बचपन में, मेरे पिता झाड़ियों में छिपकर सिंह की तरह गुर्राकर हमें “डराते” थे l 1960 में ग्रामीण घाना में रहते हुए भी, किसी सिंह का निकट घात लगाना लगभग असम्भव था l हम दोनों भाई हँसकर उत्तेजित होते थे कि पिता के साथ खेलने का समय आ गया l
एक दिन एक युवा मित्र मिलने आयी l खेलते समय हमने परिचित गुर्राना सुना l वह चिल्लाकर भागी l हमदोनों भाई पिता की आवाज़ जानते थे – कोई “खतरा” केवल काल्पनिक ही हो सकता था – किन्तु कुछ हास्यस्पद हुआ l हम उसके साथ भागे l मेरे पिता को उसका डरना ख़राब लगा, और हम दोनों भाइयों ने दूसरों के घबराने के प्रतिउत्तर से अप्रभावित होना सीखा l
कालेब और यहोशू दूसरों के घबराहट में शांत रहे l इस्राएल के प्रतिज्ञात देश में प्रवेश के समय, मूसा ने छानबीन हेतु 12 जासूस भेजे l उन्होंने सुन्दर क्षेत्र को देखा, किन्तु 10 के बाधाओं पर ध्यान देने से पूरा राष्ट्र हतोत्साहित हुआ (गिनती 13:27-33) l वे घबराए (14:1-4) l केवल कालेब और यहोशू ने स्थिति को सही समझा (पद.6-9) l उन्होंने अपने पिता का इतिहास जानते हुए सफलता पाने पर भरोसा किया l
कुछ “सिंह” वास्तविक डर उत्त्पन्न करते हैं l दुसरे कल्पना हैं l यीशु के चेले होने के कारण हमारा भरोसा उसमें है जिसकी आवाज़ और कार्य हम जानते और भरोसा करते हैं l