जब हम अपने बेटे के साथ चुनौतीपूर्ण समय से गुज़र रहे थे, मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा l “मैं आप लोगों के लिए प्रतिदिन प्रार्थना करता हूँ” उसने कहा l फिर आगे कहा : “मैं दोषी महसूस करता हूँ l”
“क्यों?” मैंने पूछा l
“क्योंकि मुझे उड़ाऊ बच्चों से कभी नहीं पाला पड़ा,” उसने कहा l “मेरे बच्चे नियमों से खेलते थे l किन्तु मेरे कुछ करने या नहीं करने के कारण नहीं l “बच्चे अपने चुनाव करते हैं l” उसने कहा l
मैं उसे गले लगाना चाहता था l उसकी तरस एक ताकीद थी, परमेश्वर की ओर से एक उपहार, मेरे संघर्ष में पिता की समझ मुझ तक पहुँचना l
हमारे स्वर्गिक पिता से बेहतर उड़ाऊ बच्चों के साथ संघर्ष कोई नहीं समझता l लूका 15 में उड़ाऊ पुत्र की कहानी हमारी और परमेश्वर की है l यीशु सब पापियों के पक्ष में कहता है जिन्हें सृष्टिकर्ता के पास लौटकर उसके साथ प्रेमी सम्बन्ध का उत्साह खोजना ही है l
यीशु देह में परमेश्वर है, दूर से हम पर तरस से देखता है l वह दौड़कर हमें अपनी बाहों में लेता है l वह स्वर्ग का चुम्बन एक पश्चातापी को घर बुला रहा है (पद.20) l
परमेश्वर केवल हमारे लिए ओसारा की बत्ती जलता नहीं छोड़ा है l वह देख रहा है, इंतज़ार कर रहा है, वापस घर बुला रहा है l