मेरी माँ कई दशक तक सन्डे स्कूल की शिक्षिका रही l उन्होंने परमेश्वर द्वारा निर्जन प्रदेश में इस्राएलियों के लिए भोजन का प्रबंध समझना चाहा l बच्चों के बीच कहानी को जीवित करने हेतु, उन्होंने “मन्ना” को दर्शाने के लिए रोटी के छोटे-छोटे टुकड़ों पर शहद डाल दी l उनकी व्यंजन-विधि बाइबल के वर्णन से प्रेरित थी “उसका स्वाद मधु के बने हुए पूए का सा था” (निर्गमन 16:31) l
जब इस्राएलियों को प्रथम बार स्वर्ग से परमेश्वर की रोटी से सामना हुआ, वह उनके तम्बुओं के बाहर भूमि पर पाले के किनकों के सामन दिखे l “जब [उन्होंने] उसे देखा तब … कहने लगे, ‘यह क्या है?’”(पद.15 Hindi C.L.) l इब्री शब्द मान हूँ का अर्थ है “क्या” इसलिए उन्होंने उसे मन्ना पुकारा l उन्होंने पाया कि वे उसे पीसकर रोटी बना सकते थे और बर्तन में पका भी सकते थे (गिनती 11:7-8) l उसकी उपस्थिति हैरान करनेवाली (निर्गमन 16:4,14), एक अद्वितीय अनुरूपता (पद.14), और शीघ्र ख़राब होनेवाला था (पास.19-20) l
कभी-कभी परमेश्वर आश्चर्यजनक ढंग से प्रावधान करता है l यह हमें ताकीद देता है कि वह हमारी अपेक्षाओं के आधीन नहीं है, और हम उसके भावी कार्यों को नहीं जान सकते l हमारी सोच में उसे क्या करना चाहिए की अपेक्षा ठहरकर उसके व्यक्तित्व पर केन्द्रित होने से उसके साथ अपने सम्बन्ध में हम आनंद और संतुष्टता पाएंगे l