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Articles by एमी बाउचर पाई

यीशु की सेवा करना

1800 के दशक की शुरुआत में, एलिजाबेथ फ्राई लंदन की महिला जेल की स्थितियों से भयभीत थीं। महिलाओं और उनके बच्चों को एक साथ इकट्ठा कर दिया गया और ठंडे पत्थर के फर्श पर सुलाया गया। हालाँकि उन्हें बिस्तर नहीं दिया गया था, परन्तु एक नल था, जिसमें से जिन की धारा बहती थी । वर्षों तक, उन्होंने जेल का दौरा किया और कपड़े उपलब्ध कराकर, एक स्कूल खोलकर और बाइबिल पढ़ाकर बदलाव की शुरुआत की। लेकिन कई लोगों ने उनका सबसे बड़ा प्रभाव उनकी प्रेमपूर्ण उपस्थिति और आशा के स्पष्ट संदेशों के रूप में देखा।

अपने कार्यों में, उसने जरूरतमंद लोगों की सेवा करने के यीशु के निमंत्रण का पालन किया। उदाहरण के लिए, जैतून पर्वत पर रहते हुए, मसीह ने युग के अंत के बारे में कई कहानियाँ साझा कीं, जिनमें से एक "अनन्त जीवन में धर्मी लोगों" के स्वागत के बारे में भी थी (मत्ती 25:46)। इस कहानी में, राजा धर्मी लोगों से कहता है कि उन्होंने उसे पीने के लिए कुछ दिया, उसे अंदर आमंत्रित किया और जेल में उससे मुलाकात की ( पद 35-36)। जब वे ऐसा करने को याद नहीं कर सके, तो राजा ने जवाब दिया: "तुमने मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।"  ( पद 40)।

क्या आश्चर्य है कि जब हम पवित्र आत्मा की सहायता से दूसरों की सेवा करते हैं, तो हम यीशु की भी सेवा करते हैं।  हम एलिजाबेथ फ्राई के उदाहरण का अनुसरण कर सकते हैं, और हम घर से भी सेवा कर सकते हैं, जैसे मध्यस्थता प्रार्थना या उत्साहवर्धक संदेश भेजकर। जब हम दूसरों की सहायता के लिए अपने आत्मिक वरदानों और प्रतिभाओं का उपयोग करते हैं तो यीशु हमसे प्रेम करने के लिए हमारा स्वागत करते हैं।

 

नम्र जोर्न(Jorn)

उन्होंने नहीं सोचा था कि भूमि पर खेती करने वाले काश्तकार/पट्टेदार जोर्न का महत्व इतना अधिक होगा l फिर भी अपनी कमजोर दृष्टि और अन्य शारीरिक सीमाओं के बावजूद, उसने नॉर्वे में अपने गाँव के लोगों के लिए खुद को समर्पित कर दिया, और कई रातों तक प्रार्थना की जब उनके दर्द ने उन्हें जगाए रखा l प्रार्थना में वह एक घर से दूसरे घर जाते थे, प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग नाम लेते थे, यहाँ तक कि उन बच्चों का भी, जिनसे वह तब नहीं मिले थे l लोग उनकी दयालु भावना को पसंद करते थे और उनकी बुद्धिमत्ता और सलाह लेते थे l यदि वह व्यवहारिक रूप से उनकी सहायता नहीं कर सका, तो उनकी जाने के बाद भी वे उसका प्यार पाकर धन्य महसूस करेगे l और जब जोर्न की मृत्यु हुयी, तो उसका अंतिम संस्कार उस समुदाय में अब तक का सबसे बड़ा अंतिम संस्कार था, भले ही उसका कोई परिवार नहीं था l उसकी प्रार्थनाएं फलीभूत हुयी और उसकी कल्पना से भी परे फल प्राप्त हुआ l 

इस विनम्र व्यक्ति ने प्रेरित पौलुस के उदाहरण का अनुसरण किया, जो उन लोगों से प्यार करता था जिनकी वह सेवा करता था और कैद में रहते हुए उनके लिए प्रार्थना करता था l जब वह संभवतः रोम में कैद था तब उसने इफिसुस के लोगों को लिखा, प्रार्थना करते हुए कि परमेश्वर उन्हें “ज्ञान और प्रकाश की आत्मा दे, और [उनके] मन की आँखें ज्योतिर्मय हो [जाएँ]” (इफिसियों 1:17-18) l उसकी इच्छा थी कि वे यीशु को जाने और आत्मा की शक्ति के द्वारा प्रेम और एकता के साथ रहें l 

जोर्न और प्रेरित पौलुस ने खुद को ईश्वर के सामने समर्पित कर दिया l क्या हम आज उनके उदाहरणों पर विचार कर सकते हैं कि हम किस प्रकार दूसरों से प्रेम करते हैं और उनकी सेवा करते हैं l 

 

ईश्वर को ज्ञात कराना

कैथरीन के बाइबल अनुवाद कार्य में परमेश्वर और लोगों के प्रति प्रेम को सुदृढ़ करना है। उन्हें आनंद मिलता है जब भारत में महिलाएँ अपनी मातृभाषा में पवित्र शास्त्र पढ़कर उसकी गहरी समझ हासिल करती हैं। वह टिप्पणी करती है कि जब वे महिलाएँ ऐसा करती हैं, “वे अक्सर जयकार करना या ताली बजाना शुरू कर देती हैं। वें यीशु के बारे में पढ़ती हैं, और वे कहती हैं, 'ओह, अद्भुत!'

कैथरीन की इच्छा हैं कि अधिक से अधिक लोग अपनी भाषा में पवित्र शास्त्र को पढ़ सके। इस इच्छा में, वह पेटमोस द्वीप पर वृद्ध शिष्य यहून्ना के दर्शन को अपने दिल के करीब रखती है। आत्मा के द्वारा, परमेश्वर ने उसे स्वर्ग के सिंहासन कक्ष में पहुँचाया, जहाँ उसने "हर राष्ट्र, कुल, लोग और भाषा से एक ऐसी बड़ी भीड़ को, जिसे कोई गिन नहीं सकता था, सिंहासन और मेम्ने के सामने खड़ी देखी" (प्रकाशितवाक्य 7: 9). सबने मिलकर परमेश्वर की आराधना करते हुए कहा, “उद्धार हमारे परमेश्वर का है” (पद 10)।

परमेश्वर लगातार अपनी स्तुति करने वाले लोगों की बड़ी भीड़ में अधिकता करता जा रहा है। वह न केवल बाइबिल अनुवादकों और उनके लिए प्रार्थना करने वालों के काम का उपयोग करता है, बल्कि उन लोगों का भी उपयोग करता है जो यीशु के सुसमाचार को लेकर प्रेम से अपने पड़ोसियों तक पहुंचते हैं। हम इस आनंदमय मिशन में आनंदित हो सकते हैं, यह सोचकर आश्चर्यचकित हो सकते हैं कि परमेश्वर कैसे अधिक लोगों को जोश से भरेंगे स्वर्गदूतों के साथ मिलकर यह कहेंगे के लिए, "हमारे परमेश्वर की स्तुति, और महिमा, और ज्ञान, और धन्यवाद, और आदर और सामर्थ और शक्ति युगानुयुग बनी रहें" (पद 12)।   

 

देखने वाली आँखें

जॉय अपने रिश्तेदार सैंडी के लिए चिंतित थी, जो वर्षों से शराब और मानसिक-स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहा था। जब वह सैंडी के अपार्टमेंट में गई, तो दरवाजे बंद थे और वह खाली लग रहा था। जैसे ही उसने और अन्य लोगों ने सैंडी को ढूँढने की योजना बनाई, जॉय ने प्रार्थना की, "परमेश्वर, मुझे वह देखने में मदद करें जो मैं नहीं देख पा रही हूँ।" जैसे ही वे जा रहे थे, जॉय ने पीछे मुड़कर सैंडी के अपार्टमेंट की ओर देखा और उसे पर्दे की हल्की सी हलचल दिखाई दी। उस क्षण, वह जान गयी की सैंडी जीवित है। हालाँकि उस तक पहुँचने के लिए आपातकालीन सहायता की आवश्यकता थी, लेकिन जॉय को प्रार्थना का उत्तर मिलने से खुशी हुई।

भविष्यवक्ता एलीशा परमेश्वर से उसकी वास्तविकता प्रकट करने के लिए कहने की शक्ति को जानता था। जब सीरियाई सेना ने उनके शहर को घेर लिया, एलीशा का सेवक डर से कांप उठा। हालाँकि, वह परमेश्वर का जन नहीं था, फिर भी परमेश्वर की सहायता से उसने अदृश्य की झलक देखी। एलीशा ने प्रार्थना की थी कि वह सेवक भी देखे, और "यहोवा ने उस सेवक की आंखें खोल दीं" और उसने "अग्निमय घोड़ों और रथों से भरी पहाड़ियां" देखीं (2 राजा 6:17)।

परमेश्वर ने एलीशा और उसके सेवक के लिए आत्मिक और भौतिक संसारो के बीच का पर्दा हटा दिया। जॉय का विश्वास करना कि परमेश्वर ने उसे पर्दे की छोटी सी झिलमिलाहट देखने में मदद की, उससे उसे आशा मिली। हम भी उससे हमारे आस-पास क्या हो रहा है, यह समझने के लिए आत्मिक दृष्टि पाने की प्रार्थना करे, चाहे हमारे प्रियजनों के साथ या हमारे समुदायों में। और हम भी उसके प्रेम, सत्य और करुणा के दूत बन सकते हैं।

 

देखने के लिए आँखें

जेनेवीव को अपने तीन बच्चों के लिए "आँखें" बनना था, जिनमें से प्रत्येक जन्मजात मोतियाबिंद के साथ पैदा हुए थे। जब भी वह उन्हें पश्चिमी अफ्रीका के बेनिन गणराज्य में अपने गांव में ले जाती थी, तो वह बच्चे को अपनी पीठ पर बांध लेती थी और अपने दो बड़े बच्चों की बांह और हाथ को पकड़कर रखती थी, हमेशा खतरे से डरती थी। ऐसी संस्कृति में जहां यह माना जाता था कि अंधापन जादू-टोना के कारण होता है, जेनेवीव निराश हो गई और उसने मदद के लिए परमेश्वर को पुकारा।

तब उसके गांव के एक व्यक्ति ने उसे मर्सी शिप्स के बारे में बताया, एक सेवा-संस्थान जो गरीबों के लिए, आशा और उपचार करने के, यीशु के द्वारा किए गए कामों को सम्मान देने सम्मान के लिए महत्वपूर्ण सर्जरी प्रदान करता है। उसे यकीन नहीं था कि वे मदद कर सकते हैं, लेकिन वह उनके पास गई। जब बच्चे अपनी सर्जरी के बाद उठे तो उन्हें दिखाई दिया !

परमेश्वर की कहानी हमेशा अंधकार में डूबे लोगों को रोशनी की ओर लाने के बारे में रही है। भविष्यद्वक्ता यशायाह ने घोषणा की कि परमेश्वर "अन्यजातियों के लिए ज्योति" होगा (यशायाह 42:6)। वह "अंधों की आंखें खोल देगा" (पद 7), न केवल भौतिक दृष्टि बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि भी बहाल करेगा। और उसने अपने लोगों का हाथ "पकड़ने" का वादा किया (पद 6)। उन्होंने अंधों को दृष्टि प्रदान की और अंधेरे में रहने वालों को प्रकाश प्रदान किया।

यदि आप अंधेरे से पराजित महसूस करते हैं, तो आशा से जुड़े रहें क्योंकि आप हमारे प्यारे पिता के वादों को अपनाते हैं और रोशनी लाने के लिए उनकी रोशनी मांगते हैं।

 

यीशु मसीह आज जी उठे हैं!

इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लेने से पहले चार्ल्स सिमयौन (शिमोन) को घोड़ों और कपड़ों से बहुत प्यार था, वह अपनी पोशाक (कपड़ों)  पर हर साल बड़ी रकम खर्च करते थे। लेकिन क्योंकि अपने कॉलेज के लिए उन्हें नियमित कम्युनियन सर्विस (प्रभु भोज) में भाग लेने की आवश्यकता थी, उन्होंने यह पता लगाना शुरू कर दिया कि वह किस चीज़ पर विश्वास करता है। यीशु में विश्वासियों द्वारा लिखी गई किताबें पढ़ने के बाद, उन्होंने ईस्टर (पुनुरुत्थान) रविवार को एक नाटकीय (प्रभावशाली) बदलाव का अनुभव किया। 4 अप्रैल, 1779 को सुबह उठकर उन्होंने चिल्लाकर कहा, “यीशु मसीह आज जी उठे हैं! हालेलुइया! हालेलुइया!” जैसे-जैसे उनका परमेश्वर में विश्वास बढ़ता गया, उन्होंने खुद को बाइबल अध्ययन, प्रार्थना और चैपल सेवाओं में भाग लेने के लिए समर्पित कर दिया। 

पहले ईस्टर पर, यीशु की कब्र पर पहुंची दो महिलाओं का जीवन बदल गया था । वहाँ उन्होंने एक भयंकर भुईंडोल देखा जब एक स्वर्गदूत ने कबर से पत्थर को लुढ़काया। स्वर्गदूत ने उन से कहा, “तुम मत डरो : मै जानता हूँ कि तुम यीशु को जो क्रुस पर चढ़ाया गया था ढूंढ़ती हो। वह यहाँ नहीं है, परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठा है; आओ, यह स्थान देखो, जहाँ प्रभु पड़ा था। (मत्ती 28:5-6)। बहुत आनंदित होकर, महिलाओं ने यीशु की आराधना की और अपने दोस्तों को खुशखबरी सुनाने के लिए वापस दौड़ीं। 

जी उठे मसीह का अचानक सामना करना प्राचीन काल के लिए आरक्षित नहीं है - वह हमसे यहीं और अभी मिलने का वादा करता है। हम एक नाटकीय मुलाकात का अनुभव कर सकते हैं, जैसे कि कब्र पर मौजूद महिलाएं या चार्ल्स शिमोन ने किया था, या शायद हम ऐसा नहीं कर सकते। जिस भी तरीके से यीशु स्वयं को हमारे सामने प्रकट करते हैं, हम भरोसा कर सकते हैं कि वह हमसे प्रेम करते हैं।

प्रेम करने की एक नयी आज्ञा

तेरहवीं शताब्दी की शुरुआत से शुरू हुई परंपरा में, यूनाइटेड किंगडम  में शाही परिवार के सदस्य गुड फ्राइडे  से एक दिन पहले, मौंडी गुरुवार (Maundy Thursday) को जरूरतमंद लोगों को उपहार देते हैं। यह प्रथा मॉन्डी शब्द के अर्थ में निहित है, जो लैटिन मैंडेटम, "कमांड" से आया है। जिस आदेश का स्मरण किया जा रहा है वह नयी आज्ञा  है जो यीशु ने मरने से पहले की रात को अपने मित्रों को दी थी: “एक दूसरे से प्रेम रखो। जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो” (यूहन्ना 13:34)।

यीशु एक अगुवा थे जिन्होंने अपने मित्रों के पैर धोते समय एक सेवक की भूमिका निभाई (पद-5)। फिर यीशु ने उन्हें भी ऐसा ही करने के लिए बुलाया: "मैंने तुम्हे नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है,तुम भी वैसा ही किया करो । " (पद 15) और इससे भी बड़े बलिदान के कार्य में, उन्होंने क्रूस पर  अपने जीवन का बलिदान  दिया (19:30)। दया और प्रेम से, उन्होंने स्वयं को दे दिया ताकि हम जीवन की परिपूर्णता का आनंद उठा सकें। 

ब्रिटिश शाही परिवार की जरूरतमंद लोगों की सेवा करने की परंपरा यीशु के महान उदाहरण का अनुसरण करने के प्रतीक के रूप में जारी है। हो सकता है कि हमारा जन्म विशेष अवसर वाले स्थान पर न हुआ हो, लेकिन जब हम यीशु में अपना विश्वास रखते हैं, तो हम उनके परिवार के सदस्य बन जाते हैं। और हम भी उनकी नई आज्ञा को पूरा करके अपना प्रेम दिखा सकते हैं। क्योंकि हम स्वयं को भीतर से बदलने के लिए परमेश्वर की आत्मा पर निर्भर हैं, हम देखभाल, समर्थन और अनुग्रह के साथ दूसरों तक पहुँच सकते हैं।

अपने शत्रुओं से प्रेम

अमेरिकी गृहयुद्ध ने कई कड़वी भावनाओं को जन्म दिया, अब्राहम लिंकन ने दक्षिण के बारे में एक दयालु शब्द बोलना उचित समझा l एक हैरान दर्शक ने पूछा कि वह ऐसा कैसे कर सकता है l उन्होंने उत्तर दिया, “महोदया, क्या मैं अपने शत्रुओं को मित्र बनाकर उन्हें नष्ट नहीं कर देता हूँ?” एक शताब्दी के बाद उन शब्दों पर विचार करते हुए, मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने टिप्पणी की, “यह मुक्तिदायक प्रेम की शक्ति है l”

यीशु मसीह के शिष्यों को अपने शत्रुओं से प्रेम करने के लिए बुलाते समय, किंग ने यीशु की शिक्षाओं पर ध्यान दिया l उन्होंने कहा कि यद्यपि विश्वासियों को उन्हें सताने वालों से प्यार करने में कठिनाई हो सकती है, यह प्यार “परमेश्वर के प्रति निरंतर और पूर्ण समर्पण” से बढ़ता है l किंग ने कहा, “जब हम इस तरह से प्यार करते हैं, हम परमेश्वर को जानेंगे और उसकी पवित्रता की सुन्दरता का अनुभव करेंगे l” 

किंग ने यीशु के पहाड़ी उपदेश का सन्दर्भ दिया जिसमें उन्होंने कहा था, “अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना करो, जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की संतान ठहरोगे: (मत्ती 5:44-45) l यीशु ने अपने पड़ोसियों से प्रेम और अपने शत्रुओं से घृणा करने के उस समय के पारंपरिक ज्ञान के विरुद्ध सलाह दी l बल्कि, पिता परमेश्वर अपने बच्चों को विरोध करनेवालों से प्रेम करने की सामर्थ्य देता है l 

अपने शत्रुओं से प्यार करना असंभव लग सकता है, लेकिन जब हम मदद के लिए ईश्वर की ओर देखते हैं, तो वह हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देगा l वह इस कठिन पद्धति को अपनाने का साहस देता है, क्योंकि जैसा कि यीशु ने कहा था, “परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है” (19:26) l 

परमेश्वर का परिवर्तनकारी वचन

जब क्रिस्टिन अपने चीनी पति के लिए एक विशेष पुस्तक खरीदना चाहती थी, तो उसे चीनी भाषा में केवल एक बाइबल ही मिली l हलाकि उनमें से कोई भी मसीह में विश्वास करने वाला नहीं था, फिर भी उसे उम्मीद थी कि वह उपहार की सराहना करेगा l बाइबल को पहली नज़र में देखकर वह क्रोधित हो गया, लेकिन अंततः उसने इसे समझ लिया l जैसे-जैसे उसने पढ़ा, वह इसके पन्नों की सच्चाई से विवश हो गया l इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से परेशान होकर, क्रिस्टिन ने उसका खंडन करने के लिए धर्मग्रंथ पढ़ना आरम्भ कर दिया l उसे आश्चर्य हुआ, उसने जो पढ़ा उससे आश्वस्त होकर उसे भी यीशु पर विश्वास हो गया l 

प्रेरित पौलुस पवित्रशास्त्र की बदलती प्रकृति को जानता था l रोम की जेल से लिखते हुए, उसने तीमुथियुस से, जिसका उन्होंने मार्गदर्शन किया था, आग्रह किया कि “तू उन बातों पर जो तू ने सीखीं हैं . . . दृढ़ रह” क्योंकि “बचपन से पवित्रशास्त्र तेरा जाना हुआ है” (2 तीमुथियुस 3:14-15) l मूल भाषा, यूनानी में “दृढ़ रह” का अर्थ बाइबल में बताई गयी बातों में “बने रहना” है l यह जानते हुए कि तीमुथियुस को विरोध और उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा, पौलुस चाहता था कि वह चुनौतियों के लिए तैयार रहे; उसका मानना था कि उसके शिष्य को बाइबल में ताकत और ज्ञान मिलेगा क्योंकि उसने इसकी सच्चाई पर विचार करने में समय बिताया था l 

परमेश्वर अपनी आत्मा के द्वारा पवित्रात्मा को हमारे लिए जीवित करता है l जैसे ही हम उसमें निवास करते हैं, वह हमें उसके जैसा बनाने के लिए बदल देता है l जैसा कि उन्होंने सियो-हू और क्रिस्टिन के साथ किया था l