विमान में बैठे और देश का दौरा किया। जब वह वहाँ पहुंचे, तो शाही परिवार ने उनका स्वागत किया और घर वापसी पर जश्न मनाया - नाच, गाना, झंडे फहराना और एक परेड।

यीशु, परमेश्वर की खुशखबरी के एलान के रूप में पृथ्वी पर आये। वह अपनी प्रजा, इस्राएलियों के पास गए, ताकि उन्हें सुसमाचार दे सके और उन्हें अंधकार से बाहर निकलने का रास्ता दिखा सके। कई लोगों ने बेपरवाही के साथ संदेश लिया, "सच्ची ज्योति" (यूहन्ना 1:9) को अस्वीकार कर दिया और उन्हें मसीहा के रूप में स्वीकार करने से इनकार किया (पद 11)। लेकिन लोगों के बीच अविश्वास और बेपरवाही सामान्य नहीं थी। कुछ लोगों ने ख़ुशी और विनम्रता से मसीह के निमंत्रण को स्वीकार किया, यीशु को पाप के लिए परमेश्वर के अंतिम बलिदान के रूप में स्वीकार करके, उनके नाम पर विश्वास किया। और इन शेष विश्वासयोग्य लोगों के लिए एक आश्चर्य इंतज़ार कर रहा था। उसने "उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया" (पद 12) - नए आत्मिक जन्म द्वारा उसके राजकीय संतान बन जाए। 

जब हम पाप और अंधकार से फिरते हैं, यीशु को स्वीकार करते हैं, और उनके नाम पर विश्वास करते हैं, तो हम जान पाते है कि हम परमेश्वर की संतान हैं, जिन्हें उनके परिवार में राजघराने के रूप में अपनाया गया है। राजा की संतान होने की जिम्मेदारियों को निभाते हुए इस आशीष का आनंद लें।

 

मसीह में सच्चाई से बोलना

एक आदमी झूठ बोलकर अपने  ट्रैफिक चलान के भुक्तान से बचने में माहिर था। जब वह अदालत में विभिन्न न्यायाधीशों के सामने पेश होता, तो वो एक ही कहानी सुनाता: "मेरा अपने दोस्त से झगड़ा हो गया था और वह मेरी जानकारी के बिना मेरी कार ले गई।" इसके अलावा, नौकरी के दौरान दुर्व्यवहार के लिए उसे बार-बार फटकार भी लगाई जाती थी। अभियोजकों ने अंततः उस पर झूठी गवाही देने के चार आरोप लगाए,   और शपथ के तहत न्यायाधीशों से कथित तौर पर झूठ बोलने के लिए जालसाजी के पांच मामले और फर्जी पुलिस रिपोर्ट उपलब्ध कराने के मामले ।    इस आदमी के लिए झूठ बोलना जीवन भर की आदत बन गई थी। 

इसके विपरीत, प्रेरित पौलुस ने कहा कि सच बोलना यीशु में विश्वासियों के लिए एक महत्वपूर्ण आदत है। उसने इफिसियों को याद दिलाया कि उन्होंने अपने जीवन को मसीह को समर्पित करके अपने पुराने जीवन जीने के तरीके को त्याग दिया है (इफिसियों 2:1-5)। इसलिए अब, जबकि वें एक नई सृष्टि बन गए है तो उन्हें कुछ कामों को अपने जीवन में शामिल करते हुए नया जीवन जीना भी आवश्यक है । ऐसा एक काम जिसे करना छोडना है – वह है –"झूठ को छोडना " - और दूसरा काम जिसे अभ्यास में लाना है- "अपने पड़ोसी से सच बोलना" (4:25)। क्योंकि इससे कलीसिया की एकता सुरक्षित रहती है, इसलिए इफिसियों के लिए था कि उनके शब्द और काम हमेशा "दूसरों के निर्माण (उन्नति) " के लिए हो (पद 29)। 

जब पवित्र आत्मा हमारी सहायता करता है (पद 3-4), यीशु में विश्वास करने वाले अपने शब्दों और कामों में सत्य के लिए प्रयास कर सकते हैं। तब कलीसिया एकीकृत होगी, और परमेश्वर को इसके द्वारा आदर पहुँचेगा।

यीशु के प्रकट चिन्ह

एक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने व्यक्तिगत सेल फोन उपयोगकर्ताओं के लक्षणों और जीवनशैली की आदतों की पहचान करने के लिए प्रायोगिक आणविक स्वाब परिक्षण(swab test) चलाया l उन्होंने ऐसी चीज़ों के अलावा, सेल फोन उपयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग किये जाने वाले साबुन, लोशन, शैम्पू और मेकअप की खोज की; उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले भोजन, पेय और दवाओं का प्रकार; और उन्होंने किस प्रकार के कपड़े पहने थे l अध्ययन ने शोधकर्ताओं को प्रत्येक व्यक्ति की जीवनशैली का प्रोफाइल बनाने की अनुमति दी l 

बेबीलोन में प्रशासकों ने किसी भी नकारात्मक लक्षण या जीवशैली की आदतों का पता लगाने के लिए नबी दानिय्येल के जीवन को लाक्षणिक रूप से “स्वाब/swab” किया l लेकिन उसने लगभग सत्तर वर्षों तक ईमानदारी से साम्राज्य की सेवा की—जिसे “विश्वासयोग्य और . . . [जिसके] काम में कोई भूल या दोष [नहीं पाया गया] (दानिय्येल 6:4) l वास्तव में, नबी को राजा दारा द्वारा अपने कई राज्यपालों के “तीन अध्यक्षों” में से एक के रूप में पदोन्नत किया गया था (पद. 1-2) l शायद ईर्ष्या के कारण, ऐसे अधिकारी दानिय्येल में भ्रष्टाचार के चिन्ह तलाश रहे थे ताकि वे उससे छुटकारा पा सकें l हालाँकि, उन्होंने अपनी ईमानदारी को अखण्ड बनाए रखा, और “जैसा वह . . . करता था, वैसा ही तब भी” परमेश्वर की सेवा और प्रार्थना “करता रहा” (पद.10) l अंत में, नबी अपनी भूमिका में सफल हुआ (पद.28) l

हमारा जीवन प्रकट चिन्ह छोड़ता है जो इंगित करता है कि हम कौन हैं और हम किसका प्रतिनिधित्व करते हैं l हालाँकि हम संघर्ष करते हैं और परिपूर्ण नहीं हैं, जब हमारे आस-पास के लोग हमारे जीवन की “जांच” करते हैं, तो उन्हें यीशु के प्रति निष्ठा और भक्ति के दृश्यमान निशान मिल सकते हैं जब  वह हमारा मार्गदर्शन करता है l 

उजागर पाप

एक चोर एक फ़ोन की मरम्मत की दुकान में घुस गया, डिस्प्ले केस का शीशा तोड़ दिया, और फ़ोन वगैरह चुराने लगा। उसने अपने सिर को कार्डबोर्ड बॉक्स से ढककर निगरानी कैमरे से अपनी पहचान छिपाने की कोशिश की। लेकिन चोरी के दौरान, बक्सा कुछ देर के लिए पलट गया, जिससे उसका चेहरा उजागर हो गया। कुछ मिनट बाद, दुकान के मालिक ने डकैती का वीडियो फुटेज देखा, पुलिस को बुलाया और उन्होंने लुटेरे को पास की दुकान के बाहर गिरफ्तार कर लिया। उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि हर छिपा हुआ पाप एक दिन उजागर हो जाएगा। 

अपने पापों को छिपाने का प्रयास करना मानव स्वभाव है। लेकिन सभोपदेशक में, हम पढ़ते हैं कि हमें परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए, क्योंकि हर छिपी हुई चीज़ को उसकी धार्मिक दृष्टि और न्यायपूर्ण फैसले के सामने लाया जाएगा (12:14)। लेखक ने लिखा, " परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है। " (पद 13)। यहां तक ​​कि गुप्त बातें जिन्हें दस आज्ञाओं ने धिक्कारा (लैव्यव्यवस्था 4:13) भी उसके मूल्यांकन से नहीं बच पाएंगी। वह हर कार्य का निर्णय करेगा, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। लेकिन, उसकी कृपा के कारण, हम यीशु में अपने पापों की क्षमा पा सकते हैं, और हमारी ओर से उनका बलिदान  पा सकते हैं (इफिसियों 2:4-5)।  

जब हम उसकी आज्ञाओं के प्रति सचेत होते हैं और उन्हें आत्मसात करते हैं, तो इससे उनके प्रति श्रद्धापूर्ण भय पैदा हो सकता है और उससे मेल खाने वाली जीवनशैली बन सकती है। आइए हम अपने पापों को उसके पास लाएँ और उसके प्रेमपूर्ण, क्षमाशील हृदय का नए सिरे से अनुभव करें।

 

यीशु में विश्राम प्राप्त करना

अशांत आत्मा धन और सफलता से कभी संतुष्ट नहीं होती l एक मृत देशी संगीत आइकॉन(icon) इस सच्चाई की गवाही दे सकता है l उनके लगभग चालीस एल्बम शीर्ष दस चार्ट में और इतनी ही संख्या एक एकल में शामिल हुयी l लेकिन उन्होंने कई शादियाँ की और जेल में भी समय बिताया l अपनी सभी उपलब्धियों के बावजूद, उन्होंने एक बार शोक व्यक्त किया था : “मेरी आत्मा में एक बेचैनी है जिसे मैंने कभी नहीं जीता है, संगीत, विवाह या अर्थ से नहीं . . . यह अभी भी कुछ हद तक है l और यह मेरे मरने के दिन तक रहेगा l”  दुःख की बात है कि उनका जीवन समाप्त होने से पहले उन्हें अपनी आत्मा में शांति मिल सकती थी l 

यीशु उन सभी को, इस संगीतकार की तरह, जो पाप और उसके परिणामों में परिश्रम करने से थक गए हैं, व्यक्तिगत रूप से उसके पास आने के लिए आमंत्रित करता है : “मेरे पास आओ,” वह कहता है(मत्ती 11:28) l जब हम यीशु में उद्धार प्राप्त करते हैं, तो वह हमारा बोझ हटा देगा और “हमें विश्राम देगा l” एकमात्र ज़रूरत है उस पर विश्वास करना और फिर उससे सीखना कि उसके द्वारा प्रदान किये गए बहुतायत के जीवन को कैसे जीना है(यूहन्ना 10:10) l मसीह के शिष्यता का जूआ उठाने से हमें “[हमारी] आत्माओं को विश्राम” मिलता है (मत्ती 11:29) l 

जब हम यीशु के पास आते हैं, तो वह परमेश्वर के प्रति हमारी जवाबदेही को कम नहीं करता है l वह हमें अपने साथ जीने का एक नया और कम बोझिल तरीका प्रदान करके हमारी बेचैन आत्माओं को शांति देता है l वह हमें सच्चा विश्राम देता है l 

 

परमेश्वर द्वारा सृजित श्रेष्ठ कृति

हालाँकि तंत्रिका विज्ञान(neuroscience) ने यह समझने में काफी प्रगति की है कि मस्तिष्क कैसे काम करता है, वैज्ञानिक मानते हैं कि वे अभी भी इसे समझने के आरंभिक चरण में हैं l वे मस्तिष्क की संरचना, उसके कार्य के कुछ पहलुओं और उन क्षेत्रों को समझते हैं जो पर्यावरण पर प्रतिक्रिया करते हैं, हमारी इन्द्रियों को सक्रीय करते हैं, गति उत्पन्न करते हैं और भावनाओं को थामते हैं l लेकिन वे अभी भी यह पता नहीं लगा पाए हैं कि ये सभी परस्पर क्रिया(interactions) व्यवहार, धारणा और स्मृति में कैसे योगदान करते हैं l परमेश्वर की अविश्वसनीय रूप से जटिल, बनायीं गयी उत्कृष्ट कृति(masterpiece)—मानवता(humanity)—अभी भी रहस्यमय है l 

दाऊद ने मानव शरीर के आश्चर्य को स्वीकार किया l आलंकारिक भाषा(figurative language) का उपयोग करते हुए, उसने परमेश्वर की सामर्थ्य का उत्सव मनाया, जो माता के गर्भ में “रचे [हुए]” होने की सम्पूर्ण प्राकृतिक प्रक्रिया पर उसके संप्रभु नियंत्रण(sovereign control) का प्रमाण था l उसने लिखा, “मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूँ l तेरे काम तो आश्चर्य के हैं” (पद.14) l प्राचीन लोग माँ के गर्भ में बच्चे के विकास को एक महान रहस्य के रूप में देखते थे (सभोपदेशक 11:5 देखें) l मानव शरीर की अद्भुत जटिलताओं के सीमित ज्ञान के बावजूद, दाऊद अभी भी परमेश्वर के अद्भुत कार्य और उपस्थिति के प्रति विस्मय और आश्चर्य में कहा था (भजन 139:17-18) l 

मानव शरीर की आश्चर्यजनक और अद्भुत जटिलता(complexity) हमारे महान परमेश्वर की सामर्थ्य और संप्रभुता(sovereignty) को दर्शाती है l हमारी एकमात्र प्रतिक्रिया प्रशंसा, विस्मय और आश्चर्य हो सकती है!

 

शब्द हमारे मन को दर्शाते हैं

आप अभद्र भाषा को कैसे ख़त्म करते हैं? एक हाई स्कूल ने "कोई गलत भाषा नहीं" का वादा करने का फैसला किया। छात्रों ने शपथ लेते हुए कहा: "मैं गंभीरता से वादा करता हूं कि [हमारे स्कूल] की दीवारों और संपत्तियों के भीतर किसी भी प्रकार की अभद्र भाषा का उपयोग नहीं करेंगे।" यह एक नेक प्रयास था, लेकिन, यीशु के अनुसार, कोई भी बाहरी नियम या प्रतिज्ञा कभी भी अभद्र भाषा की गंध को छुपा नहीं सकती।

हमारे मुँह से निकलने वाले शब्दों की दुर्गंध को दूर करने की शुरुआत हमारे हृदयों को नवीनीकृत करने से होती है। जिस प्रकार लोग वृक्ष के प्रकार को उसके फल से पहचानते हैं (लूका 6:43-44), यीशु ने कहा कि हमारी वाणी इस बात का एक ठोस संकेतक है कि हमारे दिल उसके और उसके तरीकों के अनुरूप हैं या नहीं। फल एक व्यक्ति की वाणी को दर्शाता है, "क्योंकि मुँह वही बोलता है जो हृदय में भरा होता है" (पद 45)। मसीह इस ओर इशारा कर रहे थे कि यदि हम वास्तव में हमारे मुँह से निकलने वाली बातों को बदलना चाहते हैं, तो हमें सबसे पहले अपने हृदयों को बदलने पर ध्यान केंद्रित करना होगा, और वह हमारी मदद करता है।

अपरिवर्तित हृदय से निकलने वाली गंदी भाषा को रोकने के लिए बाहरी वादे बेकार हैं। हम केवल पहले यीशु पर विश्वास करके (1 कुरिन्थियों 12:3) और फिर पवित्र आत्मा को हममें भरने के लिए आमंत्रित करके ही गंदी वाणी को समाप्त कर सकते हैं (इफिसियों 5:18)। वह हमें लगातार परमेश्वर को धन्यवाद देने के लिए प्रेरित करने और मदद करने के लिए हमारे भीतर काम करता है (पद 20) और दूसरों को उत्साहित और उनकी उन्नति के लिए (4:15, 29; कुलुस्सियों 4:6)।