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Articles by सोचितल डिक्सॉन

यीशु की नकल करें 

इंडोनेशिया के पानी और ग्रेट बैरियर रीफ में एक "भेष बदलने का स्वामी" रहता है। नकलची ऑक्टोपस (अष्टबाहु), अन्य ऑक्टोपस की तरह, अपने परिवेश के साथ घुलने-मिलने के लिए अपनी त्वचा का रंग बदल सकता है। यह बुद्धिमान प्राणी ज़हरीली लायनफिश और यहां तक कि घातक समुद्री सांपों जैसे प्राणियों की खतरे भरी नकल कर अपना आकार, चाल-चलन और व्यवहार भी बदल लेता है। 
नकलची ऑक्टोपस के विपरीत, यीशु में विश्वास करने वालों का उद्देश्य हमारे चारों ओर मौजूद दुनिया में अलग दिखना है। हम उन लोगों से ख़तरा महसूस कर सकते हैं जो हमसे असहमत हो और उनमें घुलने-मिलने के लिए प्रलोभित हो जाते हैं, ताकि मसीह के अनुयायियों के रूप में पेहचाने न जाए। हालाँकि, प्रेरित पौलुस हमसे आग्रह करता है कि हम अपने शरीरों को "जीवित, पवित्र और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ (रोमियों 12:1), अपने जीवन के हर क्षेत्र से यीशु को दर्शाते हुए। 
दोस्त या परिवार के सदस्य कोशिश कर सकते है कि हम पर "इस संसार के सदृश बनने" (पद 2) का दबाव डालें। लेकिन परमेश्वर की संतान होने के नाते हम यह दिखा सकते है कि हम किसकी सेवा करते है, उससे अपने जीवन को मिलाते हुए जिस पर हम विश्वास करते है। जब हम पवित्र शास्त्र का पालन करते हैं और उसके प्रेमपूर्ण चरित्र को दर्शाते हैं, तो हमारा जीवन यह प्रदर्शित कर सकता है कि आज्ञाकारिता का प्रतिफल हमेशा किसी भी नुकसान से अधिक होता है। आज आप यीशु की नकल कैसे करेंगे? 

धीरे धीरे

 
एक दर्जन टीमें, जिनमें से प्रत्येक में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े तीन लोग शामिल थे, चार पैरों वाली दौड़ के लिए तैयार थीं। प्रत्येक बाहरी व्यक्ति बीच में खड़े व्यक्ति से टखनों और घुटनों पर रंग-बिरंगे कपड़े से बंधा हुआ था, तीनों ने अपनी आँखें फिनिश लाइन (समापन रेखा) पर टिकाई हुई थीं। जब सीटी बजी, तो टीमें आगे बढ़ीं। उनमें से अधिकांश गिर गए और अपने पैर जमाने के लिए संघर्ष करने लगे। कुछ समूहों ने चलने के बजाय कूदना चुना। कुछ ने हार मान ली। लेकिन एक टीम ने अपनी शुरुआत में देरी की, अपनी योजना की पुष्टि की और आगे बढ़ते हुये आपस में बातें करते रहें। वे रास्ते में लड़खड़ाए लेकिन आगे बढ़ते रहे और जल्द ही सभी टीमों से आगे निकल गए। सहयोग करने की उनकी इच्छा, कदम दर कदम, उन्हें एक साथ फिनिश लाइन पार करने में सक्षम बनाया। 
यीशु में विश्वासियों के समुदाय के भीतर परमेश्वर के लिए जीना अक्सर उतना ही निराशाजनक लगता है जितना कि चार पैरों वाली दौड़ के दौरान आगे बढ़ने की कोशिश करना। हम अक्सर उन लोगों के साथ बातचीत करते समय लड़खड़ा जाते हैं जो हमसे अलग राय रखते हैं। 
पतरस प्रार्थना, आतिथ्य और अपने उपहारों का उपयोग करके आगे के जीवन के लिए एकता में खुद को संरेखित करने की बात करता है। वह यीशु में विश्वासियों से आग्रह करता है कि वे "एक दूसरे से गहराई से प्यार करें" (1 पतरस 4:8), बिना शिकायत किए एक दूसरे का अतिथि सत्कार करें और "दूसरों की सेवा करें, और परमेश्वर के अनुग्रह के विश्वानसयोग्य भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगायें (पद 10)। । जब हम ईश्वर से हमें संवाद करने और सहयोग करने में मदद करने के लिए कहते हैं, तो हम दुनिया को यह दिखाने में दौड़ का नेतृत्व कर सकते हैं कि मतभेदों का आनन्द कैसे लिया जाए और एकता में एक साथ रहा जाए। 

परमेश्वर की पहुँच में

 
एक अधिकारी द्वारा मेरी तलाशी लेने के बाद, मैंने जिला बंदीगृह में कदम रखा, और आगंतुकों वाले रजिस्टर पर हस्ताक्षर करके भीड़ से भरे प्रतीक्षालय में बैठ गया। मैंने चुपचाप प्रार्थना की, मैं बड़ों को बेचैन और आहें भरते हुए और छोटे बच्चों को इन्तज़ार करने के बारे में शिकायत करते देख रहा था। एक घंटे से अधिक समय के बाद, एक सशस्त्र सिपाही ने मेरे नाम सहित कुछ नामों की सूची की पुकार लगाई। वह मेरे समूह को एक कमरे में ले गया और हमारी निर्धारित कुर्सियों पर बैठने के लिए हमें इशारा किया। जब कांच की मोटी खिड़की के दूसरी तरफ मेरा सौतेला बेटा कुर्सी पर आकर बैठा और उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाया, तो मेरी असहायता की गहराई ने मुझे पराजित कर दिया। परन्तु जब मैं रोया, तो परमेश्वर ने मुझे यह आश्वासन दिया कि मेरा सौतेला बेटा अभी भी परमेश्वर की पहुँच में है। 
भजन संहिता 139 अध्याय में, दाऊद परमेश्वर से कहता है, “तू मेरा उठना और बैठना जानता है ... तू मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है” (पद 1-3)। सब कुछ जानने वाले परमेश्वर के प्रति उसकी यह उद्घोषणा परमेश्वर की घनिष्ठ देखभाल और सुरक्षा के उत्सव की ओर अगुवाई करती है (पद 5)। परमेश्वर के ज्ञान की विशालता और उसके व्यक्तिगत स्पर्श की गहराई से अभिभूत होकर, दाऊद दो अलंकारिक प्रश्न पूछता है:: “मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊँ? या तेरे सामने से किधर भागूँ?” (पद 7)। जब हम या हमारे प्रियजन ऐसी परिस्थितियों में फँस जाते हैं जो हमें निराश और असहाय महसूस करवाती हैं, उस समय परमेश्वर का हाथ मजबूत और स्थिर बना रहता है। यहाँ तक कि जब हम यह सोच लेते हैं कि हम उसके प्रेमपूर्ण छुटकारे से बहुत दूर भटक गए हैं, उस समय भी हम हमेशा उसकी पहुँच में होते हैं। 

प्रभु देखता है, समझता है, और परवाह करता है

 
कभी-कभी, पुराने दर्द और थकान के साथ जीने से घर में अलग-थलग पड़ना और अकेलापन महसूस होता है। मैंने अक्सर महसूस किया है कि परमेश्वर और दूसरे लोग मुझे नहीं देखते। सुबह-सुबह अपने सर्विस डॉग के साथ प्रार्थना- पैदल यात्रा के दौरान, मैं इन भावनाओं से जूझ रहा था। मैंने दूर से एक हॉट-एयर बैलून देखा। उसकी टोकरी में बैठे लोग हमारे शांत पड़ोस का पूरा दृश्य सरसरी नज़र से देख सकते थे। लेकिन वे मुझे वास्तव में नहीं देख सकते थे। जैसे-जैसे मैं अपने पड़ोसियों के घरों के पास से गुज़रता गया, मैंने आह भरी। उन बंद दरवाज़ों के पीछे कितने लोग खुद को अनदेखा और महत्वहीन महसूस करते हैं? जैसे-जैसे मैंने अपनी सैर पूरी की, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वे मुझे अपने पड़ोसियों को यह बताने के अवसर दें कि मैं उन्हें देखता हूँ और उनकी परवाह करता हूँ, और परमेश्वर भी ऐसा ही करते हैं।  
परमेश्वर ने सितारों की ठीक-ठीक संख्या निर्धारित की जिन्हें वह अस्तित्व में लाया। उसने प्रत्येक तारे को एक नाम से पहचाना (भजन संहिता 147:4), उसकी ताकत - अंतर्दृष्टि, विवेक और ज्ञान - की अतीत, वर्तमान या भविष्य में "कोई सीमा नहीं" है (वचन 5)। परमेश्वर हर हताश पुकार को सुनते हैं और हर खामोश आंसू को उतनी ही स्पष्टता से देखते हैं, जितनी स्पष्टता से वे संतुष्टि की हर आह और जोरदार गहरी हंसी को देखते हैं।  वह देखता है कि कब हम ठोकर खा रहे होते हैं और कब हम विजयी होकर खड़े होते हैं। वह हमारे गहरे भय, हमारे अंतरतम विचारों और हमारे अनियंत्रित सपनों को समझता है। वह जानता है कि हम कहाँ थे और हम कहाँ जा रहे हैं। जैसे परमेश्वर हमें अपने पड़ोसियों को देखने, सुनने और प्यार करने में मदद करता है, हम उसे देखने, समझने और हमारी देखभाल करने के लिए उस पर भरोसा कर सकते हैं।   

 

यीशु की तरह प्रेम करना

 
अटलांटा,  जॉर्जिया के एक स्टेशन पर ट्रेन की प्रतीक्षा करते समय, ड्रेस पैंट (औपचारिक स्थितियों में पहनने के लिए उपयुक्त पैंट )  और बटन डाउन शर्ट (कॉलर के प्रत्येक सिरे के नीचे एक बटन है जिसे आप बांध सकते हैं) पहने एक युवक एक बेंच पर बैठा था । एक बुजुर्ग महिला ने देखा कि उसे टाई बाँधने में कठिनाई हो रही थी, तो उसने अपने पति को मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया । जब बुजुर्ग व्यक्ति झुका और युवक को टाई बांधने का तरीका सिखाने लगा,  तो एक अजनबी ने तीनों की तस्वीर ले ली। जब यह तस्वीर ऑनलाइन वायरल हुई,  तो कई दर्शकों ने दयालुता के एकाएक प्रदर्शन की शक्ति के बारे में टिप्पणियां लिखी  
 
यीशु में विश्वासियों के लिए,  दूसरों के प्रति दया उस आत्म-बलिदान देखभाल को दर्शाती है जो उसने हम जैसे लोगों के लिए दिखाई । यह परमेश्वर के प्रेम की अभिव्यक्ति है और वह चाहता है कि उसके चेले इसे जीएँ : “ हम एक दूसरे से प्रेम रखें” (1 यूहन्ना 3:11) । यूहन्ना भाई या बहन से घृणा करने को हत्या के समान ठहराता है (पद. 15) । फिर वह कार्य में प्रेम के उदाहरण के रूप में है मसीह की ओर मुड़ता है (पद.16) ।  
निःस्वार्थ प्रेम को बलिदान का एक असाधारण प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। इसके लिए हमें हर दिन परमेश्वर के सभी छवि धारकों (जो उसके स्वरुप के है) की जरूरतों को अपनी जरूरतों से ऊपर रखकर उनके मूल्य को स्वीकार करना होगा। वे सामान्य प्रतीत होने वाले क्षण जब हम दूसरों की जरूरतों पर ध्यान देने के लिए पर्याप्त देखभाल करते हैं और जो हम मदद कर सकते हैं वह करते हैं,  निस्वार्थ होते हैं,  जब हम प्रेम से प्रेरित होते हैं । जब हम अपने व्यक्तिगत स्थान से परे देखते हैं,  दूसरों की सेवा करने और देने के लिए अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर निकलते हैं,  खासकर जब हमें देने की ज़रूरत नहीं होती है,  तो हम यीशु की तरह प्रेम करते हैं I 

स्तुति के आँसू

वर्षों पहले,  मैंने अपनी माँ की देखभाल की थी क्योंकि वह हास्पिस  (hospice अर्थात् गंभीर रूप से बीमार लोगों के लिए एक विशेष अस्पताल) में थी । मैंने उन चार महीनों के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने मुझे उनकी देखभाल करने वाले के रूप में सेवा करने का मौका दिया और उस दुःखी प्रक्रिया में उससे सहायता मांगी। अपनी मिली-जुली भावनाओं से जूझते हुए मुझे अक्सर परमेश्वर की स्तुति करने में संघर्ष होता था। लेकिन जब मेरी माँ ने अपनी आखिरी सांस ली और मैं बेकाबू होकर रोयी, मैंने धीरे से कहा , “हल्लिलूयाह ।“ कई सालो तक मैं ने खुद को दोषी समझा ऐसे दुख से परिपूर्ण क्षण में परमेश्वर की स्तुति करने के लिए,  जब तक कि मैंने भजन संहिता 30  को करीब से नहीं देखा।  
 
“मंदिर के समर्पण के लिए” दाऊद के गीत में,  उसने परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और दया के लिए उसकी आराधना की (पद. 1-3) । उसने दूसरों को “उसके पवित्र नाम की स्तुति” करने के लिए प्रोत्साहित किया (पद. 4) । तब दाऊद पाता है कि परमेश्वर कठिनाई और आशा को कितनी घनिष्ठता से जोड़ता है (पद. 5) । उसने दुःख और आनन्द के समय को स्वीकार किया,  सुरक्षित महसूस करने और निराश होने के समय को स्वीकार किया (पद. 6-7) । मदद के लिए उसकी पुकार परमेश्वर पर भरोसे के साथ बनी रही (पद. 7-10) । दाऊद के रोने और नाचने,  शोक और आनंद के क्षणों में उसकी स्तुति की प्रतिध्वनि सुनाई देती है (पद. 11) । मानो कष्ट सहने के रहस्य और जटिलता को स्वीकार करते हुए और परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर आशा रखते हुए,  दाऊद ने परमेश्वर के प्रति अपनी अंतहीन भक्ति को प्रकट किया (पद. 12) । दाऊद की तरह,  हम गा सकते हैं,  “हे मेरे परमेश्वर यहोवा,  मैं सर्वदा तेरा धन्यवाद करता रहूँगा” (पद.12) । चाहे हम खुश हों या आहत,  परमेश्वर हमें उस पर अपना भरोसा रखने में मदद कर सकता है और खुशी के नारे और स्तुति के आँसुओं के साथ उसकी आराधना करने में हमारी अगुवाई कर सकता है । 

परमेश्वर की आवाज़ पहचानना

वर्षों के शोध के बाद, वैज्ञानिकों ने सीखा है कि भेड़ियों की अलग-अलग आवाज़ें होती हैं जो उन्हें एक दूसरे के साथ संवाद/व्यवहार करने में मदद करती हैं l एक विशिष्ट ध्वनि विश्लेषण कोड का उपयोग करते हुए, एक वैज्ञानिक ने महसूस किया कि भेड़िये की चीख में आवाज़ की भिन्न घुमाव और ऊँचाई(pitches) ने उसे 100 फीसदी सटीकता के साथ विशिष्ट भेड़ियों की पहचान करने में सक्षम बनायाl 

बाइबल परमेश्वर द्वारा अपनी प्रिय कृतियों की विशिष्ट आवाजों को पहचानने के कई उदाहरण प्रदान करती है l उसने मूसा का नाम लेकर पुकारा और सीधे उससे बातें की (निर्गमन 3:4-6)  भजनकार दाऊद ने घोषणा की, “मैं उंचे शब्द से यहोवा को पुकारता हूँ, और वह अपने पवित्र पर्वत पर से मुझे उत्तर देता है” (भजन 3:4) प्रेरित पौलुस ने भी परमेश्वर के लोगों द्वारा उसकी आवाज पहचानने के महत्त्व पर बल दिया l 

इफिसियों के बड़े-बुजुर्गों को विदा करते समय, पौलुस ने कहा कि आत्मा ने उसे यरूशलेम की ओर जाने के लिए “विवश” किया था l उसने परमेश्वर की वाणी का अनुसरण करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की, यद्यपि वह नहीं जानता था कि उसके पहुँचने पर उस पर क्या-क्या बीतेगा  (प्रेरितों 20:22) प्रेरित ने चेतावनी दी कि “फाड़नेवाले भेड़िये” “आएँगे . . . जो . . . टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे” कलीसिया के अन्दर से भी खींच लेने के लिए (पद.29-30) फिर उसने बड़े-बूढों (बुजुर्गों) को परमेश्वर की सच्चाई को समझने में परिश्रमी रहने के लिए उत्साहित किया (पद.31)  

यीशु में सभी विश्वासियों को यह जानने का सौभाग्य प्राप्त है कि परमेश्वर हमारी सुनता है और हमें उत्तर देता है l हमारे पास पवित्र आत्मा की सामर्थ्य भी है जो हमें परमेश्वर की आवाज़ को पहचानने में सहायता करती है,जो हमेशा पवित्रशास्त्र के शब्दों के अनुरूप होती है l 

पाप को दूर करना

जब मैंने देखा कि हमारे बरामदे के पास बगीचे की पाइप के बगल में एक टहनी निकली हुयी है, तो मैंने उस हानिकारक न लगनेवाली बदसूरत वनस्पति को नज़रअंदाज़ कर दिया l एक छोटा सा खरपतवार संभवतः हमारे लॉन (lawn)को कैसे नुक्सान पहुंचा सकता है? लेकिन जैसे-जैसे सप्ताह बीतते गए, वह दुखदायी वनस्पति एक छोटी झाड़ी के आकार का हो गया और हमारे अहाते पर कब्ज़ा करने लगा l उसकी फैली हुयी डालियाँ रास्ते के एक भाग पर झुक गए और अन्य जगहों पर उग आए l इस विनाशकारी स्थिति को स्वीकार करते हुए, मैंने अपने पति से कहा कि वे जंगली खरपतवार को जड़ से हटाने में मेरी सहायता करें और फिर खरपतवार नाशक से हमारे अहाते की रक्षा करें l 

जब हम पाप की उपस्थिति को अनदेखा या अस्वीकार करते हैं, तो वह हमारे जीवन पर अवांछित अतिवृद्धि(overgrowth) की तरह आक्रमण कर सकता है और हमारे व्यक्तिगत स्थान को अँधेरा कर सकता है l हमारे निष्पाप परमेश्वर में कोई अन्धकार नहीं है . . . बिलकुल भी नहीं l उनके बच्चों के रूप में, हम सीधे पापों का सामना करने के लिए तैयार और सामर्थी किये गए हैं ताकि हम “ज्योति में चल सकें, जैसा कि वह ज्योंति में है”(1 यूहन्ना 1:7)अंगीकार और पश्चाताप के द्वारा, हम क्षमा और पाप से स्वतंत्रता का अनुभव करते हैं (पद.8-10) क्योंकि हमारे पास एक महान अधिवक्ता है—यीशु (2:1)उसने स्वेच्छा से हमारे पापों के लिए अंतिम कीमत चुकाई है—अपने जीवन का लहू—और “केवल हमारे ही नहीं वरन् सारे जगत के पापों का भीI” (पद.2)  

जब परमेश्वर के द्वारा हमारे पाप हमारे ध्यान में लाए जाते हैं, तो हम इन्कार, टाल-मटोल, या उत्तरदायित्व से विमुख होना चुन सकते हैं l लेकिन जब हम स्वीकार करते हैं और पश्चाताप करते हैं, तो वह उन पापों को मिटा देता हैं जो उसके साथ और दूसरों के साथ हमारे संबंधों को नुक्सान पहुंचाते हैं l 

प्रार्थना कार्ड

एक लेखन सम्मेलन के दौरान जहां मैंने एक फैकल्टी/शिक्षक (संकाय) सदस्य के रूप में सेवा की, टैमी ने मुझे एक पोस्टकार्ड दिया जिसके पीछे हाथ से लिखी हुई प्रार्थना थी। उसने समझाया कि वह शिक्षक की आत्मकथाएँ पढ़ती है, प्रत्येक कार्ड पर विशिष्ट प्रार्थनाएँ लिखती है, और उन्हें हमें सौंपते समय प्रार्थना करती है। उनके व्यक्तिगत संदेश में दिए गए विवरण से विस्मयपूर्ण होकर, मैंने टेमी द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया। फिर मैंने उसके बदले में उसके लिए प्रार्थना की। जब मैं सम्मेलन के दौरान दर्द और थकान से जूझ रही थी, तो मैंने पोस्टकार्ड निकाला। जैसे ही मैंने टैमी की टिप्पणी को फिर से पढ़ा, परमेश्वर ने मेरी आत्मा को तरोताजा कर दिया।

प्रेरित पौलुस ने दूसरों के लिए प्रार्थना के जीवन-पुष्टिकारी प्रभाव को पहचाना। उसने विश्वासियों से आग्रह किया कि वे "उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से जो आकाश में हैं" युद्ध के लिए तैयार रहें (इफिसियों 6:12) उन्होंने चल रही और विशिष्ट प्रार्थनाओं को प्रोत्साहित किया, साथ ही में एक दूसरे के लिए हस्तक्षेप करने की आवश्यकता पर बल देते हुए जिसे हम मध्यस्थ प्रार्थना कहते हैं। पौलुस ने अपनी ओर से निर्भीक प्रार्थनाओं का भी अनुरोध किया। "और मेरे लिये भी प्रार्थना करो, कि मुझे बोलने के समय ऐसा प्रबल वचन दिया जाए, कि मैं साहस के साथ  सुसमाचार का भेद बता सकूंI जिसके लिए मै ज़ंजीर में जकड़ा हुआ राजदूत हूँI " (पद. 19-20)

जब हम एक दूसरे के लिए प्रार्थना करते हैं, तो पवित्र आत्मा हमें सांत्वना देता है और हमारे संकल्प को मजबूत करता है। वह पुष्टि करता है कि हमें उसकी और एक दूसरे की आवश्यकता है, हमें विश्वास दिलाता है कि वह हर प्रार्थना सुनता है - मौन, बोली, या प्रार्थना कार्ड पर लिखी हुई - और वह अपनी सिद्ध इच्छा के अनुसार उत्तर देता है।