हाल में मेरी बेटी काफी बीमार रही और उसका पति उसकी बहुत अच्छी देखभाल और सहयोग किया l “तुम्हारे पास वहां वास्तविक धन है!” मैंने कहा l

“जब मैंने आरंभ में उसे जाना आपका विचार ऐसा नहीं था,” उसने मुस्कराते हुए कहा l वह बिल्कुल सही थी l जब ऐसिल्डा और फिलिप की सगाई हुई, मैं चिंतित था l वे दोनों कितने भिन्न व्यक्तित्व थे l हमारा परिवार बड़ा और शोरभरा है, और फिलिप गंभीर l और मैंने बेटी से अपना शक काफी रूखेपन से बांटा था l

मैं सोच कर डर गया कि 15 वर्ष पूर्व मेरे द्वारा सरलता से की गई आलोचनाएँ मेरी बेटी को याद थीं जिससे एक सम्बन्ध बर्बाद हो गया होता जो सही और खुशहाल प्रमाणित हुआ l मुझे ताकीद मिली कि हमें अपने शब्दों पर कितनी लगाम लगानी चाहिए l हममें से अनेक जल्दबाजी में हमारे विचारानुसार किसी परिवार की, मित्रों की, या कमज़ोर सहकर्मियों की कमजोरियाँ या उनकी गलातियाँ बताते हैं l “जीभ भी एक छोटा सा अंग है,” याकूब कहता है (3:5),फिर भी उसके शब्द या तो संबंधों को ध्वस्त कर सकते हैं या किसी कार्यस्थल, चर्च, अथवा परिवार में शांति और एकता ला सकते हैं l

शायद दिन का आरंभ हमें दाऊद की प्रार्थना से करनी चाहिए : “हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर” (भजन 141:3) l