वेस्तमिनिस्टर की मौलिक शिक्षा अनुसार, “मनुष्य का प्रमुख उद्देश्य सर्वदा परमेश्वर की महिमा करना और उसका आनन्द लेना है।“ वचन का अधिकतर हिस्सा जीवित परमेश्वर की आनन्ददायक कृतज्ञता और भक्ति करने का आह्वान करता है। परमेश्वर का आदर करते समय, हम उसे सम्पूर्ण श्रोत के उद्गम के रूप में सराहते हैं।
अपने हृदय से उसकी प्रशंसा करते समय हम स्वयं को उस आनन्दित अवस्था में पाते हैं जिसके लिए हम रचे गए हैं। जिस तरह एक खूबसूरत सूर्यास्त अथवा शान्त चारागाह का दृश्य, सृष्टिकर्ता के प्रताप की ओर इंगित करता है, उसी तरह आराधना हमें उसके साथ निकट आध्यात्मिक मिलन प्रदान करता है। भजनकार कहता है, “यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है …. जितने यहोवा को पुकारते हैं, ….उन सभों के वह निकट रहता है“(भजन 145:3,18)।
परमेश्वर को हमारी स्तुति नहीं चाहिए, किन्तु हमें परमेश्वर की स्तुति करनी है। उसकी उपस्थिति का आनन्द उठाने के कारण हम उसके अनन्त प्रेम का पान करते हैं और उसमें आनन्तिद होते हैं जो हमें बचाने और नया करने आया। भजनकार कहता है, “तेरे निकट आनन्द की भरपूरी है, तेरे दाहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है“(भजन 16:11)।