जब मेरे पिता वृद्धावस्था में मसीही बने, उन्होंने मुझे परीक्षा पर जयवंत होने की अपनी योजना से मुग्ध कर दिया l कभी-कभी वे केवल दूर चले जाते थे! उदाहरनार्थ, जब कभी पड़ोसी और उनके बीच कोई असहमति हुई, विवाद को बढ़ाने की जगह वे दूर हट गए l

एक दिन उनके मित्रों ने पिट्टो (स्थानीय मदिरा) मंगवाया l मेरे पिता पूर्व में मदिरा से संघर्ष कर चुके थे और उससे दूर रहने का निर्णय लिए थे l इसलिए, खड़े होकर किसी और दिन मिलने का वादा करके उनसे विदा ली l

उत्पत्ति में, पोतीपर की पत्नी युसूफ को परीक्षा में डालना चाही l यह जानकार कि इससे वह “परमेश्वर का अपराधी” बन जाएगा, भाग गया (उत्प.39:9-12) l

परीक्षा अक्सर हमारे द्वार पर दस्तक देती है l कभी-कभी ये हमारी ही अभिलाषा से आती है, अन्य समयों पर स्थितियों और लोगों से जिनका हम सामना करते हैं l जिस प्रकार पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखा, “तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है l”किन्तु उसने यह भी लिखा, “परमेश्वर सच्चा है और वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन् परीक्षा के साथ निकास भी करेगा कि तुम सह सको” (1 कुरि. 10:13) l

“निकास” में परीक्षा की वस्तुओं को हटाना या उनसे दूर भागना शामिल है l हमारा सर्वोत्तम कार्य केवल दूर जाना है l