क्या आप ऐसी स्थिति से गुज़र रहें हैं जब समस्या हल करने का हर प्रयास एक नयी कठिनाई लेकर आती है? आप समस्या के समाधान हेतु रात में प्रभु कर धन्यवाद देते हैं किन्तु अगली सुबह आप पाते हैं कि कुछ और बिगड़ गया है और समस्या यथावत है l

ऐसे अनुभव में, मैं लूका 18 के आरंभिक शब्दों को पढ़कर चकित हो गया : “फिर उसने इसके विषय में कि नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए, उनसे यह दृष्टान्त कहा” (पद.1) l मैंने उस आग्रही विधवा के विशव अनेक बार पढ़ा हूँ किन्तु यीशु के आशय को नहीं समझा (पद. 2-8) l अब मैं उन आरंभिक शब्दों को कहानी के साथ जोड़ा l उसके अनुयायियों के लिए सीख स्पष्ट था : “निरंतर प्रार्थना करें और हियाव न छोड़ें l”

प्रार्थना अपनी इच्छापूर्ति हेतु परमेश्वर को विवश करना नहीं है l यह हमारे लिए उसकी सामर्थ्य और योजना को पहचानना है l प्रार्थना में हम अपने जीवन और परिस्थितियों को समर्पित कर उस पर भरोसा करके उसे अपनी इच्छा अपने समय में पूरी करने देते हैं l

परमेश्वर के अनुग्रह पर अपने निवेदन के परिणाम और प्रक्रिया हेतु ठहरते हुए हम प्रभु से निरंतर प्रार्थना कर हुए उसकी बुद्धिमतत्ता और देखभाल पर भरोसा कर सकते हैं l
हमारे लिए प्रभु का प्रोत्साहन स्पष्ट है : निरंतर प्रार्थना करें और हियाव न छोड़ें!