जब दक्षिण अफ़्रीकी पासबान, एन्ड्रू मुरे 1895 में इंगलैंड गए, उन्हें बीते समय में लगी पीठ की चोट में दर्द होने लगी l स्वास्थ्य प्राप्त करते समय, उनकी परिचारिका ने एक स्त्री के विषय बताया जो अति पीड़ा में उनकी सलाह लेना चाहती थी l मुरे ने कहा, “उन्हें यह कागज़ देना जो मैं अपने [प्रोत्साहन] के लिए लिख रहा था l शायद उसके लाभ का हो l” मुरे ने यह लिखा :

“परेशानी में हम कहते हैं :

प्रथम – परमेश्वर हमें यहाँ लाया l उसकी इच्छा में मैं इस कठिन स्थान में हूँ l उसमें मैं विश्राम करूँगा l

अगला – वह मुझे अपने प्रेम में रखेगा और अपनी संतान की तरह व्यवहार करने के लिए मुझे इस क्लेश में अनुग्रह देगा l

तब – वह क्लेश को आशीष बनाएगा, अपनी इच्छानुसार सीख देगा, और अपने अनुग्रह के अनुसार मुझमें कार्य करेगा l

आखिरी – अपने अच्छे समय में वह मुझे निखारेगा- कैसे और कब वह जानता है l

मैं यहाँ हूँ – परमेश्वर की नियुक्तिनुसार, उसकी सुरक्षानुसार, उसके प्रशिक्षण में, उसके नाम हेतु l”

हम त्वरित हल चाहते हैं, क्विक फिक्स, किन्तु कुछ एक बातें सरलता से हटाई नहीं जा सकती; उन्हें केवल स्वीकारा जाता है l परमेश्वर हमें अपने प्रेम द्वारा सुरक्षित रखेगा l अपने अनुग्रह द्वारा, हम उसमें विश्राम कर सकते हैं l