हाल ही में मेरी मुलाकात एक स्त्री से हुई जो अपना शरीर और मस्तिष्क सीमा तक ले गयी l उसने पर्वतारोहण की, मृत्यु का जोखिम उठाया, और गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी तोड़े l इस समय वह एक भिन्न चुनौती अर्थात् विशेष-ज़रूरत वाले अपने बच्चे की परवरिश कर रही है l पर्वतारोहण में प्रयुक्त हिम्मत और विश्वास को मात्तृत्व में लगा रही है l

1 कुरिन्थियों में, पौलुस एक धावक का दौड़ प्रतिस्पर्धा में भागीदारी बताता है l एक कलीसिया से आग्रह करते हुए जो परस्पर महत्व नहीं देने के अपने अधिकार द्वारा आसक्त थी (अध्याय 8), उसने अपना परिप्रेक्ष्य समझाया कि प्रेम की चनौति और आत्म-बलिदान धीरज की लम्बी दौड़ है (अध्याय 9) l यीशु के अनुयायी को, उसकी आज्ञाकारिता में अपने अधिकार को त्यागना है l मुकुट पाने हेतु जिस तरह खिलाड़ी अपने शरीर को प्रशिक्षित करते हैं, हम भी अपने प्राण की उन्नत्ति हेतु अपने शरीर और मस्तिष्क को प्रशिक्षित करें l जब हम पवित्र आत्मा से हमें क्षण-क्षण रूपांतरित करने को कहते हैं, हम पुराना मनुष्त्व पीछे छोड़ते हैं l परमेश्वर में सशक्त, हम क्रूर शब्द नहीं उच्चारते l हम अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण त्यागकर अपने मित्रों के साथ उपस्थित होते है l किसी असहमति में हमें अंतिम शब्द बोलने की ज़रूरत नहीं l

जब हम मसीह की आत्मा में दौड़ने हेतु प्रशिक्षित होते हैं, आज परमेश्वर हमें किस तरह ढालना चाहेगा?