सद्भावना का निर्माण
जब हम सर्वोत्तम व्यावसायिक प्रथाओं के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले जो बात दिमाग में आती है, वह शायद दयालुता और उदारता जैसे गुण नहीं हैं। लेकिन उद्यमी जेम्स री के अनुसार, उन्हें होना चाहिए। वित्तीय बर्बादी के कगार पर खड़ी एक कंपनी में सीईओ के रूप में री के अनुभव में, प्राथमिकता, जिसे वे "सद्भावना" कहते हैं - "दया की संस्कृति" और देने की भावना – को महत्ता देने से कम्पनी को बचाया गया और इसे समृद्धि की ओर अग्रसर किया। इन गुणों को प्रमुख रखने से लोगों को वह आशा और प्रेरणा मिली, जिसकी उन्हें एकजुट होने, नवाचार करने और समस्या-समाधान करने के लिए आवश्यकता थी। री बताते हैं कि "सद्भावना ... एक वास्तविक संपत्ति है जिसे बढ़ाया जा सकता है।" दैनिक जीवन में भी, दयालुता जैसे गुणों को अस्पष्ट और अवास्तविक , हमारी अन्य प्राथमिकताओं के बाद के विचार के रूप में सोचना आसान है। लेकिन, जैसा कि प्रेरित पौलुस ने सिखाया, ऐसे गुण सबसे अधिक मायने रखते हैं।
नए विश्वासियों को लिखते हुए, पौलुस ने इस बात पर ज़ोर दिया कि विश्वासियों के जीवन का उद्देश्य आत्मा के माध्यम से मसीह की देह के परिपक्व सदस्यों में परिवर्तन करना है (इफिसियों 4:15)। उस उद्देश्य के लिए, हर शब्द और हर कार्य का मूल्य तभी है जब वह दूसरों को विकसित करे और लाभ पहुँचाए (वचन 29)। यीशु में परिवर्तन केवल दया, करुणा और क्षमा को प्रतिदिन प्राथमिकता देने के माध्यम से हो सकता है (वचन 32)।
जब पवित्र आत्मा हमें मसीह में अन्य विश्वासियों के पास खींचता है, तो हम एक-दूसरे से सीखते हुए बढ़ते और परिपक्व होते हैं
—मोनिका ला रोज़
करुणा का कौशल
चौदहवीं शताब्दी में सिएना की कैथरीन ने लिखा, "तुम्हारे पैर में एक कांटा घुस गया है - इसीलिए तुम रात में कभी-कभी रोते हो।" उन्होंने आगे कहा, “इस दुनिया में कुछ लोग हैं जो इसे बाहर निकाल सकते हैं। जो कौशल उन्हें चाहिए वह उन्होंने परमेश्वर से सीखा है।'' कैथरीन ने उस "कौशल" को विकसित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और दूसरों के दुःख दर्द में उनके प्रति सहानुभूति और करुणा की उल्लेखनीय क्षमता के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।
दर्द की वह छवि जो मेरे साथ रहती है, वह एक गहरे धंसे हुए कांटे के रूप में है जिसे निकालने के लिए करुणा और कौशल की आवश्यकता होती है। यह इस बात का स्पष्ट अनुस्मारक है कि हम कितने पेचीदा (जटिल) और घायल हैं, और हमें दूसरों और स्वयं के प्रति सच्ची करुणा विकसित करने के लिए और अधिक गहराई तक जाने की आवश्यकता है।
या, जैसा कि प्रेरित पौलुस ने इसका वर्णन किया है, यह एक ऐसी छवि है जो हमें याद दिलाती है कि यीशु की तरह दूसरों से प्यार करने के लिए अच्छे इरादों और शुभकामनाओं से कहीं अधिक की आवश्यकता होती है - इसके लिए " एक दूसरे से स्नेह रखो" (रोमियों 12:10), आशा में आनन्दित रहो; क्लेश में स्थिर रहो; प्रार्थना में नित्य लगे रहो (पद 12)। न केवल "आनन्द करनेवालों के साथ आनन्द" करना है बल्कि "रोनेवालों के साथ [रोने]" की भी इच्छा होनी चाहिए (पद 15)। इसके लिए हमें अपना सब कुछ देना होगा।
इस टूटी हुई दुनिया में, हममें से कोई भी घायल हुए बिना नहीं बचता है—चोट और घाव हममें से प्रत्येक के मन में गहराई से समाए हुए हैं। परन्तु वह प्रेम और भी गहरा है जो हम मसीह में पाते हैं; इतना कोमल प्रेम कि करुणा के मरहम से उन कांटों को बाहर निकाल सकता है, मित्र और शत्रु दोनों को गले लगाने के लिए तैयार है (पद 14) ताकि एक साथ चंगा हो सकें।
—-मोनिका ला रोज़
परमेश्वर के पंखों के नीचे
हमारे अपार्टमेंट परिसर के पास तालाब में कई कनाडाई हंस परिवार हैं, जिनके बच्चे हंस हैं। छोटे बच्चे बहुत रोएँदार और प्यारे लगते हैं; जब मैं तालाब के आसपास टहलने या दौड़ने जाती हूं तो उन्हें न देखना कठिन होता है। लेकिन मैंने उनसे आँख मिलाने से बचना और उन्हें खुली छूट देना सीख लिया है - अन्यथा, मैं एक सुरक्षात्मक हंस माता-पिता को किसी खतरे पर संदेह करने और फुफकारने और मेरा पीछा करने का जोखिम उठाती हूं!
अपने बच्चों की रक्षा करने वाली एक पक्षी की छवि वह है जिसे पवित्रशास्त्र अपने बच्चों के लिए परमेश्वर के कोमल, सुरक्षात्मक प्रेम का वर्णन करने के लिए उपयोग करता है (भजन 91:4)। भजन 61 में, दाऊद इस तरह से परमेश्वर की देखभाल का अनुभव करने के लिए संघर्ष कर रहा है। उसने परमेश्वर को अपने "शरणस्थान, एक ऊँचा गढ़" (पद-3) के रूप में अनुभव किया था, लेकिन अब उसने "पृथ्वी के छोर से" जोर से पुकारा, विनती करते हुए कहा, "मुझे उस चट्टान पर ले चल जो मुझसे ऊंची है" (पद-2). वह एक बार फिर "[परमेश्वर के] पंखों की ओट में शरण लेना चाहता था" पद-4)।
और अपनी पीढ़ा और उपचार की लालसा को परमेश्वर के पास लाने में, दाऊद को यह जानकर सांत्वना मिली कि उसने उसकी बात सुनी है (पद 5)। परमेश्वर की निष्ठा के कारण, वह जानता था कि वह "हमेशा [उसके] नाम का भजन गाएगा" (पद 8)।
भजनकार की तरह, जब हम परमेश्वर के प्रेम से दूरी महसूस करते हैं, तो हम आश्वस्त होने के लिए उसकी बाहों में वापस जा सकते हैं कि हमारी पीड़ा में भी, वह हमारे साथ है, हमारी रक्षा और देखभाल उसी तरह करता है जैसे एक माँ पक्षी अपने बच्चों की रक्षा करती है।
-मोनिका ला रोज़
“स्लो फैशन” (मंद गति) वाला अनुग्रह
क्या आपने #slowfashion के बारे में सुना है? हैशटैग एक ऐसे आंदोलन को दर्शाता है जो “फास्ट फैशन” का विरोध करने पर केंद्रित है - एक ऐसा उद्योग जिसमें सस्ते बने और जल्दी से जल्दी नष्ट हो जाने वाले कपड़े हावी हैं। फास्ट फैशन में, कपड़े लगभग उतनी ही जल्दी फैशन से बाहर हो जाते हैं जितनी जल्दी वे दुकानों में आते हैं - कुछ ब्रांड हर साल अपने उत्पादों की बड़ी मात्रा का निपटान करते हैं।
स्लो फैशन आंदोलन लोगों को धीमा होने और एक अलग दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमेशा नई लुक की आवश्यकता से प्रेरित होने के बजाय, स्लो फैशन हमें अच्छी तरह से बनाई गई और नैतिक रूप से तैयार की गई कम वस्तुओं का चयन करने के लिए प्रोत्साहित करता है जो लंबे समय तक चल सकें।
जैसे मैंने #स्लोफ़ैशन के निमंत्रण पर विचार किया, तो मैं हैरान रह गयी कि मैं किस तरह अन्य तरीकों से "फास्ट फ़ैशन" की सोच में पड़ जाती हूँ - हमेशा नवीनतम प्रवृत्ति (latest trend) में संतुष्टि की तलाश में रहती हूँ। हालाँकि, कुलुस्सियों 3 में, पौलुस कहते है कि यीशु में सच्चा परिवर्तन खोजना कोई जल्दी से होने वाला काम या सिद्धांत नहीं है। बल्कि यह मसीह में शांत, धीरे-धीरे परिवर्तन का जीवनकाल है।
दुनिया के नवीनतम प्रतिष्ठा के प्रतीक (status symbol) को पहनने की आवश्यकता के बजाय हम उसके बदले में आत्मा के "करुणा, भलाई, दीनता, नम्रता, और सहनशीलता" के परिधान को पहनने का प्रयास कर सकते हैं (पद.12)। मसीह द्वारा हमारे हृदयों को बदलने की धीमी यात्रा पर हम एक-दूसरे के साथ धैर्य रखना सीख सकते हैं - एक ऐसी यात्रा जो स्थायी शांति की ओर ले जाती है (पद-15)।
-मोनिका ला रोज़
मैं कोई नहीं हूँ! तुम कौन हो?
एक कविता में, जिसकी शुरुआत होती है, “मैं कोई नहीं हूँ! तुम कौन हो?” एमिली डिकिंसन ने लोगों द्वारा “कोई” बनने के लिए किए जाने वाले सभी प्रयासों को मज़ाकिया ढंग से चुनौती दी है, इसके बजाय आनंदमय गुमनामी की आनंदमय स्वतंत्रता का समर्थन किया है। “कितना नीरस है – कोई होना! कितना सार्वजनिक है – एक मेंढक की तरह – / अपना नाम बताना – जीवंत / एक प्रशंसनीय दलदल को!” ”( For”How dreary-to be-Somebody! How public-like a Frog-/ To tell one’s name-the livelong June/To an admiring Bog!”)
“कोई” बनने की ज़रूरत को छोड़ देने में स्वतंत्रता पाना कुछ मायनों में प्रेरित पौलुस की गवाही को प्रतिध्वनित करता है। मसीह से मिलने से पहले, पौलुस के पास प्रभावशाली धार्मिक प्रमाण-पत्रों की एक लंबी सूची थी, जो “शरीर पर भरोसा करने के स्पष्ट कारण” थे (फिलिप्पियों 3:4)।
परन्तु यीशु से आमना-सामना होने से सब कुछ बदल गया। जब पौलुस ने देखा कि मसीह के बलिदानी प्रेम के आलोक में उसकी धार्मिक उपलब्धियाँ कितनी खोखली हैं, तो उसने इस बात का अंगीकार किया कि “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूँ... और उन्हें कूड़ा समझता हूँ, ताकि मैं मसीह को प्राप्त करूँ” (पद 8)। “ताकि मैं उसको और उसके पुनरुत्थान की सामर्थ्य को, और उसके साथ दुःखों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करूँ” उसकी एकमात्र शेष महत्वाकांक्षा यही थी (पद 10)। वास्तव में, अपने दम पर “कोई” बनने का प्रयास करना नीरस होता है। लेकिन, यीशु को जानना, उसके आत्म-समर्पित प्रेम और जीवन में खुद को खो देना, खुद को फिर से पाना है (वचन 9), अंततः स्वतंत्र और संपूर्ण।
—मोनिका ला रोज़
खुले दिल से उदारत
यह कहते हुए कभी कोई नहीं मरा, “मैं आत्म-केन्द्रित, आत्म-सेवा और आत्म-रक्षक जीवन जीकर बहुत खुश हूँ,” लेखक पार्कर पामर ने एक आरंभिक संबोधन में, उन्होंने स्नातकों से आग्रह किया कि वे "खुद को दुनिया के सामने खुले दिल से उदारता के साथ पेश करें।" लेकिन, पार्कर ने जारी रखा, इस तरह जीने का अर्थ सीखना भी होगा कि “आप कितना कम जानते हैं और असफल होना कितना सरल है l” खुद को संसार की सेवा में पेश करने के लिए “शुरू करनेवाले मस्तिष्क” विकसित करने की ज़रूरत हैं जो “सीधे अपने अनजाने में चले, और बार-बार असफल होने का जोखिम उठाए—उसके बाद सीखने के लिए बार-बार उठ खड़ा हो l”
हम निडरता से भरी “खुले दिल वाली उदारता” का जीवन चुनने का साहस पा सकते हैं। जैसा कि पौलुस ने अपने शिष्य तीमुथियुस को समझाया, हम आत्मविश्वास से “परमेश्वर के उस वरदान को जो मेरे हाथ रखने के द्वारा तुझे मिला है चमका दे।” (2 तीमुथियुस 1:6), और ईश्वर के वरदान से जीवन जी सकते हैं जब हम याद करते हैं कि यह परमेश्वर का अनुग्रह है जो हमें बचाता है और हमें एक उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए बुलाता है (पद. 9)। यह उसकी शक्ति है जो हमें आत्मा की “सामर्थ्य और प्रेम और संयम” (पद.7) के बदले कायर जीवन जीने के प्रलोभन का विरोध करने का साहस देती है । और यह उसकी कृपा है जो हमें तब उठाती है जब हम गिरते हैं, ताकि हम अपने जीवन को उसके प्रेम में स्थापित करने की आजीवन यात्रा जारी रख सकें ( पद 13-14)।
—मोनिका लारोज़
हर दुःख
"मैं अपने सामने आने वाले हर दुख को मापति हूँ" उन्नीसवीं सदी की कवयित्री एमिली डिकिंसन ने लिखा, , खोजी हुई आंखों से मापती हूं - / मुझे आश्चर्य होता है कि क्या इसका वजन मेरे जैसा है - / या इसका आकार आसान है।" यह कविता इस बात की चलती हुई परछाई है कि कैसे लोग जीवन भर उन अनूठे तरीकों को लिए चलते हैं जिनसे वे आहत हुए हैं। डिकिंसन ने, लगभग झिझकते हुए, अपनी एकमात्र सांत्वना के साथ निष्कर्ष निकाला: वो "भेदता हुआ आराम" कैल्वरी पर अपने स्वयं के घावों को उद्धारकर्ता में प्रतिबिंबित होते हुए: "अभी भी यह मानने के लिए रोमांचित हूं / कि कुछ - मेरे जैसे हैं -।"
प्रकाशितवाक्य की पुस्तक यीशु, हमारे उद्धारकर्ता को वर्णित करती है" मानो एक वध किया हुआ मेम्ना..(5:6,12), उसके घाव अभी भी दिखाई दे रहे हैं। अपने लोगों के पाप और निराशा को अपने ऊपर लेने के कारण से अर्जित घाव (1 पतरस 2:24-25), ताकि उन्हें नया जीवन और आशा मिल सके।
और प्रकाशितवाक्य भविष्य में एक ऐसे दिन का वर्णन करता है जब उद्धारकर्ता अपने प्रत्येक बच्चे की आँखों से "हर आंसू पोंछ देगा" (21:4)। यीशु उनके दर्द को कम नहीं करेंगे, बल्कि वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति के अनूठे दुःख को देखेंगे और उसकी देखभाल करेंगे - उन्हें अपने राज्य में जीवन की नई, उपचारात्मक वास्तविकताओं में आमंत्रित करते हुए, जहाँ "न मृत्यु रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी" (पद 4). जहां चंगा करने वाला जल बहेगा "जीवन के जल के सोते में से सेंतमेंत "(पद 6; 22:2)।
क्योंकि हमारे उद्धारकर्ता ने हमारे हर दुःख को उठाया है, हम उसके राज्य में आराम और चंगाई पा सकते हैं।
हमारी सुरक्षा का स्थान
सेवानिवृत्त शिक्षिका डेबी स्टीफेंस ब्राउडर अधिक से अधिक लोगों को पेड़ लगाने के लिए राजी करने के मिशन पर हैं। और इसका कारण क्या है? गर्मी। संयुक्त राज्य अमेरिका में अत्यधिक गर्मी, मौसम सम्बन्धी मृत्यु होने का नम्बर एक कारण है। इसके उत्तर में वह कहती हैं, “मैं पेड़ों से आरम्भ कर रही हूँ।” समुदायों की रक्षा करने का एक महत्वपूर्ण तरीका गर्मी से बचाव का एक आवरण है जो पेड़ प्रदान करते हैं। "यह केवल समुदाय को सुंदर बनाने के बारे में नहीं है। यह जीवन या मृत्यु है।"
सच्चाई यह है कि छाया न केवल ताज़ा करती है, बल्कि संभावित रूप से जीवन रक्षक भी है, जिसके विषय में उस भजनकार को अच्छी रीति से मालूम होगा जिसने भजन संहिता 121 लिखा था; मध्य पूर्व में लू लगने का खतरा लगातार बना रहता है। यह वास्तविकता हमारी सुरक्षा के निश्चित स्थान के रूप में परमेश्वर के उस भजन के स्पष्ट वर्णन में गहराई को जोड़ती है, जिसकी देखभाल में “न तो दिन को धूप से, और न रात को चाँदनी से [हमारी] कुछ हानि होगी” (पद 6)।
इस वचन का अर्थ यह नहीं हो सकता कि यीशु पर विश्वास करने वाले लोग इस जीवन में पीड़ा या नुकसान से किसी भी रीति से मुक्त हैं (या उनके लिए गर्मी खतरनाक नहीं है!)। आखिरकार, मसीह स्वयं ही हमसे कहता है, “इस संसार में तुम्हें क्लेश होता है” (यूहन्ना 16:33)। लेकिन ईश्वर को हमारी छाया के रूप में दर्शाने वाला यह रूपक हमें यह भरोसा दिलाता है कि चाहे जो भी हमारे सामने आए, हमारा जीवन उसकी सतर्क देखभाल में है (भजन 121:7–8)। वहाँ हम उस पर भरोसा करके आराम पा सकते हैं, यह जानते हुए कि कोई भी चीज़ हमें उसके प्यार से अलग नहीं कर सकती (यूहन्ना 10:28; रोमियों 8:39)।
सपना नहीं
यह एक ऐसे सपने में जीने जैसा है जिससे आप जाग नहीं सकते। जो लोग कभी-कभी " कोई अहसास नहीं ( मानसिक स्थिति जहाँ आप अपने आस-पास से अलग महसूस करते हैं।)" या " स्वयं से विरक्त होना (आपको ऐसा एहसास होने लगता है कि आप वास्तविक नहीं हैं)" कहलाने वाली चीज़ से जूझते हैं, उन्हें अक्सर ऐसा लगता है कि उनके आस-पास कुछ भी वास्तविक नहीं है। जबकि जिन लोगों को यह भावना लंबे समय से है, उन्हें एक विकार का निदान किया जा सकता है, यह एक सामान्य मानसिक स्वास्थ्य संघर्ष माना जाता है, खासकर तनावपूर्ण समय के दौरान। लेकिन कभी-कभी यह भावना तब भी बनी रहती है जब जीवन अच्छा लग रहा हो। ऐसा लगता है जैसे हमारा दिमाग इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता कि अच्छी चीजें वास्तव में हो रही हैं
पवित्रशास्त्र में कई बार परमेश्वर के लोगों के ऐसे ही संघर्ष का वर्णन किया गया है, जिसमें वे उसकी शक्ति और उद्धार को केवल एक स्वप्न के रूप में नहीं, बल्कि वास्तविक रूप में अनुभव करते हैं। प्रेरितों के काम 12 में, जब एक स्वर्गदूत पतरस को जेल से छुड़ाता है - और संभावित मृत्युदंड से (पद 2, 4) - तो प्रेरित को एक अचंभे में बताया गया है, उसे यकीन नहीं था कि यह वास्तव में हो रहा था ( पद 9-10)। जब स्वर्गदूत उसे जेल के बाहर छोड़ गया, तो पतरस को आखिरकार "अपने होश आ गए" और उसे एहसास हुआ कि यह सब वास्तविक था (पद 11)।
बुरे और अच्छे दोनों समयों में, कभी-कभी पूरी तरह से विश्वास करना या अनुभव करना कठिन हो सकता है कि परमेश्वर वास्तव में हमारे जीवन में काम कर रहा है। लेकिन हम भरोसा कर सकते हैं कि जब हम उसकी बाट जोहते हैं, उसकी पुनरुत्थान की शक्ति एक दिन निश्चित रूप से, आश्चर्यजनक रूप से वास्तविक हो जाएगी। परमेश्वर का प्रकाश हमें हमारी नींद से उसके साथ जीवन की वास्तविकता में जगाएगा (इफिसियों 5:14)।