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Articles by विन्न कॉलियर

यीशु हमारा भाई

 
ब्रिजर वॉकर सिर्फ़ छह साल का था जब एक ख़तरनाक कुत्ते ने उसकी छोटी बहन पर हमला किया। सहज रूप से, कुत्ते के क्रूर हमले से उसे बचाते हुए ब्रिजर उसके सामने कूद गया, कुत्ते के क्रूर हमले से उसे बचाते हुए। आपातकालीन देखभाल और चेहरे पर नब्बे टांके लगने के बाद, ब्रिजर ने अपनी हरकतों के बारे में बताया। "अगर किसी को मरना ही था, तो मुझे लगा कि वह मैं ही हूँ।" शुक्र है कि प्लास्टिक सर्जनों ने ब्रिजर के चेहरे को ठीक करने में मदद की है। लेकिन हाल ही में आई तस्वीरों में जहाँ वह अपनी बहन को गले लगाते हुए दिखाई दे रहा है, उसका भाईचारा प्यार हमेशा की तरह मज़बूत बना हुआ है। 
आदर्श रूप से, परिवार के सदस्य हमारी देखभाल करते हैं । सच्चे भाई तब आगे आते हैं जब हम मुसीबत में होते हैं और जब हम डरे हुए या अकेले होते हैं तो हमारे साथ खड़े होते हैं। वास्तव में, हमारे सबसे अच्छे भाई भी अपूर्ण हैं; कुछ तो हमें चोट भी पहुँचाते हैं। हालाँकि, हमारा एक भाई है, जो हमेशा हमारे साथ रहता है, यीशु। इब्रानियों हमें बताता है कि मसीह, विनम्र प्रेम के एक कार्य के रूप में, मानव परिवार में शामिल हो गया, हमारे “मांस और लहू” को साझा किया और, “सब बातों में अपने भाइयों के समान [बना]” (2:14,17) l परिणामस्वरूप, यीशु हमारा सबसे सच्चा भाई है, और वह हमें अपना “भाई [और बहन]” कहकर प्रसन्न होता है (पद.11) l  
हम यीशु को अपने उद्धारकर्ता, मित्र और राजा के रूप में संदर्भित करते हैं—और इनमें से हर एक सत्य है l हालाँकि, यीशु हमारा भाई भी है जिसने हर मानवीय भय और प्रलोभन, हर निराशा या उदासी का अनुभव किया है l हमारा भाई हमेशा हमारे साथ खड़ा है l  
—विन कोलियर 

सबल और निर्बल

 
कॉलेज फ़ुटबॉल में शायद सबसे ज़्यादा दिल को छू लेने वाली परंपरा आयोवा विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका में में होती है। स्टीड फ़ैमिली चिल्ड्रन अस्पताल आयोवा के किनिक स्टेडियम के बगल में है, और अस्पताल की सबसे ऊपरी मंज़िल में फर्श से लेकर छत तक की खिड़कियाँ हैं, जहाँ से मैदान का शानदार नज़ारा दिखाई देता है। खेल के दिनों में, बीमार बच्चे और उनके परिवार नीचे की कार्रवाई देखने के लिए फर्श पर इकठ्ठा होते हैं, और पहले क्वार्टर के अंत में, कोच, एथलीट और हज़ारों प्रशंसक अस्पताल की ओर मुड़ते हैं और हाथ हिलाते हैं। उन कुछ पलों के लिए, बच्चों की आँखें चमक उठती हैं। एथलीटों को, खचाखच भरे स्टेडियम और हज़ारों की संख्या में टीवी दर्शकों के सामने, एथलीटों को रुकते हुए और यह दिखाते हुए देखना प्रभावशाली है कि वे परवाह करते हैं।  
शास्त्र शक्तिशाली लोगों को (और हम सभी के पास किसी न किसी प्रकार की शक्ति है) निर्देशित करते हैं कि जो कमज़ोर हैं उनकी देखभाल करें, उन पर ध्यान दें जो संघर्ष कर रहे हैं, और उनकी देखभाल करें जो शारीरिक रूप से कमज़ोर हैं l हालाँकि, बहुत बार, हम उन लोगों की उपेक्षा करते हैं जिनपर ध्यान देने की ज़रूरत है (यहेजकेल 34:6) l भविष्यवक्ता यहेजकेल ने इस्राएल के अगुओं को उनके स्वार्थी स्वभाव के लिए डांटा, उन लोगों की उपेक्षा करने के लिए जिन्हें सहायता की अति आवश्यकता थी l “हाय,” परमेश्वर ने यहेजकेल द्वारा कहा l “तुम ने बीमारों को बलवान न किया, न रोगियों को चंगा किया, न घायलों के घावों को बाँधा” (पद.2, 4) l  
कितनी बार हमारी व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ, नेतृत्व सिद्धांत, या आर्थिक नीतियाँ संकट में पड़े लोगों के प्रति कम सम्मान प्रदर्शित करती हैं? परमेश्वर हमें एक अलग मार्ग दिखाता है, जहाँ शक्तिशाली लोग निर्बलों की परवाह करते हैं (पद.11-12) l   
—विन कोलियर 

प्रार्थना और परिवर्तन

1982 में, पादरी क्रिश्चियन फ्यूहरर ने जर्मनी में लीपज़िग के सेंट निकोलस चर्च में सोमवार की प्रार्थना सभा शुरू की। वर्षों तक, मुट्ठी भर लोग वैश्विक हिंसा और दमनकारी पूर्वी जर्मन शासन के बीच परमेश्वर से शांति की प्रार्थना करने के लिए एकत्र होते। हालाँकि कम्युनिस्ट अधिकारी चर्चों पर करीब से नज़र रखते थे, लेकिन उन्हें तब तक कोई चिंता नहीं थी जब तक कि संख्या बढ़ नहीं गई इतनी की चर्च के गेट के बाहर तक सामूहिक बैठकें पहुँच गई। 9 अक्टूबर 1989 को सत्तर हजार प्रदर्शनकारी मिले और शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन किया। छह हजार पूर्वी जर्मन पुलिस किसी भी उकसावे का जवाब देने के लिए तैयार थी। हालाँकि, भीड़ शांतिपूर्ण रही और इतिहासकार इस दिन को एक ऐतिहासिक क्षण मानते हैं। एक महीने बाद, बर्लिन की दीवार गिर गई। इस व्यापक परिवर्तन की शुरुआत एक प्रार्थना सभा से हुई। 
जैसे ही हम परमेश्वर की ओर मुड़ते हैं और उनकी बुद्धि और शक्ति पर भरोसा करना शुरू करते हैं, चीजें अक्सर बदलने और नया आकार लेने लगती हैं। इस्राएलियों की तरह जब हम “संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं,” तो हम उस एकमात्र परमेश्वर को पाते हैं जो हमारी सबसे गंभीर कठिनाइयों को भी गहराई से बदलने और हमारे सबसे कठिन सवालों का जवाब देने में सक्षम है (भजन 107:28)। “परमेश्वर आँधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं।” और "निर्जल देश को जल के सोते कर देता है"(पद 29, 35)। जिससे हम प्रार्थना करते हैं वह निराशा से आशा और विनाश से सुंदरता लाता है। 
लेकिन यह परमेश्वर है जो (अपने समय में - हमारे समय में नहीं) परिवर्तन का कार्य करता है। प्रार्थना यह है कि हम उसके द्वारा किए जा रहे परिवर्तनकारी कार्य में कैसे भाग लेते हैं। 
 

ईश्वर की अचूक यादाश्त

 
एक व्यक्ति के पास बिटकॉइन में $400 मिलियन से अधिक मुद्रा थी। लेकिन वह इसके एक पैसा  भी नहीं पा सका। अपने धन को जमा करने वाले उपकरण का पासवर्ड उससे खो गया था। और आपदा घटी — दस पासवर्ड से कोशिश करने के बाद, उपकरण अपने आप ही नष्ट हो गया। उसकी सम्पति (तकदीर) हमेशा के लिए खो गई। एक दशक तक, वह व्यक्ति बैचेन था, वह अपने जीवन को बदलने वाले निवेश पूँजी के पासवर्ड को याद करने की सख्त कोशिश कर रहा था। उसने आठ पासवर्ड आज़माए और आठ बार विफल रहा। 2021 में, वह बहुत दुखी हुआ कि उसके पास सिर्फ दो और मौके थे इससे पहिले कि सब कुछ धुएं में उड़ जाए।  
हम भूलने वाले (भुलक्कड़) लोग हैं। कभी–कभी हम छोटी चीजें भूल जाते हैं – हमने अपनी चाबियां कहां रखी हैं; और कभी–कभी हम बड़ी चीजें भूल जाते हैं (एक पासवर्ड जो लाखों की मुद्रा को अनलॉक करता है)। शुक्र है परमेश्वर हमारे जैसा नहीं है। वह उन चीजों या लोगों को कभी नहीं भूलता जो उसे प्रिय हैं। संकट के समय में इस्राएल को डर था कि परमेश्वर उन्हें भूल गया है। “यहोवा ने मुझे त्याग दिया है, मेरा प्रभु मुझे भूल गया है।" (यशायाह 49:14)। हालाँकि, यशायाह ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनका परमेश्वर हमेशा याद रखता है। “क्या कोई माँ अपने दूध पीते बच्चे को भूल सकती है?” वह पूछता है। बेशक, एक माँ अपने दूध पीते बच्चे को नहीं भूलेगी। फिर भी, भले ही एक माँ ऐसी मूर्खता करे, पर हम जानते हैं कि परमेश्वर हमें कभी नहीं भूलेगा (पद 15)। 
परमेश्वर कहते हैं, “देख, मैंने तेरा चित्र अपनी हथेलियों पर खोद कर बनाया है।” (पद 16)। परमेश्वर ने हमारे नामों को अपने अस्तित्व में खोदा है। आइए हम याद रखें कि वह हमें भूल नहीं सकता है – जिनसे वह प्यार करता है। 

जो केवल आत्मा ही कर सकती है

 
जुरगेन मोल्टमैन नाम के एक चौरानवे वर्षीय जर्मन धर्मशास्त्री द्वारा लिखित पवित्र आत्मा पर एक पुस्तक की चर्चा के दौरान, एक इन्टरव्यू लेने वाले ने उनसे पूछा: "आप पवित्र आत्मा को कैसे सक्रिय करते हैं? क्या हम एक गोली ले सकते हैं? क्या दवा कंपनियाँ आत्मा प्रदान करती हैं?" मोल्टमैन की घनी भौहें तन गईं। अपना सिर हिलाते हुए, वह ज़ोर से अंग्रेजी में जवाब देते हुए मुस्कुराया। "मैं क्या कर सकता हुँ? कुछ मत करो आत्मा की बाट जोहो, और आत्मा आ जाएगी।” 
मोल्टमैन ने हमारी गलत धारणा पर प्रकाश डाला कि हमारी ऊर्जा और विशेषज्ञता चीज़ों को करती है। प्रेरितों के काम से पता चलता है कि परमेश्वर चीज़ों को करता है। चर्च की शुरुआत में, इसका मानवीय रणनीति या प्रभावशाली नेतृत्व से कोई लेना-देना नहीं था। बल्कि, आत्मा  एकाएक आकाश से बड़ी आंधी की सी सनसनाहट का शब्द तरह भयभीत, असहाय और भ्रमित शिष्यों के कमरे में आई (2:2)। इसके बाद, आत्मा ने सभी जातीय श्रेष्ठताओं को तोड़ दिया, उन लोगों को एक नए समुदाय में इकट्ठा करके जो आपस में असहमत थे;   शिष्यों को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि परमेश्वर उनके भीतर क्या कर रहा था। उन्होंने कुछ भी नहीं किया ;  "आत्मा ने उन्हें समर्थ दिया" (पद. 4)। 
कलीसिया—और संसार में हमारा साझा कार्य—इससे परिभाषित नहीं होता कि हम क्या कर सकते हैं। हम पूरी तरह से उस पर निर्भर हैं जो केवल आत्मा कर सकता है । यह हमें निडर और शांत दोनों होने की अनुमति देता है। इस दिन, जिस दिन हम पिन्तेकुस्त मनाते हैं, हम आत्मा की प्रतीक्षा करें और प्रत्युत्तर दें। 

मैं कौन हूँ?

1859 में, जोशुआ अब्राहम नॉर्टन ने खुद को अमेरिका का सम्राट घोषित किया। नॉर्टन ने सैन फ्रांसिस्को शिपिंग में बहुत सारा पैसा कमाया और खो दिया था, लेकिन वह एक नई पहचान चाहते थे: अमेरिका का पहला सम्राट। जब सैन फ्रांसिस्को इवनिंग बुलेटिन (पत्रिका) ने "सम्राट" नॉर्टन की घोषणा को छापा, तो अधिकांश पाठक हंस पड़े। नॉर्टन ने समाज की बुराइयों को सुधारने के उद्देश्य से घोषणाएँ कीं, अपनी मुद्रा छापी और यहाँ तक कि रानी विक्टोरिया को पत्र लिखकर उनसे विवाह करने और उनके राज्यों को एकजुट करने के लिए कहा।  उन्होंने स्थानीय दर्जियों द्वारा डिजाइन की गई शाही सैन्य वर्दी पहनी थी। एक पर्यवेक्षक ने कहा कि नॉर्टन " पूरी तरह से एक राजा" दिखते थे। लेकिन जाहिर है, वह नहीं था। हम जो हैं उसे हम नहीं बना सकते हैं। 
हममें से बहुत से लोग यह जानने में वर्षों व्यतीत करते हैं कि हम कौन हैं और आश्चर्य करते हैं कि हमारा मूल्य क्या है। हम अपने आप को नाम देने या परिभाषित करने की कोशिश करते हैं, जब केवल परमेश्वर ही हमें सच में बता सकते हैं कि हम कौन हैं। और, शुक्र है, जब हम उसके पुत्र, यीशु में उद्धार प्राप्त करते हैं, तो वह हमें अपने पुत्र और पुत्रियाँ कहता है। "परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया," यूहन्ना लिखता है, "उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया" (यूहन्ना 1:12)। और यह पहचान पूर्ण रूप से एक उपहार है। हम उनके प्रिय “ जो न  तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।"  (पद. 13).  
परमेश्वर हमें मसीह में हमारा नाम और हमारी पहचान देता है। हम प्रयास करना और दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर सकते हैं, क्योंकि वह हमें बताता है कि हम कौन हैं। 
 

 

यीशु में बने रहना

कई साल पहले, हम स्थानीय पशु आश्रय से जूनो नाम की एक वयस्क काली बिल्ली को घर लाये थे। सच कहूँ तो, मैं केवल हमारे चूहों की आबादी को कम करने में मदद चाहता था, लेकिन परिवार के बाकी सदस्य एक पालतू जानवर चाहते थे। आश्रय ने हमें इस बारे में सख्त निर्देश दिए कि पहले सप्ताह में भोजन की दिनचर्या कैसे स्थापित की जाए ताकि जूनो को पता चले कि हमारा घर उसका घर है, वह स्थान जहाँ का वह सदस्य है और जहाँ उसे हमेशा भोजन और सुरक्षा मिलेगी। इस तरह, भले ही जूनो कहीं भी इधर-उधर घूमे, वह आख़िरकार घर आ ही जाएगा । 
यदि हम अपने सच्चे घर को नहीं जानते हैं, तो हम हमेशा भलाई, प्रेम और अर्थ की तलाश में व्यर्थ भटकने के लिए ललचाते रहेंगे। यदि हम अपने सच्चे जीवन को पाना चाहते हैं, हालाँकि, यीशु ने कहा, “तुम मुझ में बने रहो” (यूहन्ना 15:4)। बाइबिल के विद्वान फ्रेडरिक डेल ब्रूनर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे बने रहना  (एक समान शब्द निवास की तरह) एक परिवार और घर की भावना पैदा करता है।  इसलिए ब्रूनर ने यीशु के शब्दों का इस तरह अनुवाद किया : “मेरे साथ रहो  (मुझ में बने रहो) ।“ इस विचार को हर जगह तक पहुँचाने के लिए, यीशु ने दाखलता से जुड़ी शाखाओं का उदाहरण दिया। यदि शाखाएँ जीवित रहना चाहती हैं, तो उन्हें हमेशा दाखलता से जुड़े रहना चाहिए, दृढ़ता से स्थिर रहना चाहिए जहाँ की वे हैं। 
 
हमारी समस्याओं को ठीक करने या हमें कुछ नयी “बुद्धि” या उत्साहजनक भविष्य प्रदान करने के खोखले वादों के साथ कई आवाजें हमें बुलाती हैं। लेकिन अगर हमें सच में जीना है, तो हमें यीशु में बने रहना होगा। हमें उसके साथ रहना होगा। 
 

परमेश्वर हमें जानता है

मैंने हाल ही में माइकलएंजेलो की मूर्तिकला “मोजेस” (Moses) की एक तस्वीर देखी, जिसमें एक नजदीकी दृश्य में “मोज़ेस” की दाहिनी भुजा पर एक छोटी उभरी हुयी मांसपेशी दिखाई दी l यह मांशपेशी प्रसारक मांशपेशी डिजिटी मिनिमी(digiti minimi) है, और संकुचन तभी प्रकट होता है जब कोई अपनी कनिष्ठ/छोटी उंगली (pinky/little finger) उठाता है l माइकलएंजेलो, जटिल विवरण के एक विशारद(master) के रूप में जाने जाते हैं, उन्होंने मानव शरीर पर बारीकी से ध्यान दिया,अन्तरंग विशेषताओं को अधिकाधिक जोड़ा,जो बाकी लोग छोड़ देतेl माइकलएंजेलो मानव शरीर को जिस तरह से जानते थे उस तरह से बहुत ही कम मूर्तिकारों ने जाना था, लेकिन उन्होंने ग्रेनाइट/granite में जो विवरण उकेरे हैं, वहां कुछ गहरा प्रकट करने का उनका प्रयास था—आत्मा, मनुष्य का भीतरी/आंतरिक जीवनl और यकीनन, वहाँ, माइकलएंजेलो हमेशा कम पड़ गएl 

केवल परमेश्वर ही मानव हृदय की गहरी वास्तविकताओं को जानता है l हम एक दूसरे के बारे में जो कुछ भी देखते हैं, चाहे वह कितना भी ध्यान देने योग्य या अंतर्दृष्टिपूर्ण क्यों न हो, वह सत्य की छाया मात्र हैl परन्तु परमेश्वर छाया से भी गहरा देखता है l यिर्मयाह नबी ने कहा, “हे यहोवा, तू मुझे देखता हैI” (12:3) हमारे बारे में परमेश्वर का ज्ञान अनुमानित या दिमागी नहीं है l वह हमें दूर से नहीं देखता हैl बल्कि, वह हम कौन हैं की छिपी हुयी वास्तविकताओं में झांकता है l परमेश्वर हमारे भीतरी जीवन की गहराइयों को जानता है, उन बातों को भी जिन्हें हम स्वयं समझने के लिए संघर्ष करते हैं l 

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे संघर्ष या हमारे हृदयों में क्या चल रहा है, परमेश्वर हमें देखता है और वास्तव में हमें जानता है l 

आँसुओं में आशीर्वाद

मुझे इंग्लैंड में एक युवक से एक ईमेल प्राप्त हुआ, एक बेटा जिसने समझाया कि उसके पिता (जो केवल तिरसठ वर्षीय थे) गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती थे, और जीवन और म्रत्यु के बीच झूल रहे थे। हालांकि हम कभी नहीं मिले थे लेकिन उसके पिता और मेरे कार्य में बहुत समानता थीI बेटे ने अपने पिता को खुश करने की कोशिश करते हुए मुझे प्रोत्साहन और प्रार्थना का एक वीडियो संदेश भेजने के लिए कहा। भावनात्मक रूप से प्रेरित होकर, मैंने एक छोटा संदेश और चंगाई के लिए एक प्रार्थना रिकॉर्ड की। मुझे बताया गया था कि उनके पिता ने वीडियो देखा और दिल से सराहा (थम्स-अप दिया)। दुख की बात है कि कुछ दिनों बाद मुझे एक और ईमेल मिला जिसमें बताया गया था कि उनकी मृत्यु हो गई है।अपनी पत्नी का हाथ थामे हुए उन्होंने अंतिम साँस ली थी।

मेरा दिल टूट गया। ऐसा प्यार, ऐसी तबाही। परिवार ने एक पति और पिता को बहुत जल्द खो दिया। फिर भी यह सुनकर आश्चर्य होता है कि यीशु जोर देकर कहते हैं कि वास्तव में यही दुःखी लोग धन्य हैं: "धन्य हैं वे जो शोक करते हैं," यीशु कहते हैं (मत्ती 5:4)। यीशु यह नहीं कह रहे हैं कि कष्ट और दुःख अच्छे हैं, बल्कि यह कि ईश्वर की दया और करुणा उन पर बरसती है जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। जो लोग मृत्यु या अपने स्वयं के पाप के कारण दुःख से अभिभूत हैं उन्हें परमेश्वर के ध्यान और सांत्वना की सबसे अधिक आवश्यकता है - और यीशु हमसे वादा करते हैं "वे शांति पाएंगे" (पद. 4)

परमेश्वर हमारी ओर, उनके प्रिय बच्चों की ओर कदम बढ़ाता है (पद. 9) वह हमारे आँसुओं में हमें आशीष देता है।