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Articles by मोनिका ब्रांड्स

कृतज्ञता द्वारा पुनः जुड़ना

ब्रेन ट्यूमर होने के बाद, क्रिस्टीना कोस्टा ने देखा कि कैंसर का सामना करने के बारे में अधिकतर चर्चाओं में लड़ने की भाषा हावी है l उसने पाया कि यह रूपक जल्दी ही थका देने वाला लगने लगा l वह “अपने शरीर के साथ युद्ध में एक वर्ष से अधिक समय नहीं बिताना चाहती थी l” इसके बजाय, जो उसे सबसे अधिक सहायक लगी वह कृतज्ञता के दैनिक अभ्यास थे—उसकी देखभाल करने वाले पेशेवरों की टीम के लिए और उसके मस्तिष्क और शरीर के उपचार के तरीकों के लिए l उसने प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया कि चाहे संघर्ष कितना भी कठिन क्यों न हो, कृतज्ञता के अभ्यास हमें निराशा से लड़ने में मदद कर सकते हैं और “हमारे दिमाग को लचीला बनाने में मदद कर सकते हैं l”

कोस्टा की सशक्त कहानी ने याद दिलाया कि कृतज्ञता का अभ्यास केवल कुछ ऐसा नहीं है जो विश्वासी कर्तव्य मानकर करते हैं l हालाँकि यह सच है कि ईश्वर हमारी कृतज्ञता का पात्र है, यह हमारे लिए बहुत अच्छा भी है l जब हम अपने हृदय को ऊपर उठाकर कहते हैं, “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह, और उसके किसी उपकार को न भूलना’ (भजन 103:2), हमें परमेश्वर के अनगिनत तरीकों की याद आती है—हमें क्षमा का आश्वासन देना, हमारे शरीर और हृदय का उपचार, हमें उसकी रचना में “प्रेम और करुणा” और अनगिनत “उत्तम पदार्थों” का अनुभव करने देना (पद.3-5) l 

हालाँकि सभी पीड़ाएँ इस जीवनकाल में पूरी तरह से ठीक नहीं होंगी, हमारे हृदय हमेशा कृतज्ञता से तरोताज़ा हो सकते हैं, क्योंकि ईश्वर का प्रेम “युग-युग” तक . . . [है] (पद.17) l 

बूँद बूँद करके

सोलहवीं सदी की विश्वासी अविला की टेरेसा लिखती हैं, "हर चीज़ मेंहम परमेश्वर की सेवा के सुखद तरीके तलाशते हैं।" वह उन कई तरीकों पर हृदयस्पर्शी ढंग से विचार करती है जिनसे हम परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की तुलना में आसान, अधिक "सुखद" तरीकों के माध्यम से नियंत्रण में रहना चाहते हैं।  हम धीरे-धीरे, अस्थायी रूप से, और यहां तक कि अनिच्छा से अपने आप में उस पर भरोसा करने लगते हैं।  और इसलिए, टेरेसा कबूल करती हैं, "यद्यपि हम आपके लिए अपना जीवन एक समय में थोड़ा सा  मापते हैं, बूंद-बूंद करके अपने उपहार प्राप्त करने के लिएतोहमें संतुष्ट रहना चाहिए, जब तक हम अपना जीवन पूरी तरह से आपको समर्पित नहीं कर देते।”

मनुष्य के रूप में, हममें से कई लोगों में विश्वास स्वाभाविक रूप से नहीं आता है। इसलिए यदि परमेश्वर के अनुग्रह और प्रेम का अनुभव उस पर भरोसा करने और उसे प्राप्त करने की हमारी क्षमता पर निर्भर होता, तो हम मुसीबत में पड़ जाते!

लेकिन, जैसा कि हम 1 यूहन्ना 4 में पढ़ते हैं, हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम पहले आता है (पद 19)। इससे पहले कि हम उससे प्रेम कर पाते, उसने हमसे बहुत पहले प्रेम किया,  इतना कि वह हमारे लिए अपने बेटे का बलिदान देने को तैयार था।"यह प्रेम है," यूहन्ना आश्चर्य और कृतज्ञता में लिखते हैं (पद10)।

धीरे-धीरे, कोमलता से, थोड़ा-थोड़ा करके, परमेश्वर अपने प्यार को पाने के लिए हमारे दिलों को ठीक (चंगा)करते हैं - बूंद-बूंद करके, परमेश्वर काअनुग्रहहमें अपने भय को त्यागने में मदद करती है (पद18)। बूँद-बूँद करके, परमेश्वर का अनुग्रह हमारे दिलों तक पहुँचती है जब तक कि हम स्वयं उनकी  पर्याप्त सुंदरता और प्रेम की वर्षा का अनुभव नहीं कर लेते।

सद्भावना का निर्माण

जब हम सर्वोत्तम व्यवसायिक अभ्यास  के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले जो बात दिमाग में आती है वह शायद दया और उदारता जैसे गुण नहीं हैं। लेकिन उद्यमी जेम्स री के अनुसार यह होना चाहिए। वित्तीय तबाही के कगार पर एक कंपनी में सीईओ(ceo) के रूप में री के अनुभव में, जिसे वह "सद्भावना"—"दयालुता की संस्कृति" और “देने की भावना” को प्राथमिकता देता है—ने कंपनी को बचाया और उसके उत्कर्ष का नेतृत्व किया। इन गुणों को केंद्र में रखने से लोगों को आशा और प्रेरणा मिली जो उन्हें एकजुट, नया और समस्या-समाधान करने के लिए आवश्यक था। री बताते हैं कि "सद्भावना . . . एक वास्तविक संपत्ति है जो संयोजित कर सकती और बढ़ा सकती है।“

 

दैनिक जीवन में भी, हमारी अन्य प्राथमिकताओं के विचार के बाद,  दयालुता जैसे गुणों को अस्पष्ट और अदृश्‍य के रूप में सोचना आसान है। लेकिन, जैसे प्रेरित पौलुस ने सिखाया, ऐसे गुण सबसे अधिक मायने रखते हैं।

 

नए विश्वासियों को लिखते हुए, पौलुस ने बल दिया कि विश्वासियों के जीवन का उद्देश्य आत्मा के द्वारा मसीह के शरीर के परिपक्व सदस्यों में परिवर्तन करना है (इफिसियों 4:15)। उस सीमा तक, प्रत्येक शब्द और प्रत्येक कार्य का मूल्य केवल तभी होता है जब यह दूसरों को बनाता और लाभ पहुंचाता है (पद. 29)। यीशु में केवल दया, करुणा और क्षमा को दैनिक प्राथमिकता देने के द्वारा ही परिवर्तन हो सकता है (पद.32)।

 

जब पवित्र आत्मा हमें मसीह में अन्य विश्वासियों के पास खींचता है, तो हम एक दूसरे से सीखते हुए बढ़ते और परिपक्व होते हैं।

करुणा का कौशल

चौदहवीं शताब्दी में सिएना की कैथरीन ने लिखा, "तुम्हारे पैर में एक कांटा घुस गया है - इसीलिए तुम रात में कभी-कभी रोते हो।" उन्होंने आगे कहा, “इस दुनिया में कुछ लोग हैं जो इसे बाहर निकाल सकते हैं। जो कौशल उन्हें चाहिए वह उन्होंने [परमेश्वर] से सीखा है।'' कैथरीन ने उस "कौशल" को विकसित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और दूसरों के दर्द में उनके प्रति सहानुभूति और करुणा की उल्लेखनीय क्षमता के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।

दर्द की वह छवि जो मेरे साथ रहती है, वह एक गहरे धंसे हुए कांटे के रूप में है जिसे निकालने के लिए कोमलता और कौशल की आवश्यकता होती है। यह इस बात का स्पष्ट अनुस्मारक है कि हम कितने जटिल और घायल हैं, और हमें दूसरों और स्वयं के प्रति सच्ची करुणा विकसित करने के लिए और अधिक गहराई तक जाने की आवश्यकता है।

या, जैसा कि प्रेरित पौलुस ने इसका वर्णन किया है, यह एक ऐसी छवि है जो हमें याद दिलाती है कि यीशु की तरह दूसरों से प्यार करने के लिए अच्छे इरादों और शुभकामनाओं से कहीं अधिक की आवश्यकता होती है - इसके लिए " एक दूसरे से स्‍नेह रखो" (रोमियों 12:10), आशा में आनन्दित रहो; क्लेश में स्थिर रहो; प्रार्थना में नित्य लगे रहो (पद 12)। न केवल "आनन्द करनेवालों के साथ आनन्द" करना है बल्कि "रोनेवालों के साथ [रोने]" की भी इच्छा होनी चाहिए (पद 15)। इसके लिए हमें अपना सब कुछ देना होगा।

इस टूटी हुई दुनिया में, हममें से कोई भी घायल हुए बिना नहीं बचता है—चोट और घाव हममें से प्रत्येक के मन में गहराई से समाए हुए हैं। परन्तु वह प्रेम और भी गहरा है जो हम मसीह में पाते हैं; इतना कोमल प्रेम कि करुणा के मरहम से उन कांटों को बाहर निकाल सकता है, मित्र और शत्रु दोनों को गले लगाने के लिए तैयार है (पद 14) ताकि एक साथ चंगा हो सकें।

परमेश्वर के पंखों के नीचे

हमारे अपार्टमेंट परिसर के पास तालाब में अपने छोटे बच्चों के साथ कई हंस परिवार रहते हैं। छोटे बच्चे बहुत रोएँदार और प्यारे लगते हैं; जब मैं तालाब के आसपास टहलने या दौड़ने जाती हूं तो उन्हें न देखना कठिन होता है। लेकिन मैंने उनसे आँख मिलाने से बचना और उन्हें खुली छूट देना सीख लिया है - अन्यथा, मैं एक सुरक्षात्मक हंस माता-पिता को किसी खतरे पर संदेह करने और फुफकारने और मेरा पीछा करने का जोखिम उठाती हूं!

अपने बच्चों की रक्षा करने वाली एक पक्षी की छवि वह है जिसे पवित्रशास्त्र अपने बच्चों के लिए परमेश्वर के कोमल, सुरक्षात्मक प्रेम का वर्णन करने के लिए उपयोग करता है (भजन 91:4)। भजन 61 में, दाऊद इस तरह से परमेश्वर की देखभाल का अनुभव करने के लिए संघर्ष कर रहा है। उसने परमेश्वर को अपने "शरणस्थान, एक ऊँचा गढ़" (पद-3) के रूप में अनुभव किया था, लेकिन अब उसने "पृथ्वी के छोर से" जोर से पुकारा, विनती करते हुए कहा, "मुझे उस चट्टान पर ले चल जो मुझसे ऊंची है" (पद-2). वह एक बार फिर "[परमेश्वर के] पंखों की ओट में शरण लेना चाहता था" पद-4)।

और अपनी पीढ़ा और उपचार की लालसा को परमेश्वर के पास लाने में, दाऊद को यह जानकर सांत्वना मिली कि उसने उसकी बात सुनी है (पद 5)। परमेश्वर की निष्ठा के कारण, वह जानता था कि वह "हमेशा [उसके] नाम का भजन  गाएगा" (पद 8)।

भजनकार की तरह, जब हम परमेश्वर के प्रेम से दूरी महसूस करते हैं, तो हम आश्वस्त होने के लिए उसकी बाहों में वापस जा सकते हैं कि हमारी पीढ़ा में भी, वह हमारे साथ है, हमारी रक्षा और देखभाल उसी तरह करता है जैसे एक माँ पक्षी अपने बच्चों की रक्षा करती है।

“स्लो फैशन” (मंद गति) वालाअनुग्रह

क्या आपने #स्लो फैशन (slow fashion) के बारे में सुना है? हैशटैग "फ़ास्ट फैशन" (fast fashion) का विरोध करने पर केंद्रित एक आंदोलन को दर्शाता है - एक ऐसा उद्योग जिसमें सस्ते में बनाए जाने वाले और जल्दी से बेचे जाने वाले कपड़ों का वर्चस्व है। फ़ास्ट फैशन में, कपड़े लगभग उतनी ही तेजी से फैशन से बाहर हो जाते हैं जितनी जल्दी वे दुकानों में होते हैं - कुछ ब्रांड हर साल बड़ी मात्रा में अपने उत्पादों को बेचा करते हैं।

स्लो फैशन आंदोलन लोगों को धीमा होने और एक अलग दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमेशा नई  लुक की आवश्यकता से प्रेरित होने के बजाय, स्लो फैशन हमें अच्छी तरह से बनाई गई और नैतिक रूप से तैयार की गई कम वस्तुओं का चयन करने के लिए प्रोत्साहित करता है जो लंबे समय तक चल सकें।

जैसे मैंने #स्लोफ़ैशन के निमंत्रण पर विचार किया, तो मैं हैरान रह गयी कि मैं किस तरह अन्य तरीकों से "फास्ट फ़ैशन" की सोच में पड़ जाती हूँ - हमेशा नवीनतम प्रवृत्ति (latest trend) में संतुष्टि की तलाश में रहती हूँ। हालाँकि, कुलुस्सियों 3 में, पौलुस कहते है कि यीशु में सच्चा परिवर्तन खोजना कोई जल्दी से होने वाला काम (quick fix) या सिद्धांत(fad) नहीं है। बल्कि यह मसीह में शांत, धीरे-धीरे परिवर्तन का जीवनकाल है।

दुनिया के नवीनतम प्रतिष्ठा के प्रतीक (status symbol) को पहनने की आवश्यकता के बजाय हम उसके बदले में आत्मा के "करुणा, भलाई, दीनता, नम्रता, और सहनशीलता" के परिधान को पहनने का प्रयास कर सकते हैं (पद.12)। मसीह द्वारा हमारे हृदयों को बदलने की धीमी यात्रा पर हम एक-दूसरे के साथ धैर्य रखना सीख सकते हैं - एक ऐसी यात्रा जो स्थायी शांति की ओर ले जाती है (पद-15)।

मैं कोई नहीं हूँ! तुम कौन हो?

“मैं कोई नहीं हूँ! तुम कौन हो?” से आरम्भ होने वाली एक कविता में,?" एमिली डिकिंसन लोगों द्वारा "कोई" बनने के लिए किए जाने वाले सभी प्रयासों को चंचलतापूर्वक चुनौती देती है। वह आनंदमय गुमनामी की आनंदमय स्वतंत्रता का समर्थन करती है। “कितना नीरस है के लिये- कोई होना ! कितना सार्वजनिक - एक मेंढक की तरह - / किसी का नाम बताने के लिए - जीवंत जून / एक प्रशंसनीय बोग के लिए!”( For”How dreary-to be-Somebody! How public-like a Frog-/ To tell one’s name-the livelong June/To an admiring Bog!”)

कुछ मायनों में “कोई” होने की आवश्यकता को छोड़ देने में स्वतंत्रता खोज पाना प्रेरित पौलुस की गवाही को प्रतिध्वनित करता है। मसीह से आमना-सामना होने से पहले, पौलुस के पास प्रभावशाली धार्मिक प्रमाणों की एक लम्बी सूची थी, जो स्पष्ट रूप से “शरीर पर भरोसा रखने के विचार” थे (फिलिप्पियों 3:4)।

परन्तु यीशु से आमना-सामना होने से सब कुछ बदल गया। जब पौलुस ने देखा कि मसीह के बलिदानी प्रेम के आलोक में उसकी धार्मिक उपलब्धियाँ कितनी खोखली हैं, तो उसने इस बात का अंगीकार किया कि “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूँ... और उन्हें कूड़ा समझता हूँ, ताकि मैं मसीह को प्राप्त करूँ” (पद 8)। “ताकि मैं उसको और उसके पुनरुत्थान की सामर्थ्य को, और उसके साथ दुःखों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करूँ” उसकी एकमात्र शेष महत्वाकांक्षा यही थी (पद 10)।

वास्तव में, अपने दम पर “कोई” बनने का प्रयास करना नीरस होता है। परन्तु, यीशु को जानना और उसके आत्म-बलिदानी प्रेम और जीवन में अपने आप को खो देना ही, अंत में स्वतंत्र और सम्पूर्ण रूप से अपने आप को फिर से प्राप्त करना है (पद 9)।

खुले दिल से उदारता

यह कहते हुए कभी कोई नहीं मरा, “मैं आत्म-केन्द्रित, स्वयंसेवी, एवं आत्म-रक्षक जीवन जीकर बहुत खुश हूँ,” लेखक पार्कर पामर ने एक आरंभिक संबोधन में कहते हुए, स्नातकों से “खुले हृदय से उदारता के साथ [खुद को] संसार की सेवा में पेश करने” का आग्रह किया l

लेकिन, पार्कर ने जारी रखा, इस तरह जीने का अर्थ सीखना भी होगा कि “आप कितना कम जानते हैं और असफल होना कितना सरल है l” खुद को संसार की सेवा में पेश करने के लिए “शुरू करनेवाले मस्तिष्क” विकसित करने की ज़रूरत हैं जो “सीधे अपने अनजाने में चले, और बार-बार असफल होने का जोखिम उठाए—उसके बाद सीखने के लिए बार-बार उठ खड़ा हो l”

जब हमारा जीवन अनुग्रह की नींव पर निर्मित होगा तब ही “खुले दिल की उदारता” के ऐसे जीवन को चुनने का साहस पा सकते हैं l जैसा कि पौलुस ने अपने शिष्य तीमुथियुस को समझाया, हम आत्मविश्वास से “प्रज्वलित कर” सकते हैं (2 तीमुथियुस 1:6) और परमेश्वर के उपहार पर जीवित रह सकते हैं जब हम याद करते हैं कि यह परमेश्वर का अनुग्रह है जो हमें बचाता है और हमें एक उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए बुलाता है (पद. 9) l यह उसकी शक्ति है जो हमें आत्मा की “सामर्थ्य और प्रेम और संयम” (पद.7) के बदले कायर जीवन जीने के प्रलोभन का विरोध करने का साहस देती है l और यह उसका अनुग्रह है जो हमें तब उठाता है जब हम गिरते हैं, ताकि अपने जीवन को उसके प्रेम में स्थापित करने की आजीवन यात्रा जारी रख सकें (पद.13-14) l

हर दुःख

उन्नीसवीं शताब्दी के कवि एमिली डिकिन्सन ने लिखा, "मैं मिलने वाले हर दुःख को मापता हूं," "संकीर्ण, जांच करने वाली, आँखों के साथ - / मैं आश्चर्य करता हूँ कि क्या इसका वजन मेरे जैसा है- / या इसका आकार आसान है।" डिकिंसन ने अपने  एकमात्र सांत्वना के साथ, लगभग हिचकिचाहट के साथ निष्कर्ष निकाला: कलवरी में अपने स्वयं के घावों को देखने का "छेदनेवाला आराम" उद्धारकर्ता के घावों में प्रतिबिंबित होता है: "अभी भी अनुमान लगाने के लिए मोहित / कि कुछ - मेरे अपने जैसे हैं -।"

प्रकाशितवाक्य का पुस्तक यीशु का वर्णन करता है... मानो एक वध किया हुआ मेम्‍ना ..(5:6,12), उसके घाव अभी भी दिख रहे हैं। अपने लोगों के पाप और निराशा को अपने ऊपर लेने के द्वारा अर्जित किया गया घाव (1 पतरस 2:24-25), ताकि उन्हें नया जीवन और आशा मिले।

और प्रकाशितवाक्य एक भविष्य दिन का वर्णन करता है जब उद्धारकर्ता अपने बच्चों के “..आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; ...” (21:4)। यीशु उनका दुःख कम नहीं करेगा, बल्कि वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति के अद्वितीय दुःख को देखेगा और देखभाल करेगा -- उन्हें अपने राज्य में जीवन की नई, चंगाई की वास्तविकताओं में आमंत्रित करते हुए, जहाँ “मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी;” जहाँ चंगा करने वाला पानी बहेगा “जीवन के जल के सोते में से सेंत-मेंत” (पद 6; 22:2)पिलाएगा।

क्योंकि हमारे उद्धारकर्ता ने हमारा हर दुःख उठाया है, हम उसके राज्य में विश्राम और चंगाई पा सकते हैं।