परंपरागत अफ्रीकी समाज में नेतृत्व पदारोहण एक गंभीर निर्णय है l किसी राजा की मृत्यु बाद, अगले शासक के चुनाव में अत्यधिक ध्यान दिया जाता है l एक राजसी परिवार का होने के बावजूद, उत्तराधिकारी को ताकतवर, साहसी, और विवेकपूर्ण होना ज़रूरी होता है l पदाभिलाषी से यह निश्चित किया जाता है कि वह लोगों की सेवा करेगा या क्रूर शासक होगा l उत्तराधिकारी को सेवक अगुआ होना था l

अपने गलत चुनाव के बावजूद, सुलेमान अपने उत्तराधिकारी के विषय चिंतित था l “यह कौन जनता है कि वह मनुष्य बुद्धिमान होगा या मूर्ख? तौभी धरती पर जितना परिश्रम मैंने किया, और उसके लिए बुद्धि प्रयोग की उस सब का वही अधिकारी होगा” (सभो. 2:19) l उसका उत्तराधिकारी उसका पुत्र रहूबियाम गलत निर्णय प्रदर्शित कर वही किया जिससे उसका पिता सबसे अधिक डरता था l

लोगों द्वारा अधिक मानवीय कार्य स्थिति मांगने पर, रहूबियाम को दास अगुआ बनना था l “[बूढ़ों] ने उसको यह उत्तर दिया, “यदि तू अभी प्रजा के लोगों का दास बनकर उनके अधीन हो … वे सदैव तेरे अधीन बने रहेंगे” (1 राजा 12:7) l किन्तु उसने उनकी सलाह ठुकराकर परमेश्वर को नहीं खोजा l उसके कठोर प्रतिउत्तर ने उसके राज्य को विभाजित कर परमेश्वर के लोगों के आत्मिक पतन को गति दी (12:14-19) l

परिवार, कार्यस्थल, चर्च, या पड़ोस में – हमें सेवा मानवता की सेवा हेतु बुद्धिमत्ता चाहिए l