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Articles by शेरिडन योयता

सबसे पहले आराधना करें

मैंने वयस्क मित्रता के बारे में एक गैर-लाभकारी संगठन शुरू करने की कभी योजना नहीं बनाई थी, और जब मुझे ऐसा करने के लिए बुलाया गया, तो मेरे पास बहुत सारे प्रश्न थे। दान का आर्थिक प्रबंधन कैसे किया जाएगा और इसे बनाने में मेरी मदद कौन करेगा? इन मामलों पर मेरी सबसे बड़ी मदद किसी व्यावसायिक किताब से नहीं, बल्कि बाइबिल से मिली। 

परमेश्वर द्वारा कुछ निर्माण करने के लिए बुलाए गए किसी भी व्यक्ति के लिए एज्रा की पुस्तक पढ़ना आवश्यक है। यह याद करते हुए कि यहूदियों ने अपने देश निकाला के बाद यरूशलेम का पुनर्निर्माण कैसे किया, यह दर्शाता है कि कैसे परमेश्वर ने सार्वजनिक दान और सरकारी अनुदान के माध्यम से धन प्रदान किया (एज्रा 1:4-11; 6:8-10), और स्वयंसेवकों और ठेकेदारों दोनों ने कैसे काम किया (1:5) ; 3:7) । यह तैयारी के समय के महत्व को दर्शाता है, पुनर्निर्माण यहूदियों की वापसी के दूसरे वर्ष तक शुरू नहीं होता है (3:8)। यह दर्शाता है कि विरोध कैसे आ सकता है (अध्याय 4)। लेकिन कहानी में एक बात विशेष रूप से मेरे सामने आई। किसी भी निर्माण के शुरू होने से पूरे एक साल पहले, यहूदियों ने वेदी बनाई (3:1-6)। लोगों ने आराधना की "हालाँकि अभी तक यहोवा के मन्दिर की नींव नहीं रखी गई थी" (पद 6)। आराधना सबसे पहले आई।  

क्या परमेश्वर आपको कुछ नया शुरू करने के लिए बुला रहे हैं? चाहे आप कोई दान, बाइबल अध्ययन, कोई रचनात्मक परियोजना, या कार्यस्थल पर कोई नया कार्य शुरू कर रहे हों, एज्रा का सिद्धांत मार्मिक है। यहां तक ​​कि परमेश्वर द्वारा दिया गया प्रोजेक्ट  (परियोजना) भी हमारा ध्यान उससे दूर ले जा सकती है, इसलिए आइए पहले परमेश्वर पर ध्यान केंद्रित करें। हम काम करने से पहले आराधना करते हैं।  

 

जीवन की यात्रा/तीर्थ यात्रा

प्रत्येक वर्ष विभिन्न धर्मों के दो सौ मिलियन(200,000,000) से अधिक लोग तीर्थयात्रा करते हैं l सदियों से कई लोगों के लिए, एक तीर्थयात्री का कार्य किसी प्रकार का आशीष प्राप्त करने के लिए किसी पवित्र स्थान की यात्रा करना रहा है l यह सब मंदिर, बड़ा चर्च, तीर्थस्थान या अन्य गंतव्य तक पहुँचने के बारे में है जहां आशीष प्राप्त किया जा सकता है l 

हालाँकि, ब्रिटन के सेल्टिक मसीहियों(Britain’s Celtic Christians) ने तीर्थयात्रा को अलग तरह से देखा l वे दिशाहीन होकर जंगल की ओर निकल पड़े या अपनी नावों को जहाँ कहीं भी महासागर ले गया, वहीँ बहने दिया—उनके लिए तीर्थयात्रा अपरिचित क्षेत्र में ईश्वर पर भरोसा करने के बारे में है l कोई भी आशीष मंजिल पर नहीं बल्कि सफ़र के दौरान मिली l 

इब्रानियों 11 सेल्ट्स लोगों(Celts) के लिए महत्वपूर्ण परिच्छेद था l चूँकि मसीह में जीवन संसार के तरीकों को पीछे छोड़ने और परदेशियों की तरह ईश्वर के देश की ओर बढ़ने के बारे में है(पद.13-16), तीर्थयात्रा ने उनके जीवन की यात्रा को प्रतिबंधित किया l अपने कठिन, निर्जन मार्ग को प्रदान करने के लिए ईश्वर पर भरोसा करके, तीर्थयात्रियों ने उस प्रकार का विशवास विकसित किया जो पुराने वीर/योद्धा/नायक द्वारा जीया जाता था (पद.1-12) l 

सीखने के लिए क्या सबक है, चाहे हम शारीरिक रूप से लम्बी पैदल यात्रा करें या नहीं : उन लोगों के लिए जिन्होंने यीशु पर भरोसा किया है, जीवन परमेश्वर के स्वर्गीय देश की तीर्थयात्रा है, जो अँधेरे जंगलों, बन्द मार्गों और आजमाइशों से भरा है l जैसे-जैसे हम यात्रा करते हैं, हम मार्ग में परमेश्वर के प्रावधानों का अनुभव करने की आशीष से न चूकें l  

 

चुंबन के साथ सुधार

अपने दृष्टांत एक बुद्धिमान स्त्री में, जॉर्ज मैकडोनाल्ड दो लड़कियों की कहानी बताते हैं, जिनका स्वार्थ स्वयं सहित सभी के लिए दुख लाता है, जब तक कि एक बुद्धिमान महिला उन्हें कई परीक्षाओं से नहीं गुज़रवाती, ताकि वह उनकी फिर से "मनोहर" बनने में मदद कर सके।

लड़कियों द्वारा प्रत्येक परीक्षा में असफल होने और शर्मिंदगी और अलगाव का सामना करने के बाद, उनमें से एक, रोसमंड को अंततः एहसास होता है कि वह खुद को नहीं बदल सकती। "क्या आप मेरी मदद नहीं कर सकती?" वह बुद्धिमान महिला से पूछती है। "मैं कर सकती हूँ," महिला ने उत्तर दिया, "अब जब की तुमने मुझसे पूछ है।" और बुद्धिमान महिला द्वारा प्रतीकित ईश्वरीय मदद से, रोसमंड बदलना शुरू हो जाती है। फिर वह उस महिला से पूछती है कि क्या वह उसे माफ़ कर देगी उन सब परेशानियों के लिए जो उसने उस महिला को दी है। “अगर मैंने तुम्हें माफ नहीं किया होता,” महिला कहती है, “तो मैं तुम्हें ताड़ना देने की जहमत कभी नहीं उठाती।”

ऐसे समय होते हैं जब परमेश्वर हमें अनुशासित करते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्यों। उनकी ताड़ना प्रतिशोध के कारण नहीं होती पर पिता जैसी चिंता रखते हुए हमारी भलाई के खातिर होती है।(इब्रानियों 12:6)। वह यह भी चाहता है कि हम "उसकी पवित्रता का हिस्सा बन सकें", "धार्मिकता और शांति" की फसल का आनंद उठा सकें (पद 10-11)। स्वार्थ दुख लाता है, लेकिन पवित्रता हमें उसके जैसा संपूर्ण, आनंदमय और "मनोहर" बनाती है।

रोसमंड बुद्धिमान महिला से पूछती है कि वह उसके जैसी स्वार्थी लड़की से कैसे प्रेम कर सकती है। उसे चूमने के लिए झुकते हुए महिला जवाब देती है, "मैंने देखा था कि तुम क्या बनने वाली हो।" परमेश्वर का सुधार भी प्रेम और हमें वैसा बनाने की इच्छा के साथ आता है जैसा वास्तव में हमें बनना आवश्यक है।

 

खुशी के आंसू

एक सुबह घर से निकलते समय, डीन को कुछ दोस्त गुब्बारे लेकर इंतज़ार करते हुए मिले। उनका दोस्त जोश आगे बढ़ा। डीन को एक लिफाफा सौंपने से पहले उन्होंने कहा, "हमने आपकी कविताओं को एक प्रतियोगिता में शामिल किया था।" अंदर एक कार्ड था जिस पर लिखा था ''प्रथम पुरस्कार'' और जल्द ही हर कोई खुशी के आंसू रोने लगे। डीन के दोस्तों ने उसकी लेखन प्रतिभा की पुष्टि करते हुए एक सुंदर काम किया था।

खुशी के लिए रोना एक असत्याभास अनुभव है। आँसू आम तौर पर दर्द की प्रतिक्रिया होते हैं, खुशी के नहीं; और खुशी आम तौर पर हंसी के साथ व्यक्त की जाती है, आंसुओं के साथ नहीं। इतालवी मनोवैज्ञानिकों ने नोट किया है कि खुशी के आँसू गहरे व्यक्तिगत अर्थ के समय आते हैं - जैसे जब हम गहराई से प्रेम महसूस करते हैं या कोई बड़ा लक्ष्य प्राप्त करते हैं। इससे वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि खुशी के आंसू हमारे जीवन के अर्थ की ओर संकेत करते हैं।

मैं कल्पना करता हूं कि यीशु जहां भी गए वहां खुशी के आंसू फूट पड़े। कैसे हो सकता है कि उस जन्म से अंधे व्यक्ति के माता-पिता खुशी के आंसुओ के साथ न रोए होंगे जब यीशु ने उसे ठीक किया (यूहन्ना 9:1-9), या मरियम और मार्था जब उसने उनके भाई को मृत्यु से उठाया (11:38-44) ? जब परमेश्वर के लोगों को पुनर्स्थापित दुनिया में लाया जाएगा, तो “उनके चेहरे पर खुशी के आँसू बहेंगे,” परमेश्वर कहते हैं, “और मैं उन्हें बड़ी देखभाल के साथ घर ले आऊंगा” (यिर्मयाह 31:9 एनएलटी)।

यदि ख़ुशी के आँसू हमें हमारे जीवन का अर्थ बताते हैं, तो आने वाले उस महान दिन की कल्पना करें। जैसे ही हमारे चेहरे से आँसू बहेंगे, हम बिना किसी संदेह के जान लेंगे कि जीवन का अर्थ हमेशा उसके साथ घनिष्ठता से रहना रहा है।

 

पांच अच्छी बातें

शोध के अनुसार, जो लोग अपने पास मौजूद चीज़ों के लिए जानबूझकर आभारी होते हैं, उन्हें बेहतर नींद, बीमारी के कम लक्षण और अधिक ख़ुशी मिलती है। वे प्रभावशाली लाभ हैं। मनोवैज्ञानिक हमारी भलाई को बेहतर बनाने के लिए एक "आभार पत्रिका" रखने का भी सुझाव देते हैं, जिसमें प्रत्येक सप्ताह पांच चीजें लिखी जाएं जिनके लिए हम आभारी हैं।

धर्मशास्त्र ने लंबे समय से कृतज्ञता को बढ़ावा दिया है। भोजन और विवाह (1 तीमुथियुस 4:3-5) से लेकर सृष्टि की सुंदरता (भजन संहिता 104) तक, बाइबल ने हमें ऐसी चीज़ों को उपहार के रूप में देखने और उनके लिए दाता को धन्यवाद देने के लिए बुलाया है। भजन संहिता 107 उन पांच चीजों की सूची देता है जिनके लिए इस्राएल विशेष रूप से आभारी हो सकता है: रेगिस्तान में उनका बचाव (पद 4-9), कैद से उनकी रिहाई (पद 10-16), बीमारी से उपचार (पद 18-22), समुद्र पर सुरक्षा (पद 23-32), और बंजर भूमि में उनका फलना-फूलना (पद 33-42)। भजन संहिता दोहराता है, "प्रभु को धन्यवाद दो, क्योंकि ये सभी परमेश्वर के "अनमोल प्रेम" के लक्षण हैं (पद 8, 15, 21, 31)।

क्या आपके पास नोटपैड है? अब आप उन पाँच अच्छी चीज़ों को क्यों नहीं लिखते जिनके लिए आप आभारी हैं? यह वह भोजन हो सकता है जिसका आपने अभी आनंद लिया, आपकी शादी या, इस्राएल की तरह, आपके आज तक के जीवन में परमेश्वर ने किस प्रकार आपकी रक्षा की। बाहर चहचहाते पक्षियों, अपनी रसोई की महक, अपनी कुर्सी के आराम, प्रियजनों की बुदबुदाहट के लिए धन्यवाद दें। प्रत्येक एक उपहार है और परमेश्वर के अचूक प्रेम का प्रतीक है।

 

भजन संहिता 72 नेता

जुलाई 2022 में, ब्रिटेन के प्रधान मंत्री को पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि कई लोगों को लगा कि ईमानदारी में बहुत कमी हैं (नव नियुक्त प्रधान मंत्री ने कुछ ही महीनों बाद पद छोड़ दिया!)। यह घटना तब शुरू हुई जब देश के स्वास्थ्य मंत्री ने वार्षिक संसदीय प्रार्थना नाश्ते में भाग लिया, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी की आवश्यकता के बारे में दोषी महसूस किया और इस्तीफा दे दिया। जब अन्य मंत्रियों ने भी इस्तीफा दे दिया, तो प्रधान मंत्री को एहसास हुआ कि उन्हें जाना होगा। यह एक उल्लेखनीय क्षण था, जो एक शांतिपूर्ण प्रार्थना सभा से आरंभ हुआ था।

यीशु में विश्वासियों को अपने राजनीतिक नेताओं के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा गया है (1 तीमुथियुस 2:1-2), और भजन संहिता 72 ऐसा करने के लिए एक अच्छा मार्गदर्शक है, जो एक शासक के कार्य का विवरण और उसे प्राप्त करने में उनकी मदद करने के लिए प्रार्थना दोनों है। यह आदर्श नेता को न्यायप्रिय और सत्यनिष्ठ व्यक्ति के रूप में वर्णित करता है (पद॰ 1-2), जो कमजोरों की रक्षा करता है (पद 4), जरूरतमंदों की सेवा करता है (पद 12-13), और उत्पीड़न के खिलाफ खड़ा होता है (पद 14)। कार्यालय में उनका समय "पृथ्वी को सींचने वाली वर्षा" (पद 6) की तरह है, जो भूमि में समृद्धि लाती है (पद 3, 7, 16)। जबकि केवल मसीहा ही ऐसी भूमिका को पूरी तरह से निभा सकता है (पद 11), नेतृत्व के बेहतर मानक क्या हो सकता है?

किसी देश का स्वास्थ्य उसके पदाधिकारियों की ईमानदारी से संचालित होता है। आइए अपने राष्ट्रों के लिए "भजन संहिता 72 में वर्णित नेताओं" की तलाश करें और उनके लिए प्रार्थना करके इस भजन संहिता में पाए गए गुणों को अपनाने में उनकी मदद करें।

अपने सृजनहार को याद रखो

मैंने हाल ही में एक महिला के बारे में एक उपन्यास पढ़ा जो यह स्वीकार करने से इंकार कर देती है कि उसे लाइलाज कैंसर है। जब निकोला के परेशान दोस्त उसे सच्चाई का सामना करने के लिए मजबूर करते हैं, तो उसके टाल-मटोल का कारण सामने आता है। वह उनसे कहती है, ''मैंने अपना जीवन बर्बाद कर दिया है।'' यद्यपि प्रतिभा और धन के साथ पैदा हुई, “मैंने अपने जीवन में कुछ भी सार्थक नहीं किया। मैं लापरवाह थी, मैं कभी भी किसी चीज़ पर स्थिर नहीं रही।” अब यह महसूस करते हुए कि उसने बहुत कम हासिल किया है, दुनिया छोड़ने की संभावना का विचार निकोला के लिए बहुत दर्दनाक था। 

मैं लगभग उसी समय सभोपदेशक पढ़ रहा था और मुझे इसमें बिल्कुल विरोधाभास (अन्तर) नजर आया। इसका शिक्षक हमें मृत्यु की वास्तविकता से बचने नहीं देता, "क्योंकि अधोलोक में जहाँ तू जाने वाला है" (9:10)। और जबकि इसका सामना करना कठिन है (पद- 2), यह हमें अब हमारे पास मौजूद हर पल को महत्व देने के लिए प्रेरित करता है (पद- 4), समझ बूझ के अपने भोजन और परिवारों का आनंद लेना (पद- 7-9), उद्देश्यपूर्ण ढंग से काम करना (पद- 10) ), असाधारण कार्य करना और जोखिम उठाना (11:1, 6), और एक दिन इन सभी कार्यों से सम्बंधित उत्तर हम परमेश्वर को देंगे (पद 9; 12:13-14)।  निकोला के दोस्तों का कहना है कि अपने दोस्तों के प्रति उसकी वफादारी और उदारता साबित करती है कि उसका जीवन बर्बाद नहीं हुआ है। लेकिन शायद शिक्षक की सलाह हम सभी को हमारे जीवन के अंत में ऐसे संकट से बचा सकती है: अपने रचयिता (12:1) को याद रखें, उसके तौर-तरीकों का पालन करें, और जीने और प्रेम करने के हर अवसर को स्वीकार करें जो वह आज प्रदान करता है।

दीवारों पर स्वर्गदूत

जब वॉलेस और मेरी ब्राउन एक मरते हुए चर्च में पास्टर बनने के लिए इंग्लैंड के एक गरीब हिस्से में गए, तो उन्हें नहीं पता था कि एक गिरोग ने उनके चर्च और घर के परिसर को अपना मुख्यालय बना लिया है l दंपत्ति की खिड़कियों पर ईंटें फेंकी गयीं, उनके बाड़ों में आग लगा दी गयी और उनके बच्चों को धमकाया गया l दुर्व्यवहार महीनों तक जारी रहा; पुलिस इसे रोक न सकी l  

नहेम्याह की किताब बताती है कि कैसे इस्राएलियों ने यरूशलेम की टूटी हुयी दीवारों का पुनःनिर्माण किया l जब स्थानीय लोग “गड़बड़ी [डालने]” के लिए निकले, हिंसा की धमकी दी (नहेम्याह 4:8), तो इस्राएलियों ने “परमेश्वर से प्रार्थना की, और . . . पहरुए ठहरा दिए” (पद.9) l यह महसूस करते हुए कि परमेश्वर ने इस परिच्छेद द्वारा उनको निर्देशित किया है, ब्राउन, उनके बच्चे और कुछ अन्य लोग अपने चर्च की दीवारों के चारों ओर घूमकर, प्रार्थना की कि वह उनकी रक्षा के लिए स्वर्गदूतों को रक्षक के रूप में स्थापित करेगा l गिरोह ने मज़ाक उड़ाया, लेकिन अगले दिन, उनमें से केवल आधे ही आये l उसके अगले दिन, वहाँ केवल पांच थे, और उसके अगले दिन, कोई नहीं आया l ब्राउन लोगों को बाद में पता चला कि गिरोह ने लोगों को आतंकित करना छोड़ दिया है l 

प्रार्थना का यह चमत्कारी उत्तर हमारी अपनी सुरक्षा का कोई सूत्र नहीं है, बल्कि यह एक अनुस्मारक है कि ईश्वर के कार्य का विरोध होगा और प्रार्थना के हथियार से उससे लड़ा जाना चाहिए l नहेम्याह ने इस्राएलियों से कहा, “प्रभु जो महान् और भय्योग्य है, उसी को स्मरण” करना (पद.14) l वह हिंसक दिलों को भी आजाद कर सकता है l 

मसीह में गहरी मित्रता

ख्राइस्ट कॉलेज, कैंब्रिज, इंग्लैंड के चैपल में एक स्मारक है, जो सत्रहवीं शताब्दी के दो चिकित्सकों, जॉन फिंच और थॉमस बेन्स को समर्पित है l “घनिष्ठ मित्र” के रूप में प्रसिद्ध  फिंच और बेन्स ने चिकित्सा अनुसन्धान पर सहयोग किया और साथ में राजनयिक यात्राएँ की l 1680 में बेन्स की मृत्यु पर फिंच ने उनकी “आत्माओं के टूटे विवाह” पर जो छतीस वर्षों तक चला था शोक व्यक्त किया l उनकी मित्रता स्नेह, निष्ठा और प्रतिबद्धता की थी l 

राजा दाऊद और योनातान भी उतने ही घनिष्ठ मित्र थे l उन्होंने गहरा आपसी स्नेह साझा किया (1 शमुएल 20:41), यहाँ तक कि एक-दूसरे के प्रति वचनबद्धता की शपथ भी ली (पद.8-17, 42) l उनकी दोस्ती अत्यधिक विश्वासयोग्यता से चिन्हित थी (1 शमुएल 19:1-2; 20:13), योनातान ने सिंहासन पर अपना अधिकार भी त्याग दिया ताकि दाऊद राजा बन सके (20:30-31; 23:15-18 देखें) l योनातान की मृत्यु पर, दाऊद ने शोक व्यक्त किया कि योनातान का उसके प्रति प्रेम “स्त्रियों के प्रेम से भी बढ़कर था” (2 शमुएल 1:26) l 

आज हम मित्रता की तुलना विवाह से करने में असहज महसूस कर सकते हैं, लेकिन शायद फिंच और बेन्स और दाऊद और योनातान जैसी मित्रता हमारी अपनी मित्रता को अधिक गहराई तक पहुँचने में मदद कर सकती हैं l यीशु ने अपने मित्रों का उसकी ओर झुकने का स्वागत किया (यूहन्ना 13:23-25) और वह स्नेह, निष्ठा और प्रतिबद्धता जो वह हमें दिखाता है वह हमारे द्वारा एक साथ बनायी जाने वाली गहरी मित्रता का आधार हो सकता है l