फ्रान्ज़ काफ़्का (1883-1924) अपने उपन्यासों द ट्राएल और द कासल में जीवन को अमानवीय बनाने वाली ज़िन्दगी के रूप में प्रदर्शित करता है जो लोगों को बिना पहचान या मूल्यहीन निष्फल चेहरों के समुन्दर में बदल देता है l काफ़्का ने कहा, “जीवन की वाहकपट्टी आपको न जाने कहाँ लिए चलती है l व्यक्ति जीवित प्राणी से अधिक एक वस्तु है, एक चीज़ है l
अपनी सेवा के आरंभ में, यीशु नासरथ के आराधनालय में गया, लोगों के समक्ष खड़ा हुआ, और यशायाह में से पढ़ा : “प्रभु का आत्मा मुझ पर है, इसलिए कि उसने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिए भेजा है कि बंदियों को छुटकारे का और अंधों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूँ और कुचले हुओं को छुड़ाऊं, और प्रभु के प्रसन्न रहने की वर्ष का प्रचार करूँ” (लूका 4:18-19) l
तब मसीह ने बैठकर घोषणा की, “आज ही यह लेख तुम्हारे सामने पूरा हुआ”(पद.21) l शताब्दियों पहले, यशायाह नबी ने इन शब्दों की घोषणा की (यशा.61:1-2) l अब यीशु ने घोषणा की कि वह इस प्रतिज्ञा की पूर्णता है l
ध्यान दें यीशु किसको बचाने आया – निर्धन, दुखी, बंदी, दृष्टिहीन, और शोषितों को l वह पाप और दुःख, टूटापन और क्लेश द्वारा अमानवीय किये गए लोगों के लिए आया l वह हमारे लिए आया!