बीच दोपहर का समय था, लम्बी यात्रा से थकित यीशु याकूब के कुँए पर विश्राम कर रहा था l उसके चेले सूखार शहर में रोटी खरीदने गए थे l एक स्त्री जल भरने आयी … और अपने उद्धारकर्ता को खोज लिया l वृतांत हमें बताता है कि वह शीघ्र शहर में जाकर दूसरों को “एक मनुष्य [को सुनने हेतु अमंत्रित की] जिसने सब कुछ जो मैं ने किया मुझे बता दिया” (यूहन्ना 4:29) l
चेले रोटी लेकर आए l जब उन्होंने यीश से भोजन करने को कहा, उसने उनसे कहा, “मेरा भोजन … अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार [चलना] और उसका काम पूरा [करना] है” (पद.34) l
अब मैं पूछता हूँ : यीशु क्या कर रहा था? वह विश्राम और कुँए पर इंतज़ार कर रहा था l
मैं इस कहानी में अत्यधिक प्रोत्साहन पाता हूँ क्योंकि मेरे पास शारीरिक सीमा है l परिच्छेद कहता है कि मुझे दौड़-भाग करना ज़रूरी नहीं है – पिता की इच्छापूर्ति और उसके कार्य को पूरा करने हेतु चिंता करना l जीवन के इस समय में, मैं विश्राम कर उसके निकट ठहर सकता हूँ कि वह अपना कार्य मेरे निकट लाए l
उसी तरह, आपका छोटा घर, कार्य कक्ष, कारागार कमरा, या हस्पताल का आपका बिस्तर “याकूब का कुआँ” बन सकता है, एक विश्राम स्थल और पिता द्वारा अपना कार्य आपके पास लाने का स्थान l मैं सोचता हूँ आज वह आपके पास किसको लाएगा?